लेखिका- सुनीता चंद्र

“अरे मिस्टर गुप्ता सुनो ना, प्लीज, आज आप वैसी सब्जी बनाओ ना, जैसे आप ने लौकडाउन में सीखी थी. मुझे बहुत अछी लगी थी. मैं ने आप से तब भी कहा था कि परफेक्ट बनी है. याद है न आप को,” सौम्या बोली.

नहींनहीं, आज नहीं, आज छुट्टी का आखिरी दिन है. कल से तो औफिस खुल जाएगा. आज तो बिलकुल नहीं बनाऊंगा, फिर कभी…

“ओके, मैं जरा मार्केट तक जा रहा हूं. कूरियर करना है,” राजेश ने कहा और बाहर निकल गया.

और इधर सौम्या सिर्फ मुसकरा कर कह रही थी, “अच्छा बच्चू अभी से नखरे… और मैं जो इतने दिनों से खाना बना रही हूं उस का क्या. मैं ने भी आज आप से खाना न बनवाया, तो मेरा नाम भी सौम्या नहीं,” ऐसा कह कर सौम्या ने जा कर लेपटाप बंद किया और बाकी काम करने में जुट गई. एक घंटा हो गया, राजेश अभी तक नहीं आए थे, सोचने लगी, चलो, मैं ही कुछ बना देती हूं हलकाफुलका सा, अभी डिनर भी है. हो सकता है कि तब पकड़ मे आ जाएं.

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ऐसा सोच कर फ्रिज खोला तो लौकी देखी और वह लौकी को छीलने लगी.

“अरे कहां हो? खाना लगाओ. मुझे बड़ी भूख लगी है,” राजेश ने आते ही कहा.

“मिस्टर गुप्ता, अभी तो खाना बना ही नहीं है, तो कहां से लगा दूं,” सौम्या बोली.

“क्यों…? अभी तक क्यों नहीं बना? इतने बजे तक तो तुम हमेशा बना लेती थीं. आज क्या हो गया.”

“हुआ तो कुछ नहीं. बस आज आप के हाथ का खाना खाने का मन था, तो इसलिए… बाकी कुछ नहीं. अभी बना रही हूं.”

“लौकी… लौकी,” उस ने कुछ लंबा खींच कर कहा.

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“क्या…? मुझे नहीं खानी है लौकी,” राजेश बोला.

“फिर क्या खाओगे? अब इतनी जल्दी में इस से ज्यादा कुछ नहीं बन सकता है मिस्टर गुप्ता,” उस ने बड़े भोलेपन से कहा.

“अच्छा, पहले तुम मेरे पास आओ. मुझे कुछ पूछना है.”

“पूछिए, क्या पूछना है?”

“ये तुम मुझे मिस्टर गुप्ता क्यों कहती हो, राजेश नहीं कह सकती हो.”

“क्यों? आप को अच्छा नहीं लगता मेरा ये कहना.”

“नहींनहीं, ये बात नहीं है.”

“फिर क्या बात है मिस्टर गुप्ता…” उस ने राजेश का गाल खींचते हुए कहा.

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“जब तुम मिस्टर गुप्ता कहती हो तो ना जाने क्यों मुझे लगता है कि इस शब्द में तुम ने मुझे अपना पूरा प्यार समेट कर मुझे पुकारा या मेरा नाम लिया है.”

“सो तो है मिस्टर गुप्ता,
हमारी शादी को 3 महीने हो गए, और हम साथसाथ हैं जब से हमारी शादी हुई है, हम घर पर ही हैं, अब औफिस खुलने वाले हैं तो हम दोनों को ही औफिस जाना है, फिर कैसे मैनेज करेंगे?”

“तुम चिंता मत करो स्वीट हार्ट… मै हूँ न. मैं ने काफीकुछ सीख लिया है. इस पिछले 3 महीने में, खाना भी बनाना सीख लिया है.”

“क्या फायदा सीखने का, जब आप बनाओगे ही नहीं.”

“अरे, क्यों नहीं बनाऊंगा.”

“अभी मना किया है न आप ने.”

“हां, आज मूड नहीं है, फिर कभी बनाऊंगा.”

“ठीक है, मै चली किचन में…”

इतने में सौम्या के फोन की घंटी बजी. देखा तो सासू मां का फोन है. नंबर देख कर फिर उस के दिमाग में प्लान आया और फोन उठाया.

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“चरण स्पर्श मांजी,” बड़े प्यार से उस ने अपनी सासू मां को बोला.

