‘‘हम पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं. अपने दोनों बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे हैं. घर खरीदने की स्थिति नहीं हैं. बजट के मुताबिक 2 कमरों का ही घर किराए पर ले सका हूं. बच्चे ड्रांइगरूम में सो जाते हैं. हालांकि बैडरूम में अलमारियां और अन्य सामान रखने के बाद इतनी जगह नहीं बचती कि आराम से चलफिर सकें लेकिन जिंदगी ठीक से ही कट रही थी जैसे एक मध्यवर्गीय परिवार की होती है.
“इस बीच, कोरोना वायरस आ गया और सबकुछ बदल गया. शुक्र है कि हमारी नौकरियां बची रहीं. लेकिन वर्क फ्रौम होम, बच्चों की औनलाइन क्लासेस और हम सब के हर समय घर में रहने से तनाव व छोटीबड़ी हर तरह की परेशानियां बढ़ गईं. लौकडाउन खत्म हो गया है, पर सुरक्षा की दृष्टि से तो घर में अभी भी रहना ही है.
“मैं और पति फ्रस्टेट हो चुके हैं इसलिए कि हमें साथ गुजारने के कुछ पल भी नहीं मिल पाते हैं. बच्चे सारा दिन घर पर हैं तो उन के सामने सैक्स संबंध कैसे कायम करें. प्राइवेसी नाम की चीज नहीं रह गई है. बड़ा घर होता, तो बात अलग थी. छोटा घर होने के कारण तमाम तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है,’’ यह कहना है 35 वर्षीया मधुरिमा गोयल का.
‘‘मुझे नीचे खेलना जाना है. आप मुझे पार्क क्यों ले जा रहे? मैं स्कूल जाना चाहता हूं. सारे दिन घर में क्यों रहना है? मैं कहां खेलूं? घर में तो साइकिल भी नहीं चला सकता, बौल से भी नहीं खेल सकता. आप डांटते हो कि सामान टूट जाएगा. घर भी तो इतना छोटा है.’’ 6 साल का अंकित लगातार ये सवाल अपनी मां से पूछता रहता है. उस की मां नीता कहती हैं कि हालांकि इतने महीनों से घर पर रहने और हर समय टीवी पर देखने व हमारे मुंह से सुनते रहने के कारण उसे पता है कि घर से बाहर जाने से हम क्यों उसे रोकते हैं, लेकिन उस की झुंझलाहट उस के सवालों के रूप में बाहर निकलती रहती है. बड़ा घर होता जिस में बरामदा होता तो कम से कम वह साइकिल चला सकता था.
बदल गई जिंदगी : मध्यवर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले असंख्य परिवार ऐसे हैं जो एकतरफ तो कोरोना की वजह से उत्पन्न अलगअलग तरह की परेशानियां झेल रहे हैं, तो दूसरी तरफ घर छोटा होने के कारण उन की दिक्कतें कई गुना बढ़ गई हैं.
70 के दशक में जया भादुड़ी और अनिल धवन की एक फिल्म आई थी- ‘पिया का घर’. इस फिल्म में घर छोटा होने के कारण पतिपत्नी को साथ वक्त गुजारने और सैक्स संबंध बनाने का मौका नहीं मिल पाता. वे होटल जाते हैं तो वहां पुलिस की रैड हो जाती है. हालांकि वह स्थिति कोरोना के साथ नहीं जुड़ी थी, लेकिन समस्या छोटे घर की ही थी.
आज एक अदृश्य वायरस आया और उस ने पूरी दुनिया के जीने के ढंग, उस की सोच और रिश्तों के समीकरणों को बदल दिया. आर्थिक व सामाजिक रूप से जो बड़े बदलाव आए, उन्होंने हर किसी के जीवन को झिंझोड़ दिया. और पारिवारिक स्तर पर पड़े उस के प्रभाव ने पतिपत्नी के रिश्ते में गहरा तनाव पैदा कर दिया है. दूसरी तरफ बच्चे सारा दिन घर में रहने के कारण मां को परेशान करते रहते हैं. उन के लिए सारा दिन खाना बनाने में जुटी मां उन की शिकायतों को सुलझाए या काम के बढ़ गए बोझ से जूझे.
