केंद्र सरकार ने जिस तरह कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर आंदोलनरत किसानों की उपेक्षा करके, उनको प्रताड़ित करके अपनी मनमानी और ढीठपना दिखाया है, उससे नाराज़ किसानों ने आंदोलन और ज़्यादा तेज़ करने का ऐलान कर दिया है. किसानों की महापंचायतें अब जगह-जगह हो रही हैं और इन महापंचायतों में सरकार को घेरने की नयी-नयी रणनीतियां भी बन रही हैं. हाल ही में किसान नेताओं द्वारा दिए गए कुछ बयान सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड कर रहे हैं, जिन्होंने आमजन की चिंता बढ़ा दी है. इन्ही में से एक बयान भारतीय किसान यूनियन से ताल्लुक रखने वाले मलकीत सिंह का आया था, जिसमें उन्होंने किसानों द्वारा पहली मार्च से दूध के दाम दोगुने कर देने का ऐलान कर डाला था.
हालांकि किसानों द्वार दूध के दाम बढ़ाने को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रमुख योगेंद्र यादव इसे किसान आंदोलन के लिए एक आत्मघाती कदम बता रहे हैं. वहीँ दूसरी किसान यूनियनें भी मलकीत सिंह के बयान को उनका निजी विचार बताते हुए उससे सहमति ना रखने की बात तो कह रही हैं, लेकिन दबे स्वरों में कुछ किसान नेताओं का यह भी कहना है कि जिस दर से मंहगाई बढ़ रही है, किसानों को भी अपने उत्पादों के दामों में बढ़ोत्तरी करनी चाहिए.
संयुक्त किसान मोर्चा के मीडिया प्रभारी दीपक लाम्बा कहते हैं – ये मलकीत सिंह की निजी राय हो सकती है. लेकिन किसान आमजन को कतई परेशान नहीं करना चाहता है. हम शांतिपूर्ण तरीके से अपना आंदोलन चला रहे हैं. हमारी तरफ से कोई ऐसा ऐलान नहीं होगा जिससे आम जनता को परेशानी का सामना करना पड़े.
वहीँ भारतीय किसान यूनियन के मीडिया कोऑर्डिनेटर धर्मेन्द्र मलिक का भी कहना है – ‘ये मलकीत सिंह का निजी बयान है, अभी इस पर कोई एकराय नहीं बनी है, लेकिन सरकार अगर इसी तरह का उपेक्षापूर्ण व्यवहार किसानों के साथ करती रही तो ये पहल भी अच्छी है. जब सारी चीज़ों के दाम बढ़ रहे हैं तो इससे किसान भी प्रभावित हैं, वो भी अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने के अधिकारी हैं. लेकिन दूध के दाम बढ़ाने से पहले कई बातों को देखना होगा. अगर ज़्यादा दाम पर दूध डेयरियां किसान का दूध खरीदने पर राज़ी नहीं होती हैं तो एक तरफ किसान का दूध खराब जाएगा वहीँ दूसरी तरफ बाज़ार में दूध की किल्लत हो जाएगी, ऐसे में नकली दूध बनाने वालों को आसानी से अपना बाज़ार मिल जाएगा, वहीँ अमेरिका सहित कई देश पाउडर दूध बनाते हैं और चाहते हैं कि भारत में उनको बाज़ार मिल जाए. ये दूध पाउडर रसायनों से बनाया जाता है, ये हमारे स्वास्थ के लिए ज़हर है, लेकिन इस सरकार का कोई भरोसा नहीं, वो कहीं उसके लिए आयात का रास्ता ना खोल दे. इन तमाम बातों को देखते हुए और सबकी एकराय से ही हम कोई फैसला करेंगे.
वहीँ मलकीत सिंह अपनी बात पर जमे हुए हैं. उनका कहना है – ‘किसान दूध के दामों में बढ़ोतरी करेंगे, जिसके बाद 50 रुपये लीटर बिकने वाला दूध दोगुनी कीमत यानी 100 रुपये लीटर बेचा जाएगा. अगर सरकार तब भी न मानी तो आने वाले दिनों में आंदोलन को शांतिपूर्वक आगे बढ़ाते हुए किसान सब्जियों के दामों में भी वृद्धि करेंगे. केंद्र सरकार ने डीजल के दाम बढ़ाकर किसानों को चारों तरफ से घेरने का प्रयास किया है, अब किसान दूध-सब्ज़ी के दाम बढ़ाएंगे. जब जनता 100 रूपए का डीज़ल पेट्रोल खरीद सकती है तो 100 रूपए का दूध भी खरीदेगी.’
