पूरी दुनिया में पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है. इस बात को ले कर लोग चिंतित भी हैं और पर्यावरण को सहीसलामत रखने  के लिए कोशिशें भी कर रहे हैं.

बरसात के शुरू होते ही भारत के सभी राज्यों में भी पर्यावरण को हराभरा बनाए रखने के लिए किसानों द्वारा भी अपने खेतखलिहानों में पौधारोपण किया जाता है.

फल और छायादार पौधे हमें छांव देने के साथसाथ फल और जरूरत के लिए लकड़ियां भी देते हैं. सरकारी योजनाओं के तहत भी पौधारोपण अभियान चल रहे हैं, लेकिन नेता और अफसर इस अभियान में भी भ्रष्टाचार कर जबरदस्त लूट कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- सावधानी से करें कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल

बाढ़, ओलावृष्टि, भूकंप, कोरोना जैसी आपदाओं और महामारी से भले ही गरीब मजदूरकिसान की रोजीरोटी पर संकट आ जाता हो, लेकिन अफसर और नेता इस में भी लूटखसोट करने का मौका जाने नहीं देते.

मध्य प्रदेश में भी पौधारोपण के नाम पर हुए एक बड़े घोटाले का खुलासा हाल ही में किया गया है. साल 2016 में उज्जैन के तब के डीएफओ पीएन मिश्रा ने सिंहस्थ मेले के खत्म होने के बाद साढ़े 3 करोड़ रुपए से भी ज्यादा के पौधे सिर्फ 2 महीने में ही लगा डाले.

इस अजीबोगरीब कारनामे को अंजाम देने वाले वन विभाग के अफसरों ने सरकार द्वारा 3 सालों के लिए दी गई पौधारोपण की रकम को महज 2 महीने में ही खर्च कर दिया.

ये भी पढ़ें- पौष्टिकता से भरपूर राजगिरा

मामले का खुलासा होते ही अब वन विभाग के अफसर पौधों की खोज में जुट गए हैं. जांच होने पर यह पाया गया कि पौधारोपण किस एजेंसी से कराया गया, मजदूरों को कितना भुगतान हुआ, इस का कोई लेखाजोखा भी नहीं रखा गया है.

नियमकायदों के मुताबिक पौधारोपण करने वाले मजदूरों को उन के बैंक खातों में मजदूरी का भुगतान करना था, पर डीएफओ और रेंजर ने 1-1 दिन में 10-10 लाख रुपए का नकद भुगतान कर दिया. जब घोटाले की जांच वन विभाग के बड़े लैवल के अफसर से कराई गई तो इस में करोड़ों रुपए के घोटाले के सुबूत मिले.

इस घोटाले में दिलचस्प बात यह है कि पहले हरेभरे पेड़ों को काटा गया, फिर उन के एवज में पौधे रोपने के लिए करोड़ों रुपए का बजट वन विभाग को दे गया.

ये भी पढ़ें- पुराने बागों को नया बनाएं मुनाफा बढ़ाएं

दरअसल, 12 साल में एक बार उज्जैन में कुंभ मेला भरता है, जिसे ‘सिंहस्थ मेला’ कहा जाता है. मेले के इंतजाम के दौरान पूरे उज्जैन शहर में सीवेज लाइन, पानी की पाइप लाइन समेत दूसरे कामों के चलते पेड़ काटे गए थे. इस की भरपाई के लिए वन विभाग को वहां पौधारोपण के लिए ‘अमृत योजना’ में 4 करोड़ रुपए दिए गए थे.

इस योजना के तहत 3 सालों में पौधे लगाने का काम किया जाना था, मगर महकमे के भ्रष्ट अफसरों की नजर रुपयों पर ऐसी गड़ी कि 2 महीने में कागजों पर ही तकरीबन 4 करोड़ रुपए के पौधे लगा दिए गए.

और भी हैं घोटाले

मध्य प्रदेश में पौधारोपण के नाम पर होने वाला यह गड़बड़झाला कोई एकलौता मामला नहीं है. सरकारी अफसर, विधायक, मंत्री हर साल पौधे लगाते हैं. ट्री गार्ड और पौधे खरीदने पर भारी रकम खर्च की जाती है और 4 महीने बाद पौधे सूख जाते हैं.

ये भी पढ़ें- पपीते से  बना पपेन काम  का

खंडवा जिले के वन मंडल अधिकारी ने तो खालवा वन क्षेत्र में लौकडाउन के दौरान ही पिछले साल किए गए पौधारोपण के काम की जांच खुद ही करा ली. बाकायदा इस के लिए 11 लाख रुपए खर्च किए, जबकि नियम के मुताबिक, यह काम किसी तीसरी पार्टी से कराना था. अब बड़ा सवाल यह है कि अगर वन विभाग ने खुद ही जांच कर ली तो 11 लाख रुपए कैसे खर्च हो गए?

