उत्तरीपश्चिमी दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले प्रवीण कुमार अग्रवाल केंद्रीय लोकनिर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) में इंजीनियर थे. सन 1957 से 1985 की सेवा के दौरान उन की पोस्टिंग देश के विभिन्न शहरों के अलावा लीबिया और नेपाल में भी रही. नौकरी से रिटायर होने के बाद वह अपने परिवार के साथ खुशी से अपनी बाकी की जिंदगी गुजार रहे थे. लेकिन पिछले कई महीनों से वह कुछ ज्यादा ही परेशान थे. अपनी परेशानी की वजह उन्होंने अपने बहूबेटों को भी नहीं बताई. वह उस परेशानी को ले कर अंदर ही अंदर घुट रहे थे. 82 साल के प्रवीण अग्रवाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस समस्या का कैसे समाधान करें.
तनाव इंसान की भूख और नींद तक उड़ा देता है. प्रवीण कुमार एक तो पहले से ही उम्रदराज थे, ऊपर से चिंता का असर उन के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा था. जब उन्हें लगा कि टेंशन से उन की समस्या का समाधान नहीं हो सकता तो वह सितंबर, 2016 के दूसरे सप्ताह में तत्कालीन डीसीपी विजय सिंह के पास जा पहुंचे. डीसीपी को एक प्रार्थनापत्र देते हुए उन्होंने बताया कि उन के साथ बहुत बड़ी धोखाधड़ी की गई है. एक कंपनी के पदाधिकारी एस.आर. शर्मा, सोनकर आप्टे ने अपने साथियों के सहयोग से उन से 81 लाख रुपए ठग लिए हैं.
अग्रवाल ने बताया कि इन लोगों ने कालातीत हो चुकी जीवन बीमा पौलिसियों को चालू करा कर उन का बोनस दिलाने, डेविस वैल्यू कार्ड, ड्रीमलैंड डेवलपर, वैल्यू क्लब सर्विस की विभिन्न योजनाओं में उन से पैसे लगवाए और अब इन लोगों के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहे हैं. इन लोगों के कहने पर वह करीब 81 लाख रुपए इन के बताए बैंक खातों में जमा करा चुके हैं. प्रवीण कुमार ने उन लोगों के फोन नंबर भी डीसीपी को बता दिए, साथ ही उन्होंने खातों में पैसा जमा कराने के सबूत भी दिए.
प्रवीण कुमार की बात सुन कर डीसीपी विजय सिंह चौंके. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि इतने अनुभवी और वरिष्ठ अधिकारी रह चुके प्रवीण कुमार आखिर उन लोगों के ठगी के जाल में कैसे फंस गए.
प्रवीण कुमार के साथ हुई ठगी को डीसीपी ने गंभीरता से लिया. उन्होंने यह केस स्पैशल स्टाफ यूनिट के हवाले कर दिया. उन के आदेश पर 22 सितंबर, 2016 को थाना मौर्य इनक्लेव में अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 419, 420, 468, 471, 120बी, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. इस मामले की जांच के लिए उन्होंने एसीपी ओमवीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी.
इस टीम में इंसपेक्टर अरुण कुमार, सबइंसपेक्टर राममनोहर मिश्रा, हैडकांस्टेबल सुरेशचंद्र, अशोक कुमार, कांस्टेबल संजय, सुशील, सोमवीर, मुकेश, धीरज आदि को शामिल किया गया.
पुलिस टीम ने सब से पहले प्रवीण कुमार अग्रवाल से मिल कर उन से 81 लाख रुपए ठगे जाने की कहानी सुनी, साथ ही जिन फोन नंबरों से उन के पास फोन आते थे, उन फोन नंबरों को नोट कर लिया. प्रवीण कुमार ने जिन खाता नंबरों में पैसे जमा कराए थे, उन की डिटेल्स भी ले ली. वे खाते एक्सिस बैंक और यस बैंक के थे. इस के बाद पुलिस टीम ने इस केस की जांच शुरू कर दी.
एसआई राममनोहर मिश्रा ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. प्रवीण कुमार ने एक्सिस बैंक और यस बैंक के जो खाता नंबर दिए थे, उन की जांच कराई तो जानकारी मिली कि एक्सिस बैंक का खाता नंबर पूर्वी दिल्ली की लक्ष्मीनगर शाखा का था और यस बैंक का खाता नंबर पूर्वी दिल्ली की ही शकरपुर शाखा का था. ये दोनों खाते अंकुर तोमर नाम के किसी व्यक्ति के थे, जो उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी का रहने वाला था.