अपनेअपने घरों में कैद और बिगड़े रूटीन के शिकार लोगों के लिए अब समय एक अनंत विस्तार है जिसे कैलेंडर की तारीखों और दिनों से परिभाषित नहीं किया जा सकता. किसे ध्यान रहता है कि कब वीकैंड है या कब नया सप्ताह शुरू हो गया है.
घर में पहनने वाले कपड़ों में टीवी देखते हुए और लैपटाप पर काम करते हुए क्या सचमुच कोई फर्क पड़ता है कि सुबह है या शाम? छोटे से घर में सिमटी जिंदगी बोझ बनती जा रही है.
बच्चे लड़ रहे हैं एक अलग लड़ाई :
बच्चे एक अलग लड़ाई लड़ रहे हैं. वे तमाम तरह की दुश्चिंताओं से त्रस्त हैं. पढ़ाई करने का तरीका बदल गया है जिस से तालमेल बिठाने में समय लग रहा है. घर छोटा हो तो बच्चों का अलग से अपना कमरा होना मुश्किल ही होता है. ड्रांइगरूम में ही ज्यादातर उन के रहने और पढ़ने की व्यवस्था होती है या अगर बालकनी हो तो उसे स्टडीरूम बना दिया जाता है. लेकिन अगर इस तरह की भी व्यवस्था नहीं है तो वे कहां बैठ कर पढ़ें.
औनलाइन क्लास के लिए उन्हें या तो पापा का मोबाइल लेना पड़ रहा है या उन का कंप्यूटर या लैपटॉप. ऐसे में पापा कैसे काम करेंगे, जो खुद इस समय घर से काम कर रहे हैं. हर चीज 2 हों, जो यह एक मध्यवर्गीय परिवार में मुमकिन नहीं. चाहिए भी स्मार्टफोन, जो जरूरी नहीं कि सब के पास हो. फिर मोबाइल से पढ़ाई करो, तो आंखों पर असर होता है. इंटरनैट भी पूरे दिन चाहिए.
और अगर घर में 2 बच्चे हों तो उन के लिए अलग चीजें कहां से जुटाएं. फिर रसोई से आती आवाजें या पापा का फोन पर औफिस के काम के सिलसिले में बात करना. उस शोर में बच्चों के लिए पढ़ पाना तो मुश्किल होता ही है, साथ ही उन्हें इस बात से बहुत शर्मिंदगी होती है कि उन के घर में क्या चल रहा है, वह दूसरे बच्चों व टीचर को भी पता चल जाएगा. पढ़ाई चल रही है और साथ ही घर का काम भी हो रहा है, दरवाजे पर घंटी भी बज रही है, पापा भी किसी काम के न होने पर चिल्ला रहे हैं. ऐसे में बच्चा पढ़ाई पर ध्यान कैसे दे सकता है.
सारा समय बच्चों के लिए एक तनाव का सा रहता है. पहले घर से बाहर चले जाते थे, दोस्तों से मिल कर दिल के बहुत से बोझ हलके कर लेते थे, खेलनाकूदना, फिल्म देखना, रैस्तरां में जा कर पार्टी करना या यों ही मौजमस्ती करना… रोमांच था जीवन में. घर में रहते हुए अब उन का दम घुटता है, एक कमरे से दूसरे कमरे तक सिमट कर रह गई है उन की दुनिया. पापामम्मी सारा दिन घर में हैं, वे काम कर रहे हैं, तो मुंह पर ताला लगा कर बैठो.
अभिभावकों के साथसाथ बच्चों की प्राइवेसी भी खत्म हो गई. फोन पर अपने दोस्तों से बात करने को तरस रहे हैं क्योंकि छोटे घर के उन कमरों से आवाज मातापिता के पास पहुंच जाएगी. ऐसी स्थिति में अकेले पड़े बच्चे पढ़ाई और मनोरंजन के नाम पर मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर पर अपना अधिकतर समय बिताने को मजबूर हैं, वह भी उस सूरत में जब छोटे घर में अभिभावकों के वर्क फ्रौर्म होम के मद्देनजर उन्हें ऐसा करने का अवसर मिल सके.
घर से बाहर जा नहीं सकते और घर इतना छोटा है कि सिवा एक जगह बैठे रहने के वे और कुछ नहीं कर सकते. घुटन, लाचारी और कैदी बन जाने की भावनाओं से उग्र होते बच्चे अपनी ही तरह से लड़ रहे हैं.
