आम लोगों के लिए एक पुरानी कहावत है कि पुलिस की दोस्ती भली न दुश्मनी. लेकिन इस के उलट पुलिस के लिए भी एक कहावत है कि पुलिस के लिए नेता की दोस्ती भली न दुश्मनी.
फरवरी 2020 में मुंबई पुलिस के आयुक्त बने आईपीएस परमबीर सिंह पर यह कहावत एकदम सटीक बैठती है. क्योंकि जिन नेताओं से दोस्ती कर के उन्होंने बड़ेबड़े कारनामों को अंजाम दे कर सुपरकौप बनने की शोहरत हासिल की थी. यूं कहें तो गलत न होगा कि परमबीर सिंह को महाराष्ट्र पुलिस का नायक कहा जाता था. लेकिन नेताओं की दोस्ती के कारण परमबीर सिंह पुलिस कमिश्नर बनने के कुछ समय बाद ही नायक से अचानक खलनायक बन गए.
परमबीर सिंह को उन के पद से हटा दिया गया और अचानक ऐसा विवाद शुरू हुआ कि मुंबई पुलिस के इस मुखिया को गिरफ्तार करने के लिए देश की सब से बड़ी एजेंसियां छापेमारी करने लगीं. जान बचाने के लिए उन्हें इधरउधर छिपना पड़ा और उन्हें भगोड़ा घोषित करने तक की नौबत आ गई.
वो तो गनीमत है कि देश में अभी लोगों को इंसाफ के लिए अदालतों पर भरोसा है. परमबीर सिंह को भी उसी अदालत की शरण में जाना पड़ा और कई महीनों की लुकाछिपी के बाद उन्हें न सिर्फ गिरफ्तारी से राहत मिल गई बल्कि उन के ऊपर लगा भगोड़े का ठप्पा भी हटा लिया गया.
लेकिन यह समझना काफी दिलचस्प होगा कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि मराठा प्रदेश की पुलिस का नायक कहा जाने वाला अफसर रातोंरात खलनायक बन गया? दरअसल, इस की कहानी जानने के लिए इस से पहले एक अहम घटनाक्रम की तह में जाना होगा.
दरअसल, हुआ यूं कि 25 फरवरी, 2021 को देश के सब से बड़े रईस मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया से कुछ दूरी पर खड़ी एक सिलवर कलर की स्कौर्पियो कार से 20 जिलेटिन छड़ें बरामद हुईं. लावारिस गाड़ी में विस्फोटक मिलने की खबर मिलते ही मुंबई पुलिस के बम निरोधक दस्ता, डौग स्क्वायड ने पड़ताल शुरू कर दी. उसी रात एटीएस को पता चला कि गाड़ी मनसुख हिरेन नाम के एक कारोबारी की है, जो 18 फरवरी को चोरी हो गई थी.
एटीएस के एपीआई सचिन वाजे ने हिरेन को अगले ही दिन पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया और दक्षिण मुंबई में पुलिस कमिश्नर के औफिस ले कर आ गया.
वाजे ने 3 दिन लगातार पूछताछ की और हिरेन के कई बयान दर्ज किए गए. अचानक 28 मार्च को आतंकी संगठन ‘जैश उल हिंद’ संगठन ने टेलीग्राम ऐप के जरिए इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए धमकी भरा संदेश दिया कि यह तो ट्रेलर है.
इस के बाद घटना ने संगीन रूप ले लिया. चूंकि मामला देश के सब से बड़े उद्योगपति से जुड़ा था. एंटीलिया के साथ अंबानी परिवार की सुरक्षा भी बढ़ा दी गई. केस को मुंबई पुलिस से ले कर आतंकवादी घटनाओं की जांच करने वाली केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए को सौंप दिया.
मनसुख हिरेन की मौत से उलझी जांच
एनआईए ने तत्काल इस केस की कमान अपने हाथ में ले ली. लेकिन मुंबई पुलिस के उच्चाधिकारियों ने मामले की जांच के लिए क्राइम ब्रांच की कई यूनिटों को भी काम पर लगा दिया. एनआईए और मुंबई क्राइम ब्रांच की टीमें घटनास्थल के सीसीटीवी खंगालने लगीं.
घटनास्थल पर सक्रिय सभी मोबाइल फोन के डंप डाटा को संकलित कर उन की कुंडलियां खंगालने का काम शुरू हो गया. जिस के बाद क्राइम ब्रांच के एक दूसरे एपीआई दया नायक की टीम को पता चला कि मनुसख हिरेन और इंसपेक्टर सचिन वाजे तो एकदूसरे को पहले से जानते हैं.
यह जानकारी जैसे ही पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के पास पहुंची तो उन्होंने यह जांच एसीपी नितिन अल्कानुर को ट्रांसफर कर दी.
इसी दौरान मामले में एक नया ट्विस्ट यह आया कि 3 मार्च को मनसुख हिरेन ने उच्चाधिकारियों को एक पत्र लिख कर पुलिस द्वारा प्रताडि़त किए जाने की शिकायत की. पुलिस ने शिकायत की जांच के लिए जब मनसुख से संपर्क साधना चाहा तो वह लापता मिला.
एंटीलिया केस में उस समय नया मोड़ आ गया जब विस्फोटक लदी स्कौर्पियो के मालिक मनसुख हिरेन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. 5 मार्च को मनसुख का शव ठाणे से बरामद किया गया.
