सरकार द्वारा लौकडाउन थोपे जाने की वजह से देशभर में बेरोजगारी बढ़ी है. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी के अनुसार, अप्रैल महीने में देशभर में बेरोजगारी दर 23 फीसदी से ज्यादा थी. लगभग 1.89 करोड़ सैलरीपेड लोगों ने इस बीच अपनी नौकरी गंवाई. इस ने पिछले साल छिपछिपा कर पब्लिश हुए औफिशियल आंकड़े ‘45 साल की सब से अधिक बेरोजगारी’ को भी काफी पीछे छोड़ दिया है.

दफ्तरों के बंद रहने से वहां के कर्मचारी ही नहीं, बल्कि दफ्तरों की इमारत से जुड़े सिक्योरिटी गार्ड, लिफ्टमैन, सफाई कर्मचारियों के साथसाथ दफ्तरों के बाहर मौजूद चाय और दूसरी कई चीजों की दुकानों व उन के कर्मचारियों पर इस का असर पड़ा और अभी भी पड़ रहा है. क्योंकि, अधिकांश कार्यालय अभी भी बंद हैं, जो खुले भी हैं तो वहां आधे या आधे से भी कम लोग आ रहे हैं.

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एक चाय वाला, जो रोजाना औफिस कमर्चारियों को चाय सप्लाई कर दोढाई हजार रुपए कमा लेता था, अब मुश्किल से 500-1,000 रुपए ही कमा पा रहा है.

छोटीछोटी प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले बेरोजगार हो गए युवा आज कुछ भी काम करने के लिए तैयार हैं. अखबार बांटना, कैब चलाना, सब्जी बेचना आदि काम आज का पढ़ालिखा युवा करने को मजबूर है. युवाओं के लिए घर में बैठना भी मुश्किल है. घर वालों की बातें सुनने से अच्छा उसे लगता है बाहर निकल कर कुछ कमाई कर ले.

देश में बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़े युवाओं को घोर चिंता में डाल रहे हैं. ये आंकड़े उन के लिए खतरे की घंटी भी हैं, जिन की गूंज बिहार विधानसभा चुनावप्रचार के दौरान दिखी भी. जैसे ही आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ने राज्य में 10 लाख नौकरियां देने का एलान किया तो नीतीश कुमार और भगवा खेमा हड़बड़ा उठे. युवाओं का ध्यान बंटाने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहारवासियों को मुफ्त कोरोना वैक्सीन देने की बात कही, जिसे किसी ने नोटिस में नहीं लिया, क्योंकि यह राममंदिर निर्माण जैसी फुजूल की बात थी.

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युवाओं की पहली जरूरत उन को रोजगार मिलना है. इस मोरचे पर केंद्र सहित तमाम राज्य सरकारें नाकाम साबित रही हैं. तो, इस का खमियाजा भुगतने को उन सरकारों को तैयार भी रहना चाहिए. हर राज्य में लाखों की संख्या में सरकारी पद खाली पड़े हैं पर उन्हें भरे जाने के लिए कोई उत्सुक नजर नहीं आ रहा. युवाओं का गुस्सा आज नहीं तो कल फटना तय है क्योंकि उन के सपने टूट रहे हैं और वे अपनेआप को फालतू और समाज व परिवार पर बोझ समझते कुंठित हो चले हैं.

कब तक मानेंगे प्यार को गुनाह

दिल्ली के आदर्शनगर इलाके में 18 साल के लड़के राहुल राजपूत की सरेआम पीटपीट कर हत्या कर दी गई. राहुल की अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की से दोस्ती थी. लड़की के घर वालों को यह पसंद नहीं था.

7 अक्तूबर की रात राहुल को कुछ अनजान लोगों ने फोन कर के बाहर बुलाया. वहां उसे जम कर पीटा गया. बाद में अस्पताल में राहुल की मौत हो गई.

ऐसे में सवाल तो उठेगा ही. क्या प्यार करना गुनाह है, वह भी इतना बड़ा कि जिस की सजा मौत है? 2 चाहने वाले यदि अपनी खुशी के लिए एकदूसरे से मिलते हैं, घूमतेफिरते हैं तो क्यों परिवार वालों को इस में सिर्फ बुराई ही नजर आती है?

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जवान होते लड़कीलड़के आज जब हर जगह साथसाथ पढ़ाईलिखाई, नौकरी आदि कर रहे हैं तो उन में एकदूसरे के प्रति आकर्षण का होना स्वाभाविक है और फिर वह प्यार में बदल जाए तो हैरानी की बात नहीं. ऐसी स्थिति में अगर परिवार वाले ही बच्चों की बात नहीं सुनेंगे, उन्हें नहीं समझेंगे तो बाहर वालों की बातों का सामना बच्चे कैसे करेंगे.

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अकेले 2018 में 10,773 प्रेमी युगल इसी चक्कर में भागने पर मजबूर हुए. ऐसे मामलों में दुखद यह है कि प्रेम के इन मसलों को समझने की जगह औनर किलिंग की घटनाएं सामने आती हैं. 2015 में 251 औनर किलिंग की घटनाएं सामने आईं.

ऐसे में यदि बच्चों को घर वालों का साथ मिलता है तो वे अपने प्यार को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं. गलत राह पर जाने की उन्हें जरूरत ही नहीं पड़ेगी. जब घर वालों से दुरावछिपाव ही नहीं होगा तो गुनाह करने की गुंजाइश कहां रहेगी. आज जरूरत है सोच बदलने की. इस के लिए जरूरी है कि पेरैंट्स अपने बच्चों की इच्छाओं को धर्म और जाति से ज्यादा महत्त्वपूर्ण मानें.

प्यार युवाउम्र की मांग और जरूरत भी है. इसे एक अधिकार के रूप में युवाओं को देना चाहिए. तभी वे तरक्की कर पाएंगे, उन का व्यक्तित्व निखरेगा और वे खुद अपनी जगह बना पाएंगे. प्यार को अपराध की तरह देखना और प्रेमियों को तरहतरह से प्रताडि़त करना व सजाएं देना जरूर उन के प्रति गंभीर अपराध है.

यह अपराध सदियों से हो रहा है. लेकिन, अब वक्त संभलने का है. मात्र कह देने से या चमचमाते कपड़े पहन लेने से आधुनिकता सिद्ध नहीं होती. हां, हमारे भीतर बैठा प्यार का दुश्मन जरूर ढक जाता है जो मौका मिलते ही किसी राहुल की जान लेने से नहीं चूकता. यानी, कुंठा, भड़ास और हिंसा जैसे सैकड़ों नुक्स लोगों की मानसिकता में हैं, जिन्हें बदले बिना समाज व देश को बदलने का सपना देखना बेमानी है. ढाई अक्षर के प्यार शब्द के पाकसाफ जज्बे में ही जिंदगी मुसकरा पाती है.

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