कोचर छोटे व बेहद गरीब कहे व माने जाने वाले बंगलादेश ने 10-15 सालों में अपने से बड़े अपने ही हिस्से पाकिस्तान को ही नहीं, दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र भारत को भी कई मामलों में पीछे कर दिया है. उस ने ऐसी सफलता कैसे हासिल की, जानने के लिए पढि़ए यह खास लेख. बात लखनऊ की है. वर्ष 2003 की. कुछ पाकिस्तानी छात्रछात्राओं का एक डैलिगेशन अपने 4 टीचर्स के साथ लखनऊ आया था. माल एवैन्यू स्थित एक इंग्लिश मीडियम स्कूल के बच्चों से भी उन्हें मिलना था. उन के बीच बातचीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आदानप्रदान होना था. ये पाकिस्तानी बच्चे 9वीं व 10वीं कक्षाओं से थे.

डैलिगेशन में छात्रों के मुकाबले छात्राओं की संख्या अधिक थी. सभी छात्राएं सिर से पांव तक बुर्कों से ढकी बस से उतरीं. मगर स्कूल के भीतर दाखिल होने के बाद सभी ने अपने बुर्के उतार कर अपनी पीठ पर लटके बैग में डाल लिए, जबकि स्कूल में काफी मर्द अध्यापक, चपरासी और 10वीं व 12वीं के छात्र मौजूद थे. यह बड़ी दकियानूसी और दिखावटी सी बात लगी कि बाहर तो आप शरीर को बुर्के में ढके हैं और अंदर आ कर आप बेपरदा हो गए, जबकि गैरमर्द तो वहां भी बड़ी तादाद में थे. मजेदार बात यह थी कि अधिकतर पाकिस्तानी लडकियां बुर्के के नीचे जींस और टीशर्ट पहने हुए थीं. ऐसा लगता था कि आजादी और उड़ने की चाहत को जबरन बुर्के में लपेट दिया गया था. इंग्लिश माध्यम में पढ़ने और इंग्लिश में फर्राटेदार बातचीत करने के बावजूद बातबात में उभरती इसलाम और रोजेनमाज की बातें भी यह जाहिर कर रही थीं कि आधुनिकता और पिछड़ेपन के बीच काफी रस्साकशी चल रही है.

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उन में से कइयों ने वहां सब के सामने अपने नृत्य भी प्रस्तुत किए और बौलीवुड अभिनेताओं की मिमिक्री भी की, जो कबीलेतारीफ थी. लेकिन वापस लौटते समय वे सभी फिर बुर्कों में सिमट गईं. उसी साल 2 बंगलादेशी महिलाओं से भी मुलाकात हुई. बिना दुपट्टे के स्लीवलैस कुरतेसलवार, पोनीटेल, कानों में बड़ेबड़े छल्ले और माथे पर बड़ी सी बिंदी चिपकाए दोनों महिलाएं किसी रिसर्चपेपर पर काम करने के दौरान भारत आई थीं. दोनों ही मुसलिम तबके की थीं, मगर उन की बोली, पहनावा और शृंगार किसी हिंदू बंगाली महिला से ज्यादा मेल खाता था. वे साइंस और नएनए आविष्कारों पर खूब चर्चा करती थीं.

वे बिंदास थीं. किसी भी जकड़न से आजाद. उन के कंधे उन के धर्म को नहीं ढो रहे थे. धर्म उन का निजी मामला था जो आम बातचीत में घुसपैठ नहीं करता था. इन 2 देशों की महिलाओं को देख कर ही दोनों देशों के आतंरिक हालात, सोच और स्थिति का अंदाजा आसानी से लग जाता है. दोनों ही मुसलिम देश हैं. दोनों ने बंटवारे का दर्द सहा. पाकिस्तान ने एक बार तो बंगलादेश ने 2 बार बंटवारा देखा. बावजूद इस के, आज बंगलादेश तरक्की के मामले में पाकिस्तान से कहीं आगे निकल गया है. बंगलादेश पाकिस्तान से आगे वर्ष 1947 में भारतपाक बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान कहा जाने वाला व आज का बंगलादेश 1971 में पाकिस्तान से अलग होने के बाद भीषण गरीबी व तबाही से ग्रस्त इलाका था. लेकिन धीरेधीरे उस ने अपनी स्थिति सुधारी और अपने पैरों पर खड़ा होने लगा.

