पश्चिमी बंगाल में चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद भारतीय जनता पार्टी के पास अपने कैडर को बिखरने से बचाने के लिए कोई तरीका नहीं बचा तो उन्होंने खुद को पिटने का नाटक कर ही हल्ला करना शुरू किया है. यह अपने बचाव का सब से अच्छा तरीका है और अक्सर घरों की धर्मनिष्ठ बूढिय़ां बदूओं के खिलाफ इस का इस्तेमाल करती हैं जब सत्ता सास के हाथ से निकल कर बहू के हाथ में आ जाए.
पश्चिमी बंगाल में भारतीय जनता पार्टी 2021 के विधानसभा चुनाव जीता ही समझ रही थी और इसलिए उस ने पहले तृणमूल कांगे्रस के वर्करों की खूब पिटाई की पर चुनाव आयोग के निर्देश पर चल रही पुलिस के हाथ बंधे हुए थे. अमित शाह और चुनाव आयोग ने पूरी पुलिस की कमान भाजपा समर्थकों अफसरों को सौंप रखी थी. यह हर चुनाव में होता है कि पुलिस अफसरों का इस्तेमाल जो सत्ता में बैठी पार्टी है वह करती है. पश्चिमी बंगाल में चुनाव आयोग का फायदा उठा कर दिल्ली ने अपने अफसर लगाए थे और उन के ईशारों पर भाजपा कार्यकत्र्ताओं का उत्पात छिपा रहा.
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अब भारतीय जनता पार्टी के कार्यकत्र्ता वैसा ही शोर मचा रहे हैं जैसे पौराणिक कथाओं को देवता और ऋ षिमुनि ……के आक्रमण से घबरा कर कभी विष्णु की शरण में गुहार लगाते थे, ममता बैनर्जी के खिलाफ कभी गवर्नर कभी गृहमंत्री तो कभी गोदी मीडिया पर गुहार लगाई जा रही है. उन्हें मालूम है कि होने वाला कुछ नहीं है, बस भाजपा के कैडर को लगेगा कि कुछ हो रहा है.
भाजपा का कैडर आजकल उस भीगी बिल्ली की तरह जो अपने को शेर समझने लगी थी और गली पर राज जमा रही थी. पश्चिमी बंगाल में ही नहीं सभी राज्यों में उस की हालत पतली हो रही है. उत्तर प्रदेश के पंचायती चुनावों में वह बुरी तरह फ्लौप हुई है. कोविड की लड़ाई में नरेंद्र मोदी को देश में ही नहीं दुनिया भर में सिर्फ थूथू मिल रही है. जो बेचारगी आज भाजपा कैंडर में छा गर्ई है वह अद्भुत है क्योंकि इस की कल्पना ही नहीं की गई थी.
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पश्चिमी बंगाल में ङ्क्षहसा चुनाव से पहले होती तो लाभ था. जीतने वालों को पीटने की फुरसत नहीं होती. वे तो अपने जमीन को मजबूत करने में लगते हैं, तो पार्टी भाजपा के दिग्गजों को हरा कर आई है, वह ऐसी वेबकूफ हो ही नहीं सकती कि नाहक खुद को बदनाम करे, वह भी एक अधमरे जमीन पर पड़े घोड़े को चावुक मार कर.