भारत दुनिया में प्याज का दूसरा सब से बड़ा उत्पादक है. प्याज सब्जी व मसाले की खास फसल है. इसे अकेले या दूसरी सब्जियों के साथ मिला कर खाया जाता है. प्याज का जमीन के अंदर का भाग व पत्तियां खाने में इस्तेमाल की जाती हैं. सब्जी बनाने में व सलाद के अलावा इस के औषधीय गुण के कारण इस का अपना अलग महत्त्व है. प्याज में कार्बोहाइड्रेट के साथसाथ कई प्रकार के तत्त्व जैसे सल्फर, कैल्शियम, प्रोटीन व विटामिन सी आदि काफी मात्रा में पाए जाते हैं.

भारत में उगाई जाने वाली सब्जियों में प्याज सब से ज्यादा पसंद किया जाता है. भारत में प्याज की खेती करीब 4.8 लाख हेक्टेयर रकबे में की जाती है. जून 2016 में इस की फसल का 2.1 करोड़ टन का रिकार्ड उत्पादन हुआ. मध्य प्रदेश भारत का सब से बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है. हाल के सालों में वैज्ञानिक अपने शोध से जहां एक तरफ प्याज में नई तकनीक और संकर किस्मों को विकसित कर के उत्पादन बढ़ाने में लगे हैं, वहीं किसान खेती के नए तरीके अपना कर ज्यादा उत्पादन लेने की कोशिश में हैं.

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मिट्टी व जलवायु

प्याज की खेती के लिए बलुई दोमट व चिकनी दोमट मिट्टी होने के साथ अच्छा जल निकास भी होना चाहिए. मिट्टी का पीएच मान 6.5-7.5 अच्छा रहता है. जब तापमान 12-22 डिगरी सेल्सियस होता है, उस दौरान पौधे की बढ़वार होती है. लेकिन 20 से 21 डिगरी सेल्सियस बल्ब बनने के लिए और 30 से 35 डिगरी सेल्सियस तापमान फसल पकने के लिए ठीक माना जाता है.

उन्नत किस्में : प्याज की कुछ उन्नत किस्में हैं अर्का निकेतन, अर्का बिंदु, अर्का प्रगति, पूसा रेड, पूसा रत्नार, पूसा माधवी, पूसा व्हाइट, फ्लैट एग्रीफाउंड, डार्करेड, एन 53, निफाद 53, हिसार 2, पंजाब सिलेक्शन,

पंजाब रेडराउंड, कल्याणपुर रेडराउंड व उदयपुर 102 वगैरह.

हाइब्रिड प्रजातियां : अर्का कीर्तिमान, अर्का लालिमा व अर्का पीतांबर वगैरह.

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रोपाई

रबी मौसम में बोई जाने वाली प्याज की नर्सरी अक्तूबरनवंबर में डालते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च से जून के महीने में यह काम करते हैं. बीजों को पूरी तरह से तैयार नर्सरी में डालते हैं. नर्सरी में तैयार पौधों को लगाने के लिए खेत को छोटेछोटे टुकड़ों में बांट लेना चाहिए और उस के बाद पौधों को रोपना चाहिए. लाइन और पौधे के बीच की दूरी कम से कम 8 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इस से खरपतवार निकालने व सिंचाई में आसानी होती है. बीजों को बोने से पहले थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या बाविस्टीन 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.

बीज की दर

प्याज की फसल के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 7 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है.

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पौध तैयार करना

पौधशाला के लिए चुनी हुई जगह की पहले जुताई करें. इस के बाद उस में सही मात्रा में गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट डालना चाहिए. पौधशाला का आकार 3 मीटर × 0.75 मीटर रखा जाता है और 2 क्यारियों के बीच 60 से 70 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है, जिस से खेती के काम आसानी से किए जा सकें. खेत के 1/20 भाग में नर्सरी तैयार की जानी चाहिए.