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इस में एक लंबा समय लगा. 2006 तक बंगलादेश की तसवीर से काफी धूल छंट गई और तरक्की की रेस में वह पाकिस्तान को पछाड़ता हुआ आगे निकल गया. दुनिया के मानचित्र में पिद्दी सा दिखने वाला बंगलादेश आज पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि कई मानो में भारत को भी पीछे छोड़ चुका है. मानव विकास सूचकांक 2019 पर बंगलादेश दक्षिण एशिया के सभी देशों से आगे है. वह शांत तरीके से अपनी कायापलट कर रहा है. वह हर उस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है, जिस से उस की जीडीपी में इजाफा हो. बंगलादेश और पाकिस्तान दोनों ही मुसलिम राष्ट्र हैं. मुसलिम बाहुल्य इलाके होने की वजह से ही बंटवारे के वक्त दोनों इलाके भारत से अलग हुए थे. फिर क्या वजह रही कि बंगलादेश पाकिस्तान से हर मामले में बीस ही बैठता है. जबकि उस ने बंटवारे (1947) के जख्म भी खाए और जब तक वह पाकिस्तान से अलग (1971) नहीं हो गया, पश्चिमी पाकिस्तानियों के उत्पीड़न व प्रताड़नाओं के दौर से गुजरता रहा. बंगलादेश बनने से पहले पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना ने स्थानीय नेताओं और धार्मिक चरमपंथियों की मदद से मानवाधिकारों का खूब हनन किया. 25 मार्च, 1971 को शुरू हुए औपरेशन सर्चलाइट से ले कर पूरे बंगलादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में जम कर हिंसा हुई.

बंगलादेश सरकार के मुताबिक, उस दौरान करीब 30 लाख लोग मारे गए. जानमाल की इतनी हानि के बावजूद आज बंगलादेश पाकिस्तान से कहीं आगे निकल चुका है. बंगलादेश की त्रासदियां 1947 में भारत से अलग हो कर पूर्व और पश्चिम में 2 पाकिस्तान बने. पश्चिमी पाकिस्तान ने हमेशा खुद को अव्वल माना और पूर्वी हिस्से को सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया. वजह थी- भाषा और संस्कृति. पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमान बांग्ला बोलते थे. उन का रहनसहन भारत के बंगालियों से मेल खाता था. जबकि, पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू, अरबी, फारसी को ज्यादा महत्त्व प्राप्त था. वहां के लोग अपने को सच्चा मुसलमान सम झते थे. लिहाजा, पूर्वी पाकिस्तान हमेशा सामाजिक व राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा. इस से पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबरदस्त नाराजगी रहने लगी और इसी नाराजगी के परिणामस्वरूप उस समय पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही और स्वायत्तता की मांग की. 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबरदस्त विजय हासिल की. उन के दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया. लेकिन बजाय उन्हें पूरे पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाने के, जेल में डाल दिया गया और वहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव पड़ गई. 1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल याहिया खान ने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी. लेकिन टिक्का खान ने बातचीत के बदले दबाव से स्थिति सुधारने की कोशिश की और नतीजा यह हुआ कि मामला हाथ से निकल गया. 25 मार्च, 1971 को पाकिस्तान के इस हिस्से में सेना एवं पुलिस की अगुआई में जबरदस्त नरसंहार हुआ.

