भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिनांक 8 नवंबर की शाम को टैलीविजन पर राष्ट्र के नाम संबोधन में देशवासियों से अचानक ही यह घोषणा कर दी कि आज रात, आधी रात के बाद से सारा देश कतार में आ जाएगा.
घोषणा होते ही मैं विस्मृत होतेहोते बचा और खुद समझने व टीवी चैनल के आगे बैठे हुए अपने परिवार के सदस्यों को भी समझाने की कोशिश करने लगा. उन्हें समझाने की कोशिश तो मैं जरूर कर रहा था लेकिन वास्तविकता यह थी कि यह सब सुन कर मैं खुद ही नहीं समझ पा रहा था कि क्या मेरा दिमाग और आंख दोनों ही अपनीअपनी जगह पर ठीक से काम कर रहे हैं. फिर भी मुझे विश्वास था कि मेरी आंख जो देख रही है वह सच है. मेरे सामने अपने देश के माननीय प्रधानमंत्री महोदय ही हैं और अपने देशवासियों को संबोधित कर रहे हैं मगर फिर भी दिमाग था कि बिलकुल ठिकाने पर आ ही नहीं रहा था. मुझे बारबार यही लग रहा था कि कहीं टैलीविजन के सामने मेरे पास बैठी हुई मेरी बेटी ने बिना मेरी इजाजत के टीवी चैनल बदल कर किसी मनोरंजक चैनल का पैरोडी शो तो नहीं लगा दिया, लगता है कि यह माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी की वेशभूषा में कोई बहरूपिया है. मैं ने तुरंत रसोईघर में जा कर एक गिलास ठंडा पानी पिया ताकि मेरा दिमाग कोमा में जातेजाते किसी तरह से बच जाए.
एक गिलास ठंडा पानी पी कर मैं अपने ड्राइंगरूम में टीवी के आगे लौटा और फिर सोचने लगा कि अभी तो आलोक पर्व यानी दीवाली का त्योहार निकला है और इस आलोक पर्व पर वर्षों से हमारे देश में अंधभक्ति और अंधश्रद्धा के तहत हिंदू परिवारों में रुपयों को धन नहीं बल्कि देवी लक्ष्मी माना जाता है और दीवाली पर देवी लक्ष्मी की तरह ही रुपयों की भी पूजा की जाती है. हमारे देश के तमाम लोग रुपयों का मतलब देवी लक्ष्मी ही मानते हैं. वैसे, रुपया हमारे देश भारत की मुद्रा का नाम है परंतु वास्तविकता में यदि देखा जाए तो अपने देशभर के तमाम लोगों के दिमाग के शब्दकोश में मुद्रा जैसे शब्द तो होते ही नहीं हैं, न ही उन्होंने कभी ये सुने ही होते हैं. उन के लिए तो रुपया मतलब केवल लक्ष्मी ही होता है. सारा दिमाग का फेर है.
अपने देश में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उस के क्रियाकर्म का मामला हो या फिर किसी नवजात शिशु के जन्म के बाद उस के जन्मोत्सव का. ऐसे मामलों में अपने भारत के पंडितों की जेब जब तक 500-500 के हरे नोटों की जगह 1,000-1,000 के कई लाल नोटों से नहीं भरी जाती तब तक वे किसी को संतुष्टि, शांति का मंत्रोच्चारित हवाई टिकट देते ही नहीं हैं. इसी प्रकार किसी गर्भवती महिला के प्रसव के बाद उस के यहां जन्मे हुए नवजात शिशु को आशीर्वाद भी नहीं मिलता.
और इन नोटों को अवैध घोषित कर के नरेंद्र मोदी ने महा अन्याय किया है जैसे किसी की दुधारू गाय छीन ली हो. भक्तिमार्ग में कहा जाता है कि रुपयों को लक्ष्मी मानने की प्रक्रिया द्वापरयुग से आजकल यानी कलियुग तक चलती ही चली आ रही है और सृष्टि का विनाश होने तक चलेगी. लेकिन यह क्या? अचानक क्या हुआ? दिन प्रतिदिन, दिनदूनी रातचौगुनी बढ़ोतरी करने और देवी लक्ष्मी समान पूजी जाने वाली रुपएरूपी लक्ष्मी अब देवी नहीं, कागज के रंगीन टुकड़े मात्र रह जाएंगे, रद्दी हो जाएंगे, प्रचलन में नहीं रहेंगे और अवैध माने जाएंगे. यह कैसा आश्चर्य है?
