कई बार कुछ शब्दो को सही तरह से जब नहीं कहा जाता है तो हंसी का पात्र बनना पडता है. इसकी वजह कुछ बीमारियां होती है. स्पीच लैंगवेज थेरेपिस्ट की मदद से इस परेशानी को दूर किया जा सकता है. यह परेशानी  आत्मविश्वास को कमजोर करती है. पहले इसको जन्मजात मानकर स्वीकार कर लिया जाता था अब इसको ठीक करने के उपाय किये जाते है. इसके बेहतर परिणाम भी मिलते है.
कुछ व्यक्तियों को बोलने में कठिनाई होती है. इसकी वजह यह होती है कि बोलने में प्रयोग होने वाली कुछ मांसपेशियां सही तरह से काम नहीं करती है. इसके कारण व्यक्तियों को बोलने में दिक्कत होती है. यह परेशानी बचपन से ही शुरू हो जाती है. इस परेशानी को जितनी जल्दी समझ लिया जाये और इसका इलाज शुरू हो उतना ही अधिक लाभ होता है. जिन व्यक्तियों को बोलने में परेशानी होती है वह सही तरह से तर्कपूर्ण ढंग से अपनी बात रख सकते है.
ऐसे लोगों को केवल बोलने में दिक्कत होती है. ऐसे लोगों को कुछ शब्दों को स्पष्ट करने में, शब्दों का सही उच्चारण करने में दिक्कत आती है. ऐसे लोगो को हीन भावना लगती है. स्पीच लैग्वेज थेरेपी के जरीये इस तरह की परेशानी को दूर करके आत्मविश्वास को हासिल किया जा सकता है. इस तरह की परेशानियां कई तरह से आ सकती है. किसी भी उम्र में आ सकती है. मेडिकल बोलचाल में इसको एप्रेक्सिया कहा जाता है.

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1. बोली के टोन को भी बदला जा सकता है:
कई बार किसी तरह के एक्सीडेंट के कारण भी यह समस्या आ जाती है. इसको ठीक करने के लिये स्पीच लैग्वेज थेरेपी मददगार होती है. स्पेशल बच्चे जो मानसिक रोगों के शिकार होते है उनको भी स्पीच लैग्वेज थेरेपी से लाभ हो सकता है. लखनऊ की रहने वाली नेहा तिवारी स्पीच लैग्वेज थेरेपिस्ट है. वह ऐसे मामलों को ठीक करने के लिये अपने स्तर से तो प्रयास कर ही रही है अधिक से अधिक लोगों को ऐसे मुददों से जोडने के लिये ‘सचेतता’ नाम से अपनी संस्था भी चला रही है.

नेहा तिवारी कहती है ‘मैने इस फील्ड में 20 साल पहले काम शुरू किया था. तब लोगों को यह कम पता होता था कि इस परेशानी को ठीक भी किया जा सकता है. आज एक बडे वर्ग के लोगों को यह पता है कि उनकी परेशानियों का समाधान है. अब हर शहर में ऐसे बहुत सारे लोग मौजूद है जो स्पीच लैग्वेज थेरेपी के लिये काम कर रहे है. अब कुछ ऐसे लोग भी इसका लाभ उठाने की कोशिश करते है जो अपनी बोली का टोन बदलना चाहते है. अगर कोई गांव का या किसी बोली विशेष के इलाके का रहने वाला है. उसकी बातचीत से यह पता चल जाता है  िक वह कहां का है. और वह नही चाहता कि ऐसे लोग पहचान सके. ऐसे में स्पीच लैग्वेज थेरेपी उसकी बोली के टोन को बदलने में मदद कर सकती है.’

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2.एप्रेक्सिया परेशानी के कारण :
कुछ बच्चों में बोलने की इस तरह की परेशानी जन्मजात होती है. इसका पता बचपन में ही चल जाता है. जब बच्चे बोलना सीखना शुरू कर देते हैं. कुछ लोग यह मानते है कि यह आनुवांशिक कारणों से हो सकता है. कुछ बीमारियों जैसे ऑटिज्म, सेरेब्रल पाल्सी, मिर्गी या न्यूरोमस्कुलर परेशानी के कारण यह हो सकता है. इसके अलावा मस्तिष्क क्षति के कारण यह हो सकता है, दुर्घटना, संक्रमण, स्ट्रोक, मस्तिष्क ट्यूमर के कारण या न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग के कारण यह परेशानी हो सकती है.

3. एप्रेक्सिया के लक्षण:
इसमें बोलने में परेशानी होती है. जबड़े, होंठ और जीभ को सही ढंग से प्रयोग करने में दिक्कत होती है. यह अलग अलग प्रकार का हो सकता है. कभी कभी मंच पर भाषण देने, कुछ कठिन शब्दों के उच्चारण में बारबार दिक्कत आने लगती है. कुछ षब्दो की ध्वनियांे के बीच विराम आ जाता है. कई बार पूरे पूरे वाक्यों को बोलने में दिक्कत आती है. शब्दांश या शब्द दोनो को लेकर दिक्कत हो सकती है.

कुछ बच्चों के मामले में जन्म के समय से ही यह परेषानी रहती है. ऐसे बच्चों को कुछ शब्दों को कहने में कठिनाई होती है. खासकर अगर वे बहुत लंबे हैं. इसके अलावा उनमें से कई में यह परेषानी बाद मे पता चलती है. ऐसी परेशानियों को दूर करने के लिये स्पीच लैग्वेज थेरेपिस्ट और जानकार डाक्टर से मिलना चाहिये. डाक्टर जांच के बाद यह पता कर लेता है कि यह परेशानी किस वजह से होती है. इसकी जांच में होठों की जांच, जबडे और जीभ कह जांच की जाती है. जैसी समस्या होती है उसका वैसा ही समाधान किया जाता है. एप्रेक्सिया गंभीर बीमारी होती है. यह पूरी पर्सनाल्टी को प्रभावित करती है.

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4. स्पीच लैग्वेज थेरेपी है मददगार:
स्पीच लैग्वेज थेरेपी के जरीये इसका इलाज किया जाता है. स्पीच थेरेपी के कई सीटिंग्स करनी पडती है. यह थेरेपी लगातार होनी चाहिये. यह काम थेरेपिस्ट की देखरेख में करना चाहिये. कई बार लोग आधीअधूरी जानकारी के साथ इसको करते है. यह नहीं करना चाहिये. थेरेपिस्ट के बाद इसका अभ्यास घर करना चाहिये. घर परिवार और पैरेंटस का सहयोग इसमें बेहद उपयोगी होता है. स्पीच लैग्वेज थेरेपिस्ट नेहा तिवारी कहती है ‘हम पैरेंटस के साथ पूरी बात करते है. पैरेंटस की योगदान बेहद जरूरी होता है. ऐसे में पैरेंटस को भी स्पीच लैग्वेज थेरेपी की जानकारी लेनी चाहिये. जिससे वह बच्चे के विकास में सही तरह से मदद कर सके.

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