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इस से पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबरदस्त रोष पैदा हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली. पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियारविहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा. जिस से लोगों का पलायन भारत की तरफ होने लगा. इस को देखते हुए भारत ने भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए. लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया और जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन दे कर बंगलादेश की आजादी में महत्त्वपूर्ण रोल अदा किया. पश्चिम पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार के अन्याय के विरुद्ध 1971 में भारत के सहयोग से एक रक्तरंजित युद्ध के बाद स्वाधीन राष्ट्र बंगलादेश का उद्भव हुआ. स्वाधीनता के बाद बंगलादेश के प्रारंभिक वर्ष राजनीतिक अस्थिरता से परिपूर्ण थे. देश में 13 राष्ट्रशासक बदले गए और 4 सैन्य बगावतें हुईं. 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई के बाद बंगलादेश ने कई त्रासदियों को झेला. भयावह गरीबी देखी, गंगाबह्मपुत्र के मुहाने पर स्थित इस देश में प्रतिवर्ष मौसमी उत्पात और चक्रवात आम हैं. दुनिया के सब से बड़े शरणार्थी संकट से भी बंगलादेश जू झ रहा है. 7 लाख 50 हजार रोहिंग्या मुसलमान पड़ोसी म्यांमार से अपना घरबार छोड़ बंगलादेश में आ बसे हैं. बावजूद इस के, धार्मिक कट्टरता को हाशिए पर धकेल कर आज बंगलादेश हर दिशा में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. बंगलादेश अपनी आर्थिक सफलता की नई इबारत लिख रहा है. वहीं पाकिस्तान धार्मिक कट्टरता के कारण गर्त में जा रहा है. आतंकवाद, बम धमाके, गोलीबारी, हत्याकांड, अपहरण की खबरें पाकिस्तान की हकीकत बयां करती हैं. वह कभी चीन की जीहुजूरी में लगा रहता है, कभी अमेरिका के सामने खड़ा कांपता है. आज पाकिस्तान जहां अपनी दकियानूसी कठमुल्ला प्रवृत्ति के कारण आतंकवाद, पिछड़ेपन, गरीबी और तबाही की गर्त में जा रहा है, वहीं बंगलादेश ने वैज्ञानिक तरीकों कोअपना कर अपनी तरक्की का मार्ग प्रशस्त किया.

त्रासदियों से उबरता बंगलादेश भारतपाकिस्तान बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान यानी बंगलादेश ने तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान के कारण बड़ी त्रासदी झेली. बंटवारे में पूर्व और पश्चिम मुसलिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान तो घोषित किए गए, लेकिन दोनों इलाकों के मुसलामानों में काफी फर्क था. पूर्वी पाकिस्तान, जिसे आज बंगलादेश कहते हैं, और पश्चिमी पाकिस्तान के मुसलमानों में ये फर्क जातिगत, रहनसहन, खानपान और भाषा के थे. पाकिस्तान के गठन के समय पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी पठान, बलोच और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, जिसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था, जबकि पूर्व वाले हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, जिसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था. बांग्लाभाषी मुसलमानों का रहनसहन, खानपान और बोली पश्चिमी पाकिस्तानी लोगों से भिन्न थे. इस मामले में वे पश्चिम बंगाल के रहवासियों के ज्यादा करीब थे. बंगालियों का माछभात प्रिय भोजन था और उन की औरतें बंगाली औरतों की तरह साड़ी पहनने व शृंगार करने की शौकीन थीं. बुर्के का चलन है मगर उस तरह नहीं जैसा कि पाकिस्तान में है. अधिकतर महिलाएं बिना बुर्के के रहने में सहूलियत सम झती हैं. पूर्व पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के लोगों में न तो धार्मिक कट्टरता है और न उन्होंने कभी अपनी औरतों को उस तरह चारदीवारी में कैद रखा जैसा कि पाकिस्तान का आम रवैया है. बंगलादेश में राजनीतिक चेतना की भी कमी नहीं थी. वहां औरतों का भी राजनीति की तरफ खासा रु झान था. खालिदा जिया, शेख हसीना जैसी नेत्रियां बंगलादेश का प्रतिनिधित्व लंबे समय से करती आ रही हैं. 1971 में आजादी हासिल करने के बाद से बंगलादेशी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है. तस्लीमा नसरीन जैसी नामी लेखिका इसी मिट्टी में जन्मी हैं जिन्होंने पुरुषों द्वारा औरतों के लिए रची हर जंजीर को तोड़ने का हौसला दिखाया है.

