लेखक- रोहित और शाहनवाज

पंजाब के निकाय चुनाव के रिजल्ट आते ही हमने उस जगह को पॉइंट बनाया जहां भाजपा का प्रदर्शन पहले मजबूत रहा है. उसी इलाके में से एक होशियारपुर जगह है जहां भाजपा और अकाली दल बेहतर प्रदर्शन करती आई हैं. दिल्ली के कश्मीरी गेट से हमने पंजाब के होशियारपुर के लिए बस पकड़ी. करीब 7 घंटे का लंबा सफर, उबड़ खाबड़ हाईवे पर हिचकोले खाते हम आखिरकार सुबह 7:00 बजे होशियारपुर बस अड्डे जो कि भगवान वाल्मीकि इंटर स्टेट के नाम से मशहूर है पहुंच गए.

होशियारपुर के जिस इलाके में हम पहुंचे वह मॉडल टाउन में आता है. बस अड्डे से बाहर निकलते ही एक बड़ा सा चौक पड़ता है. चौक पर संविधान हाथ में लिए करीब साढ़े 5 फीट की अंबेडकर की मूर्ति स्थित है. यह मूर्ति वहां कब लगी यह कहना मुश्किल है किंतु 5-6 पुलिस की तैनाती और कुछ कुछ देर में हो रही पेट्रोलिंग यह जरूर बता रही थी कि इस इलाके में कुछ हलचल जरूर होती रहती है और यह इलाका सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है.

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चौक पर चलते ट्रैक्टर इस बात की गवाही दे रहे थे कि पंजाब के शहरों में भी कृषि कानूनों का इंपैक्ट जरूर है. किसान अपनी समस्याओं को लेकर शहरों तक भी जा रहे हैं. सड़कों पर चलते ट्रैक्टरों और जीपों में लगे किसानी झंडे इसी बात की तस्दीक दे रहे थे. जो दिलचस्प बात देखने में आई वह यह कि जो भाजपा के बैनर और पोस्टर बाकी राज्यों में चौकों की शान बना करते हैं यहां यह पूरी तरह नदारद थे. शायद भाजपा खुद पंजाब में अपने हौसले पहले ही बुरी तरह गंवा चुकी है.

होशियारपुर इलाका हिमाचल के उना से सटा हुआ है. यहां से हिमाचल लगभग 20 या 25 किलोमीटर की दूरी पर है. और एक अच्छी खासी संख्या हिमांचल से आने वाले लोगों की है.

हम चाय पीने के लिए चाय की टपरी पर गए तो वहां पहले से मौजूद दो लोग आपस में बात कर रहे थे. यह बातें आधी राजनैतिक और आधी व्यक्तिगत महसूस हो रही थी. उनमें से एक 62 वर्षीय सोहनलाल थे जो सन 81 में हिमाचल के उना इलाके से होशियारपुर आ बसे थे. और यहां वेल्डिंग का काम करने लगे थे. वैसे इससे पहले भी वह दिल्ली के नजफगढ़ और राजस्थान के जयपुर में कुछ वर्ष काम चुके थे. उनका मानना है कि होशियारपुर भी हिमाचल का ही हिस्सा रहा है और यह वापस हिमाचल में चले जाना चाहिए.

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खैर हम इस विवाद में नहीं कूदे और हमने उनसे मसखरे अंदाज में पूछ बैठे कि, “आप तो किसान नहीं लगते, आप शहरी हैं, आपने भाजपा को क्यों नहीं जिताया?”

उन्होंने गिलास में थोड़ी सी बची चाय रोड पर फेंक दी और गिलास टेबल पर रख कर हमें अपने साथ चलने का इशारा किया.

दरअसल चौक से दाई तरफ 50 मीटर की दूरी पर उन्होंने एक गैराज की दुकान किराए पर ली हुई है जिसका नाम ‘मोटर वर्कशॉप’ है. हम गैराज के अंदर घुसे तो सोहनलाल हमें सीधा वेल्डिंग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर की तरफ ले गए. उन्होंने कहा “यह सिलेंडर पहले सवा ₹200 का था अब यह बढ़कर ₹500 का हो गया है.”

सोहनलाल ले हाथ का इशारा करते हुए खाली पड़ी लोहे की टंकी की ओर इशारा किया जिसके बगल में कार्बाइड के कुछ ढेले पड़े थे. उनकी तरफ इशारा कर कहते हैं कि “यह कार्बाइड का पत्थर पहले ₹80 किलो आया करता था अब यही कार्बाइड का पत्थर ₹140 किलो आता है.”

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बता दे कि यह ऑक्सीजन सिलेंडर वह चीज है जो किसी कलपुर्जे के टूटने पर उसे जोड़ने के काम आता है या फिर किसी चीज को बारीकी से काटने के काम आता है. वही कार्बाइड का पत्थर गैस बनाने के काम आता है. यह दोनों चीजें वेल्डिंग के काम के लिए बहुत जरूरी होती है.

सोहनलाल कहते हैं, “लोहे की सीट जो गाड़ियों पर लगती है वह पहले ₹64 प्रति किलो थी अब वह ₹100 प्रति किलो हो चुकी है.

जब हमने उनसे यह पूछा कि उन्होंने निकाय चुनाव में किसको वोट दिया तो वह बताते हैं कि “हमें नाम किसी का नहीं मालूम और मसला इस बार कैंडिडेट का था ही नहीं. लेकिन इतना पता था कि भाजपा को नहीं देना है और कमल को हराना है.” सोहनलाल भाजपा की दोगली राजनीति से भी निराश है. वह बताते हैं “इन्हें तो हारना ही था. सरकार में आने से पहले यही भाजपा गैस पेट्रोल के दाम बढ़ने पर सड़कों पर आ जाया करती थी. चक्का जाम कर दिया करती थी. जुलूस निकाला करती थी. लेकिन अब इन्हीं की सरकार में इन सब चीजों के दाम आसमान छूने लगे हैं और यह इस पर बात करने की वजह लोगों को बस यहां वहां उलझाने का काम करती है.”

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