मधु और अंजू की दोस्ती सात साल से ऐसी थी कि दोनों हर सुख दुःख में एक साथ होते, मन की हर बात एक दूसरे से शेयर करते, दोनों रहते भी एक ही सोसाइटी में थे, दो साल पहले मधु के पति की अचानक मृत्यु हो गयी तो अंजू मधु का और भी ध्यान रखने लगी, उसकी हर जरुरत के समय हाजिर रहती,मधु और अंजू दोनों अच्छी दोस्त जरूर थीं  पर दोनों के सोचने का ढंग एक दूसरे से बिलकुल मेल नहीं खाता था, जहाँ मधु हर बात में धर्म और राजनीति में गहरी रूचि रख कर बात करती, वहीँ अंजू विवेक से काम लेने वाली, तर्कसंगत बातों को सोचने वाली इंसान थी.  मधु की कई बातें अंजू को पसंद न आती, पर एक अच्छी दोस्त होने के नाते वह मधु की काफी बातों को इग्नोर कर देती. जबसे मधु के पति की डेथ हुई थी, मधु अपनी हेल्थ के प्रति काफी लापरवाह होती जा रही थी, एक दिन अंजू ने डांटा,” तुम्हे शुगर है, डॉयबिटीज है,न तो टाइम से सो रही हो, न टाइम से खा रही हो, न कहीं सैर के लिए जाती हो,करती क्या हो पूरा दिन?”

”नींद नहीं आती, फोन पर वीडिओज़ देखती रहती हूँ, ”मधु ने गंभीरता पूर्वक कहा.

अंजू को उससे सहानुभूति हुई, फिर कहा,” टाइम से सोने की कोशिश किया करो, धीरे धीरे नींद आने लगेगी.‘’

एक बात और थी कि अंजू और मधु अलग अलग राजनैतिक पार्टी को सपोर्ट करते, अंजू समझ चुकी थी कि मधु अपने सामने कोई भी तर्क, विचार नहीं सुनना चाहती इसलिए वह कभी अब पॉलिटिक्स की बात मधु से न करती, अंजू ने पूछ लिया,” पर कौनसे वीडिओज़ देखती हो?”

”पॉलिटिक्स से सम्बंधित, यू ट्यूब पर.‘’

”अरे, यार, तुम उन वीडिओज़ में अपनी रातें खराब कर रही हो? पता भी नहीं होता है कि क्या झूठ है,क्या सच! कितने सच छुपा दिए जाते हैं, कितने झूठ सामने रख दिए जाते है.”

अब तक अंजू और मधु बिगबॉस का हर सीजन देखती आयी थीं, दोनों सलमान खान की फैन थीं, दोनों इस प्रोग्राम को डिसकस करतीं,खूब हंसती, आनंद लेतीं, अंजू ने पूछ लिया,”एक बात बताओ, बिगबॉस देख रही हो न?”

मधु ने चिढ कर कहा,”नहीं, सलमान खान की न कोई मूवी देखूंगी,न कोई शो !’

”क्यों, भाई, क्या हुआ?”

”बस, नहीं देखूंगी.‘’

मधु के उखड़े स्वर के बाद अंजू ने फिर कुछ नहीं कहा. थोड़े दिन बाद फिर अंजू ने मधु को फोन कर उसके हालचाल लिए, और कहा, हेल्थ का ध्यान रख रही हो न?”

”सारी रात तो जागती हूँ, पर दिन में थोड़ा बहुत सो लेती हूँ.‘’

”रात में फिर क्या करती हो?”

”बताया था न, पॉलिटिक्स में इतना कुछ चल रहा है, सब जानकारी लेने के लिए यू ट्यूब पर वीडिओज़ देखती रहती हूँ, सुबह के पांच बज जाते हैं,पता ही नहीं चलता,” इसके बाद मधु ने बहुत कठोर सी आवाज में कहा,” और तुम मुझे समझाने की कोशिश भी न करना कि मुझे क्या देखना चाहिए, क्या नहीं, तुम्हारे विचार मेरी पार्टी से अलग रहते हैं, मैं समझ गयी हूँ,  मैं जिस पार्टी को सपोर्ट करती हूँ, मुझे उस पर विश्वास है.”