पिछले 4 दशकों में वहां महिलाओं के लिए राजनीतिक सशक्तीकरण में वृद्धि हुई है, बेहतर नौकरी की संभावनाएं, शिक्षा के अवसर बढ़े हैं और उन के अधिकारों की रक्षा के लिए नए कानूनों को अपनाया गया है. 2018 तक बंगलादेश की प्रधानमंत्री, संसद के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता महिलाएं थीं. ये तमाम बातें दर्शाती हैं कि बंगलादेश पाकिस्तान की तरह संकुचित दिलदिमाग वाला रूढि़वादी, कट्टरपंथी कठमुल्लों का राष्ट्र नहीं है, बल्कि आधुनिक और वैज्ञानिक सोच रखने वाला देश है जो लकीर का फकीर न हो कर समय की गति के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ रहा है. आर्थिक संपन्नता पाकिस्तान बंगलादेश से क्षेत्रफल में पांचगुना बड़ा है. लेकिन विदेशी मुद्रा उस के पास बंगलादेश के मुकाबले लगभग पांचगुना ही कम है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 8 अरब डौलर है जबकि बंगलादेश का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 35 अरब डौलर है. बंगलादेश की वृद्धिदर 8 फीसदी है जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 5 और 6 फीसदी के बीच जू झ रही है. कोरोनाकाल के आगमन से पहले भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धिदर भी घट कर 4 फीसदी रह गई थी. बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति कर्ज 434 डौलर है जबकि पाकिस्तान में प्रतिव्यक्ति 974 डौलर है.

एक और हैरान करने वाली बात है कि 1951 की जनगणना के अनुसार पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बंगलादेश की आबादी 4.2 करोड़ थी और पश्चिमी पाकिस्तान की आबादी 3.37 करोड़ थी, वहीं आज बंगलादेश की आबादी 16.5 करोड़ है जबकि पाकिस्तान की आबादी 20 करोड़ है. यानी, बंगलादेश ने कुछ हद तक परिवार नियोजन के महत्त्व को सम झा और अपनाया. उस ने अपनी आबादी को नियंत्रित किया है जो पाकिस्तान और भारत नहीं कर पाए. पाकिस्तान में तो परिवार नियोजन इसलाम के विरुद्ध माना जाता है. वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम के अनुसार तो बंगलादेश की 120 से ज्यादा कंपनियां आज एक अरब डौलर से ज्यादा की सूचना और प्रौद्योगिकी तकनीक दुनिया के 35 देशों में निर्यात कर रही है. बंगलादेश ने आर्थिक प्रगति के उन हिस्सों में भी मजबूती से दस्तक देना शुरू कर दिया है जहां भारत का दबदबा रहा है. औक्सफौर्ड इंटरनैट इंस्टिट्यूट के अनुसार, बंगलादेश दुनिया में दूसरा सब से बड़ा देश है जहां औनलाइन वर्कर सब से ज्यादा हैं. दक्षिण एशिया में भारत की बादशाहत को बंगलादेश चुनौती दे रहा है. हाल के एक दशक में बंगलादेश की अर्थव्यवस्था औसत 6 फीसदी की वार्षिक दर से आगे बढ़ी है. बंगलादेश की आबादी 1.1 फीसदी दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है जबकि पाकिस्तान की 2 फीसदी की दर से बढ़ रही है.

इस का मतलब यह भी है कि पाकिस्तान की तुलना में बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय भी तेजी से बढ़ रही है. साल 2018 के जून महीने में यह वृद्धिदर 7.86 फीसदी तक पहुंच गई थी. 1974 में भयानक अकाल के बाद 16.6 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाला बंगलादेश खाद्य उत्पादन के मामले में आज आत्मनिर्भर बन चुका है. बंगलादेश में बड़ी संख्या में लोग गरीबी में जीवनबसर कर रहे हैं लेकिन विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार. प्रतिदिन 1.25 डौलर में अपना जीवन चलाने वाले कुल 19 फीसदी लोग थे जो अब 9 फीसदी ही रह गए हैं. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में बंगलादेश में जिन लोगों का बैंक खाता है उन में से 34.1 फीसदी लोगों ने डिजिटल लेनदेन किया जो दक्षिण एशिया में औसत 27.8 फीसदी ही है. भारत में ऐसे लोगों की तादाद 48 फीसदी है जिन के पास बैंक खाता तो है लेकिन उस से कोई लेनदेन नहीं करते. ऐसे खातों को डौर्मंट अकाउंट (निष्क्रिय खाता) कहा जाता है. दूसरी तरफ बंगलादेश में ऐसे सिर्फ 10.4 फीसदी लोग ही हैं. यही वजहें हैं कि बंगलादेश को आज दक्षिण एशिया का नया टाइगर कह कर पुकारा जा रहा है. कपड़ा एक्सपोर्ट यों तो ज्यादातर मोरचों पर बंगलादेश प्रदर्शन के मामले में अपने सरकारी लक्ष्यों से आगे निकल चुका है, मगर मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर पर वह सब से ज्यादा ध्यान दे रहा है. कपड़ा उद्योग में बंगलादेश का प्रभुत्व दुनियाभर में बढ़ रहा है. इस मामले में बंगलादेश चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. भारत के कपड़ा एक्सपोर्ट पर भी आज बंगलादेश छा गया है. बंगलादेश में बनने वाले कपड़ों का निर्यात सालाना 15 से 17 फीसदी की दर से आगे बढ़ रहा है. 2018 में जून महीने तक कपड़ों का निर्यात 36.7 अरब डौलर तक था.