राममनोहर मिश्रा को उक्त दोनों बैंकों के शाखा प्रबंधकों से पता चला कि एक्सिस बैंक के खाते में मार्च, 2015 से जून, 2016 तक 27 लाख 29 हजार 326 रुपए जमा हुए थे, जबकि यस बैंक के खाते में अक्तूबर, 2015 से जून, 2016 तक 1 करोड़ 26 लाख 41 हजार 742 रुपए जमा हुए थे. इस जानकारी से उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि इन लोगों ने प्रवीण कुमार के अलावा अन्य लोगों से भी ठगी की थी. यह जानकारी उन्होंने इंसपेक्टर अरुण कुमार और एसीपी ओमवीर सिंह को दी. एसीपी ने आगे की काररवाई के निर्देश दिए. उन के निर्देश पर एसआई राममनोहर ने उक्त दोनों खाता नंबरों को सीज करा दिया.
पुलिस टीम ने बुराड़ी निवासी अंकुर तोमर के घर दबिश दी तो वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि वह रोहित कुमार मिश्रा और पंकज नायक की कंपनी में बतौर रिसैप्शनिस्ट नौकरी करता था. वहां उसे 10 हजार रुपए महीने तनख्वाह मिलती थी. नौकरी के समय इन लोगों ने उस के आईडी प्रूफ वगैरह जमा कर लिए थे, बाद में उन लोगों ने उन्हीं के आधार पर उस के नाम से उक्त दोनों बैंकों में खाते खुलवा लिए.
उस ने बताया कि इन खातों में कितने रुपए जमा होते थे, कितने निकाले जाते थे, इस की उसे कोई जानकारी नहीं थी. रोहित मिश्रा खाली चैकों पर उस से साइन करा कर ले जाता था और बाद में उन चैकों में एमाउंट भर कर बैंकों से पैसे निकाल लाता था.
अंकुर की बात सुन कर पुलिस को लगा कि कहीं यह झूठ तो नहीं बोल रहा, इसलिए उस के अन्य बैंक के खाते को चैक किया गया तो उस के खाते में एक्सिस और यस बैंक से निकाली गई रकम जमा करने का विवरण नहीं मिला.
उक्त दोनों बैंक खातों से निकाली गई मोटी रकम कहां जाती थी, यह बात पंकज नायक या रोहित मिश्रा से पूछताछ के बाद ही पता लग सकती थी. अंकुर को यह भी नहीं पता था कि पंकज और रोहित रहते कहां हैं. लेकिन उस ने पुलिस को दोनों के फोन नंबर उपलब्ध करा दिए.
एक पुलिस टीम पंकज और रोहित के फोन नंबरों के आधार पर उन के ठिकानों तक पहुंचने की कोशिश में जुट गई. पता चला कि वे दोनों गाजियाबाद की खोड़ा कालोनी के रहने वाले थे. पुलिस ने मुखबिरों से पता कराया तो जानकारी मिली कि पंकज और रोहित अपने घरों पर नहीं हैं. दिल्ली पुलिस की टीम गोपनीय रूप से उन के घर पर निगरानी करने लगी.
22 सितंबर, 2016 की सुबह पुलिस को पंकज नायक खोड़ा कालोनी में दिखाई दिया. वह घर से निकल कर बसस्टैंड पर पहुंच गया. पुलिस ने उसे उस समय छेड़ना उचित नहीं समझा. दरअसल पुलिस यह देखना चाहती थी कि वह सुबहसुबह कहां जा रहा है. कुछ दूरी बना कर पुलिस भी उस के पीछेपीछे लग गई. वहां से एक आदमी की मोटरसाइकिल पर बैठ कर वह दिल्ली के निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन पहुंच गया.
दिल्ली पुलिस की जो टीम उस का गाजियाबाद से पीछा करती आ रही थी, उस ने यह जानकारी इंसपेक्टर अजय कुमार को दे दी थी. पुलिस टीम रास्ते में ही अजय कुमार को अपनी लोकेशन बताती हुई आ रही थी. निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन पर पंकज को एक युवक मिला. वह रोहित मिश्रा था. ये दोनों काफी देर तक वहीं पर खड़े रहे. तब तक इंसपेक्टर अजय कुमार और एसआई राममनोहर भी पुलिस टीम के साथ निर्माण विहार मेट्रो स्टेशन पहुंच गए. उन के साथ अंकुर तोमर भी था.