पौधशाला के लिए रेतीली दोमट मिट्टी मुनासिब रहती है. पौध शैय्या में बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर मोटी छनी हुई महीन मिट्टी व सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद से ढक देना चाहिए. बोआई से पहले शैय्या को 250 गेज की पालीथीन से ढक कर सूरज की गरमी से उपचारित कर लें. बीजों को हमेशा लाइनों में बोना चाहिए. इस के बाद क्यारियों पर कंपोस्ट व सूखी घास की पलवार बिछा देते हैं. इस प्रकार 45 से 55 दिनों के तैयार पौधे पहले से तैयार खेत में रोप देने चाहिए.

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खेत की तैयारी : खेत में मिट्टी पलटने वाले हल से 1 बार जुताई कर के 3 से 5 जुताइयां देशी हल से करने के बाद खेत को समतल व भुरभुरा बना लेना चाहिए. खेत की आखिरी जुताई के दौरान 20 टन सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट को खेत में मिला देना चाहिए.

खाद की मात्रा : प्याज के सफल उत्पादन के लिए खाद व उर्वरकों की ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है. फसल में खाद व उर्वरक का इस्तेमाल जांच के आधार पर ही करना चाहिए. गोबर की सड़ी खाद 20 से 25 टन बोआई व रोपाई से 1 या 2 महीने पहले खेत में डालनी चाहिए. इस के अलावा 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगती है. 50 किलोग्राम नाइट्रोजन और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत में पौध लगाने से पहले छिड़काव कर के देनी चाहिए और 50 किलोग्राम बची नाइट्रोजन का रोपाई के 30 से 45 दिनों बाद खेत में छिड़काव करना चाहिए.

सिंचाई : रोपाई के एकदम बाद खेत में हलकी सिंचाई  देनी चाहिए और रोपाई के तीसरे दिन अच्छी व गहरी सिंचाई करनी चाहिए और यदि मिट्टी में पानी सोखने की अच्छी कूवत हो तो 15 दिनों के अंतर पर खेत में पानी लगाते रहना चाहिए. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शल्क कंद बनने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए.

खरपतवारों की रोकथाम : प्याज एक शाकीय फसल है, इसलिए कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम रसायनों का इस्तेमाल किया जाए, लिहाजा खरपतवारों को निराईगुड़ाई कर के खेत से निकाल देना चाहिए. फिर भी बेहद जरूरी होने पर तालिका में बताई गई रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिए.

खुदाई व देखभाल : रोपाई के 3 से 5 महीने बाद फसल खुदाई लायक हो जाती है. खुदाई के 10 से 15 दिनों पहले खेत में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. फिर खुरपी या कुदाल से खुदाई करनी चाहिए. उस के बाद 3 से 4 दिनों के लिए प्याज को छायादार जगह पर सुखाने के बाद उस का तना 2 सेंटीमीटर ऊपर से काट कर हटा देना चाहिए.

उत्पादन : बढि़या देखरेख के बाद अच्छी फसल से 30 से 45 टन प्याज प्रति हेक्टेयर मिल जाता है. उत्पादन प्रजातियों व देखरेख के अनुसार कम भी हो सकता है.

भंडारण : प्याज के भंडारण के लिए हवादार व छायादार जगह के साथसाथ सूखी जगह का होना जरूरी है. भंडारण के लिए अंधेरा कमरा भी ठीक रहता है. भंडारित प्याज को समयसमय पर पलटते रहना चाहिए और खराब व सड़े प्याज को तुरंत निकाल कर बाहर कर देना चाहिए. मुमकिन हो तो मैलिक हाईड्राजाइड 2000 से 2500 पीपीएम का छिड़काव कर देना चाहिए. इस से प्याज की सड़न व गलन को कम किया जा सकता है.

प्याज के खास कीट

प्याज का मैगट : इस कीट की मादा पौधों की जड़ों के आसपास जमीन में अंडे देती है, जो 2-7 दिनों में फूट जाते हैं. अंडों से निकलने वाले मैगट पत्तियों के डंठलों से होते हुए जमीन में जा कर पौधों के शल्क कंदों के मुलायम तंतुओं को खाते हैं, इस से पौधे पीले पड़ कर सूखने लगते हैं.

