पश्चिम बंगाल में तीसरे चरण के मतदान से पहले गुरुवार को खूब बयानबाजियों का दौर चला. इस दौरान एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ममता बनर्जी पर हमला बोला. उन्होंने ‘दीदी ओ दीदी…’ कहकर सीएम ममता पर तंज कसा था. पीएम इससे पहले भी बंगाल चुनाव प्रचार के दौरान कई बार ममता बनर्जी पर ‘दीदी ओ दीदी…’ कहकर तंज कसते रहे है. और इससे पहले भी वे सोनिया गांधी पर बोलते हुए कुछ इसी तरह के लहजे का प्रयोग करते रहे हैं. ऐसे में सोचने वाली बात ये है कि क्या पीएम मोदी चुनाव प्रचार के दौरान यह बात भूल जाते हैं कि वे इस देश के प्रधानमंत्री है. खासकर जब किसी महिला के संबोधन की बात आती है तो चाहें वो किसी विपक्षी पार्टी की ही क्यों ना हो, क्या पीएम को संबोधन की भाषा में शालीनता नहीं रखनी चाहिए ?

पीएम मोदी के इस बयान को लेकर टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधा है. टीएमसी सांसद ने एक निजी चैनल को दिए एक इंटरव्यू में पीएम मोदी पर हमला बोला.

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उन्होंने कहा कि बंगाल में कुछ लोग होते हैं, जिन्हें ‘रौकेर छेले’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है वे लड़के, जो सड़क किनारे बैठकर आती-जाती हर महिला को ‘दीदी ए दीदी’ कहकर पुकारते हैं. प्रधानमंत्री भी वही कर रहे हैं.’ उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री मोदी लाखों लोगों के बीच दीदी पर निशाना साधते हैं. वो ‘दीदी ओ दीदी’ कहकर ममता को पुकारते हैं. यह कहां तक सही है. क्या वो अपनी मां के लिए ऐसा बोलेंगे? अपनी बहन के लिए बोलेंगे? अपनी परित्यक्त पत्नी के लिए बोलेंगे? एक प्रधानमंत्री एक राज्य की सीएम के लिए इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करे, ये उन्हें शोभा नहीं देता.

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बता दें कि दूसरे चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले ममता बनर्जी ने विपक्षी नेताओं को चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठीका मजाक उड़ाते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि ‘दीदी आपके एक्शन दिखा रहे हैं कि आप नंदीग्राम से हार रही हैं, कि आपने हार मान ली है. ‘दीदी ओ दीदी’ अफवाह चल रही है कि आप किसी और सीट से पर्चा भरने वाली हैं. क्या ये सच है? पीएम मोदी ने मंच से तंज भरे लहजे में दीदी को पुकारा. उन्होंने कहा था, ‘जब जरूरत होती है तो तब दीदी दिखती नहीं, जब चुनाव आता है तो कहती हैं- सरकार दुआरे-दुआरे! यही इनका खैला है. ओ दीदी, ओ दीदी… अरे दीदी… बंगाल का बच्चा-बच्चा, ये खैला समझ गया है.’

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पीएम मोदी अपने इन सस्ते संवादों से बेशक आई हुई भीड़ के बीच बैठे अपने समर्थकों की तालियां बटोर लेते हो, लेकिन आमतौर पर इससे संदेश यही जाता है कि चुनावी बाज़ी जीतने के लिए देश के प्रधानमंत्री का किसी महिला को इस तरह से संबोधन करना एक बेहद ओछा तरीका है.

कितना अच्छा होता अगर प्रधानमंत्री मोदी जितनी शालीनता अपने पहनने-ओढ़ने में बरतते है उतना ही वे अपनी भाषा संवाद में शालीनता रखते तो उतने ही नफासत पसंद या सुरुचिपूर्ण होते. एक देश अपने प्रधानमंत्री से इतनी सामान्य और जायज़ अपेक्षा तो रख ही सकता है. उनका बाकी अंदाज़-ए-हुक़ूमत तो एक अलग बहस की दरकार रखता ही है.

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