रमेश पढ़ा लिखा था और सुरेश अनपढ़. रमेश एक कारखाने में नौकरी करता था और सुरेश खेतीबारी. इतना फर्क होने पर भी वे दोनों गहरे दोस्त थे. उन के नातेरिश्तेदार भी उन की दोस्ती को मानते थे.

एक दिन रमेश ने सुरेश से कहा, ‘‘सुरेश, तुम मेरी ससुराल चले जाना और ससुराल वालों से कहना कि वे मेरी वाइफ को भेज दें या तुम उसे अपने साथ लेते आना. मुझे वहां जाने की फुरसत नहीं मिल रही है.’’

‘‘ठीक है, मैं चला जाऊंगा,’’ सुरेश ने हामी भर दी.

कुछ दिनों बाद रमेश ने सुरेश से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हें एक छोटा सा काम सौंपा था, तुम ने उसे भी नहीं किया. लगता है, तुम मेरी परेशानी को नहीं समझते.’’

‘‘ऐसा भी कहीं हो सकता है कि मैं तुम्हारी बात टाल दूं,’’ सुरेश बोला.

‘‘तो क्या तुम मेरी ससुराल गए थे?’’

‘‘हां, गया था.’’

‘‘फिर मेरी वाइफ को पहुंचाने के बारे में ससुराल वालों से नहीं कहा?’’

‘‘कहा ही नहीं, मैं उसे अपने साथ लाया हूं. मैं तो उसी दिन चला गया था और शाम को वापस भी आ गया था. मैं ने उसे अपने रास्ते में बजाया भी, बहुत मजा आया. तुम्हारी वाइफ तो बहुत मजेदार है.’’

‘‘सुरेश, जरा होश में रह कर बात कर, पागल तो नहीं हो गया है. किस की बात कर रहा है?’’ रमेश ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हारी वाइफ की बात कर रहा हूं. वह इतनी मीठी है कि जो उसे होंठों पर लगाता है, वह कुछ पलों के लिए तो पागल ही हो जाता है. दोस्त, मैं तो उसी दिन से उस के पीछे पागल हूं.’’

‘‘बेवकूफ, तू मेरी वाइफ के पीछे पागल है. इतने दिनों से तू उसे अपने घर में रखे हुए है. आज तेरी दोस्ती की पोल खुल गई. तू दोस्त नहीं दुश्मन है,’’ कहते हुए रमेश उस पर उबल पड़ा. ‘‘मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि इतनी छोटी सी बात पर तेरे दिमाग में इतना बड़ा तूफान क्यों उठ खड़ा हुआ है? तुम जिस चीज का हमेशा इस्तेमाल करते हो, अगर 5-6 दिन उस का इस्तेमाल तुम्हारे दोस्त ने कर लिया, तो उस से तुम्हारा क्या बनबिगड़ गया?’’

‘‘क्या बनबिगड़ गया है, मैं अभी बताता हूं,’’ कहते हुए रमेश ने उस के गालों पर तड़ातड़ तमाचे जड़ने शुरू कर दिए. ‘‘रमेश, क्यों बेकार में मुझे मारते हो? मैं तुम्हारी वाइफ अभी तुम्हारे हवाले किए देता हूं. वैसे, वह इस समय मेरे घर पर भी नहीं है.’’

‘‘घर पर नहीं है तो और कहां है?’’ रमेश चीखा.

‘‘पड़ोसी के पास.’’

‘‘पड़ोसी के पास… वहां कैसे पहुंची?’’ रमेश गुर्राया.

‘‘पड़ोसी मुझ से बोला, ‘तुम तो 5-6 दिनों से इस का लुत्फ उठा रहे हो, पड़ोसी होने के नाते मेरा भी इस पर कुछ हक है. मुझे भी 1-2 दिन इसे बजा लेने दो. मैं भी इस का स्वाद चख लूं.’ ‘‘उस के ऐसा कहने पर मुझ से इनकार करते नहीं बना और मैं ने तुम्हारी वाइफ उसे दे दी.’’

यह सुन रमेश का खून खौल उठा. वह सुरेश की मरम्मत करते हुए बोला, ‘‘नीच, तुम ने मेरी वाइफ को खिलौना बना दिया है. अगर मैं ने तुझे जेल में न सड़ाया, तो मैं अपने बाप की असली औलाद नहीं.’’