शव मिलने के बाद इस मामले में गहरी साजिश की बात सामने आने लगी. मामले की जांच कर रही एनआईए और एटीएस दोनों ही सतर्क हो गईं. जांच में एनआईए को पता चला कि एंटीलिया केस का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, मुंबई पुलिस के इंसपेक्टर सचिन वाजे है.
दरअसल, एनआईए ने मनसुख के घर के बाहर से टैक्सी स्टैंड तक के जो सीसीटीवी फुटेज बरामद किए थे, उस के बाद एक ओला कार के ड्राइवर को हिरासत में लिया गया था. उस ने बताया कि मनसुख को छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस तक पहुंचाने के दौरान मनसुख के 5 फोन काल आई थीं.
ड्राइवर के मुताबिक मनसुख को काल करने वाले ने पहले उन्हें पुलिस मुख्यालय के सामने स्थित रूपम शोरूम के बाहर बुलाया और आखिरी फोन में उन्हें छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के सिग्नल पर आने को कहा.
संदेह के दायरे में आते ही एनआईए ने सचिन वाजे को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद तो एकाएक कई परतें खुलने लगीं और हर रोज नए खुलासे होने लगे.
एनआईए को जांच में पता चला कि एंटीलिया यानी मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक भरी कार पुलिस अधिकारी सचिन वाजे ने ही खड़ी की थी. उन्होंने अपनी पहचान छिपाने के लिए कुरता पहना हुआ था. मुंह को गमछे से ढका था.
सीसीटीवी फुटेज के आधार पर एनआईए ने खुलासा करते हुए सचिन वाजे को मुकेश अंबानी के घर के बाहर ले जा कर सीन का रिक्रिएशन भी किया. इस दौरान वाजे के सिर पर साफा बांधा गया. डमी के तौर पर स्कौर्पियो और इनोवा को भी मौके पर लाया गया.
चूंकि मनसुख की मौत का मामला एंटीलिया केस की साजिश से जुड़ा था, इसलिए इस मामले की जांच भी एनआईए को सौंप दी गई. चूंकि इस मामले में एक गहरी साजिश की बू आ रही थी, इसलिए मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया.
बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सड़क से ले कर विधानसभा तक में सरकार पर निशाना साधते हुए गंभीर आरोपों की बौछार शुरू कर दी.
मामला इसलिए ज्यादा संगीन हो गया कि एनआईए को जांच में पता चला कि इंसपेक्टर ओहदे का सचिन वाजे ज्यादातर फाइवस्टार होटल ट्राइडेंट में रहा करता था, जिस की तलाशी ली गई तो वहां से ऐसे सबूत मिले जिस से पता चला कि सचिन वाजे वहां न सिर्फ रासलीलाएं रचाता था, बल्कि वहां बैठ कर वसूली का रैकेट भी चला रहा था.
सचिन वाजे की आलीशान जिंदगी का पता इसी बात से चलता है कि एनआईए ने उस सफेद रंग की नई मर्सिडीज कार को भी बरामद कर लिया, जिस में वाजे चलता था. ट्राइडेंट होटल में सचिन वाजे अकसर अपनी एक गर्लफ्रैंड मीना जार्ज के साथ आता था.
पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो खुलासा हुआ कि सचिन वाजे और मीना जार्ज का जौइंट खाता और लौकर भी है. मीना से पूछताछ में कई नए राज खुले. उस ने बताया कि सचिन वाजे महाराष्ट्र सरकार के एक बड़े नेता के इशारे पर वसूली का बड़ा रैकेट चलाता था. वसूली के कलैक्शन में मीना सचिन वाजे की मदद करती थी.
मीना पैसे गिनने वाली मशीन ले कर घूमती थी और वो ट्राइडेंट होटल में वाजे से मिलने के लिए जाती रहती थी. सचिन वाजे की गर्लफ्रैंड मीना ने ही बैंक से गिरफ्तारी से 2 दिन पहले ही वाजे के साथ अपने संयुक्त खाते से 26 लाख रुपए निकाले थे.
एंटीलिया के पास सचिन वाजे ने ही खड़ी की थी विस्फोटक कार
पूछताछ में खुलासा हुआ कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर गाड़ी से बरामद जिलेटिन की छड़ें सचिन वाजे ने खुद ही खरीदी थीं. जांच में पता चला कि बरामद की गई छडे़ं नागपुर की सोलर इंडस्ट्रीज कंपनी द्वारा बनाई गई थीं.
जांच के बाद यह सच भी सामने आ गया कि एंटीलिया के बाहर गाड़ी में जिलेटिन की छड़ें रख कर बाद में आतंकी संगठन की टेलीग्राम ऐप पर आईडी क्रिएट कर के सचिन वाजे ने ही फरजी कुबूलनामा किया था.
मनसुख हिरेन की मौत और एंटीलिया के बाहर विस्फोटक रखने की साजिश के तार पूरी तरह आपस में जुड़ चुके थे और सचिन वाजे इस साजिश का मास्टरमाइंड बन कर सामने आ चुका था.
एनआईए ने इस साजिश से जुडे़ एकएक आरोपी को गिरफ्तार करना शुरू किया तो पता चला कि मुंबई पुलिस के कई लोग सरकार के एक मंत्री के इशारे पर वसूली का एक बड़ा रैकेट चला रहे थे, जिस का मास्टरमाइंड सचिन वाजे था.
