भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी ने अपनी मौडल पत्नी के साथ फोटो क्या शेयर की कि वे अचानक कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए. धर्म के नाम पर उन को ले कर शर्मनाक टिप्पणियां होने लगीं, दूसरे क्रिकेटर मोहम्मद कैफ अपने कसरत करने के तरीके को ले कर धर्मगुरुओं का शिकार हो गए. खिलाडि़यों की व्यक्तिगत जिंदगी में, दकियानूसी सोच के शिकार कट्टरपंथी, जबतब अपनी टांग अड़ाते रहते हैं. कई खिलाड़ी उन के फतवों का शिकार हुए. कुछ कट्टरपंथी इस अंदाज में हस्तक्षेप करते हैं. जैसे उन्होंने ही खिलाडि़यों को जिंदगी जीने, खानेपीने, पहननेओढ़ने और संस्कृति का सलीका सिखाने का ठेका ले लिया हो. दरअसल, ऐसे ठेकेदार धर्म की आड़ में अपनी पहचान को कायम रखने और जम्हूरियत को भड़काने के लिए ही ऐसे कृत्य करते हैं.
इस आजादनुमा हकीकत से भला कोई कैसे अंजान हो सकता है कि लोग अपनी पसंद का खानपान कर सकते हैं, पहनावा अपना सकते हैं और अपने अंदाज में जिंदगी बसर कर सकते हैं. आधुनिक युग में सभी करते भी ऐसा ही हैं. अपनी प्रतिभा से लाखों लोगों को फैन बनाने वाले भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी भी इस से जुदा नहीं थे. शोहरत की बुलंदियों व अपने परिवार से वे खुश थे. सोशल साइट पर उन्होंने अपने साथ पत्नी व मासूम बेटी की कुछ तसवीरें पोस्ट कर के खुशियों का इजहार किया. लेकिन उन्हें झटका तब लगा जब उन की ये खुशियां कट्टरपंथियों को खटक गईं. धर्म के नाम पर उन्होंने तीखे बयानों के चुभते तीर चला दिए.
दकियानूसी सोच
मोहम्मद शमी ने 25 दिसंबर, 2016 को जो फोटो पोस्ट किए थे उन में मौडल रह चुकी उन की पत्नी हसीन जहां ने लाल रंग का आकर्षक स्लीवलैस गाउन पहना हुआ था. भला किसी के पहनावे से किसी का क्या लेना, लेकिन दकियानूसी सोच के शिकार कट्टरपंथियों ने तमाम टिप्पणियां कर डालीं. किसी ने धर्म का वास्ता दिया, किसी ने शर्म करने, धर्म की इज्जत करने, तो किसी ने पर्दानशीं होने की नसीहत दे डाली.
तुर्रा यह था कि तसवीरें धर्म के खिलाफ थीं. शमी को अपनी पत्नी को परदे में रखना चाहिए था. इस विवाद में धर्म के नाम पर कुछ भी बोलने की छूट की मानसिकता के शिकार लोगों को मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि शमी ने जवाब दिया कि वे अपनी जिंदगी में क्या करते हैं, यह वे जानते हैं. बुराई करने वालों को अपने अंदर देखना चाहिए. कई खिलाडि़यों के साथसाथ बौलीवुड गीतकार जावेद अख्तर और अभिनेता फरहान अख्तर भी शमी के पक्ष में खड़े हो गए.
जावेद अख्तर ने साफ भी किया, ‘‘जो पोशाक मिसेज शमी ने पहनी है वह बेहद सलीके की और खूबसूरत है. अगर किसी को दिक्कत है तो यह उस की सोच का छोटापन है.’’
उत्तर प्रदेश के अमरोहा में रहने वाले शमी के पिता तौसीफ अहमद ने कहा कि दुनिया कहां से कहां पहुंच गई लेकिन ऐसे कट्टर लोग दूसरों के मामले में दखलंदाजी करने से आगे नहीं बढ़ पाए. ऐसे लोगों को अपना मन साफ रखना चाहिए. शमी को आज दर्द है कि कट्टरपंथियों ने उन्हें निशाना बनाया.
बेतुके तर्क
शमी कोई पहले या आखिरी खिलाड़ी नहीं थे जो कट्टरपंथियों के निशाने पर आए थे. क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को शमी का समर्थन करना भारी पड़ गया. जब धर्म के ठेकेदार शमी को ले कर पाठ पढ़ा रहे थे, तो कैफ ने इसे शर्मनाक बताते हुए कह दिया था कि ‘देश में अन्य बड़े मुद्दे भी हैं. उम्मीद करता हूं ऐसे लोगों को समझ आएगी.’ कैफ के शब्दों में यों तो कुछ गलत नहीं था, बल्कि नसीहत थी उन लोगों के लिए जो धर्म के नाम पर लोगों की सोच को गुलाम बना कर उन्हें अपने तरीके से चलाए रखना चाहते हैं, लेकिन उन की बात शायद धार्मिक ठेकेदारों को कांटे की तरह चुभ कर राह में रोड़े जैसी लगी थी.
ज्यादा वक्त नहीं बीता और चंद दिनों बाद ही 2 जनवरी को उन्हें ले कर भी मुसलिम समाज की रहनुमाई का दंभ भरने वाले धर्मगुरु मैदान में उतर आए. उन्होंने एक बयान जारी कर दिया. वैसे, कैफ का गुनाह इतना था कि उन्होंने अपनी कसरत करते हुए कुछ फोटो सोशल साइट्स पर डाल दीं. जिसे सूर्य नमस्कार की संज्ञा दी गई.