मधु के स्वर में एक अकड़ थी, कटुता थी, अंजू को अपना अपमान महसूस हुआ, वह दिल से मधु को प्यार करती थी, उसकी चिंता करती थी, वह हैरान भी थी कि यह कब होता गया, उनकी दोस्ती में राजनीति ने कब अपनी कड़वी घुसपैठ कर ली ! पता ही नहीं चला ! इससे पहले भी कई बार मधु ने पॉलिटिक्स को लेकर, दूसरों के धर्मों को लेकर  ऐसी बातें की थीं कि अंजू को अच्छा नहीं लगा था,उसने इग्नोर कर दिया था,विचार नहीं मिलते थे,यह तो पता था,पर ऐसी बात तो कभी नहीं हुई थी कि दिल दुखा  हो ! इसके बाद पंद्रह दिन पहली बार बीते कि दोनों ने एक दूसरे से कोई संपर्क नहीं किया, फिर यह अंतराल बढ़ता गया, फिर कभी तीज त्यौहार पर एक दूसरे को विश करने की औपचारिकता ही रह गयी, धीरे धीरे दोनों के बीच में एक दूरी  आती गयी, जिस दोस्ती पर दोनों इतराते थे, वह कहाँ गयी, पता ही नहीं चला !

तीस वर्षीया सबा खान का अनुभव  बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है, वे बताती हैं, ”जब मैं दूसरी क्लास में थी, स्कूल में  मेरी एक सहेली बनी, रचना खन्ना, आज इतने सालों बाद भी मैं यह अनुभव नहीं भूलती, रचना के साथ मैं स्कूल में खूब खेलती, अचानक उसने मुझसे बोलना छोड़ दिया, बाकी लड़कियों को भी कहा, कि कोई मुझसे न खेले, न बात करे, बहुत दिनों तक मैं चुपचाप बैठी रहती, मैंने रचना से पूछा कि वह मुझसे क्यों नहीं खेल रही है, उसने कहा,” मेरी मम्मी ने मना किया है.‘’

मैंने पूछा ,”क्यों?”

”क्योकि तुम मुस्लिम हो !”

मैं ऐसी हो गयी थी कि न मेरा पढ़ाई में मन लगता, न स्कूल जाने का मन करता, मेरा काम  अधूरा ही रह जाता, टीचर ने मेरे पेरेंट्स को बुलाया और मेरी शिकायत की, सबके सामने मुझसे पूछा गया कि मैं इतनी डल क्यों हो गयी हूँ,” मैंने कहा,”मुझसे न कोई खेलता है, न बात करता है. और उन्हें रचना की बात बताई. रचना को भी बुलाया गया और उसे बहुत समझाया गया कि ऐसी बातें नहीं करते, वह तो अच्छा हुआ कि उसी साल हमारा उस शहर से ट्रांसफर हो गया, अब तो पुरानी बात हो गयी पर मैं यह बात कभी भूलती नहीं.‘’

सबा का बाल मन कितना आहत हुआ होगा, इसका अंदाजा  लगाना मुश्किल नहीं है, उस बच्ची रचना की भी कोई गलती नहीं है, गलती है हमारे समाज की जो तीस साल पहले भी रिश्तों में, दोस्ती में धर्म को महत्त्व देता था, आज भी देता है, आज भी वही हो रहा है जो सालों से होता आ रहा है, मतलब समाज में इस बात में कोई बदलाव नहीं आया कि इंसान इंसानियत को अपना धर्म माने, दोस्ती में ये चीजें न आएं.

किटी पार्टी चल रही थी, एक आरती को छोड़ कर सब की सब महिलाएं राम मंदिर निर्माण पर चर्चा करने लगीं, सुधा ने कहा,” मैं तो मंदिर के लिए खूब चंदा दूँगी, चलो, एक ग्रुप बना कर चंदा लेने का काम करते हैं.‘’

आरती ने कहा,” मैं मंदिर के नाम पर एक पैसा नहीं दूँगी,हाँ, किसी स्कूल या हॉस्पिटल के नाम पर मैं अच्छी खासी रकम देने को तैयार हूँ.‘’

फिर क्या था, सब की सब उसके पीछे पड़ गयीं, सुधा सबमें उम्रदराज थीं, गुस्से से बोलीं,” तुम जैसी महिलाओं ने ही धर्म का सत्यानाश कर दिया है.‘’

आरती भी कब तक उम्र का लिहाज करती ! उसने भी कहा,” आप लोगों ने धर्म की कितनी सेवा कर ली ! इतनी नफ़रतें रखते हो एक दूसरे के लिए, समाज का बेड़ागर्क हुआ जा रहा है, कितने बुद्दिजीवी सताये जा रहे हैं, कोई अपने मन की बात नहीं कर सकता, किसी को तर्कसंगत बात नहीं सुननी, धर्म ने दिया क्या है?” फिर तो जो हुआ, कल्पना से परे था, बात कहाँ से कहाँ पहुँच गयी, सुधा और आरती के चेहरे गुस्से से लाल होते रहे, काफी अपमानजनक बातें सुनने के बाद आरती पानी की एक घूँट भी पिए बिना वहां से उठ  कर घर आ गयी, दस सालों से इस किटी पार्टी की सबसे इंटेलीजेंट, खुशमिजाज मेंबर ग्रुप छोड़कर चली गयी पर सब जरा सी भी गलती माने बिना अपनी बात को सही कहती रहीं.

