स्वाति मालीवाल एक पढ़ीलिखी, जागरूक महिला हैं, समाज के हित में काम करने की इच्छा ले कर मनीष सिसोदिया के एनजीओ ‘परिर्वतन’ के साथ इस मकसद से जुड़ीं कि वे समाज में परिर्वतन लाने में भागीदारी कर सकेंगी. मनीष सिसोदिया तब भी अरविंद केजरीवाल के साथ काम करते थे. वहां से स्वाति अरविंद के संपर्क में आईं. स्वाति के पिता एयरफोर्स में थे और मां प्रिसिंपल थीं. स्वाति ने अपने एक इंटरव्यू में यह आरोप भी लगाया था कि बचपन में उन के पिता ने भी उन के शोषण का प्रयास किया था.
यही दर्द था जिस से लड़ने के लिए स्वाति हर उस लड़की के साथ खड़ी हो जाती थीं जो भी खुद को विक्टिम या पीड़ित समझती थी. दिल्ली के जंतरमंतर पर जब पहलवान बेटियों ने सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ धरना शुरू किया तो स्वाति वहां पहुंचीं. पुलिस के विरोध के बाद भी पहलवान लड़कियों का साथ दिया. जुझारू स्वाति ने अरविंद केजरीवाल के सहायक के रूप में भी काम किया. इस के बाद अरविंद केजरीवाल ने उन को दिल्ली महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया. इस के 2 वर्षों बाद 2024 में आम आदमी पार्टी ने स्वाति मालीवाल को राज्यसभा का सदस्य बना दिया.

13 मई की सुबह स्वाति मालीवाल अरविंद केजरीवाल से मिलने उन के मुख्यमंत्री आवास गईं. वहां कुछ देर रहीं. इस के बाद उन्होंने फोन से दिल्ली पुलिस की पीसीआर टीम को मैसेज दिया कि मुख्यमंत्री आवास पर उन के सचिव के द्वारा उन की पिटाई की गई है. पीसीआर टीम वहां पहुंचती है. इस बीच स्वाति मालीवाल वहां से निकल कर सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन जाती हैं. वहां वे रिपोर्ट लिखवाएं, इस के पहले फोन आते हैं, जिस के बाद स्वाति मालीवाल बिना रिपोर्ट लिखवाए चली जाती हैं. वापस आ कर रिपोर्ट लिखाने को कहती हैं.

घटना के 33 घंटे के बाद आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह मीडिया के सामने आ कर इस घटना की जानकारी देते कहते हैं कि ‘मुख्यमंत्री के संज्ञान में घटना है. वे जल्द ही फैसला करेंगे.’ स्वाति खुद को पीड़ित मान रही हैं.

महिलाएं खुद को समझ लेती हैं विक्टिम

हमारे देश में महिलाओं के सामने यह नई बात नहीं है. पौराणिक काल से ले कर आज तक औरतों को इतना सक्षम नहीं बनाया जा सका है कि वे खुद को पीड़ित समझ कर चुप न रहें. संविधान और कानून ने बहुत अधिकार दिए, इस के बाद भी महिलाएं खुद को विक्टिम समझ कर व्यवहार करती हैं.

अग्निपरीक्षा से ले कर धरती में प्रवेश करने तक हर जगह खुद को पीड़ित समझने की कहानी पौराणिक ग्रंथों में दर्ज है. खुद को विक्टिम मान कर अहल्या हजारों साल अपने उद्वार की प्रतीक्षा करती रही. हमारे घरों में घरेलू हिंसा के मामले रोज होते हैं. पति के साथ मारपीट से ले कर दहेज हत्या तक के मामले हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी से पता चलता है कि दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत 2022 में 13,479 मामले दर्ज किए गए. इसी दौरान 2022 में 6,450 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं.
महिलाएं हिंसा सह कर चुप रह जाती हैं. वे कईकई बार पिटती रहती हैं. फिर उन की ऐसी मानसिकता बन जाती है. पति को भगवान मान लेती हैं. उन को लगता है कि वे दासी हैं. पिटना उन का धर्म है. कानून और संविधान द्वारा हक देने के बाद भी असल माने में महिलाओं को अपना अधिकार जताने की ताकत नहीं दी गई है. वे अपने कमाए पैसे पति से नहीं मांग सकतीं तो पिता की जायदाद में भाई से अपना हिस्सा नहीं मांग पातीं.

पतिपत्नी में तलाक होने के बाद उन को गुजारा भत्ता वही मिलता है जो पति और कोर्ट मध्यस्थता के जरिए देती है. पत्नी जो अपना हक मांगती है वह नहीं मिलता. वह विक्टिम बन कर उसे रख लेती है, चुपचाप अपना गुजारा करती है. इस में समाज भी उन का साथ नहीं देता.

समाज में रोज बलात्कार के सैकड़ों मामले होते हैं. भारत में एक दिन में औसतन 87 रेप की घटनाएं होती हैं. राजधानी दिल्ली में एक दिन में 5.6 रेप के मामले सामने आते हैं. आंकड़ों के मुताबिक, पिछले सालों के मुकाबले रेप के मामलों में 13.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. राजस्थान में 6,342, मध्यप्रदेश 2,947, उत्तरप्रदेश 2,845 और दिल्ली में 1,252 घटनाएं सब से ज्यादा हुई हैं.

बलात्कार के मसले में गुनाह पुरुष करता है, इस के बाद भी महिला खुद को गुनाहगार समझती है. उस के साथ घरपरिवार और समाज भी उसे ही गुनाहगार मानता है. बलात्कार का शिकार महिलाएं अपने पूरे जीवनकाल में खुद को जिम्मेदार मानते हुए आगे के जीवन में सहज नहीं हो पाती हैं. महिला किसी वर्ग की हो, उस की अपने को हुनाहगार समझने की मानसिकता वही रहती है. समाज में उस को इस मानसिकता से बाहर निकलने में कोई मदद भी नहीं करता है.

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