ये देख कर राजेश हैरान रह गया. सोचने लगा, ‘क्या सौम्या रोज ही ऐसे बात करती है मां से. मैं ने क्यों नहीं ध्यान नहीं दिया आज तक.’

इधर सौम्या बड़े अपनेपन से हंसहंस कर बात कर रही थी, और सासू मां भी सोच रही होंगी कि क्या खजाना मिल गया बहू को.

इधर राजेश ने सौम्या को देखा, फिर मन में आया कि ‘सौम्या कितनी अच्छी है. सब का कितना ध्यान रखती है, मेरा भी और मेरे घर वालों का भी. घर का काम भी खुद करती है.

‘मैं तो कभीकभी हाथ बंटा देता हूं. अब तो औफिस भी जाया करेगी तो कैसे करेगी मैनेज? घर और औफिस, नहींनहीं, मैं इस को परेशान नहीं देख सकता. कितनी अच्छी है सौम्या, मेरी जिंदगी संवार रही है और एक मैं हूं कि खाना बनाने के लिए भी…

‘चलो, इतने में ये बात कर रही है, मैं उस दिन वाली सब्जी बना देता हूं. बेचारी ने कितने मन से कहा था और मैं…’ ये सोचतेसोचते राजेश किचन में पहुंच चुका था.

सौम्या ने देखा कि राजेश किचन में चला गया है, तो उस के होंठों पर हंसी आ गई. अब आप की कमजोर नस मेरे हाथ लग गई है मिस्टर गुप्ता. मां सच ही कहती हैं कि पति के घर वालों का ध्यान रखो, तो पति तो खुद ही खुश रहेगा.

उस ने जल्दी से सासू मां को प्रणाम किया और दौड़ कर किचन में आई, और राजेश को देख कर बोली, “मिस्टर गुप्ता, आप क्या कर रहे हो, हटिए, मैं बनाती हूं खाना.”

राजेश ने सौम्या के दोनों हाथों को अपने हाथों में ले कर कहा, “सौम्या, तुम बैठो या फिर और कुछ कर लो. खाना मैं बनाता हूं.”

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, मैं ही बनाती हूं.”

“अरे सौम्या, मानो भी मैं ही बनाता हूं.”

“अच्छा चलो, साथ मिल कर बनाते हैं,” सौम्या बोली. फिर दोनों ही लंच तैयार करने मे जुट गए. वाकई सब्जी लाजवाब बनाई थी राजेश ने. बरतन उठाते हुए सौम्या बोली, “आप चलो, बाकी मैं करती हूं. बरतन साफ कर के कौफी बना कर लाती हूं, आराम से लौन मे झूले पर बैठ कर पिएंगे.”

“ठीक है, पर जल्दी आना,” राजेश ने कहा.

“जी मिस्टर गुप्ता,” कह कर उस ने अपनी एक आंख दबा दी.

सौम्या मन ही मन बहुत खुश थी कि आज मैं ने खाना आखिर बनवा ही लिया. अब आगे क्या, मुझे भी औफिस जाना होगा, तब कैसे संभालूंगी? नौकरानी रख नहीं सकते. ‘कोई बात नहीं मिस्टर गुप्ता, हम कोई हल निकाल ही लेंगे,’ सोचतेसोचते कौफी ले कर राजेश के पास आ कर बैठ गई. इधर राजेश तो जैसे उसी का इंतजार कर रहा था.

‘सौम्या कितनी देर कर दी तुम ने आने में,” राजेश बोला.

“देर कर दी… भई किचन समेट कर बरतन धो कर कौफी बना कर लाई हूं, कुछ वक्त तो लगता ही है मिस्टर गुप्ता,” सौम्या ने अपने लहजे में कहा.

“अच्छा ठीक है, मैं क्या सोच रहा था कि जब तुम औफिस जाने लगोगी, तो तब ये सब कैसे मैनेज करोगी?” राजेश ने कुछ चिंतित हो कर कहा.

“हां, मैं भी यही सोच रही हूं,” सौम्या ने भोला सा चेहरा बना कर कहा और राजेश के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

“सौम्या, मैं सोच रहा हूं कि अब औफिस खुल गए हैं और घर और औफिस का काम एकसाथ करना मुश्किल हो जाएगा, तो हम फुलटाइम एक मेड रख लेते हैं.”

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, ये मुमकिन नहीं हैं, हमारा बजट इतना नहीं हैं कि हम अभी ये फालतू खर्च कर सकें. अपना घर हो जाएगा तो फिर सोचेंगे.