एंटीलिया केस और मनसुख मामले में सचिन वाझे के बाद मुंबई पुलिस के ही कई निवर्तमान अफसरों की गिरफ्तारियां हुईं, जिस के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो गए.
सवाल यह भी उठा कि सचिन वाजे दागदार अतीत का पुलिस अफसर था और लंबे समय से वह पुलिस की सेवाओं से बरखास्त भी था. फिर क्यों उसे बहाल किया गया और क्यों उसे क्राइम ब्रांच की एक अहम यूनिट का इंचार्ज बना कर हाईप्रोफाइल मामलों की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई?
एनआईए के अधिकारी सचिन वाजे के अतीत को खंगालने के बाद सकते में आ गए. पता चला कि वाजे ने 1990 में बतौर सबइंसपेक्टर महाराष्ट्र पुलिस जौइन की थी. उस की पहली पोस्टिंग माओवाद से प्रभावित गढ़चिरौली इलाके में हुई.
करीब 2 साल बाद उसे ठाणे सिटी में भेज दिया गया. जल्द ही उस की पहचान आपराधिक मामलों के एक्सपर्ट की बन गई थी. इसलिए उसे क्राइम ब्रांच की स्पैशल स्क्वायड में शामिल कर दिया गया.
ये वही दौर था जब सचिन वाजे की पहचान एक एनकाउंटर स्पैशलिस्ट की बनी. वह मुंबई के एनकाउंटर स्पैशलिस्ट्स की उस तिकड़ी का हिस्सा बन गया, जिस में प्रदीप शर्मा और दया नायक का नाम भी है.
सन 2000 में सचिन वाजे का ट्रांसफर मुंबई पुलिस की पोवई यूनिट में क्राइम ब्रांच में कर दिया गया. यहीं पर वाजे और 3 अन्य पुलिसकर्मियों पर घाटकोपर ब्लास्ट केस में आरोपी ख्वाजा यूनुस की पुलिस कस्टडी में हत्या करने का आरोप लगा. पुलिस का कहना था यूनुस कस्टडी से भागा था.
हाईकोर्ट के आदेश पर सीआईडी ने जांच की और पाया कि यह कस्टोडियल डेथ थी. चार्जशीट दाखिल होने के बाद वाजे को सस्पेंड कर दिया गया. चारों पुलिसकर्मियों के खिलाफ ट्रायल अब तक लंबित है.
पुलिस की नौकरी छोड़ शिवसेना में शामिल हो गया था वाजे
सचिन वाजे ने नवंबर 2007 में पुलिस फोर्स से रिजाइन कर दिया. अगले साल वह शिवसेना में शामिल हो गया. 2010 में उस ने लाई भारी नाम की एक सोशल नेटवर्किंग साइट भी शुरू की.
वाजे ने एक ऐसा सौफ्टवेयर डेवलप किया, जिस से लोगों की फोन पर बातचीत सुनी जा सकती थी और उन के मैसेजेस एक्सेस किए जा सकते थे.
पुलिस फोर्स से बाहर रहने के दौरान वाजे ने 2 किताबें भी लिखीं. एक शीना बोरा मर्डर केस पर और दूसरी डेविड हैडली पर. हैडली लश्करएतैयबा का औपरेटिव था, जो 26/11 के हमलों में शामिल था.
पुलिस की नौकरी से बाहर रहने के दौरान सचिन वाजे अकसर कुछ न्यूज चैनलों पर एक एक्सपर्ट के रूप में दिखता था.
इस दौरान सचिन वाजे के शिवसेना से ले कर एनसीपी के बड़े नेताओं से इतने करीबी रिश्ते बन गए कि अचानक इतने साल तक नौकरी से बाहर रहने के बावजूद सचिन वाजे के निलंबन की फाइल दोबारा खोल दी गई और उसे जून 2020 में महाराष्ट्र पुलिस में बहाल कर दिया गया. वजह बताई गई कि कोविड-19 के चलते स्टाफ की कमी है.
लेकिन वाजे को जो जिम्मेदारियां दी गईं, उस से लगा नहीं कि उसे केवल जगह भरने के लिए फोर्स में लाया गया था. उसे मुंबई क्राइम ब्रांच में शामिल किया गया और क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का इंचार्ज बना दिया गया. इस के बाद उस ने फेक सोशल मीडिया फालोअर्स वाले केस की जांच शुरू कर दी, जिस में रैपर बादशाह को तलब किया गया था.
किस के इशारे पर वाजे को दोबारा नौकरी दे कर सौंपी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी
वैसे तो वाजे काफी जूनियर अधिकारी था, लेकिन जल्द ही उसे मुंबई का हर अहम केस हैंडल करने दिया गया. चाहे वह टीवी रेटिंग्स में घोटाले का मामला हो या अन्वय नायक सुसाइड केस में अरनब गोस्वामी की गिरफ्तारी करना, वाजे हर हाईप्रोफाइल केस में फ्रंट पर दिखाई पड़ रहा था.
सचिन वाजे ने दिसंबर 2020 में स्पोर्ट्स कार डिजायनर दिलीप छाबडि़या को भी अरेस्ट किया. वह बौलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन के फेक ईमेल केस की जांच भी कर रहा था.
