लेखक-आनिल हासान

दुनिया में 2 तरह के लोग होते हैं. एक, जो हमेशा ही शालीनता से पेश आते हैं. दूसरे, जो एयरपोर्ट पर जा कर शालीन बन जाते हैं. एयरपोर्ट का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है कि आप न चाह कर भी सभ्य बन जाते हैं. हम अपने स्वाभाविक व्यवहार पर अतिरिक्त विनम्रता का आवरण ओढ़ लेते हैं.

एक मातापिता अपने बच्चे को एयरपोर्ट पर खुल कर डांट नहीं सकते. घर पर वही बच्चा शरारत करने पर पिताजी के मुंह से जो अमृत वचन सुनता है, वो ही कमबख्त एयरपोर्ट पर बदमाशी कर के साफ बच निकलता है. बहुत हुआ तो पिताजी धीरे से अंगरेजी में ‘नो... नो‘ ही बोल पाएंगे, पर घर में देसी भाषा में तूतड़ाक सुनने वाले बच्चे को भला इस से क्या फर्क पड़ने वाला है. बच्चा अपनी मस्ती में मशगूल है.

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ऐसे ही अकसर गुस्से में रहने वाले एक सज्जन एयरपोर्ट पंहुचे. कैब से उतरते ही ड्राइवर से भिड़ गए. गाड़ी मे बैठने से पहले जितना उन का अनुमानित बिल बता रहा था, एयरपोर्ट आने पर वह 10 रुपए बढ़ गया. बात 10 रुपए की भी नहीं, उसूलों की थी, इसलिए साहब ने ड्राइवर को खूब खरीखोटी सुना कर बिल का भुगतान किया.

एयरपोर्ट पर घुसने से पहले उन्होंने अपना मूड ठीक किया और भीतर जाते ही सब से मुसकरा कर बातें करने लगे. कोई कह ही नहीं सकता था कि ये वही सज्जन हैं, जो अभी 5 मिनट पहले कैब ड्राइवर के पूरे खानदान को भलाबुरा बोल रहे थे. व्यवहार में इस प्रकार के क्रांतिकारी बदलाव एयरपोर्ट पर एक सामान्य घटना है.

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