अब किसानों की इन धमकियों का असर सरकार की सेहत पर भले ना हो, मगर इससे आमजन में भारी बेचैनी है, खासकर घर की गृहणियों में. छोटे बच्चों की खुराक में दूध की कटौती की कल्पनामात्र से माओं का दिल थर्रा उठा है. दो साल के अनुज की मां नेहा राठौर कहती हैं – आखिर ये सरकार चाहती क्या है? क्या इनके राज में अब हमारे बच्चों को दूध तक नसीब नहीं होगा? यही मोदी के अच्छे दिन हैं?
दूध के दाम में वृद्धि की खबर पर स्पोर्ट से जुड़े नियाज़ अहमद कहते हैं – ‘किसान यूनियन का दूध के दाम दोगुना करने का निर्णय आम लोगों को नाराज़ कर सकता है जिससे धीरे-धीरे किसान आंदोलन के प्रति बढ़ रहे जन-समर्थन पर विराम लगा सकता है. किसान नेता का यह कहना वाजिब हो सकता है कि लोग मंहगे होते जा रहे पेट्रोल डीज़ल के खिलाफ भी तो आवाज नहीं उठा रहे हैं, लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि बहुत से लोगों के लिए पेट्रोल डीज़ल का उपभोग जरूरत नहीं है, लेकिन दूध तो सबकी जरूरत है, खासतौर पर नन्हे बच्चों की.’
पनीर के ट्रेडिंग व्यवसाय से जुड़े सुबोध कुमार कहते हैं – बीते एक माह में पनीर के दाम तीन बार बढ़ चुके हैं. अब अगर दूध के दाम में बढ़त हुई तो नकली पनीर या सोयाबीन के पनीर से बाजार भर जाएगा और लोगों की सेहत खराब करेगा. दूध मंहगा होने का मतलब है पनीर, दही, खोया, छाछ, लस्सी सभी कुछ महंगा हो जाएगा. और इनके व्यवसाय से जुड़े लोग दूसरे विकल्प ढूंढेंगे. हलवाई नकली खोया का इस्तेमाल करेंगे. छोटे-बड़े रेस्टोरेंट नकली पनीर का इस्तेमाल करेंगे. इससे नुकसान तो जनता का ही होगा. किसानों को अपनी मांगे मनवाने के लिए जनता की सेहत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए.
45 से 55 रूपए लीटर बिकने वाले पैकेट वाले दूध का दाम बढ़ने से आम जनता निश्चित ही त्राहिमाम कर उठेगी तो वहीँ हर गली-नुक्कड़ पर चाय का ठेला लगा कर दो वक़्त की रोटी कमाने वालों का धंधा भी चौपट हो जाएगा. उन्हें या तो अपनी चाय के दाम दोगुने करने पड़ेंगे अथवा धंधा समेटना पड़ेगा. जो चतुर होंगे वो नकली दूध का इस्तेमाल करके जनता की सेहत से खिलवाड़ करेंगे.
दूध के दाम दोगुने होने पर हलवाई भी दूसरे विकल्पों की ओर मुड़ेंगे. मिठाइयां बनने में नकली खोया, नकली पनीर, नकली दूध का इस्तेमाल धड़ल्ले से होने लगेगा. कोरोना की वजह से लगे लॉक डाउन के कारण आर्थिक मार से टूटे व्यवसाई जैसे तैसे उबरने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में वे धंधे को बंद तो नहीं करेंगे बल्कि कोशिश करेंगे कि धंधा चलता रहे, भले इसके लिए नकली सामान इस्तेमाल करने का जोखिम उठाना पड़े.
एक तरफ केंद्र सरकार की मनमानी और दूसरी तरफ किसानों के ऐलान आम लोगों के लिए बड़ी मुसीबत बनते जा रहे हैं. लेकिन सरकार इन बातों से बेखबर बस चारों हाथों पैरों से धनउगाही में लगी नज़र आ रही है. रसोई गैस के दामों में एक महीने में तीन बार इजाफा हो चुका है. घरेलू एलपीजी सिलिंडर की कीमत में फिर 25 रूपए बढ़ा दिए गए हैं. दिल्ली में बिना सब्सिडी वाले 14.2 किलोग्राम के एलपीजी सिलेंडर की कीमत 769 रुपए से बढ़कर 794 रुपए हो गई है. बढ़े हुए दाम 25 फरवरी 2021 से लागू हो गए हैं.