रोकथाम : रोगी खेत में काटाप हाइड्रोक्लोराइड 4जी की 10 किलोग्राम मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन पर बिखेर कर सिंचाई कर दें. बढ़ते हुए पौधों पर मिथोमिल 40 एसपी की 1.0 किलोग्राम मात्रा या ट्रायजोफास 40 ईसी की 750 मिलीलीटर मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने पर नए निकले हुए मैगट मर जाते हैं. रसाद कीट : इस कीट के बड़े व बच्चे दोनों ही पौधों की पत्तियों को खुरच कर व उन का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं, जो बाद में पीलेसफेद रंग के निशानों में बदल जाते हैं, जिस से पत्तियां चमकीली सफेद दिखाई देने लगती हैं. ऐसी पत्तियां बाद में ऐंठ कर व मुड़ कर सूख जाती हैं.

रोकथाम : प्याज की कीटरोधी प्रजातियां उगानी चाहिए. कीड़ों के ज्यादा प्रकोप की दशा में 150 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल को 500-600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

तंबाकू की इल्ली : इस कीट की मादा पत्तियों की निचली सतह पर 250-300 अंडे समूहों में देती है. ये अंडे भूरे बालों से ढके रहते हैं और इन में से 3 से 5 दिनों में पीलापन लिए गहरे भूरे रंग की इल्लियां निकल कर प्याज की पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाती हैं. इस का प्रकोप होने पर पूरा पौधा मर जाता है. कभीकभी यह कीट 50-60 फीसदी तक नुकसान पहुंचाता है.

रोकथाम : प्रकाश ट्रैप को लगा कर बड़े कीड़ों को पकड़ कर खत्म कर देना चाहिए. ज्यादा कीड़ों की दशा में इंडोक्साकार्ब 14.5 एसपी की 500 मिलीलीटर मात्रा या लैम्डा सायहेलोथ्रिन 50 ईसी की 300 मिलीलीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

चने का कटुआ कीट : मादा अक्तूबर महीने से पत्तियों की निचली सतहों, तनों और गीली मिट्टी में अंडे देना शुरू कर देती है. ये दिन के समय खेत में ढेलों में छिपी रहती है और रात में नुकसान पहुंचाती है. इल्लियां जितना खाती हैं, उस से ज्यादा काटकाट कर बरबाद करती हैं.

रोकथाम : मिथाइल पैराथियान 5 फीसदी धूल का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करना चाहिए. कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर अल्कामेथ्रिन 10 ईसी की 250 मिलीलीटर मात्रा का 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

मूंगफली का कर्ण कीट : इस कीट की मादा 21 से 139 तक अंडे देती है, जो 7-10 दिनों में फूट जाते हैं. इस कीट के बच्चे व बड़े दोनों ही अपने कुतरने व चुभाने वाले अंगों से पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं.

रोकथाम : खेत में पौधों की रोपाई से पहले 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिथाइल पैराथियान 2 फीसदी धूल डालने से इस कीड़े के प्रकोप को कम किया जा सकता है.

मटर का पर्ण सुरंग कीड़ा : मादा मक्खी पत्तियों के तंतुओं में छेद बना कर अंडे देती है. ये अंडे 3-4 दिनों फूट जाते हैं और उन से मैगट निकाल कर पत्तियों के ऊपरी सिरे की ओर से सुरंग बना कर उस के हरे उतकों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं, जिस से पत्तियां सूख जाती हैं. बाद में इस का प्रकोप पत्तियों के निचले भाग पर होता है. इस के असर से पत्तियां टेढ़ी दिखाई देने लगती हैं.

रोकथाम : सूखी हुई जमीन पर इस का प्रकोप ज्यादा होता है, इसलिए समय से पानी देना चाहिए. लैम्डा सायहेलोथ्रिन 5 ईसी की 300 मिलीलीटर मात्रा या फेंथोएट 50 ईसी की 1.0 लीटर मात्रा का 500 से 600 लीटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

प्याज के खास रोग

आर्द्रपतन रोग : इस रोग से प्याज के पौधे को काफी नुकसान होता है. बीज का जमाव न होना, जमाव के बाद जमीन के अंदर के हिस्से का गल जाना, पौधशाला में बीज डालने के बाद जमाव कम होना आदि इस

रोग की खास पहचान हैं. रोगी बीज काफी मुलायम हो जाता है और दबाने पर आसानी से फट जाता है. उगते हुए पौधे जमीन की सतह के पास ही टूट कर नीचे गिर जाते हैं. जड़ें सड़ जाती हैं.

