राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी दिव्यांगों के भले के लिए सर्वसम्मति से पारित निशक्त व्यक्ति अधिकार विधेयक को छोड़ दिया जाए, तो जाते हुए साल का आखिरी संसदीय शीत सत्र अपनी निष्फलता के लिए ही याद किया जाएगा. कहना चाहें तो कह सकते हैं कि नोटबंदी या विमुद्रीकरण का सबसे गहरा और प्रतिकूल असर महीने भर के शीतकालीन सत्र पर ही पड़ा, जहां गिनाने भर को भी विधायी कार्य नहीं हो पाए.

गौरतलब है कि नोटबंदी पर जहां राज्यसभा में बीते महीने 16 नवंबर को महज एक दिन तो अधूरी चर्चा हुई भी, लेकिन लोकसभा में इस पर चर्चा तक नहीं हो सकी. लोकसभा में विपक्ष इस बात पर जोर दे रहा था कि नोटबंदी पर चर्चा मतदान के प्रावधान वाले नियम के तहत की जानी चाहिए, जबकि राज्यसभा में विपक्ष चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री की मौजूदगी की मांग को लेकर अड़ा रहा. इस तरह सत्ता पक्ष और विपक्ष की तनातनी और पैंतरेबाजी ने ऐसा गुल खिलाया कि पूरे सत्र की 21 बैठकों में जहां लोकसभा में महज 19 घंटे कार्यवाही हुई, वहीं अड़ंगेबाजी के कारण 91 घंटे 59 मिनट का समय नष्ट हुआ.

राज्यसभा का भी कुछ ऐसा ही हाल रहा, वहां 22 घंटे से थोड़ा अधिक काम हुआ जबकि 86 घंटे से भी ज्यादा समय हंगामे की भेंट चढ़ गया. इसलिए बहुत स्वाभाविक ही है कि शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित शीत सत्र के मद्देनजर लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति ने गहरी चिंता जताते हुए अपनी बात कही है. जहां लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि इससे जनता में हमारी छवि धूमिल होती है, वहीं राज्यसभा में सभापति हामिद अंसारी ने नाखुशी जाहिर करते हुए सभी पक्षों से आत्मविश्लेषण का आह्वान किया है.

हताशा, निराशा और क्षुब्ध माहौल के बीच शोर शराबा और बहिर्गमन की भेंट चढ़े शीत सत्र में फिर भी अजीब संवाद हीनता देखने को मिली, जब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्षी सांसद राहुल गांधी ने अलग-अलग कहा कि हमें संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा है. इसके इतर राज्यसभा में सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले अपने पारंपरिक संबोधन में हामिद अंसारी ने व्यवधान पर गहरी निराशा जताते हुए कहा उम्मीद थी कि दिसंबर 2013 में 221वें सत्र के समापन पर उन्होंने जो टिप्पणी की थी, उसे दोहराने की जरूरत नहीं होगी. लेकिन उनकी उम्मीदें गलत साबित हुईं. व्यंग्यात्मक लहजे में दरअसल उन्होंने सबकुछ कह दिया, जो कहा जा सकता था. उन्होंने कहा कि नियमित और लगातार व्यवधान इस सत्र की खासियत रही. हंगामे के कारण सदस्यों को सवालों और लोक महत्व के विभिन्न मुद्दों के तहत कार्यपालिका को जवाबदेह बनाने का मौका नहीं मिल सका.

अंसारी ने कहा कि नारेबाजी, पोस्टर दिखाने और कार्यवाही को बाधित किए जाने से संबंधित नियमों की सदन के सभी पक्षों द्वारा लगातार अवहेलना की गई. सदन में शांति सिर्फ उसी समय रही, जब दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी. इससे ज्यादा कहा भी क्या जा सकता था. बहरहाल, यही उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद का अगला सत्र संवादहीनता का शिकार न हो और फलदायी हो.

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