उस रात माननीय प्रधानमंत्री महोदय के देशहित में जारी किए गए ऐलान को अंत तक पूरी तरह सुन कर मैं ने अपने टीवी सैट को बंद किया और फिर रसोईघर में जा कर इस बार पूरे 4 गिलास ठंडा पानी पिया और अपने बिस्तर पर जा कर सोने लगा, परंतु मुझे उस रात बिल्कुल भी नींद नहीं आई. कई बार करवट बदलतेबदलते मैं ने सोने की अथाह कोशिश भी की मगर मेरी आंखों में नींद नहीं बल्कि दिलोदिमाग पर चिंता थी कि कहीं कल सुबह तक कालेधन की ताकत रखने वाले हमारे ही देश के गैरसामाजिक लोग प्रधानमंत्री के इस क्रांतिकारी फैसले के खिलाफ आंदोलित न हो उठें.
मुद्रा के चक्कर में कहीं लोगों के चेहरों की मुद्रा ही न बदल जाए क्योंकि हमारे देश के आला सरकारी अधिकारी हों या कर्मचारी, अपनी ईमानदार काबिलीयत पर कम, बल्कि कालीकमाई कर के सात पीढि़यों के लिए कालाधन एकत्रित करने का इंतजाम करने की अनैतिक प्रतिभा, तिकड़मबाजी, संपर्क, झूठी प्रशंसा और जुगाड़ में काफी माहिर हो चुके हैं. वे कालीकमाई करते भी हैं और करवाते भी हैं. वे कालाधन लेते भी हैं और मौका पड़ने पर देते भी हैं. वे अपनी मनचाही काले नोट उगलने वाली बेहतर सीट यानी पोस्ंिटग प्राप्त करने के चक्कर में सामाजिक मान्यताएं तोड़ने के साथ बिना शर्म महसूस किए रिश्वत देने का इंतजाम करते रहते हैं. उन के जीवन की सार्थकता दिनदूनी रातचौगुनी रिश्वत उगलने वाली सीट प्राप्त करने में ही निहित रहती है.
आधुनिकताभरे इस समाज ने सभ्य, सुसंस्कृत सोच की मानसिकता को इस कदर नीचे गिरा दिया है कि नौकरी लगने से पहले ही आज का युवा यह सोचने लगता है कि मैं जिस पद के लिए आवेदन कर रहा हूं उस में ऊपर की आमदनी कितनी है.
मैं प्रधानमंत्रीजी के नोटबंदी के कदम को एक क्रांतिकारी कदम की संज्ञा प्रदान कर थोड़ा प्रफुल्लित हो रहा था कि चलो देर आए दुरुस्त आए. अब कालेधन वालों की खैर नहीं. आखिर उन के बुरे दिन आ ही गए. मेरे पिताजी डिप्टी डायरैक्टर थे. वे कई केंद्रों के प्रमुख कार्यालयाध्यक्ष भी रहे. मगर मेरे घर में रिश्वत का एक चावल तक कभी नहीं पका. उन का सदा ही अपने बच्चों को यही समझाना रहता था, ‘रिश्वत की कमाई का भोजन खाने से तो अच्छा है कि भूखे रहा जाए. जितनी चादर हो उतना ही पैर फैलाना चाहिए. धन की हैसियत को सदा नियंत्रण में रखो, उसे सभ्य संस्कारों पर हावी मत होने दो. धन को अपनी ताकत और हवस कभी मत बनाओ. सरकारी कार्यालयों व अन्य संस्थानों में ऊपरी कमाई को सामाजिक मान्यता जरूर मिल रही है मगर यह देश के हित में नहीं है. ऊपरी कमाई करने वाला अधिकारी हो या चपरासी, वह समाजविरोधी व देशद्रोही किस्म का जानवर होता है, इंसान नहीं.’
बिस्तर पर करवटें बदलतेबदलते कब सुबह हो गई, पता ही तब चला जब मोबाइल में सुबह 5 बजे उठने की एकाएक घंटी बज उठी और तभी व्हाट्सऐप मैसेज मिला, ‘आज सभी विवाहित पुरुषों को पता चल जाएगा कि उन की पत्नी के पास कितना कालाधन है.’ तुरंत ही दूसरा व्हाट्सऐप मिला, ‘आज रात जिस घर की लाइट जलती हुई दिखे तो समझ लेना कि वहां नोटों की गिनती चल रही है.’ फिर तीसरा व्हाट्सऐप था, ‘मोदी, तेरी माया कोई समझ नहीं पाया. कल तक मांगने पर भी पेमैंट नहीं मिलती थी और आज पार्टी सामने से फोन कर रही है कि आप का पेमैंट कहां ले कर आऊं, कार्यालय में या रात के अंधेरे में आप के घर पर.’
अगले दिन नहाधो कर मैं भी बैंक पहुंचा और बैंक मैनेजर के परिचित होने के बावजूद भी मैं ने वहां भीड़भरी लंबी कतार में लग कर ही महात्मा गांधीजी के चित्र, उन के चश्मे व एक कदम स्वच्छता की ओर लिखे हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित आर पटेल के हस्ताक्षरयुक्त मंगलयानमय नए 2 हजार रुपए के नोटों को प्राप्त कर लिया.
