अमेरिका में कोरोना संक्रमण फिर रफ़्तार पकड़ रहा है. पहली जून को वहां 16,040 कोरोना के नए मरीज़ सामने आए थे, वहीं पहली जुलाई को 52,609 नए मामले सामने आए. यानी अमेरिका में एक महीने में चारगुना रफ़्तार से कोरोना संक्रमित मरीज़ बढ़ रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका में इस वैश्विक महामारी में तेजी से वृद्धि पर चिंता जताई है. उधर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इन्फैक्शियस डिजीज के हेड और कोरोन एक्सपर्ट डाक्टर एंथनी फौसी ने भी चेतावनी दी है कि अमेरिका में हालात फिर बिगड़ते जा रहे हैं और जल्द से जल्द कदम नहीं उठाए गए तो नई तबाही के लिए देश को तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोगों को मास्क पहनना ही होगा और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य रूप से करना ही पड़ेगा. अगर एहतियात नहीं बरती गई तो इस में कोई संदेह नहीं है कि आने वाले समय में अमेरिका में हर रोज़ एक लाख से अधिक मामले आएंगे.
यह अमेरिकी सरकार के लिए बहुत चिंता की बात है. खासतौर पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रांप के लिए, जो मास्क पहनने को चीन से पराजय के रूप में देखते हैं और इस महामारी के चलते जिन का राजनितिक कैरियर दांव पर लगा हुआ है. चुनाव सिर पर है और ट्रंप अपनी जनता को इस महामारी से बचा पाने में बुरी तरह असफल साबित हो रहे हैं.
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इस असफलता के चलते ट्रंप बेहद बौखलाए हुए हैं और अपना गुस्सा रहरह कर चीन पर जाहिर कर रहे हैं. ट्रंप ने ट्वीट किया, ‘जैसेजैसे मैं पूरी दुनिया में महामारी का विकराल रूप फैलते देख रहा हूं जिस में अमेरिका को महामारी से हुई भारी क्षति भी शामिल है, वैसेवैसे चीन के खिलाफ मेरा गुस्सा बढ़ता जाता है.’
ट्रंप कोरोना महामारी फैलाने के लिए शुरू से चीन को जिम्मेदार मान रहे हैं. उन का आरोप है कि वुहान की लैब में कोरोना वायरस को तैयार किया गया और दुनिया में फैलाया गया. खासतौर पर अमेरिका में. अपने इस आरोप पर ट्रंप अब भी कायम हैं और इस के लिए वो विश्व स्वास्थ संगठन (डब्लूएचओ) को भी दोषी मानते हैं और उस को चीन के साथ मिला हुआ बताते हैं. दरअसल अमेरिका और चीन दोनों ही देश बीते कई सालों से सुपरपावर बनने की होड़ में हैं. दोनों देशों में जारी ट्रेड वौर के बीच कोरोना वायरस की महामारी ने तनाव और बढ़ा दिया है. ट्रंप दावा करते हैं कि उन के पास इस बात के पक्के सुबूत हैं कि वायरस को वुहान की एक लैब में बनाया गया. इस के अलावा चीन ने वायरस के इंसानों से इंसानों में फैलने की जानकारी को लगातार दबाए रखा और जिस से बाकी देशों ने एहतियातन कदम उठाने में देर की और संक्रमण पूरी दुनिया में फ़ैल गया. चीन ने दुनिया को वायरस की सही जानकारी नहीं दी जिस की वजह से लाखों लोग मारे जा रहे हैं.
गौरतलब है कि दुनियाभर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले बढ़ कर एक करोड़ 3 लाख से अधिक हो गए हैं, जबकि संक्रमण से मरने वालों की संख्या 5 लाख 7 हज़ार से भी ज्यादा पहुंच गई है. अमेरिका दुनिया का सब से अधिक प्रभावित देश है जहां अब तक संक्रमण के 26 लाख 12 हज़ार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और वहां मरने वालों की संख्या एक लाख 26 हज़ार से अधिक है. कोरोना वायरस संक्रमण के सब से अधिक मामले में दूसरे स्थान पर ब्रज़ील, तीसरे पर रूस, चौथे स्थान पर भारत और ब्रिटेन 5वें नंबर पर है.
