चुनाव इसलिये होते हैं कि जनता विकास और तरक्की की बात करने वाले को वोट देकर सरकार बनाने में मदद करे. नेता बहुत होशियार होते हैं. वह ऐसा कोई वादा न करना पड़े इसके लिये बेकार की जुमले बाजी करते हैं. जिससे समाज की बदहाली, बेकारी और पिछड़ेपन पर बात न हो सके. उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से चुनावी जुमले उछाल कर वार पर वार हो रहे हैं. एक दल और नेता ऐसी जुमलेबाजी करता है तो दूसरा उसको आगे बढ़ाने का काम करता है. ऐसे में धीरे-धीरे सभी एक सा काम करने लगते हैं.

उत्तर प्रदेश में ताजा विवाद गुजरात के गधे का लेकर छिड़ गया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन के एक विज्ञापन का जिक्र करते कहा कि फिल्मों के महानायक को गुजरात के गधों का विज्ञापन नहीं करना चाहिये.

असल में अभिनेता अमिताभ बच्चन ने गुजरात पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये कई तरह के विज्ञापन किये हैं. एक विज्ञापन में वह गुजरात के गधे का विज्ञापन भी कर चुके हैं. गुजरात में गधे की मशहूर नस्ल है. यही कारण है कि वहां पर साल 2013 में गुजरात के गधे को लेकर केन्द्र सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था. उस समय केन्द्र में कांग्रेस के अगुवाई वाली यूपीए की सरकार थी. ऐसे में अमिताभ बच्चन के प्रचार में किसी तरह के हर्ज करने वाली बात नहीं थी.

चुनावी जुमले की तरह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसका प्रयोग कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष किया. अखिलेश यादव के साथ काम करने वाले लोगों को यह उम्मीद नहीं थी कि प्रधानमंत्री मोदी गधे पर किये गये इस कटाक्ष को प्रचार का जरीया बना लेंगे.

23 फरवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में चुनावी रैली थी. प्रधानमंत्री मोदी ने गधे को ही अपना हथियार बना लिया. प्रधानमंत्री ने कहा गधे से प्रेरणा ली जा सकती है. वह अपने मालिक के प्रति वफादार होता है. वह चीनी और चूना में फर्क करना पंसद नहीं करता. मैं तो उससे प्रेरणा लेकर बिना थके काम करने में यकीन रखता हूं. यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अखिलेश सरकार जानवरों में भी जातिवादी मानसिकता दिखाती है. भैंस खो गई तो उसने पूरे प्रदेश की पुलिस लगा दी. गधे का विज्ञापन भी देखना गवारा नहीं. अखिलेश गुजरात के लोगों ने नफरत करते हैं. गांधी, पटेल, दयानंद सरस्वती यहीं के थे.

असल में चुनावी समय में ऐसे जुमले नई बात नहीं हैं. खबरिया चैनलों पर यह जुमलेबाजी ब्रेकिंग बाइट का काम देती हैं. परिचर्चा का विषय बन जाती है. ऐसे में चुनाव के मुख्य मुद्दे पीछे छूट जाते हैं. अखिलेश यादव का प्रचार तंत्र और चुनावी जुमले का मुकाबला करने वाले लोग भाजपा और प्रधानमंत्री के प्रचार तंत्र से कमजोर हैं. ऐसे में हर चाल में उनकी मात हो जाती है. चुनाव प्रबंधन में लगे अखिलेश यादव के लोग पूरी तरह से समर्पित नहीं हैं. ऐसे में वह मात खा जाते हैं. चुनावी जुमलों का मुकाबला करने के लिये अखिलेश के पास पूरा सिस्टम नहीं है. ऐसे में उनका वार उन पर भी भारी पड़ जाता है.

गुजरात के गधे को नाम लेकर अखिलेश ने प्रधानमंत्री को दांव पर लगाया तो प्रधानमंत्री मोदी ने गधे को अचछा बता कर अखिलेश को कटघरे में खड़ा कर दिया. गधे को चुनावी जुमला बनाना मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री जैसे पद पर बैठे लोगों को शोभा नहीं देता है. इससे दोनो ही पदों की गरिमा गिरती है.

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