उल्लेखनीय है कि फरवरी महीने में तीन बार गैस सिलेंडर के दाम बढ़ाए गए हैं. सरकार ने 4 फरवरी को एलपीजी के दाम में 25 रुपए का इजाफा किया था. उसके बाद 15 फरवरी को एक फिर से सिलेंडर के दाम 50 रुपए बढ़ाए गए और अब यह तीसरी बार है जब 25 रुपए की बढ़ोतरी फिर की गई है. जिससे इसकी कीमत 794 रुपए पर आ गयी है. यह आम गृहणी के लिए बड़ा धक्का पहुंचाने वाली बात है. गैस और पेट्रोल के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं जबकि आय नहीं बढ़ रही है. पहले रसोई गैस सस्ती थी और उस पर सब्सिडी भी मिलती थी, अब गैस महंगी हो गई और सब्सिडी भी बंद हो गयी है ऐसे में आम आदमी के घर का बजट पूरी तरह से बिगड़ गया है. अब अगर किसानों ने भी सरकार की उपेक्षा से परेशान होकर अपने मन की करने की ठान ली और सब्ज़ी-दूध के दाम बढ़ा दिए तो आम आदमी तो कहीं का नहीं रहेगा.
किसान भी मजबूर है
गौरतलब है कि देश की सबसे ज्यादा भैंसों की आबादी उत्तर प्रदेश में है और दूसरी सबसे ज्यादा पशुधन आबादी भी वहीं है. राज्य में अधिकांश ग्रामीण आबादी पशुधन और डेयरी में लगी हुई है. राजस्थान देश में दूध का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. राजस्थान की लगभग 75% आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है. इनमें से आधी आबादी डेयरी या मवेशी पालन में शामिल है जो आखिरकार इस राज्य को देश में दूसरे सबसे ज्यादा दूध उत्पादक राज्य बनाती है. दूध उत्पादन के मामले में तीसरा राज्य गुजरात है जो भारत के कुल दूध उत्पादन में लगभग 7.75% हिस्सेदारी का योगदान करता है. राज्य में कई सहकारी डेयरी दूध संघ, निजी डेयरी संयंत्र, और प्राथमिक दूध सहकारी समितियां हैं जो राज्य में दूध के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
अन्य दूध उत्पादक राज्य आंध्र प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, तमिलनाडु और बिहार हैं.
पिछले 15 वर्षों से भारत दूध उत्पादन के क्षेत्र में सबसे आगे है, सरकार इसे अपनी कामयाबी में गिनाती है. उत्तर प्रदेश, गुजरात और पंजाब, ये तीन प्रदेश दूध उत्पादन में सबसे आगे हैं. इस व्यवसाय से देश के सात करोड़ से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं. लेकिन इन्हें दूध की वो कीमत नहीं मिल पा रही जो मिलनी चाहिए. इसकी एक वजह डेयरी मालिकों का मनमानापन है तो दूसरी वजह है मिलावटखोरी और नकली दूध का निर्माण. देश में डेयरी उद्योग जिस तेज़ी से बढ़ रहा है उसकी तुलना में किसानों की आमदनी बढ़ने की बजाए लगातार घट रही है.
दूध की कीमत तय कैसे होती है?
- डेयरी कंपनियां लोकल पशुपालकों से करार करती हैं.उनसे एक तय कीमत पर दूध खरीदा जाता है. बाजार में जितने का दूध मिलता है, पशुपालकों को उसका साठ फीसदी ही मिलता है.यानी अगर 60 रुपए लीटर दूध है, तो उसमें से 36 रुपए उत्पादक/किसान को मिलेंगे.2. ये तो बात हुई कि कितना पैसा मिलता है. लेकिन ये 60 प्रतिशत कैसे तय होता है? ये रेट तय होता है सप्लाई, डिमांड और प्रॉडक्शन कॉस्ट से.किसान को अपनी गाय-भैंस की देखभाल यानी उसके चारे, उसके रहने, उसकी मेडिकल जांच और लेबर पर कितना खर्च करना पड़ रहा है? मशीन, बिजली पर आने वाला खर्च, इन सबको ध्यान में रखते हुए कीमत तय की जाती है. चारे की कीमत बारिश और फसल पर निर्भर करती है.