एकांत को तरसते युगल : सब घर में हैं. कुछ समय के लिए भी बच्चे या परिवार के अन्य सदस्य घर से निकल नहीं पा रहे. ऐसे में पतिपत्नी साथ समय कैसे बिताएं. घर छोटा है, निजता नहीं है. सैक्स संबंधों पर इस का बहुत असर पड़ा है.
पहले बच्चे स्कूल जाते थे या शाम को खेलने चले जाते थे, तो युगल अंतरंग पल जी लेते थे. एकदूसरे से अपने मन की बातें कह लेते थे. अब प्यार भरी बातें भी करना मुश्किल हो गया है. आखिर बच्चों के सामने फुसफुसाते हुए या इशारों में बात करना अच्छा नहीं लगता. पहले ही तमाम तरह की परेशानियों और अनिश्चित भविष्य से डरे पतिपत्नी सैक्स संबंधों के न बन पाने से जहां एक तरफ शारीरिक संतुष्टि के लिए तरस रहे हैं, वहीं इस की वजह से अवसाद भी उन्हें घेर रहा है. बाहर जा कर कुछ समय बिता नहीं सकते और छोटे घर में बच्चों के सामने संबंध न बना पाने की मजबूरी उन्हें लगातार चिड़चिड़ा बना रही है.
खाने, सोने या अन्य जरूरतों की तरह शारीरिक जरूरत की पूर्ति होना भी इंसान को खुश व तनावमुक्त रहने के लिए जरूरी है. बातबात पर उन के बीच बढ़ते झगड़े और घर में बनी रहने वाली कलह की यह भी बहुत बड़ी वजह है. मारपीट और घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले इस बात का द्योतक हैं कि किस तरह छोटे घर में एक ही जगह सिमटे पतिपत्नी एकदूसरे पर अपना आक्रोश निकाल रहे हैं. सैक्ससुख से वंचित पति की झुंझलाहट कैसे निकले, दोस्तों से मिल नहीं सकता, तो पत्नी पर ही हाथ उठ जाता है.
गुजरात के वडोदरा में एक परिवार में घर से न निकल पाने और पत्नी के साथ संबंध न बना पाने के कारण पति ने मन बहलाने के लिए के पत्नी के साथ औनलाइन लूडो खेलना तय किया, ताकि इसी बहाने दोनों साथ वक्त गुजार लें, लेकिन यही कलह का कारण बन गया. औनलाइन लूडो के खेल में पत्नी ने पति को हरा दिया तो दोनों के बीच झगड़ा शुरू हो गया. झगड़ा यहां तक बढ़ा कि पति ने पत्नी की पीटपीट कर कर रीढ़ की हड्डी तोड़ दी.
अनुराधा एक टीचर हैं. सारे दिन उन्हें औनलाइन क्लासेस लेनी पड़ती हैं. इस वजह से वे थक जाती हैं. घर का सारा काम भी वे खुद कर रही हैं. वे कहती हैं, ‘‘ इस शहर में हम छोटे घर में रहने को मजबूर हैं, क्योंकि खर्चे ही इतने हैं. मेरे और मेरे पति के बीच कम ही लड़ाई होती थी, होती भी थी तो शाम तक सुलझ जाती थी क्योंकि सब लोग घर से बाहर निकल जाते थे, ध्यान बंट जाता था. लेकिन अब एकदूसरे के सामने ही रहना है. अब झगड़े बहुत होने लगे हैं. गुस्सा अंदर ही कहीं रहता है, एकदूसरे पर ही निकालते हैं. साथ ही, इस महामारी के लिए हम किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहरा सकते. बस, सारे दिन खीझते रहते हैं.
“बहुत अधिक साथ समय बिताने के अतिरिक्त, निजी स्पेस होने के अभाव की वजह से भी घर में कलह बढ़ती जा रही है. आमतौर पर घरेलू रिश्तों के तनाव से बचने के लिए हम दोस्तों और सहकर्मियों का सहारा लेते हैं. लेकिन, सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के चलते लोगों का यह सपोर्ट सिस्टम भी दूर हो गया है. लोगों से मिलनाजुलना, जिम जाना और बाहर खानापीना बंद हो गया है. तो हम दूसरे लोगों से जुड़ने के लिए डिजिटल नैटवर्क, जैसे सोशल मीडिया, वीडियो कौल, मैसेज वगैरह के भरोसे रह गए हैं. लेकिन, घर छोटा होने के कारण इन सब सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पाते क्योंकि इस से एकदूसरे को डिस्टर्बेंस होता है.”
