भारत भूमि युगे युगे कोरोनिल वर्सेस वैक्सीन डिप्रैशन एक तरह का मानसिक आसन है जिस में पीडि़त के हाथ, पैर और दिमाग तक सुन्न पड़ जाते हैं, हालांकि होता और भी बहुत कुछ है जिस का सटीक वर्णन योगगुरु व खरबपति कारोबारी बाबा रामदेव बेहतर कर सकते हैं जो इन दिनों भीषण डिप्रैशन की गिरफ्त में हैं. वजह है, बाजार में कोरोना वैक्सीन का आगमन जिस से उन की कंपनी पतंजलि की कथित कोरोना नाशक दवा कोरोनिल की बिक्री पर ग्रहण गहराता जा रहा है.
लौकडाउन के पहले तक बाबा की आयुर्वेदिक दवाओं व उत्पादों का जादू आम लोगों के सिर से उतरने के चलते पतंजलि घाटे में आने लगी थी. झल्लाए बाबा ने अपने जातिभाई सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सुर में सुर मिलाते साफ कह दिया है कि वे कोरोना वैक्सीन नहीं लगवाएंगे. जाहिर है, लगवाएंगे तो लोग सवाल और शक भी करेंगे. अब धंधा बढ़ाने को बाबा को तुरंत आयुर्वेदिक वैक्सीन लौंच कर देनी चाहिए. मुख्यमंत्री बलात्कारी या… अधिकतर बलात्कार पीडि़ता इतनी मासूम, भोली और नादान होती हैं कि उन्हें कई बार तो सालोंसाल बाद सम झ आता है कि अमुक दिन या रात जो कुछ भी हुआ था वह मरजी से किया गया आनंददायक सहवास नहीं, बल्कि बलात्कार था, तो वे हायहाय करने लगती हैं.
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लेकिन इस दिलचस्प मामले में आरोपी पीडि़ता के पास था भी या नहीं, यह तय कर पाना ही मुश्किल है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर मुंबई की एक मौडल ने आरोप लगाया है कि 5 सितंबर, 2013 को मुख्यमंत्री रहते उन्होंने होटल ताज लैंड्स एंड में उस के साथ बुरा काम किया था और इस के लिए वे बाकायदा एक असिस्टैंट बलात्कारी सुरेश नागरे के साथ हवाई जहाज से मुंबई आए थे. जादू के जोर से जासूसी उपन्यासों जैसा मामला कई हवाहवाई बातों के साथ उठा तो झामुमो और भाजपा में परंपरागत तूतूमैंमैं शुरू हो गई, जिस में भगवा गैंग को मुंह की खानी पड़ी क्योंकि हर किसी को यह मामला प्लांट किया हुआ लग रहा है.
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मैडम चीफ मिनिस्टर इस में शक नहीं कि बसपा प्रमुख मायावती ने एक वक्त में वह कर दिखाया था जो मानव कल्पना से परे था. अब यह और बात है कि भगवा स्नेह के चलते वे अपनी पहचान खोने लगी हैं. लेकिन, हालिया फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ के प्रदर्शन के पहले ही मायावती की फिर चर्चा हुई. रिचा चड्डा अभिनीत इस फिल्म के बारे में आमराय यह बनी कि हो न हो यह जरूर मायावती की बायोपिक है जिस में एक कामयाब दलित महिला के हाथ में झाड़ू थमा कर उस की छवि को गलत तरीके से दिखाया गया है और इस की टैगलाइन में 2 शाश्वत शब्द अनटचेबल और अनस्पौटेबल लिखे गए हैं. सुभाष कपूर द्वारा निर्देशित इस फिल्म के कई प्रसंग मायावती की जिंदगी से मेल खाते हुए हैं जिन पर बसपा का एतराज एक तरह से फिल्म की पब्लिसिटी ही साबित हो रहा है.
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उन्हें तो खुश इस बात पर होना चाहिए कि वर्णव्यवस्था वाले धर्म, छिछोरे समाज और जातिगत राजनीति का सच दिखाने की हिम्मत तो किसी ने की. वरना आजकल दलितों की सुध लेता ही कौन है. हम तो डूबे ही हैं… पहले उन्होंने अपने गढ़ छिंदवाड़ा में संन्यास के संकेत दिए, फिर कुछ दिनों बाद भोपाल में बोले कि कुछ भी हो जाए आखिरी सांस तक मध्य प्रदेश में ही रहेंगे. मध्य प्रदेश के पूर्व और सवावर्षीय अल्पकार्यकाल के मुख्यमंत्री बुजुर्ग नेता कमलनाथ के इन बयानों पर किसी ने चूं तक नहीं की. इस से ‘पुरुष बलि नहीं होत है समय होत बलबान…’ वाला दोहा जरूर याद आया. सार यह है कि वे गेरुए कपड़े पहन लें या फिर लकदक सूटबूट में रहें, सत्तारूढ़ भाजपा की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. फर्क उन अधेड़ कांग्रेसियों पर पड़ रहा है जिन्हें कांग्रेसी बस में कंडक्टर या ड्राइवर वाली सीट नहीं मिल रही. जानकारों को डर तो इस बात का है कि कहीं ये लोग ही संन्यास न लेने लगें. फिर, कांग्रेस का क्या होगा, इस पर गौर कौन करेगा.