जाहिर है कि मुंबई पुलिस के मुखिया होने के नाते परमबीर सिंह पर सवाल खडे़ होने ही थे कि उन्होंने एक दागी पुलिस अफसर को इतनी खुली छूट और मौके किस के कहने पर दिए.
भाजपा और फडणवीस ने पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को निशाना बनाते हुए आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उन्हीं के इशारे पर सचिन वाजे वसूली का रैकेट चला रहा था.
भले ही इन आरोपों में सच नहीं था, फिर भी परमबीर सिंह की विभाग का मुखिया होने के कारण भूमिका संदिग्ध होनी स्वाभाविक थी. लिहाजा परमबीर सिंह से एनआईए ने पूछताछ शुरू कर दी और उन के खिलाफ मीडिया ट्रायल होने लगा.
परमबीर सिंह की चिट्ठी से आया भूचाल
आरोपों के अंबार के बीच उद्धव ठाकरे की अघाड़ी सरकार को भी अपने बचाव के लिए परमबीर सिंह को पुलिस आयुक्त के पद से हटा कर उन्हें होम गार्ड डिपार्टमेंट का कमांडेंट जनरल बना दिया गया.
मुंबई पुलिस में अपने शानदार कामों के लिए मशहूर रहे परमबीर सिंह के लिए अपनी साख को बचाना जब मुश्किल हो गया तो उन्होंने वह सच उगल दिया, जिस ने पूरे महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया.
मुंबई के पुलिस कमिश्नर पद से हटाए जाते ही आईपीएस औफिसर परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को 8 पेज का एक ऐसा पत्र लिखा, जिस में उन्होंने अपनी 32 साल की नौकरी में अपनी ईमानदारी का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री से संवैधानिक मूल्यों का पालन करने का अनुरोध किया.
इस पत्र में देश के सब से अमीर शख्स और रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर हुई घटना का जिक्र भी किया.
परमबीर सिंह ने अपने ट्रांसफर को प्रशासनिक जरूरत बताने पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वास्तव में उन का तबादला एंटीलिया के बाहर की घटना की जांच से जुड़ा है. इस पत्र में परमबीर सिंह ने महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर गंभीर आरोप लगाए.
उन्होंने पत्र में मुख्यमंत्री ठाकरे के साथ मार्च में हुई अपनी एक मुलाकात का हवाला देते हुए लिखा, ‘‘मैं ने उस मीटिंग में आप को बताया था कि आदरणीय होम मिनिस्टर कौन सी गड़बडि़यां कर रहे हैं एंटीलिया मामले में. इन गड़बडि़यों की जानकारी उपमुख्यमंत्री के अलावा एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और दूसरे सीनियर मंत्रियों को भी दी थी. कई मंत्रियों को देशमुख की कई हरकतों की जानकारी पहले से थी.’’
परमबीर सिंह ने लेटर में साफ लिखा कि मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट के इंसपेक्टर सचिन वाजे को पिछले कुछ महीनों में अनिल देशमुख ने कई बार सीधे अपने सरकारी आवास पर बुलाया था और बारबार कहा था कि उन के लिए पैसा जुटाने में वह मदद करें.
फरवरी की एक ऐसी ही मीटिंग का जिक्र करते हुए पत्र में परमबीर सिंह ने दावा किया कि उस दौरान देशमुख के पर्सनल सेक्रेटरी मिस्टर पालंदे सहित उन के स्टाफ के 2 लोग भी थे. तब देशमुख ने वाजे को हर महीने 100 करोड़ की वसूली का टारगेट दिया.
यह भी बताया कि टारगेट किस तरह पूरा होगा. देशमुख ने सचिन वाजे से कहा था कि मुंबई में लगभग 1750 बार, रेस्टोरेंट और दूसरी दुकानें हैं और अगर हर एक से 2-3 लाख रुपए भी लिए जाएं तो महीने के 40-50 करोड़ तो चुटकियों में आ जाएंगे. बाकी पैसा दूसरे जरियों से जुटाने की सलाह दी.
परमबीर सिंह ने दावा किया कि वाजे ने उसी दिन उन के औफिस में आ कर उन्हें इस की जानकारी दी. यह सब सुन कर परमबीर सिंह हैरान हो गए और सोचने लगे कि अब क्या किया जाए.
गृहमंत्री अनिल देशमुख करा रहे थे मोटी उगाही
कुछ ही दिनों बाद सोशल सर्विस ब्रांच के एसीपी संजय पाटिल को देशमुख ने अपने घर बुलाया. बातचीत होनी थी मुंबई में हुक्का पार्लरों के बारे में. इस मीटिंग में भी पालंदे और कुछ दूसरे अफसर थे. 2 दिनों बाद पाटिल के अलावा डीसीपी भुजबल को भी देशमुख ने बुलाया, लेकिन इस बार दोनों को केबिन के बाहर ही बैठाए रखा.
पालंदे बाहर आए, पाटिल को एक किनारे ले गए और कहा कि देशमुख साहब चाहते हैं कि 40-50 करोड़ रुपए वसूले जाएं उन बार, रेस्तरां और दूसरी दुकानों से. वाजे की तरह पाटिल ने भी परमबीर सिंह को इस की जानकारी दे दी. परमबीर सिंह की चिट्ठी के मुताबिक गृहमंत्री अनिल देशमुख पुलिस के कामकाज में लगातार दखल दे रहे थे और पुलिस कमिश्नर को बाईपास कर निचले अधिकारियों को सीधे निर्देश दे रहे थे.