कोरोना न हो जाए : वायरस संक्रमित न कर दे, यह डर हर किसी को सता रहा है. और हो गया तो इलाज में जो खर्च आएगा वह तो इंसान का आर्थिक बजट बिगाड़ेगा ही, साथ ही इलाज कौन व कैसे कराएगा. अगर घर में ही आइसोलेशन करना पड़ा तो छोटे घर में यह करना कैसे संभव होगा. बड़ा घर हो तो आप मरीज को एक कमरा दे सकते हैं. उस के नहाने व टौयलेट की अलग व्यवस्था हो सकती है, पर जिस घर में जगह की कमी है, वहां एक कमरा कहां से जुटेगा. अगर अस्पताल में भरती कराना पड़ा तो घर कैसे संभालेंगे, बच्चों को कौन देखेगा, न जाने कितने ऐसे प्रश्न हैं जिन से लोग जूझ रहे हैं.
आजकल टीवी और सोशल मीडिया पर चारों तरफ कोरोना वायरस से जुड़ी खबरें ही देखने को मिल रही हैं. खबरों में कितनी सचाई है, किसी को नहीं मालूम, लेकिन उस से लोगों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि वे एक ही तरह की बातें सुन, देख व पढ़ रहे हैं और फिर सोच भी वैसा ही रहे हैं. हर क्षण कोरोना होने का डर तनाव दे रहा है और घर के माहौल को खराब कर रहा है.
ऊब, जो इस समय बुरी तरह से हम पर हावी है, तनाव व कलह को चिंगारी देती है. ऐसे में रिश्तों को नुकसान पहुंचेगा ही.
कोशिश तो की जा सकती है : घर छोटा है, निजी स्पेस नहीं है, खुल कर बोल नहीं पा रहे, कि कहीं बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान न पड़े या पतिपत्नी अगर घर से काम कर रहे हैं तो शोर न हो, इसलिए हमेशा मानसिक तनाव बना रहता है, कलह का माहैल रहता है, तो भी पौजीटिव रहने की कोशिश करें. झगड़ने के बजाय समाधान ढूंढे. समय ठीक होने की प्रतीक्षा एकमात्र विकल्प है.
दिनचर्या में बदलाव आए बहुत महीने हो चुके हैं, इसलिए अब नए सिरे से रूटीन बनाएं. खासकर, बच्चों के सोनेजागने के समय में थोड़ेबहुत बदलाव के साथ बाकी के कार्यों के लिए समय निश्चित करें और उन्हें व्यस्त रखें. बच्चों की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ कर उन्हें ऊब और अवसाद में घिरने से बचाया जा सकता है.
बढ़ते औनलाइन तलाक : कोरोना वायरस के रिश्तों पर पड़े बुरे प्रभाव की सब से बड़ी मिसाल चीन के शांक्ची प्रांत में देखने को मिली है. यहां के शियान शहर में तलाक के मामलों की बाढ़ सी आ गई है. दुनिया में औनलाइन शियान डिवोर्स नाम से हैशटैग पर करीब सवा तीन करोड़ पोस्ट किए गए.
वुहान शहर, जहां से इस महामारी की शुरुआत हुई, में भी दांपत्य जीवन खतरे में नजर आ रहा है. वहां भी में सोशल मीडिया पर तलाक के मामलों की भारी संख्या देखने को मिली है. लौकडाउन के दौरान घरों में साथसाथ ज्यादा समय गुजारने को मजबूर दंपतियों के बीच घरेलू हिंसा और तलाक के मामले बढ़े हैं. घरेलू हिंसा के मामले तो यूरोप में भी बढ़ गए हैं. इन से बचने की हैल्पलाइन पर कौल की तादाद में बेतहाशा वृद्धि हुई है. चीन और हौंगकौंग में भी यही स्थिति देखी जा रही है. घरेलू हिंसा से बचने के लिए महिलाएं अपने बच्चों के साथ शैल्टर होम में पनाह ले रही हैं.