कोविड-19 का जड़ से इलाज एक आदर्श वैक्सीन द्वारा ही संभव है. मगर वैक्सीन आने में अभी समय है. जिन वैक्सीन्स पर काम चल रहा है वह बनने के बाद कितनी कारगर होंगी इस बारे में भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि कोरोना को ही अभी पूरी तरह पहचाना नहीं जा सका है. कोरोना लगातार विभिन्न लक्षण प्रकट कर रहा है. यह सिर्फ खांसी, जुकाम, बुखार, सांस की तकलीफ का ही मामला नहीं है, बल्कि ये फेफड़ों में फाइब्रोसिस पैदा करने और शरीर में खून के थक्के जमाने वाली बीमारी भी है. कोरोना कमजोरी और ऑक्सीजन की भारी कमी पैदा कर रहा है जिनके चलते कई अन्य बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं. लिहाज़ा कोरोना वायरस को पूरी तरह पहचानना और समझना डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की पहली चुनौती है.

कोरोना पर अनुसंधान के दौरान पता चल रहा है कि डॉक्टर की सलाह पर कोरोना मरीजों को दवाएं और एंटीबायोटिक्स ना दी जाएं तो आगे चलकर वे पल्मोनरी फाइब्रोसिस जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार हो सकते हैं क्योंकि कोरोना वायरस फेफड़ों को बड़ी तेजी से डैमेज करता है, जिससे आगे चलकर फाइब्रोसिस का खतरा पैदा हो सकता है.

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हाल ही में मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी को फेफड़ों में समस्या के चलते एम्स में दाखिल किया गया था. कोरोना इंफेक्शन से रिकवरी के बाद पता लगा कि वह फाइब्रोसिस का शिकार हो चुके हैं. पल्मोनरी फाइब्रोसिस एक गंभीर बीमारी है जिसमें फेफड़े के टिशू (ऊतक) क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. दरअसल कोरोना वायरस फेफड़ों के अंदर वायुकोषों को नुकसान पहुंचा रहा है. ये वायुकोषों की दीवार में फाइब्रोसिस पैदा करता है. देखा जा रहा है कि कोरोना संक्रमित 100 मरीज़ों में से 5 से 15 मरीज़ पल्मोनरी फाइब्रोसिस का शिकार हैं.

फाइब्रोसिस फेफड़ों के क्षतिग्रस्त होने का आखिरी स्टेज है. कोरोना वायरस मुख्य रूप से इंसान के फेफड़ों को ही खराब करता है, इसलिए रिकवरी के बाद भी लोगों को डॉक्टर्स की सलाह पर इसकी दवाएं लेना जारी रखना चाहिए.

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वरिष्ठ चेस्ट फिज़िशियन डॉ नरेंद्र रावल कहते हैं, ‘कोविड-19 के इलाज के दौरान डॉक्टर्स को मरीजों के फेफड़ों की रक्षा करनी होती है. कोरोना से रिकवरी के बाद मरीज को रेगुलर गाइडेंस के लिए डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए ताकि फेफड़ों के बचाव और उसके नॉर्मल फंक्शन को समझा जा सके. इसके अलावा डॉक्टर की देख-रेख में एंटीबायोटिक्स, स्टेरॉयड या संबंधित दवाओं को नियमित रूप से लेना चाहिए.

चेस्ट फिज़िशियन डॉ नरेंद्र रावल की माने तो पल्मोनरी फाइब्रोसिस वाले रोगियों को फाइब्रोसिस की नियमित दवा लेनी चाहिए, नहीं तो कोरोना मिट जाएगा मगर फाइब्रोसिस ज़िन्दगी भर बना रहेगा. उनका कहना है कि फाइब्रोसिस में मरीज़ को खांसी आती है, श्वांस चढ़ता है, कमजोरी लगती है और शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. ऐसे मरीज़ को अपने सीने का सीटी स्कैन करवा कर फेफड़े रोग के सही चिकित्सक से सही दवा लेनी चाहिए.

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अधिक उम्र वाले व्यक्ति, मधुमेह, रक्तचाप, ह्रदय रोगी, मस्तिष्क रोगी या कैंसर ग्रस्त लोगों में दोबारा कोरोना संक्रमण की संभावना बनी रहती है.