दोपहर बाद पंकज और रोहित प्रीत विहार मेट्रो स्टेशन की तरफ गए. वहां पर उन्हें 2 युवक और मिले. पुलिस के साथ आए अंकुर ने उन दोनों युवकों की पुष्टि मनीष ठाकुर और विशाल वर्मा के रूप में की. पुलिस टीम ने उन चारों को हिरासत में ले लिया.
स्पैशल स्टाफ के औफिस ला कर उन चारों से प्रवीण अग्रवाल के साथ की गई ठगी के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लेने में ही भलाई समझी. उन्होंने ठगी का जाल बुनने की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.
23 वर्षीय पंकज नायक गाजियाबाद की खोड़ा कालोनी में रहता था. वह दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार से बीकौम कर रहा था, साथ ही नोएडा के कई कालसेंटरों में नौकरी कर चुका था. खोड़ा कालोनी में ही रोहित मिश्रा रहता था. उस ने गाजियाबाद के आईएमटी इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. दोनों अच्छे दोस्त थे. बात अक्तूबर, 2015 की है. उस समय दोनों ही बेरोजगार थे.
दोनों मिल कर किसी ऐसे धंधे के बारे में सोचने लगे, जिस में कम समय में अच्छी आमदनी हो. बातोंबातों में रोहित ने सुझाव दिया कि अखबारों में आए दिन इंश्योरेंस बोनस दिलाने के नाम पर लोगों को ठगने के मामले छपते रहते हैं. बोनस के नाम पर लोग आसानी से पैसा देने को तैयार भी हो जाते हैं.
सुझाव अच्छा था, लेकिन पंकज को इस में आशंका इस बात की थी कि जिस बैंक खाते में टारगेट बनाए गए व्यक्ति से पैसे जमा कराएंगे, उस बैंक खाते की मार्फत पुलिस उन तक पहुंच जाएगी. पंकज की इस शंका पर रोहित हंसते हुए बोला, ‘‘अरे भाई, हम ऐसी बेवकूफी वाला काम नहीं करेंगे, जैसा दूसरे लोग करते हैं. हम बैंक खाता अपने नाम पर खुलवाएंगे ही नहीं तो पुलिस हमारे पास तक कैसे पहुंचेगी.’’
‘‘फिर बिना एकाउंट के पैसे कैसे आएंगे?’’ पंकज ने पूछा.
‘‘खाता किसी दूसरे के नाम पर होगा, उस में से पैसे हम निकालेंगे.’’ रोहित ने कहा.
‘‘वह कैसे, क्या फरजी आईडी पर एकाउंट खुलवाना है?’’ पंकज ने सवाल किया.
‘‘इस की चिंता तुम मत करो. तुम बस काम करने का मूड बनाओ. आगे के रास्ते खुदबखुद बनते चले जाएंगे.’’ रोहित बोला.
आसान और सुरक्षित तरीके से पैसा कमाने का रास्ता दिखते ही पंकज ने हां कर दी. इस के बाद इन लोगों ने पावर इफैक्ट सर्विस नाम की एक फर्म बनाई, जिस का औफिस स्कूल ब्लौक शकरपुर में खोला. यह औफिस इन्होंने 6 हजार रुपए प्रति महीने के किराए पर लिया था. रिसैप्शनिस्ट के पद पर इन्होंने मनोज रावत नाम के एक लड़के को नौकरी पर रखा. मनोज से इन लोगों ने उस के आईडी प्रूफ वगैरह जमा करा लिए.
उन्हीं कागजातों के आधार पर इन्होंने शकरपुर की यस बैंक और लक्ष्मीनगर की एक्सिस बैंक में खाते खुलवाने को मनोज से कहा, पर मनोज ने खाते खोलने के लिए मना कर दिया. मनोज को मामला संदिग्ध लगा तो वह 4-5 दिन बाद ही नौकरी छोड़ कर चला गया.