इस सिलसिले में परमबीर सिंह ने दादरा एवं नगर हवेली के सांसद रहे मोहन डेलकर की मौत के मामले का हवाला भी दिया, जिन्हें 22 फरवरी को मुंबई के होटल सी ग्रीन में मरा पाया गया था. मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन ने खुदकुशी का मामला दर्ज किया. यहां पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला था, जिस में दादरा एवं नगर हवेली के सीनियर अफसरों पर उन्होंने आरोप लगाए थे.
परमबीर सिंह की चिट्ठी के मुताबिक यह मामला सामने आने के बाद से अनिल देशमुख पुलिस पर सुसाइड के लिए उकसाने का मामला मुंबई में ही दर्ज करने को कहने लगे थे, लेकिन खुदकुशी के लिए उकसाने की सारी कथित हरकतें चूंकि दादरा एवं नगर हवेली में हुई थीं, लिहाजा ऐसा मामला अगर दर्ज होना हो तो वहीं होना चाहिए और उस की जांच भी वहीं की पुलिस को करनी चाहिए थी.
लेकिन देशमुख कमिश्नर परमबीर सिंह पर लगातार दबाव डालते रहे और जब परमबीर सिंह ने साफ मना कर दिया तो वह सिंह से नाराज हो गए. क्योंकि खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला मुंबई में दर्ज होने पर जो राजनीतिक फायदा मिल सकता था, वह हाथ से जाता दिख रहा था.
आखिरकार देशमुख ने विधानसभा में 9 मार्च को ऐलान कर दिया कि डेलकर को खुदकुशी के लिए कथित तौर पर उकसाने की एफआईआर दर्ज की जाएगी और जांच के लिए एसआईटी बनाई जाएगी.
परमबीर सिंह ने ठाकरे को लिखे खत में साफ आरोप लगाया कि एक साल के भीतर होम मिनिस्टर देशमुख ने कई मौकों पर मुंबई पुलिस के निचले अफसरों को कमिश्नर को बाईपास के कर के अपने पास बुलाया और पुलिस जांच में किसी खास दिशा में बढ़ने का निर्देश दिया. ये तमाम हरकतें गैरकानूनी और असंवैधानिक थीं. परमबीर सिंह प्रोटोकाल से बंधे होने के कारण और तो कुछ नहीं कर सके, लेकिन वह देशमुख की कथित हरकतों के बारे में लगातार एनसीपी चीफ शरद पवार को जानकारी जरूर देते रहे.
ठाकरे को लिखे पत्र में परमबीर सिंह ने साफ कर दिया कि एंटीलिया से ले कर मनसुख मामले में और मुंबई शहर में पुलिस की वसूली के पीछे अनिल देशमुख की सीधी दखलंदाजी थी और वह उन के मातहत अफसरों को सीधे दिशानिर्देश देते थे. ऐसे में जो भी गड़बडि़यां हुईं, उन की वजहें कहीं और रहीं.
इस मामले में उन्हें गुनहगार मान कर तबादला करने का जो फैसला लिया गया, उस से साफ है कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया ताकि असल में गड़बड़ी करने वालों से ध्यान हटाया जा सके.
ठाकरे को लिखे इस पत्र में परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख और वाजे के काल रिकौर्ड्स की मांग करते हुए सच्चाई सामने लाने का भी अनुरोध किया था. परमबीर सिंह के सीएम उद्धव ठाकरे को लिखे पत्र की कौपी उन्होंने मीडिया में लीक कर दी, जिस के बाद महाराष्ट्र की सियासत में जबरदस्त उबाल आ गया.
एक राजनैतिक पार्टी और मीडिया के निशाने पर थे परमबीर सिंह
दिल्ली में मीडिया का एक वर्ग तथा केंद्र की भाजपा सरकार के कुछ समर्थक वसूली कांड में शिवसेना से ले कर पुलिस की मिलीभगत के आरोप लगाने लगे. दरअसल इस की भी एक खास वजह थी.
मुंबई पुलिस ने कुछ समय पहले ही टीआरपी घोटाले में केंद्र सरकार के एक समर्थक न्यूज चैनल अर्णब गोस्वामी के रिपब्लिक टीवी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर के अर्णब समेत चैनल के कुछ अधिकारियों को गिरफ्तार किया था. तभी से मुंबई पुलिस खासकर परमबीर सिंह दिल्ली में राजनीति व मीडिया के एक गुट के निशाने पर थे.
सचिन वाजे की गिरफ्तारी और परमबीर की चिट्ठी का खुलासा होने के बाद इस गुट को महाराष्ट्र सरकार से ले कर मुंबई पुलिस पर निशाना साधने का मौका मिल गया.
परमबीर सिंह की चिट्ठी का असर यह हुआ कि राजनीतिक दबाव बढ़ने पर उद्धव ठाकरे को अनिल देशमुख को गृहमंत्री के पद से हटाना पड़ा और उन के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के लिए न्यायमूर्ति चांदीवाल के अधीन एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन करना पड़ा.