सुरेश आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘अगर तुम्हें अपनी वाइफ से इतनी मुहब्बत थी, तो फिर मुझे लाने के लिए ही क्यों भेजा था? चल, मैं थानेदार से सारी बातें साफसाफ कहूंगा.’’ थाने पहुंच कर रमेश ने सुरेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. थानेदार दोनों को साथ ले कर सुरेश के पड़ोसी के घर पहुंचा. उस ने सुरेश के पड़ोसी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे यहां रमेश की वाइफ है?’’ ‘‘है, पर वह मैं ने सुरेश से ली थी.’’

‘‘तुम ने सुरेश से क्यों ली?’’

‘‘सुरेश को उसे बजातेबजाते 5-6 दिन हो गए थे. मैं ने सोचा कि मैं भी बजा कर देखूं, कैसी बजती है?’’

‘‘उसे यहां बुलाओ,’’ थानेदार ने हैरान हो कर कहा.

‘‘हुजूर, वह बुलाने की चीज नहीं है, वह वाइफ है, इनसान नहीं.’’

‘‘इनसान नहीं है…’’ सुन कर थानेदार चौंका, ‘‘क्या है, मुझे दिखाओ?’’ पड़ोसी ने अंदर से ला कर एक बांसुरी थानेदार को पकड़ा दी.

‘‘सुरेश, क्या तुम रमेश की ससुराल से इसी बांसुरी को लाए थे?’’ थानेदार ने पूछा.

‘‘हां, हुजूर.’’

‘‘रमेश तो कहता है कि सुरेश मेरी वाइफ को ले आया है.’’

‘‘हुजूर, यही तो है रमेश की वाइफ.’’

‘‘माजरा क्या है, मुझे साफसाफ बताओ?’’ थानेदार ने सुरेश से पूछा.

‘‘सर, रमेश ने मुझ से कहा था कि मेरी ससुराल से मेरी वाइफ को ले आओ. वाइफ क्या होती है, यह मैं नहीं जानता था और आज भी नहीं जानता हूं. मैं ने रमेश की ससुराल में जा कर उस की सास से कहा, ‘रमेश ने अपनी वाइफ लाने के लिए मुझे भेजा है.’

‘‘जवाब में उस की सास ने मुझ से पूछा, ‘वाइफ क्या होती है मुझे समझाओ. मैं नहीं जानती.’

‘‘मैं ने उस से कहा, ‘यह तो मैं भी नहीं जानता.’

‘‘तब उस ने अपनी लड़की से पूछा, ‘वाइफ किसे कहते हैं? तुम्हारे पति ने सुरेश के हाथ वाइफ को मंगाया है.’

‘‘वह बेचारी अनपढ़, देहाती लड़की ‘वाइफ’ को क्या जाने?

‘‘बहुत सोचविचार करने के बाद वह बोली, ‘मेरी अटैची में उन की बांसुरी रखी है. शायद वे बांसुरी को ही वाइफ कहते होंगे.’

‘‘फिर उस ने अटैची में से बांसुरी निकाल कर अपनी मां से कहा, ‘यही वाइफ है, इसे सुरेश को दे दो.’

‘‘उस की मां ने मुझे बांसुरी देते हुए कहा, ‘लो, यह है रमेश की वाइफ. जा कर उस दे देना.’

‘‘तब से मैं बांसुरी को ही वाइफ समझता रहा.’’

सुरेश का जवाब सुन कर थानेदार रमेश पर बिगड़ा, ‘‘गलती खुद करता है और इलजाम दूसरों के सिर लगाता है. अगर तू ने वाइफ की जगह पर बीवी या औरत बोला होता, तो यह सब नहीं होता.

‘‘तू ने इस बेचारे सुरेश को बेमतलब मारापीटा. इस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई, मुझे यहां बुला कर परेशान किया…’’

‘‘दारोगाजी, इस पढ़ेलिखे मूर्ख को माफ कर दो. साथ ही, इस से कह दो कि बोलचाल में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल न करे, जिन्हें सुनने वाला न समझ सके,’’ सुरेश ने दारोगा से मिन्नत की.

सुरेश की बातें सुन कर रमेश शर्म से पानीपानी हो गया और अपनी गलती पर अफसोस करने लगा.

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