2019 के लिए यह लक्ष्य 39 अरब डौलर का रखा गया था और माना जा रहा था कि 2021 में बंगलादेश जब अपनी 50वीं वर्षगांठ मनाएगा तो यह आंकड़ा 50 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा. हालांकि, कोरोना वायरस ने इस उम्मीद को पूरा होने में थोड़ी रुकावट जरूर डाल दी है. बंगलादेश की आर्थिक सफलता में रेडिमेड कपड़ा उद्योग की सब से बड़ी भूमिका मानी जाती है. कपड़ा उद्योग ही बंगलादेश के लोगों को सब से ज्यादा रोजगार भी मुहैया कराता है. कपड़ा उद्योग से बंगलादेश में 40.5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है. बंगलादेश में कपड़ों की सिलाई का काम व्यापक पैमाने पर होता है और इस में बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हैं. 2013 के बाद से वहां औटोमेटेड मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है. कपड़ा फैक्ट्रियों को अपग्रेड किया गया है और उन में काम करने वाले कामगारों की स्थिति में बेहतरी के लिए कई कदम सरकार ने उठाए हैं. 2009 से बंगलादेश में प्रतिव्यक्ति आय तीनगुनी हो गई है. अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वार में बंगलादेश की टैक्सटाइल इंडस्ट्री को काफी उम्मीद है. बंगलादेश को लगता है कि अगर चीन का कपड़ा निर्यात कम हुआ तो वह इस की भरपाई की क्षमता रखता है. हालांकि, इस का फायदा वियतनाम, तुर्की, म्यांमार और इथोपिया को भी मिल सकता है. भारत फिसड्डी ही रहेगा. बढ़ते उद्योगधंधे व टैक्नोलौजी बंगलादेश की सरकार देशभर में 100 विशेष आर्थिक क्षेत्रों का नैटवर्क तैयार करना चाहती है.