पद से हटते ही ईडी ने सचिन वाजे के खिलाफ दर्ज मामले को आधार बना कर अनिल देशमुख के खिलाफ जांच शुरू कर दी. जांच की आंच परमबीर सिंह तक भी पहुंचनी शुरू हुई.
उन्हें पूछताछ का नोटिस दे दिया गया. परमबीर सिंह ने देशमुख के खिलाफ वसूली के आरोप लगा कर राजनीतिक तंत्र में फैले जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया था, उस में साफ था कि उन्हें फंसाने का काम जरूर किया जाएगा.
आशंका सही निकली और जुलाई में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह समेत 6 अन्य पुलिस अधिकारियों व 2 सिविलियन के खिलाफ एक बिल्डर की शिकायत पर मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में 15 करोड़ की रंगदारी मांगने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो गई. मामले में 2 लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया.
परमबीर सिंह ने अपने खिलाफ हो रही साजिश को पहले ही भांप लिया था, उन्हें लगने लगा कि उन्हें बलि का बकरा बनाने के लिए और सारे आरोप उन पर डालने के लिए या तो उन की हत्या कराई जा सकती है या उन्हें किसी मामले में फंसाया जा सकता है.
इसलिए वह भूमिगत हो गए और खुद को सभी आरोपों से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपने वकीलों की मदद से अदालत की शरण लेनी शुरू कर दी.
इसी दौरान ईडी ने अनिल देशमुख को मनी लांड्रिंग केस में गिरफ्तार कर लिया. तेजी से हो रहे घटनाक्रम के बीच एंटीलिया केस व मनसुख हत्याकांड में गिरफ्तार सचिन वाजे ने जांच आयोग को दिए बयान में जब यह साफ कर दिया कि मुंबई पुलिस में वसूली करने का जो रैकेट चल रहा था, वह अनिल देशमुख के दबाव में चल रहा था.
इस का पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह से कोई लेनादेना नहीं था, उल्टा उन्होंने तो वाजे को सलाह दी थी कि भले ही मंत्री दबाव बनाएं लेकिन वह ऐसे किसी खेल में शामिल न हो तो बेहतर रहेगा.
सचिन वाजे का यही बयान परमबीर सिंह के बचाव का कवच बन गया और सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए, ईडी व मुंबई पुलिस को आदेश दिया कि वह परमबीर सिंह को गिरफ्तार न करें. साथ ही परमबीर सिंह को निर्देश दिया कि वह जांच आयोग के सामने पेश हो कर अपना बयान दर्ज कराएं.
परमबीर सिंह के खिलाफ भगोड़ा घोषित करने का नोटिस भी अदालत ने रद कर दिया. हालांकि परमबीर सिंह ने जांच आयोग के समक्ष और वसूली मामले की जांच कर रही मुंबई पुलिस की सीआईडी के समक्ष अपने बयान दर्ज करा दिए, साथ ही उन का सचिन वाजे से आमनासामना करा कर पूछताछ भी हो चुकी है.
लेकिन परमबीर सिंह ने सत्ता और सियासत का असली चेहरा बेनकाब कर के उस से टकराने का जो दुस्साहस किया था, उस में उन की चुनौतियां आसानी से कम होने वाली नहीं थीं, जिस के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र सरकार ने 2 दिसंबर, 2021 को पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को निलंबित कर दिया.
सरकार की तरफ से बयान दिया गया कि उन के खिलाफ अनियमितताओं और खामियों के लिए अनुशासनात्मक काररवाई की गई है. इन खामियों में ड्यूटी से अनधिकृत रूप से अनुपस्थिति को भी शामिल
बताया गया. दरअसल, परमबीर सिंह पिछले 6 महीने में महाराष्ट्र होमगार्ड प्रमुख नियुक्त किए जाने के बाद ड्यूटी पर पेश नहीं हुए थे, स्वास्थ्य के आधार पर उन्हें 29 अगस्त तक की छुट्टी दी गई थी, लेकिन उस के बाद भी वह ड्यूटी पर नहीं आए.
हालांकि परमबीर सिंह को अपनी ईमानदारी का प्रमाण देने के लिए अभी कई लड़ाइयां लड़नी हैं, लेकिन मुंबई पुलिस के नायक रहे इस आईपीएस के साथ हुए घटनाक्रम से एक बात साफ है कि खाकी को एक सीमा रेखा के बाद खादी से न तो दोस्ती करनी चाहिए न ही दुश्मनी. परमबीर सिंह का गुनाह शायद यही है कि उन्होंने इस सीमा रेखा को पार कर दिया.
परमबीर सिंह का विवादों से रहा है नाता
मुंबई पुलिस में एनकाउंटर स्पैशलिस्ट और सुपरकौप के नाम से चर्चित परमबीर सिंह जितने लोकप्रिय रहे, उतना ही उन का विवादों से भी नाता रहा है. उन के सब से विवादास्पद कार्यकालों में से एक एटीएस में उन का कार्यकाल था.
परमबीर सिंह पर भोपाल की वर्तमान सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने गंभीर अत्याचार का आरोप लगाया था. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया था कि कथित ‘भगवा आतंकी मामले’ में उन की भूमिका जबरदस्ती कुबूल करने के लिए मुंबई एटीएस द्वारा उन पर काफी अत्याचार किया गया था.