बैंक की लाइन में मुझे दिखाई दिए लखपति, ईमानदार, दलाल, मासिक आय, दिहाड़ी, साप्ताहिक व पाक्षिक पर कमाई करने वाले गरीब, कामगार वर्ग तक के लोग. उन की अंटी में 500 और 1,000 रुपए का एक नोट हो या अनेक, सभी को चिंता थी कि कहीं ये बेकार न हो जाएं. कुछ ऐसे लोग भी काफी परेशान थे जिन्होंने जीवनभर ईमानदारी के दम पर रुपया कमाया परंतु हाल ही में अपनी बेटी की शादी में खर्च करने के लिए बैंक से अपना लाखों रुपया नकद निकाल कर घर में रख लिया था.
तमाम सारी घरेलू महिलाओं का एक ऐसा वर्ग बेहद परेशान नजर आया जिन्होंने अपनेअपने पतियों से छिपा कर अपने घर की गुप्त तिजोरी में अपने मायके व इधरउधर से मिलेमिलाए तथा अपने ही पति की जेब काटकाट कर 500 तथा 1,000 रुपए के नोटों को जमा कर कई लाख रुपयों का जमावड़ा कर रखा था, जिस का उन के पति तक को 8 नवंबर, 2016 तक कुछ पता नहीं था. सब जग उजागर हो गया.
पुराने नोटों की अदलाबदली के चक्कर में आज हम सब आम नागरिक कतार में लगे हुए हैं. पूरा देश कतार में है, फिर भी मुझे कहीं भी एक भी अमीरजादा, करोड़पति किसी जगह बैंक की लाइन में लगा हुआ नहीं दिखा.
बैंक से लौटते समय दिलोदिमाग में निरंतर तमाम सारी बातें व प्रश्नउत्तर जन्म ले रहे थे कि रुपया तो अविनाशी है. रुपए का जन्म तो होता है किंतु मोदीजी के एक ऐलान पर उस की मृत्यु तो कभी हो ही नहीं सकती. संसार की इस सांसारिकता में रुपया न कभी मरा है, न मरेगा. वह न बंद हुआ है, न बंद होगा. हां, उस का आकार, रूप व रंग भले ही नया हो जाए. क्या मोदी, नोटबंदी से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर पाएंगे? नहीं, कभी नहीं. हां, थोड़े दिनों के लिए थम भले ही जाए. कुछ दिनों बाद ही भ्रष्टाचारी नए नोट में रिश्वत लेना शुरू कर देंगे. इलैक्ट्रौनिक विज्ञान व प्रिंटिंग की मदद से जल्दी ही नए नोटों की नकल भी अवश्य कर ली जाएगी और वे फिर बाजार में चला दिए जाएंगे. भ्रष्टाचार का यह दैत्यावतार तो सिर्फ मनुष्य की अपनी निजी मानसिकता द्वारा ही मारा जा सकता है, मोदी सरकार हो या अन्य कोई, इसे नहीं मार सकती. वास्तव में भ्रष्टाचार रुपए की तरह अविनाशी हो चुका है जिसे कभी खत्म नहीं किया जा सकता.
तभी मेरे किंकर्तव्यविमूढ़, अशांत और चिंतित मन पर व्हाट्सऐप मैसेज ने फिर प्रहार किया, जिस में लिखा था, ‘मेरे अलगअलग बैंकों में 4 अकाउंट हैं. अभी तक सभी में जीरो बैलेंस है. संकट की इस घड़ी में किसी मित्र के काम आ सकता हूं तो जरूर संपर्क करें. आप को बिल्कुल भी कतार में लगने की आवश्यकता नहीं है. मैं हूं ना. यह सूचना नोटबंदी के उपलक्ष्य में मित्रहित में जारी.’ तुरंत ही दूसरा व्हाट्सऐप था, ‘आखिर बूढ़ी मां के खाते में उस के बेटे ने वर्षों बाद ही सही, मगर पूरे ढाई लाख रुपए डाल ही दिए. आखिर बुरे वक्त में मां ही काम आई. जिस को रुपया डूबाने वाला रहा था, उस को मां ने तैरा दिया.’
मैं ने भी वर्षों पहले अपना शरीर त्याग चुकी मां को याद किया और कहा, मां, तेरा देश आज बदलाव की कतार में है. जिन रुपयों की तू अपनी अंधभक्ति और अंधश्रद्धा रख कर नित्य दर्शन किया करती थी, वे आज मात्र कागज के टुकड़े सिद्ध हो गए हैं. कुलमिला कर भ्रष्टाचार, कालाधन और सीमापार से होने वाली नकली नोटों की तस्करी पर लगाम लगाने के लिए हम सब कतार में जरूर हैं. पूरा देश कतार में है, पर एक हैं. हम अनेक होने के बावजूद भी एक हैं. हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है. वाह क्या बात है. हम केवल अपने देश ही नहीं बल्कि विश्व के लिए मिसाल हैं.