इस के बाद इन लोगों ने औफिस के लिए किसी ईमानदार लड़के की तलाश शुरू कर दी. पंकज ने इस बारे में अपने दोस्त सौरभ शुक्ला से बात की. सौरभ ने उत्तरी दिल्ली के रहने वाले अंकुर तोमर के बारे में बताया. सौरभ अंकुर को व्यक्तिगत रूप से जानता था. वह मेहनती और ईमानदार था. अगले दिन सौरभ ने अंकुर की मुलाकात पंकज और रोहित से करा दी. रोहित को अंकुर सही लगा तो उस ने 10 हजार रुपए प्रति महीने के वेतन पर उसे अपने औफिस में बतौर रिसैप्शनिस्ट रख लिया.
उन्होंने पंकज का आईडी प्रूफ और अन्य कागजात अपने पास रख लिए. अंकुर को उन्होंने टूर और ट्रैवल्स का औफिस बताया था. अंकुर को विश्वास में ले कर उन्होंने उस के नाम से यस बैंक शकरपुर और एक्सिस बैंक लक्ष्मीनगर में एकाउंट भी खुलवा लिए.
औफिस तो शुरू हो गया पर लोगों से मीठीमीठी बातें कर के उन्हें झांसे में लेने के लिए उन्हें ऐसे युवकों की तलाश थी, जो लोगों की जेब से पैसे निकलवा सकें. ऐसे में पंकज के दिमाग में सोनू गिरि और देवेंद्र कुमार उर्फ विशाल त्यागी का नाम आया.
24 साल का सोनू गिरि उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले का निवासी था. वह नोएडा के कई कालसेंटरों में काम कर चुका था. लोगों से फोन पर बात कर के उन्हें फंसाने में वह माहिर था. देवेंद्र भी गाजियाबाद का था. वह दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्राचार से बीए कर रहा था. वह फंड वैल्यू सोल्यूशन, सैंट्रल यूनियन फंड नाम की कंपनियों के कालसेंटर में काम कर चुका था. पंकज के कहने पर ये दोनों अपनी शर्तों पर काम करने के लिए तैयार हो गए.
इसी तरह रोहित मिश्रा ने दूसरे कालसेंटरों में काम कर चुके 25 वर्षीय मनीष ठाकुर और ग्रेटर नोएडा के विशाल वर्मा को शामिल कर लिया. इस तरह इन की एक पूरी टीम तैयार हो गई. ठगी गई रकम का बंटवारा कैसे होगा, इस बात का फैसला उन्होंने पहले ही कर रखा था.
तय हुआ ठगी की जितनी भी रकम आएगी, उन में से औफिस का किराया खर्चा निकाल कर सब से पहले 10 हजार रुपए अंकुर की सैलरी और 42 हजार रुपए पंकज नायक को सैलरी के रूप में दिए जाएंगे. शेष बची रकम का 70 प्रतिशत सोनू गिरि और देवेंद्र कुमार को देने का फैसला हुआ. इस 70 प्रतिशत को दोनों के आपस में बराबरबराबर बांटने की बात तय हुई. क्योंकि कालिंग का काम सोनू और देवेंद्र को ही सौंपा गया था.
शेष बची 30 प्रतिशत रकम में से 11 प्रतिशत रोहित मिश्रा 10 प्रतिशत विशाल वर्मा और 9 प्रतिशत मनीष ठाकुर को देने की बात तय की गई थी.
पूरी योजना बनाने के बाद इन्होंने काम करना शुरू कर दिया. पंकज और रोहित ऐसे लोगों के डाटा जुटाने लगे, जिन्होंने किसी भी लाइफ इंश्योरेंस कंपनी की पौलिसी ले रखी हो. उन में से वह ऐसे लोगों का चयन करते जो सरकारी नौकरी से रिटायर हों. इस के पीछे इन की सोच यह थी कि सरकारी नौकरी से रिटायर होने वाले व्यक्ति को रिटायरमेंट के बाद अच्छाखासा फंड मिलता है. उस फंड को वह ऐसी जगह निवेश करना चाहता है, जहां से अच्छा रिटर्न मिले.