मुंबई एटीएस के सदस्यों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए साध्वी प्रज्ञा ने खुलासा किया था कि परमबीर सिंह सहित एटीएस अधिकारियों ने उन्हें अवैध हिरासत में रखा था और 13 दिन तक उन्हें प्रताडि़त किया था. साध्वी प्रज्ञा ने आईपीएस खानविलकर, परमबीर सिंह और हेमंत करकरे पर आरोप लगाए थे.
फरवरी 2020 में मुंबई पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्ति से पहले वह भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक थे. महाराष्ट्र एसीबी में भी परमबीर सिंह का कार्यकाल विवादास्पद रहा है. परमबीर सिंह ने साल 2019 के दिसंबर में सिंचाई परियोजनाओं में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार को क्लीनचिट दे दी थी.
अजीत पवार 12 विदर्भ सिंचाई विकास निगम परियोजनाओं से जुड़े एक प्रकाशन में आरोपित थे, जिस की जांच एसीबी कर रही थी. मामले में क्लीनचिट पर बीजेपी ने गंभीर सवाल खड़े किए थे.
2008 में मुंबई में 26 नवंबर को हुए आतंकवादी हमले के तुरंत बाद हमले के दौरान लापरवाही के आरोप में परमबीर सिंह और 3 अन्य अतिरिक्त पुलिस कमिश्नरों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी. एक जनहित याचिका में इन अधिकारियों के खिलाफ काररवाई करने की मांग की गई थी.
याचिका में आरोप लगाया गया था कि परमबीर सिंह जैसे अधिकारी तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के आदेशों का पालन करने में विफल रहे थे. याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि अगर वरिष्ठ अधिकारियों ने आदेशों का पालन किया होता तो स्थिति को बहुत पहले ही नियंत्रण में लाया जा सकता था और कई लोगों की जान बचाई जा सकती थी.
याचिकाओं में कहा गया था कि अगर अधिकारी ठीक से काम करते हैं तो 2 और आतंकवादी जिंदा पकड़े जा सकते थे.
याचिका में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर के हवाले से कहा गया था कि इन अधिकारियों ने उन के आदेशों की अवहेलना की थी और मुंबई आतंकी हमले के दौरान अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे थे.
इस के साथ ही याचिका में कहा गया था कि अधिकारियों ने आतंकवादियों से मुकाबला करने से इनकार कर दिया था और परेशानी वाले क्षेत्रों से दूर रह कर कंट्रोलरूम को गलत रिपोर्ट दी गई थी.
वह तब भी सुर्खियों में आए, जब दिवंगत बौलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के मामले में मुंबई पुलिस की जांच पर सवाल उठाया गया.
परमबीर सिंह को अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान जैसी बड़ी व प्रसिद्ध बौलीवुड हस्तियों के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए भी जाना जाता है. एक तरफ जहां नितिन गडकरी जैसे शक्तिशाली भाजपा नेताओं के साथ पारिवारिक संबंध रहे हैं तो दूसरी तरफ राकांपा के अध्यक्ष शरद पवार के भी करीबी हैं. द्य
परमबीर सिंह बन गए महाराष्ट्र के सुपरकौप
परमबीर सिंह का जन्म 20 जून, 1962 को हरियाणा के फरीदाबाद स्थित पाओता मोहम्मदाबाद गांव के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उन के पिता होशियार सिंह जाति से गुर्जर हैं तथा हिमाचल प्रदेश में एक तहसीलदार थे और मां एक गृहिणी हैं. परमबीर सिंह के 2 भाईबहन भी हैं.
जन्म के कुछ समय बाद ही मां बच्चों को ले कर चंडीगढ़ आ गईं, क्योंकि हिमाचल में नौकरी कर रहे पिता को चंडीगढ़ आ कर परिवार से मिलने में सुविधा होती थी. इसीलिए परमबीर जन्म के बाद किशोरवय उम्र तक चंडीगढ़ में ही पलेबढ़े और वहीं पर उन की शुरुआती पढ़ाई हुई.
उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा डीएवी इंटरनैशनल स्कूल, अमृतसर, पंजाब से पूरी की. उस के बाद उन्होंने चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, पंजाब में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने समाजशास्त्र से एमए किया.
बचपन से ही उन का झुकाव सिविल सेवा की ओर था. 1988 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और एक आईपीएस अधिकारी के रूप में महाराष्ट्र कैडर से पुलिस में शामिल हो गए. अपनी 32 साल की सेवा में उन्होंने महाराष्ट्र में अपराध को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
परमबीर सिंह की सविता सिंह एक वकील हैं, जो एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड नामक एक निजी कंपनी की निदेशक हैं. सविता सिंह 5 कंपनियों में डायरेक्टर हैं. हालांकि एलआईसी हाउसिंग ने पिछले साल जब टीआरपी मामले में परमबीर सिंह सुर्खियों में आए तो जबरदस्ती उन से बोर्ड से इस्तीफा दिलवा दिया था.
सविता सिंह एक बड़ी कारपोरेट प्लेयर हैं. सविता इंडिया बुल्स ग्रुप की 2 कंपनियों में भी डायरेक्टर हैं. वह एडवोकेट फर्म खेतान एंड कंपनी में पार्टनर हैं. सविता कौंप्लैक्स रियल एस्टेट ट्रांजैक्शन और विवादों के लिए अपने ग्राहकों को सलाह देती हैं.