इन में से 11 बन कर तैयार हो गए हैं और 79 पर काम चल रहा है. चीन कई मोरचों पर बंगलादेश को ‘वन बैल्ट वन रोड’ परियोजना के तहत मदद कर रहा है. चीन बंगलादेश के कई बड़े प्रोजैक्टों में आर्थिक मदद भी मुहैया करा रहा है. 2018 में चीन ने बंगलादेश के ढाका स्टौक एक्सचैंज का 25 फीसदी हिस्सा खरीद लिया था. इसे खरीदने की कोशिश भारत ने भी की थी कि लेकिन चीन ने इस की ज्यादा कीमत चुकाई और भारत के हाथ से यह सौदा निकल गया. बंगलादेश पाकिस्तान के बाद चीन से सैन्य हथियार खरीदने वाला दुनिया का दूसरा सब से बड़ा देश है. धर्म और बंगलादेश बंगलादेश ने कभी भी धर्म को अपनी उन्नति में बाधक नहीं बनने दिया. कठमुल्लों और उन की सड़ीबुसी बातों को कभी तवज्जुह नहीं दी गई. बंगलादेश ने महिलाओं की शिक्षा, गर्भनिरोध के प्रचार, व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा के साथ माध्यमिक और उच्च शिक्षा पर अधिक जोर दिया है. डिजिटल व्यवस्था की ओर उस के कदम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में शेख हसीना ने डिजिटल बंगलादेश लौंच किया था ताकि टैक्नोलौजी को बढ़ावा दिया जा सके. शेख हसीना ने अपने कार्यकाल में डिजिटल व्यवस्था को काफी दुरुस्त किया है. इस के लिए अमेरिका में पढ़े शेख हसीना के बेटे सजीब अहमद की भूमिका को काफी अहमियत दी जाती है. उन के प्रयासों से बंगलादेश में सूचना टैक्नोलौजी का काफी विस्तार हुआ और देशभर में इस से जुड़े 12 हाईटैक पार्क बनाए गए. बंगलादेश आज आईटी सैक्टर में भारत से मुकाबला कर रहा है. सौफ्टवेयर कंपनी टैक्नो हैवन और बंगलादेश एसोसिएशन औफ सौफ्टवेयर एंड इंफौर्मेशन सर्विसेस के सह संस्थापक हबीबुल्लाह करीम के मुताबिक, ‘बंगलादेश में बीते साल 30 जून तक आईटी सर्विसेस और सौफ्टवेयर का निर्यात 80 करोड़ डौलर तक पहुंच गया. सरकार ने 2021 तक इस का लक्ष्य 5 अरब डौलर रखा है जो कि काफी चुनौतीपूर्ण है. बंगलादेश में आईटी सैक्टर में कई काम हुए हैं. अब यहां एयरलाइन, होटल बुकिंग और इंश्योरैंस क्लेम सबकुछ औनलाइन हो रहा है.’ दुनियाभर में जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत का नाम है, लेकिन बंगलादेश इस क्षेत्र में चुनौती दे रहा है. अल्पविकसित देश का दर्जा होने के कारण बंगलादेश को पेटैंट के नियमों से छूट मिली हुई है. इस छूट के कारण बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में भारत को चुनौती रहा है. बंगलादेश जेनरिक दवाइयों के निर्माण में दूसरा सब से बड़ा देश बन गया है और 60 देशों में इन दवाइयों का निर्यात कर रहा है. बाल मृत्युदर, लैंगिक समानता और औसत उम्र के मामले में बंगलादेश भारत को पीछे छोड़ चुका है. बंगलादेश में एक व्यक्ति की औसत उम्र 72 साल हो गई है जो कि भारत के 68 साल और पाकिस्तान के 66 साल से ज्यादा है.

बंगलादेश में महिलाओं का सशक्तीकरण तेजी से हो रहा है. कपड़ा उद्योग में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या अधिक है. बंगलादेश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का विशेष योगदान है. अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने में विदेशों में काम करने वाले करीब 25 लाख बंगलादेशियों की भी बड़ी भूमिका है. ये विदेशों से जो पैसे कमा कर भेजते हैं उन में सालाना 18 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है. 2018 में यह 15 अरब डौलर तक पहुंच गया था. बंगलादेश के लिए वह पल काफी निर्णायक रहा जब संयुक्त राष्ट्र ने बंगलादेश को अल्पविकसित देश की श्रेणी से निकाल 2024 में विकासशील देशों की पंक्ति में खड़ा करने की बात कही. अल्पविकसित श्रेणी से बाहर निकलना बंगलादेश के आत्मविश्वास और उम्मीदों की मजबूती के लिए बहुत खास है. अगर आप निचले दर्जे में रहते हैं तो प्रोजैक्ट और प्रोग्राम पर बातचीत भी उन्हीं की शर्तों के हिसाब से होती है.

ऐसे में आप दूसरों की दया पर ज्यादा निर्भर करते हैं. एक बार जब आप उस श्रेणी से बाहर निकल जाते हैं तो किसी की दया पर नहीं, बल्कि अपनी क्षमता के दम पर आगे बढ़ते हैं. बंगलादेश भारत के लिए एक बड़ी मानसिक चुनौती बन रहा है. जिन बंगलादेशियों को भारत में भूखेनंगे कह कर अपमानित किया जाता है और उन पर घुसपैठिए होने का आरोप लगता था, वे अब फख्र से सिर उठा कर चलेंगे. बंगलादेश से भाग कर आने वाले तो कम हो ही जाएंगे. उलटे, भारतीय बंगाली अपने को, बंगलादेशी कह कर बंगलादेश में काम ढूंढ़ने व घुसने लगें, तो बड़ी बात न होगी. भारत की आंतरिक स्थिति बेहद नाजुक है जबकि बंगलादेश उस से गुजर चुका है. नागरिकता संशोधन कानून जैसे कानून अब भारत के लिए बेमाने हो गए हैं क्योंकि इन के सहारे भारतीयों को बंगलादेश में जाने का मौका मिलेगा.

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