रोकथाम : पौधशाला में बोआई से पहले बीजों को कार्बंडाजिम की 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करना चाहिए. टाइकोडर्मा की 125 ग्राम मात्रा को गोबर की अच्छी सड़ी हुई खाद में मिला कर 200 वर्गमीटर रकबे की दर से पौधशाला को शोधित कर लें.

बैगनी धब्बा : इस रोग से पत्तियों के बीच का भाग बैगनी रंग का हो जाता है. यदि आप उसे हाथों से छुएं तो काले रंग का चूर्ण हाथ में चिपका हुआ दिखाई देता है. रोगी पत्तियां झुलस कर गिर जाती हैं. प्याज के बीज तने पर रोग लगने के कारण रोगी जगह से टूट कर गिर जाते हैं. रोगी पौधों में यदि बीज बन गए तो सिकुड़े हुए होते हैं. रोगी पौधों के कंद सड़ने लगते हैं. रोकथाम : 2 से 3 साल का सही फसल चक्र अपनाएं. रोग की पहचान दिखाई देते ही मैंकोजेब की 2.0 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 2 बार छिड़काव करें.

मृदुरोमिल आसिता : इस से पत्तियों पर अंडे के आकार से ले कर आयताकार दाग दिखाई पड़ते हैं. ये दाग समान दशाओं में पत्तियों के करीब अगले आधे भाग पर सफेद कोहरे की तरह छा जाते हैं. पत्तियां पीली हो कर मुरझा जाती हैं. रोग की उग्र दशा में पौधे बौने, बेआकार और पीले हो जाते हैं.

रोकथाम : फसल की अगेती प्रजातियों का चुनाव करें. रोग की पहचान दिखाई देते ही फसल पर मैंकोजेब 0.25 फीसदी या थीरम 0.1 फीसदी या कैप्टाफाल 0.1 फीसदी का घोल बना कर छिड़काव करें.

कंडुआ : इस रोग के कारण पत्तियों और बीजपत्रों में काले रंग के भरे हुए दाग बनते हैं. रोगी पत्तियां नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं. पुराने पौधों पर शल्कों के नीचे के भाग पर भारी संख्या में उठे हुए फफोले दिखाई पड़ते हैं. इन धब्बों के फटने पर काले रंग का चूर्ण निकलता है. रोगी पौधे 3-4 हफ्ते बाद मर जाते हैं.

रोकथाम : ऐसे पौधों को देखते ही  पालीथीन की थैली से ढक कर सावधानीपूर्वक उखाड़ कर मिट्टी में दबा दें. बीजों को बोने से पहले विटावैक्स 2.5 ग्राम या टेबूकोनाजोल 1.0 ग्राम से प्रति किलोग्राम की दर से शोधित करें.   ठ्ठ

प्याज में खरपतवारों की रोकथाम

दवा    मात्रा किलोग्राम व्यावसायिक    उत्पाद दर      दवा के छिड़काव का समय      प्रति हेक्टेयर    उत्पाद  प्रति हेक्टेयर

फ्लूक्लोरेलीन   1.0   बसाली 45 ईसी 2.2 लीटर     रोपाई के 2 से 3 दिनों पहले छिड़काव कर के मिट्टी में मिलाएं. उस के बाद इन फसलों की रोपाई कर के हलकी सिंचाई करें.

पैंडीमिथेलीन    1.0   स्टांप 30 ईसी  3.3 लीटर     इन फसलों की रोपाई से पहले छिड़काव करें. उस के बाद पौध लगा कर हलकी सिंचाई करें.

आक्सीफ्लोरफैन 0.25  गोल 25 ईसी   1.0 लीटर     इन फसलों की रोपाई से पहले छिड़काव करें. उस के बाद पौध लगा कर हलकी सिंचाई करें.

 

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