इसी तरह मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ जिले में  पौधारोपण करने वाले मजदूरों के भुगतान के नाम पर 8 लाख रुपए का गबन हुआ है. वन विभाग के एकाउंटेंट और रेंजर ने मिल कर 8 लाख रुपए के पेड़ जमीन पर नहीं कागजों पर लगा दिए और अपने सगेसंबंधियों को मजदूर बता कर मेहनताना उन के बैंक खाते में डाल दिया.

इसी तरह सीधी जिले में फोरैस्ट औफिस के एक कंप्यूटर औपरेटर ने 9 लाख रुपए अपने रिश्तेदार के नाम से ट्रांसफर कर दिए. यह रकम गड्ढे खोदने और पौधारोपण के लिए मजदूरों के खाते में ट्रांसफर करना थी.

भाजपा सरकार का वर्ल्ड रिकौर्ड 

पौधारोपण के नाम पर होने वाले घोटाले कोई न‌ई बात नहीं हैं. हर साल बरसात के दिनों में करोड़ों रुपए खर्च कर पौधारोपण का दिखावा किया जाता है और चीखचीख कर पर्यावरण बचाने के भाषण दिए जाते हैं. नेताओं और सरकारी अफसरों द्वारा लगाए गए पौधों की सुरक्षा के लिए कोई प्लानिंग न होने की वजह से कुछ ही समय बाद ये पौधों सूख जाते हैं.

2 जुलाई, 2017 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ही दिन में 6 करोड़ पौधे लगाने का वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया था और इस अभियान पर 400 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे, पर इन पौधों में से कितने पौधे जीवित बचे हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है. शिवराज सरकार के इस पौधारोपण पर जब ‘कंप्यूटर बाबा’ ने सवाल उठाए, तो उन्हें मंत्री बना दिया गया था.

दिसंबर, 2018 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही भाजपा सरकार के इस पौधारोपण अभियान पर फिर से सवाल उठाए गए थे. कांग्रेस सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार द्वारा आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्लू) को चिट्ठी लिख कर  जांच की मांग की गई थी. उन्होंने इस मामले में आरोप लगाया था कि नर्मदा नदी के किनारे 6 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा कर वर्ल्ड रिकौर्ड बनाने के लिए 20 रुपए कीमत के पौधों को 200 रुपए से ज्यादा कीमत पर खरीदा गया. अब फिर से भाजपा की सरकार प्रदेश में बन गई है, तो यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.

कुलमिला कर हालत यही है कि जनता के दुखतकलीफों से मुंह मोड़ कर धार्मिक आडंबरों और पर्यावरण बचाने के नाम पर भी सरकारी रकम की लूट में  अफसर लगे हुए हैं और नेता भी उन का साथ दे रहे हैं. हकीकत तो यह है कि केवल जुमलों के दम पर न तो पर्यावरण साफ हो  सकता है और न ही जनता की परेशानियां दूर हो सकती हैं.

 समाज का बड़ा रोल 

सरकारी रकम से पौधों को रोपने वाले अफसरों से ज्यादा मेहनत तो बिना किसी सरकारी मदद से किसान, मजदूरों और छोटीछोटी समाजसेवी संस्थाओं द्वारा की जा रही है.

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में पौधारोपण के क्षेत्र में स्वयंसेवी संस्थाओं ने पर्यावरण को हराभरा बनाने में अनूठी भूमिका निभाई है. तेंदूखेड़ा तहसील की योगदान सेवा समिति, गाडरवारा की कदम संस्था, सालीचौका रोड की वृक्ष मित्र और सांईंखेड़ा तहसील की कल्पतरु संस्था ने पिछले 10 साल में बिना किसी सरकारी मदद के लाखों पौधे लगाए हैं, जो आज पेड़ की शक्ल ले चुके हैं.

उल्लेखनीय बात यह है कि इन संस्थाओं से जुड़े लोग अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे खुशी के मौके पर अपने खर्च पर पौधे तो लगाते ही हैं, सालभर उन पौधों की निगरानी भी करते हैं.

सांईंखेड़ा तहसील के गांव बंधा के एक किसान साहब सिंह लोधी ने तो 15 अगस्त, 2019 से इस साल के 15 अगस्त तक हर दिन एक पेड़ लगाने का फैसला किया और उन का यह काम लौकडाउन में जारी रहा. गांवकसबे के लोग साहब सिंह के इस जुनून की तारीफ भी करते हैं और उन्हें पौधे दे कर उन के काम में सहयोग भी करते हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...