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भारत को समझनी होगी अमेरिका की चाल
दोराय नहीं है कि कोरोना वायरस के चीन से निकल कर दुनियाभर में फैलने के कारण अधिकांश देश चीन से नाराज़ हैं. भारत भी इस गुस्से से अछूता नहीं है. इधर लद्दाख वैली में चीनी सेना की घुसपैठ ने भी चीन के साथ भारत के रिश्ते काफी तल्ख़ कर दिए हैं. हम सीमा पर अपने 20 सैनिकों की शहादत दे चुके हैं, बावजूद इस के भारत मामले को बातचीत से सुलझाने के पक्ष में दिख रहा है क्योंकि युद्ध की स्थिति में दोनों देशों को ज़्यादा नुकसान होगा. शायद भारत को ज़्यादा होगा.
यही वजह है कि गलवान घाटी से चीनी सेना और हथियारोंबंकरो को हटाने के लिए लगातार दोनों देशों के बीच बातचीत जारी है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस कोशिश में लगे हैं कि बातचीत से मसला हल हो जाए और गलवान घाटी से चीन अपना कब्ज़ा हटा ले. लेकिन अमेरिका भारत के साथ चीन की इस हालिया तनातनी का फ़ायदा अपने पक्ष में उठाना चाहता है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत को यह संदेश दे रहे हैं कि वो भारत के साथ हैं. एक ओर वो दोनों देशों के बीच मध्यस्थता करने का औफर भी देते हैं वहीं दूसरी ओर यूरोप से अपनी फौजों को बुला कर दक्षिण एशिया में तैनात करने की कवायद में भी जुटे हैं.
भारत-चीन तनाव के बीच अमेरिका ने पहली बार अपने 11 न्यूक्लियर कैरियर स्ट्राइक ग्रुप में से 3 को एकसाथ प्रशांत महासागर में तैनात किया है. साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दखल को रोकने के लिए अमेरिका ने यह तैनाती की है. चीन अभी वियतनाम, फिलीपींस, इंडोनेशिया, ब्रूनेई को आंख दिखा रहा है. उस ने कई छोटे छोटे आइलैंड कब्जा कर लिया है. भारत के ओएनजीसी शिप दक्षिण चीन सागर में जाते थे तो उन्हें भी रोका गया. इसलिए अमेरिका की खास निगाह इस इलाके में चीन का वर्चस्व और उस की आक्रामकता रोकना है. अमेरिका के साथ भारत, आस्ट्रेलिया, जापान के अलावा दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी से परेशान अन्य देश भी एकसाथ आ सकते हैं.
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वैसे चीन ने भी आक्रामकता दिखाते हुए साउथ चाइना सी के ऊपर अपनी टोही उड़ानों को तेज कर दिया है. वहीं, ताइवान को भी चीन ने सीधे तौर पर चेतावनी दी है.अमेरिका ने जिन 3 एयरक्राफ्ट कैरियर को प्रशांत महासागर में तैनात किया है वे यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट, यूएसएस निमित्ज और यूएसएस रोनाल्ड रीगन हैं. इन में से यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट फिलीपीन सागर के गुआम के आसपास के इलाके में गश्त कर रहा है. वहीं, यूएसएस निमित्ज वेस्ट कोस्ट इलाके में और यूएसएस रोनाल्ड रीगन जापान के दक्षिण में फिलीपीन सागर तैनात है. जानकारों के मुताबिक चीन का दबदबा कम करने के लिए अमेरिका दक्षिण चीन सागर में टक्कर का मन बना चुका है, लेकिन जिस तरह की कवायद हो रही है उस से भारत भी सीधा प्रभावित होगा. भारत और चीन के बीच नए सिरे से तनाव देखने को मिल सकता है.
इसी के साथ अमेरिकी फौज की एशिया में तैनाती के ऐलान से चीन के खिलाफ नई मोरचेबंदी देखने को मिल सकती है. यह चीन की घेराबंदी की ओर अमेरिका का नया कदम है. इस इलाके में तनाव नए रूप में देखने को मिलेगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप किसी भी सूरत में एक बार चीन से जंग छेड़ने को उतारू हैं. वह भी सीधे नहीं, बल्कि दूसरे देश के कंधे पर चढ़ कर. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो कहते हैं कि अमेरिका दुनियाभर में तैनात अपनी सेनाओं की समीक्षा कर रहा है ताकि चीन के कारण भारत, मलयेशिया, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों के लिए जो ख़तरा उत्पन्न हो रहा है उस से निबटा जा सके.