इसलामिक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने बयान में कहा, ‘‘इसलाम इस की इजाजत नहीं देता. यह तरीका नाजायज है. कैफ ने गलत किया और उन्हें तोबा करनी चाहिए. एक धर्मगुरु का तर्क हास्यास्पद था जिस में उन्होंने कहा, ‘जो फोटो में दिख रहा है वह कैफ ने कसरत समझ कर किया है, तो भी यह धर्म में नकारा जाएगा.’ तंदुरुस्त रहने की और भी कसरतें हैं.’’
वैसे इन सब बातों से न मोहम्मद कैफ का खेल बिगड़ा, न सेहत. कैफ के चाहने वालों ने भी उलेमा के खिलाफ जम कर हल्ला बोला. अब ऐसे लोगों को कौन समझाए कि जब खिलाड़ी कसरत ही नहीं करेगा, तो वह अच्छा प्रदर्शन कैसे करेगा.
कट्टरपंथी जबतब टांग अड़ाते रहते हैं. एक मामले में तो उन्होंने ऐसा किया कि महिला खिलाडि़यों को निराशा का सामना करना पड़ा.
दरअसल, 1 साल पहले पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के चांचल इलाके में स्थित एक स्थानीय क्लब के 50वें स्थापना दिवस के मौके पर लड़कियों की कोलकाता एकादश व उत्तर बंगाल एकादश नामक 2 टीमों के बीच आयोजक रजा आमिर आदि द्वारा एक फुटबौल मैच का आयोजन किया जाना था. इस मैच में कई राष्ट्रीय महिला खिलाड़ी भी शामिल होनी थीं. इस का पता स्थानीय कट्टरपंथियों को लगा, तो उन्होंने यह कहते हुए तुगलकी फतवा जारी कर दिया कि इस दौरान महिला छोटे कपड़े पहनती हैं. चुस्त व छोटे कपड़े पहन कर खेलना व देखना दोनों ही शरीयत कानून के खिलाफ हैं. इसलाम इस बात की इजाजत नहीं देता कि महिलाएं छोटे कपड़े पहन कर मैदान में मैच खेलें. लिहाजा, मैच पर प्रतिबंध लगाया जाए.
खामोशी क्यों
स्थानीय प्रशासन ने कट्टरपंथी ताकतों के आगे घुटने टेक दिए और अशांति की आशंका में मैच पर पाबंदी लगा दी. एक खिलाड़ी नौसबा आलम ने हैरानी से सवाल खड़ा किया कि उसे विश्वास नहीं हो रहा कि क्या यही 21वीं सदी का भारत है. नौसबा का सवाल जायज था, लेकिन देश की कड़वी सचाई यह भी है कि कट्टरपंथियों से कोईर् उलझना नहीं चाहता. लोग भी खोमाश रहना बेहतर समझते हैं, क्योंकि धर्म के नाम पर बहुतकुछ हो जाता है और धर्म के ठेकेदार अपनी दुकानें आबाद रखने के लिए उकसाने को तैयार रहते हैं. और धर्मगुरुओं की भी कमी नहीं जो उन के इशारों पर बिना सोचेसमझे कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं.
वर्ष 2005 में भारतीय महिला टैनिस स्टार सानिया मिर्जा को ले कर भी कुछ कट्टरपंथियों ने उन के खिलाफ फतवा जारी कर दिया था कि वे स्कर्ट मतलब छोटे कपड़े पहन कर मैच न खेलें. इस पर सानिया ने करारा पलटवार कर के ऐसे धार्मिक गुरुओं की बोलती बंद कर दी कि वे लोग स्कर्ट नहीं, उन का खेल देखें. सानिया ने धर्मगुरुओं को किनारे किया और अपने खेल पर ध्यान दिया. यह तय करना मुश्किल हो गया कि क्या फतवा धर्म के नाम पर प्रतिभाशाली खिलाड़ी को दबाने, पीछे घसीटने की कोशिश थी या कुछ और?
बेवजह के फतवे
बुलंदियां हासिल करने वाली सानिया इस तरह की ताकतों के कब्जे में नहीं आईं. इस बात को धर्म के ठेकेदार शायद भूले नहीं और उन्होंने सानिया को निकाह के समय फिर घेरे में लेने की कोशिश की. दरअसल, पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक निकाह के लिए आए थे और बतौर मेहमान उन्हें सानिया के परिवार द्वारा ठहराया गया था. इस पर फतवा जारी कर के कहा गया कि दोनों खिलाड़ी निकाह से पहले नजदीक रह कर अपनी गतिविधियों के जरिए धर्म को बदनाम कर रहे हैं जोकि हराम है.
इतना ही नहीं, उन्होंने लोगों से होने वाली शादी से भी दूर रहने को कहा. लोगों ने इस फतवे को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया.
ऐसे मामलों पर सामाजिक कार्यकर्ता ताहिरा हसन कहती हैं कि देश कानून से चल रहा है. कुछ लोग मुसलमानों के ठेकेदार बने रहना चाहते हैं, इसलिए वे ऐसी बातें करते हैं. मुसलिम समाज में तमाम कुरीतियां हैं और लोग बदतर जिंदगी बसर करते हैं, उन पर कट्टरपंथी कभी आवाज नहीं उठाते, जबकि खुद मलाई खाते हैं. इसलाम की परिभाषा को अपने हिसाब से गढ़ लेना कहां की अक्लमंदी है.
वहीं, डा. फरीदा खान कहती हैं कि ऐसे लोग परिवार, समाज और देश की तरक्की की बात करें, तो अच्छा है. समाज आज काफी आगे बढ़ चुका है और अब, उन की बंदिशों को झेलना हर किसी की मजबूरी नहीं है. सब को पूरी आजादी से अपनी जिंदगी जीने का हक है.