एक बड़ी कंपनी में कार्यरत सुजय बताते हैं कि ‘आजकल ऑफिस में सबके साथ बैठ कर लंच करना मुश्किल होता जा रहा है, अजीब सी बहस चलती रहती है, कहाँ काम से ब्रेक लेकर आराम से खाना खाने का मन करता है, पर राजनीति पर चलने वाली बहस से सारा मजा खराब हो जाता है, आजकल साथ बैठ कर हंसना बोलना तो जैसे बंद ही होता जा रहा है. किसी के भी विरोध में बोल दो, सामने वाला लड़ने पर उतारू हो जाता है.’

साठ साल के  अनिल इस विषय पर अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं,” मैं बड़ा खुश था, जब हम साथ पढ़े हुए दोस्तों ने एक दूसरे को ढूंढ कर व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाया, सब एक दूसरे से दोबारा जुड़कर बहुत ज्यादा  खुश थे, सारा  दिन ग्रुप पर खूब मन लगता, सब जैसे पुराने दिनों में पहुँच गये थे, पर फिर धर्म से जुड़े,राजनीति से जुड़े फ़ॉर्वर्डेड मेसेजस भेजे जाने लगे, किसी ने आपत्ति की कि यह दोस्तों का ग्रुप है, यहाँ धर्म और राजनीति बीच में नहीं आनी चाहिए क्यूंकि हर  मेंबर के अपने विचार होंगें, पर लोग नहीं माने और फिर आपस में एक दूसरे को तल्खी से जवाब देने लगे, कई बार इतने लम्बे लम्बे मैसेज में एक दूसरे  को कड़वा रिप्लाई करते कि पढ़ते पढ़ते ही लगता कि यह क्या हो रहा है,हम दोस्त हैं या दुश्मन? फिर ग्रुप पर कहा गया कि इन विषयों पर जिसने बहस की, उसे ग्रुप से हटा दिया जायेगा, इसका भी असर नहीं हुआ, शान्ति पसंद लोग धीरे धीरे ग्रुप से दूर होते चले गए, इन मुद्दों पर बहस करने वालों को हटा दिया गया तो ग्रुप की रौनक लौटी.‘’

मसूद  और आलोक एक ही ऑफिस में हैं, दोनों बहुत अच्छे दोस्त भी बन गए हैं,वे कभी किसी भी धर्म की बात ही नहीं करते, राजनीति पर उनके विचारों में काफी मतभेद हैं, दोनों इस विषय पर खूब बातेंकरते  हैं, अपने अपने पॉइंट्स रखते हैं, दोनों एक दूसरे के विचार बहुत ध्यान से सुनते हैं, सभ्य शब्दों में अपनी सहमति,असहमति दिखा काट टॉपिक चेंज कर देते हैं,पांच सालों में उनकी दोस्ती समय के साथ पक्की ही होती गयी है.

धर्म और राजनीति हमेशा से इंसान व समाज पर अपना गहरा प्रभाव डालते रहे हैं. इतिहास में भी धार्मिक केंद्रों को राजनीतिक सत्ता केंद्र के रूप में भी देखा जाता रहा है, दोनों का आपसी सम्बन्ध चर्चा का विषय बनता रहा है , कभी कभी इनकी मिथ्या प्रस्तुति के कारण विवाद भी पैदा होते रहे हैं पर आपसी रिश्तों में धर्म और राजनीति का आ जाना दुखद है न? हिन्दू,मुस्लिम, ईसाई,जैन, बौद्ध आदि के बारे में कहा जाता है कि ये धर्म नहीं, सम्प्रदाय हैं, धर्म तो हर मनुष्य का एक ही है, वह है मानव धर्म.आपस के रिश्तों को निभाने के लिए सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि आपसी प्यार में धर्म और राजनीति को लेकर कोई कड़वाहट न आये, दोस्ती,प्यार में इन चीजों की जगह नहीं, दुनिया में वैसे ही नफ़रतें बढ़ती जा रही हैं, हर आम इंसान का अपनी ओर से समाज में इतना सा योगदान जरूर हो कि वह आपसी रिश्तों का मान रखे, एक दूसरे के विचार से सहमत न हों तो बहस से बचें, अपने विचार दूसरे पर थोपने से बचें.

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