वह ट्रस्ट डीड, रिलीज डीड और गिफ्ट डीड पर भी सलाह देती हैं. उन के ग्राहकों में ओनर, खरीदार, डेवलपर्स, कारपोरेट हाउसेज, घरेलू निवेशक और विदेशी निवेशक शामिल हैं.
सविता सिंह ने हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री हासिल की है. इस के बाद उन्होंने मुंबई से ला में ग्रैजुएशन किया. वह 28 मार्च, 2018 को इंडिया बुल्स प्रौपर्टी की डायरेक्टर बनी थीं. यस ट्रस्टी में भी 17 अक्तूबर, 2017 को डायरेक्टर बनीं. वह इंडिया बुल्स असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी में भी डायरेक्टर हैं. सोरिल इंफ्रा में भी डायरेक्टर थीं.
सोरिल इंडिया बुल्स की ही कंपनी है. कहा जाता है कि वह खेतान से सालाना 2 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाती हैं.
परमबीर के इकलौते बेटे रोहन सिंह की शादी राधिका मेघे से हुई थी, जो नागपुर के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन सागर मेघे की बेटी हैं. परमबीर सिंह के बेटे रोहन की शादी बेंगलुरु में बहुत ही धूमधाम से हुई थी. रोहन की पत्नी राधिका बीजेपी के कद्दावर नेता दत्ता मेघे की पोती हैं. दत्ता मेघे विदर्भ के अलगाव आंदोलन के सब से बड़ा चेहरा थे.
राधिका के पिता सागर मेघे नागपुर में बिजनैसमैन हैं. वह लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, पर हार गए. उन के चाचा समीर मेघे विधायक हैं. कहा जाता है कि शादी का पूरा खर्च मेघे परिवार ने उठाया था. बाद में रोहन के परिवार ने मुंबई में रिसैप्शन दिया था.
परमबीर के एक भाई मनबीर सिंह भड़ाना हरियाणा के जानेमाने वकील तथा दूसरे हरियाणा प्रादेशिक सर्विस कमीशन के सब से युवा और सबसे लंबे अरसे तक सेवा करने वाले चेयरमैन रहे हैं. परमबीर सिंह की बेटी रैना विवाहित है और लंदन में एक कारपोरेट हाउस में नौकरी करती है.
1988 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले परमबीर सिंह पुलिस सेवा की शुरुआत में जिला चंद्रपुर और जिला भंडारा के एसपी रह चुके हैं. वह मुंबई के कई जिलों में डीसीपी रह चुके हैं और हर तरह के अपराध पर उन की पैनी पकड़ रही है.
वह एटीएस में डीआईजी के पद का कार्यभार भी संभाल चुके हैं. महाराष्ट्र के ला ऐंड और्डर के एडिशनल डीजीपी का पद भी संभाल चुके हैं. उन्हें 90 के दशक में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड यानी एसओएस का गठन करने के लिए भी जाना जाता है.
इस फोर्स ने अंडरवर्ल्ड और अपराधियों का जितना एनकाउंटर किया है, वह एक रिकौर्ड है. अंडरवर्ल्ड डौन के विरुद्ध एसओजी ने कई बड़े और सटीक औपरेशन किए. परमबीर सिंह को सख्त और तेजतर्रार औफिसर माना जाता है, जो किसी भी परिस्थिति को बखूबी हैंडल करना जानते हैं.
सितंबर 2017 में दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर की गिरफ्तारी के वक्त वह ठाणे के पुलिस कमिश्नर थे. इकबाल को बिल्डर से उगाही की धमकी के आरोप में ठाणे क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था.
90 के दशक में मुंबई पुलिस ने जौइंट सीपी अरविंद इनामदार के निर्देशन में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड बनाया था. परमबीर सिंह इस स्क्वायड के पहले डीसीपी थे. ठाणे के पुलिस कमिश्नर रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल में एक हाईप्रोफाइल फरजी काल सेंटर रैकेट का परदाफाश भी किया था.
यह रैकेट अमेरिकी नागरिकों को अपने जाल में फंसाता था, जिस की वजह से एफबीआई की नजरों में था.
काल रैकेट आरोपी सागर का खुलासा भी परमबीर सिंह ने ही किया था. नवी मुंबई में हुए दंगों के दौरान वह खुद दंगाग्रस्त इलाकों में गए और सभी संप्रदाय के लोगों को समझाबुझा कर हिंसा को काबू में किया था.
अपने करियर में कई उपलब्धियां हासिल करने वाले परमबीर सिंह ने पुणे में अर्बन नक्सल नेटवर्क का भी खुलासा किया था.
परमबीर सिंह मुंबई के कई जोन्स के डीसीपी का पदभार संभाल चुके हैं. साथ ही मुंबई के वेस्टर्न रीजन जैसे हाईप्रोफाइल इलाके में उन्होंने एडिशनल कमिश्नर का पदभार भी संभाला.
वह महाराष्ट्र और मुंबई को क्राइम फ्री बनाने की दिशा में हमेशा सक्रिय रहे हैं. परमबीर सिंह कई पुरस्कार व पदकों से सम्मानित हो चुके हैं, जिन में मेधावी सेवा व विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक शामिल हैं.