इससे पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान यानी एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी कहा था कि ये वायरस किसी मरीज के सिर्फ फेफड़ों पर ही अटैक नहीं करता, बल्कि ये ब्रेन, किडनी और हार्ट को भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रहा है. उन्होंने कहा था कि ये अब ‘सिस्टमेटिक डिजीज’ बन गया है. मेडिकल साइंस की भाषा उस बीमारी को सिस्टेमेटिक डिजीज कहा जाता है, जो एक साथ शरीर के कई अंगों पर हमला करता हो. कोरोना से ठीक होने के बाद भी कई मरीजों को फेफड़ों में काफी दिक्कतें आती है. हालत ये है कि कई महीनों के बाद भी ऐसे मरीजों को घर पर ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है.

डॉक्टर के मुताबिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस पर्मानेंट पल्मोनरी आर्किटेक्चर डिस्टॉर्शन या लंग्स डिसफंक्शन से जुड़ी समस्या है. कोविड-19 के मामले में फेफड़े वायरस से खराब होते हैं, जो बाद में फाइब्रोसिस की वजह बन सकता हैं. हालांकि यह बीमारी कई और भी कारणों से हो सकती है. ये रेस्पिरेटरी इंफेक्शन, क्रॉनिक डिसीज, मेडिकेशंस या कनेक्टिव टिशू डिसॉर्डर की वजह से भी हो सकती है. पल्मोनरी फाइब्रोसिस में फेफड़े के आंतरिक टिशू के मोटा या सख्त होने की वजह से रोगी को सांस लेने में काफी दिक्कत होती है. धीरे-धीरे मरीज के खून में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. यह स्थिति बहुत गंभीर हो सकती है. अधिकांश मामलों में डॉक्टर इसके कारणों का पता नहीं लगा पाते हैं. इस कंडीशन में इसे इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहा जाता है.

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डॉक्टर रावल कहते हैं कि पल्मोनरी फाइब्रोसिस घातक एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस-2 (SARS-CoV-2) को ज्यादा गंभीर बना सकता है. इम्यून सिस्टम पैथोजन से जुड़े अणुओं का इस्तेमाल कर वायरस की पहचान करता है, जो एंटीजन-प्रेजेंटिंग सेल रिसेप्टर्स के साथ संपर्क कर डाउनस्ट्रीम सिग्नलिंग को ट्रिगर करते हैं ताकि एंटीमाइक्रोबियल और इनफ्लामेटरी फोर्सेस को रिलीज किया जा सके. बता दें कि पूरी दुनिया में अब तक कोरोना के साढ़े तीन करोड़ से भी ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. अकेले अमेरिका में इस वक्त 79 लाख से ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है. अमेरिका के बाद भारत में 72 लाख कोरोना संक्रमित पाए गए हैं. इस भयंकर बीमारी से भारत में अब तक कुल 1.09 लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

पल्मोनरी माइकोसिस होने की संभावना

कोरोना से जंग जीतने वालों के फेफड़े कमजोर हो जाने के कारण फेफड़े में फफूंद (फंगल डिज़ीज़) यानी पल्मोनरी माइकोसिस होने का डर भी बना रहता है. गौरतलब है कि हमारे फेफड़ों पर 50 तरह की फफूंद अटैक कर सकती है. इसलिए फफूंद की सही जांच और कल्चर के बाद ही डॉक्टर फफूंद की पहचान के बाद सही दवा दे सकते हैं.

प्लेटलेट्स को तोड़ कर अन्य बीमारियां दे रहा है कोरोना

कोरोना का वायरस शरीर में प्लेटलेट्स को तोड़ देता है जिससे शरीर में छोटे छोटे थ्रोम्ब्स उठते हैं. ये थ्रोम्ब्स ह्रदय में हुए तो हृदयघात ला सकते हैं. मस्तिष्क में होने पर ब्रेन स्ट्रोक और किडनी या लिवर फेल्योर कर सकते हैं. यानी कोरोना के साइड इफ़ेक्ट बहुत घातक हैं. ये सिर्फ सर्दी बुखार वाली बीमारी नहीं है, बल्कि अन्य घातक बीमारियों को पैदा करने वाली बीमारी है. इसलिए इसका पूरा इलाज डॉक्टर्स की निगरानी में लम्बे समय तक होना ज़रूरी है. कम लक्षणों वाले मरीज़ों और कोरोना से जंग जीत चुके मरीज़ों को भी लम्बे समय तक निगरानी की आवश्यकता है.

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