डाटा जुटाने के बाद मनीष ठाकुर और विशाल वर्मा टारगेट किए गए व्यक्ति के बारे में और भी कई तरह की जानकारियां जुटाते थे. मसलन वह पुलिस, सीबीआई आदि एजेंसी का तो रिटायर्ड नहीं है. सारे डाटा कलेक्ट कर के सोनू और देवेंद्र कुमार को दे दिए जाते थे. पहले चरण में ये लोग उस व्यक्ति की सर्विस के दौरान कटा पूरा इनकम टैक्स उस के बैंक खाते में वापस कराने की बात करते थे.
सरकारी कर्मचारियों को जो इनकम टैक्स कटता है, वह रिफंडेबल नहीं होता. पूरी सर्विस के दौरान उन के लाखों रुपए टैक्स के रूप में कट चुके होते हैं. इस रकम के वापस मिलने के लालच में वह और भी पैसे खर्च करने को तैयार हो जाते थे.
इस के अगले चरण में सोनू और देवेंद्र उस व्यक्ति को इंश्योरेंस पौलिसी का बीमा धन बढ़ाने और पौलिसी का ज्यादा बोनस दिलाने की बात करते थे. लालच में फंस कर कभीकभी लोग ऐसे रास्ते पर कदम बढ़ा देते हैं, जिस का उसे बाद में बड़ा पछतावा होता है. इसी लालच में लोगों को फंसा कर वह एक्सिस बैंक और यस बैंक के खातों में लोगों से लाखों रुपए की रकम जमा करा लेते थे.
इस के बाद इन्होंने डेविस क्लब और ड्रीमलैंड डेवलपर के नाम पर भी लोगों से लाखों रुपए इकट्ठे किए. ठगी का कारोबार तो चल निकला, लेकिन कुछ दिनों बाद ही पैसों को ले कर पंकज का रोहित से विवाद हो गया. अपनी 42 हजार रुपए सैलरी ले कर वह औफिस छोड़ गया और नोएडा की किसी कंपनी में जौब करने लगा. उस के जाने के बाद ये सभी लोग अपने काम को अंजाम दे कर ठगी करते रहे.
इसी कड़ी में इन लोगों ने उत्तरपश्चिमी दिल्ली के पीतमपुरा के प्रवीण अग्रवाल को अपने जाल में फांस लिया. वह केंद्रीय लोकनिर्माण विभाग में इंजीनियर के पद से रिटायर हुए थे. इस बात की जानकारी उन लोगों ने पहले ही हासिल कर ली थी.
प्रवीण अग्रवाल के टच में सोनू और देवेंद्र ही नहीं थे, बल्कि इन के अन्य साथी भी अलगअलग कंपनियों के नाम पर उन से बात करते थे. प्रवीण अग्रवाल को इन लोगों ने अपने असली नाम नहीं बताए थे, बल्कि इन से कोई सक्सेना, कोई भार्गव, कोई सोनकर आप्टे, कोई एस.आर. शर्मा, कोई चौहान तो कोई झा बता कर बात करता था. ये सभी अलगअलग फोन नंबरों से बात करते.
निवेश किए पैसे पर ज्यादा ब्याज और ज्यादा बोनस मिलने के लालच में प्रवीण कुमार ने करीब 81 लाख रुपए जमा करा दिए. पर जब मई, 2016 से उन लोगों के फोन नंबर बंद हो गए तो प्रवीण अग्रवाल के होश उड़ गए. तब उन्हें महसूस हुआ कि वह ठगे जा चुके हैं. कुछ दिनों तक तो वह यही सोचते रहे कि इस मामले में वह क्या करें. फिर सितंबर, 2016 के दूसरे हफ्ते में वह तत्कालीन डीसीपी विजय सिंह के पास पहुंचे और अपने साथ घटी ठगी की वारदात के बारे में बताया.
पुलिस ने पंकज नायक, देवेंद्र कुमार, रोहित मिश्रा, मनीष ठाकुर और विशाल वर्मा से पूछताछ के बाद 23 सितंबर, 2016 को रोहित कुमार मिश्रा को नोएडा सेक्टर-2 से और सोनू गिरि को 25 सितंबर 2016 को मोदीनगर, गाजियाबाद से गिरफ्तार कर पूछताछ की.
इन सब की निशानदेही पर पुलिस ने 5 मोबाइल फोन, एक लैपटौप, एक पेनड्राइव और 40 हजार रुपए नकद बरामद किए. पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. मामले की जांच एसआई राममनोहर मिश्रा कर रहे हैं.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. प्रवीण कुमार परिवर्तित नाम है.