“अच्छा ऐसा करते हैं कि हम मम्मीजी को यहां ले आते हैं, थोड़ा हमें सहारा भी हो जाएगा और वो भी खुश हो जाएंगी हमारे साथ रह कर,” सौम्या ने सुझाव दिया.

“तो क्या वो काम करने आएंगी हमारे यहां?” राजेश ने तल्खी से कहा.

“नहींनहीं मिस्टर गुप्ता, ऐसा नहीं हैं. घर की साफसफाई और कपड़ों के लिए तो मैं ने मिसेज शर्मा को बोल दिया है कि वे अपनी बाई को मेरे यहां भी भेज दें और उन्होंने हां भी भर दी है. बस थोड़ा खाना बनाने में मदद मिल जाएगी और कुछ नहीं. और हमें अच्छा भी लगेगा,” सौम्या ने कुछ मुंह लटका कर कहा.

“अरे, तुम मायूस क्यों होती हो? मैं हूं ना, मैं भी हेल्प करूंगा. मां को क्यों परेशान करना, जब मेरी और तुम्हारी वेकेशन होगी तब मां को बुलाएंगे,” राजेश ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा.

“ठीक है, अब जरा हंसो मिस्टर गुप्ता. आप ऐसे ही मुझे उल्लू बना लेते हो,” सौम्या बोली.

अब अगले दिन सुबह उठ कर देखा तो 6 बजे थे. इतने ही में घंटी बजी, तो बाई सामने खड़ी थी. सौम्या खुश हो गई. घंटी की आवाज सुन कर राजेश भी उठ कर आ गया था. अरे वाह सौम्या, तुम ने तो बाई का भी इंतजाम कर लिया और टाइम भी परफेक्ट चुना.

सौम्या मुसकराई और जल्दीजल्दी बाई को काम समझाने लगी और बोली, “देखो, मैं खाना बनाने जा रही हूं. तुम 9 बजे तक सारा काम निबटा लेना.”

“ठीक है,” बाई ने गरदन हिला कर कहा.

रसोई में जा कर सौम्या जल्दीजल्दी खाना बनाने में लग गई. अभी 15 मिनट ही हुए थे कि राजेश रसोई में आया और बोला, “चलो, मैं सब्जी काट देता हूं और तुम बना लेना, मैं आटा गूंथ दूंगा, तुम रोटी बना देना. फिर ब्रेकफास्ट की तैयारी भी ऐसे ही मिलजुल कर कर लेंगे.”

“क्या बात हैं मिस्टर गुप्ता, आप तो एक दिन में ही बदल गए,” सौम्या ने राजेश के गले में बांहें डाल कर आंखों में आंखें डाल कर कहा.

“देखो सौम्या, अब तुम खुद भी लेट होओगी और मुझे भी काराओगी,” राजेश बोला.

“अरे मिस्टर गुप्ता, मैं न आप को लेट करूंगी और न ही खुद लेट हुआ करूंगी,” सौम्या बोली.

“वो कैसे भला?” राजेश ने पूछा.

“क्योंकि मैं अब आप के साथ ही औफिस जाया करूंगी और आप के साथ ही आया करूंगी,” सौम्या ने बताया.

“नहींनहीं, ये नहीं हो सकता, तुम्हारा औफिस पूरब में है और मेरा पश्चिम में, हम दोनों साथसाथ कैसे जा सकते हैं?” राजेश बोला.

“मैं जानती हूं बाबा, पर तुम नहीं जानते कि मेरा आज से पश्चिम वाली ब्रांच में ट्रांसफर हो गया है,” सौम्या ने बताया.

इतना सुन कर राजेश ने सौम्या को गोद में उठाया और गोलगोल घुमाना शुरू कर दिया, और बोला, “अरे वाह, पत्नी हो तो ऐसी, जो सब मैनेजे कर ले.”

“मैं ने तो सब मैनेज कर दिया मिस्टर गुप्ता, अब आप की बारी है,” सौम्या बोली.

“हां सौम्या, मैं भी पीछे नहीं रहूंगा, तुम्हारा पूरापूरा साथ दूंगा. बस तुम ऐसी ही रहना,” कह कर राजेश ने उस के माथे पर किस कर दिया. सौम्या लजा कर उस के गले लग गई और मन ही मन सोचने लगी कि सच में पति को खुश करना बड़ा ही आसान है. फिर दोनों ने मिल कर ब्रेकफास्ट और टिफिन तैयार किया और तैयार हो कर साथसाथ ऑफिस जाने लगे. अब ये राजेश का नियम बन गया था कि वो सौम्या की हर तरह से मदद करता और सौम्या भी खुशहाल जिंदगी में खोने लगी थी.

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