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2020 ब्रूसेल्स फ़ोरम में पोम्पियो ने कहा, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि पीप्लस लिबरेशन अआर्मी से सामना करने के लिए तैयार रहें. हम समझते हैं कि यह हमारे समय की एक चुनौती है और हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस के लिए हमारे संसाधन सही जगह पर मौजूद हों.”
पोम्पियो का यह इशारा यूरोपियन एलाइज़ की तरफ़ है. अमेरिका ने दूसरे विश्य युद्ध के बाद जरमनऔरजापान पर कब्ज़ा किया था. अभी भी दोनों ही देशों में अमेरिका की सैन्य टुकड़ियां मौजूद हैं. जरमनी में इस वक़्त अमेरिका के करीब 40 हज़ार फ़ौजी हैं और 15 हज़ार असैनिक बल हैं. अमेरिका इन्हे जरमनी से हटा कर एशिया में तैनात करना चाहता है ताकि मौक़ा पड़ने पर चीन से मोरचा लिया जा सके. गौरतलब है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले इन फ़ौजी टुकड़ियों को पोलैंड की तरफ भेजने की भी बात की थी लेकिन अब एशिया की ओर भेजने की धमकी दे रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अगर अमेरिका सैन्य टुकड़ियों की तैनाती चाहता है तो उस के पास ज़मीन पर बेस की कमी नहीं है. इस के अलावा वो इस के लिए नौसेना का इस्तेमाल भी कर सकता है. उल्लेखनीय है कि सेंट्रल एशिया में अमेरिका ने ईरान को घेरने के लिए कई बेस बनाए थे जैसे कि कज़ाकिस्तान और उज़बेकिस्तान में. उस रास्ते से अमेरीका चीन के बौर्डर पर आ सकता है. वहीं अमेरीकी नौसेना की जो पूर्वी एशिया में पहले से उपस्थिति है, वो उस इलाके से सभी नौसेनाओं से बड़ी है.
गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ और भारत व चीन के सैनिकों के बीच टक्कर के बाद भारत को चीन के खिलाफ उकसाने और बदला लेने का दबाव बनाने का अमेरिका के हाथ एक बेहतरीन मौका लगा है. वह भारत के कंधे पर बंदूक रख कर चलाना चाहता है. अब यह भारत के ऊपर है कि वह इसे किस तरह से देखता है. वह अमेरिका की चाल समझता है या उस की चाल में आ जाता है ?
अगर भारत चाहता है कि वह अपनी विदेश नीति आज़ाद रखे तो उस को अमेरिका के बहकावे मेंआनेसेबचना होगा. अगर चीन से युद्ध की स्थिति बनती है तो अमेरिका भारत की मदद के लिए अपनी फौजों को ज़रूर तैनात करेगा. इस से उन फौजों का आर्थिक भार भी भारत पर पड़ेगा और अमेरिका के दबाव में उस की विदेश नीति की आज़ादी भी ख़त्म हो जाएगी. पड़ोसी सभी देशों के साथ उस के संबंध बहुत लंबे समय के लिए बुरी तरह बिगड़ जाएंगे. भारत की डिफेंस पौलिसी इस से बुरी तरह प्रभावित होगी. वह किस तरह के हथियार खरीदे, किस से खरीदे, इस में भी अमेरिका का दखल होगा. वहीं, भारत रूस से भी हथियार नहीं ख़रीद पाएगा.
ऐसे में देखना यह होगा कि क्या भारत अमेरिका के सुरक्षा आश्वासन के बदले यह क़ीमत अदा करने को तैयार है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ‘ख़ास दोस्त’ डोनाल्ड ट्रंप के दबाव में आ जाएंगे? या अपनी कूटनीति और विदेश नीति को प्रभावी बनाते हुए चीन के साथ अपने विवादों को बातचीत के ज़रिए सुलझाने में सफल होंगे?