25 जून 2020 को यूं तो मौसम विभाग ने पहले से ही एलर्ट कर रखा था कि देश के कई हिस्सों में इस तारीख को मानसून पहुंचेगा और कुछ जगहों पर सामान्य से ज्यादा बारिश होगी. लेकिन किसी को यह आशंका नहीं थी कि 25 जून को बारिश के साथ साथ आकाश से चमकती हुई बिजली का कहर भी बरसेगा. बहरहाल 25 जून की देर शाम तक अकेले बिहार और यूपी में ही 107 लोगों की मौत आसमानी बिजली से हो गई. बिहार में 83 लोग सुबह से शाम तक अलग अलग जगहों में मारे गये, जबकि उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली के कहर से मरने वालों की संख्या 24 रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार और उत्तर प्रदेश में आकाशीय बिजली से मारे गये इन लोगों के प्रति संवेदना जतायी, राज्य सरकारों ने मरनेवालों के लिए मुआवजे की घोषणा की और मीडिया ने सुर्खियां बनायी.

मगर इस पर शायद ही किसी ने सोचा हो जब दुनिया के ज्यादातर देशों में आकाशीय बिजली से मरनेवाले लोगों की संख्या करीब करीब नगण्य हो गई है तो फिर हमारे यहां ही बिजली से इतने लोग क्यों मारे जाते हैं? पिछले साल मानसून में जुलाई के महीने के अंत तक 400 लोग बिजली गिरने से मारे गये थे, जबकि इस साल अभी जुलाई शुरु भी नहीं हुई कि देश के अलग अलग हिस्सों में 300 से ज्यादा लोग महज मई और जून में मारे जा चुके हैं. आकाश से बिजली गिरने से जितनी मौतें हमारे यहां होती हैं, दुनिया में उतनी मौतें और कहीं नहीं होतीं. जबकि बिजली हर जगह गिरती है, चाहे कोई विकसित देश हो या विकासशील देश. लेकिन हमारे यहां एक साल में जितनी मौतें बिजली गिरने से होती हैं, अमेरिका में दस साल में भी नहीं होती. सालभर में अमेरिका में कोई 25 लोग आसमान से बिजली गिरने से मारे जाते हैं, जबकि हर साल करीब डेढ़ सौ लोग झारखंड में और करीब दो सौ लोग अकेले बिहार में ही मारे जाते हैं.

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भारत में हर साल जहां आकाश से गिरने वाली बिजली से 2000 से 4000 के बीच लोग मारे जाते हैं, वहीं अमेरिका में यह प्रति दस लाख पर महज 0.3 लोगों की ही मौत आकाश से बिजली गिरने से होती है. जबकि करीब सौ साल पहले वहां हर साल 5000 से ज्यादा लोग बिजली गिरने से मारे जाते थे. आज पूरे साल में तड़ित बिजली के कहर से 20 से 25 लोग मरते हैं. यूरोप में भी यही स्थिति है, बल्कि यूरोप में तो और भी कम लोग बिजली गिरने से मारे जाते हैं. हां, कुछ अफ्रीकी देशों में जरूर हमारे यहां से भी ज्यादा लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. लेकिन वहां जनसंख्या इतनी कम है कि उनका आंकड़ा आमतौर पर 4-5 सौ से ऊपर नहीं जाता. जबकि हमारे यहां हजारों लोग आकाशीय बिजली से मारे जाते हैं. वास्तव में कुछ अफ्रीकी देशों और हमारे यहां आकाशीय बिजली से मरने वाले लोग यूरोप और अमरीका की तुलना में औसतन 100 गुना ज्यादा होते हैं.

सवाल है कि जब दूसरे देशों में भी बिजली गिरती है तो फिर वहां मरने से, घायल होने से लोग कैसे बच जाते हैं? आखिर हमारे यहां ही इतनी ज्यादा मौतें क्यों होती हैं? इसकी एक सबसे बड़ी वजह तो यह है कि हमारे यहां आज भी इसे प्राकृतिक आपदा नहीं समझा जाता. जाहिर है इससे निपटने में मुश्किलें आती हैं. हम आमतौर पर हर पीड़ित को चार लाख का मुआवजा घोषित करके अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ लेते हैं. 2015 में 14वें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को अनुमति दी थी कि राज्य आपदा कोष से वे 10 प्रतिशत तक की राशि उन ऐसे आपदा पीड़ितों को दे सकते हैं जो गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नहीं हैं, बिहार हो उत्तर प्रदेश सरकार इसी का लाभ लेकर चार लाख प्रति पीडित और 25 हजार मवेशियों के नाम पर देने घोषणा करती हैं.

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अगर सरकारें इस कवायद के अलावा बिजली गिरने और उससे होने वाले नुकसान को गंभीरता से लें और जन जागरूकता की दिशा में गंभीरता से प्रयास करें तो आकाशीय बिजली से लोगों की जान बचाई जा सकती है, खास तौरपर अगर सही समय पर लोगों तक सूचना पहुंच जाये और उन्हें पता हो कि उस सूचना पर कैसे अमल करना है. साथ ही उस सूचना पर लोग अमल भी करें. बिजली गिरना देश की सबसे नियमित और खतरनाक प्राकृतिक आपदा होने के बावजूद अभी भी यह प्राकृतिक आपदा के रूप में शुमार नहीं है, इसे मजाक नहीं तो और क्या कहेंगे? इसके आंकड़े भी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन बोर्ड की बजाय राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो से मिलते हैं. सबसे पहले तो सरकार इसे प्राकृतिक आपदा माने. फिर उन अभियानों पर व्यापक शोध करे जिसके चलते अमेरिकी और ब्रितानी इस खतरे से उबरे हैं.

हालांकि वज्रपात के सटीक स्थान की घोषणा मुश्किल है. पर क्षेत्र विशेष का पूर्वानुमान और चेतावनी देना संभव है. अमेरिका में नेशनल लाइटिंग इंस्टीट्यूट यह काम करता है. यह अमेरिकी संस्था, आकाशीय बिजली गिरने के वैश्विक आंकडों का विश्लेषण और पैटर्न का अध्ययन ही नहीं करती, चेतावनी, पूर्वानुमान, भविष्यवाणी भी करती है और लोगों को जागरूक भी. वहां के लोगों का मानना है कि लगातार 15 साल तक जागरूकता का सघन कार्यक्रम चलाने की वजह से ही आज उनका आंकड़ा इस मामले में बेहतर हुआ है. अपने वहां मौसम विभाग यह काम देख सकता है. मौसम विज्ञानियों को जो आंकड़े उपग्रह से मिलते हैं उसके अनुसार वे वर्षा के साथ साथ बिजली गिरने की आशंकाओं का भी मोटा पूर्वानुमान कर सकते हैं. यह बिजली गिरने के बारे में तमाम तरह की गणना, सर्वेक्षण, लाइटिंग लोकेशन नेटवर्क का अध्ययन और लाइटिंग डिटेक्शन नेटवर्क पर निगाह रख सकते हैं जो यह बता सकती है बिजली गिरने की अगली आशंका कहां की है, वहां चेतावनी जारी करके लोगों को सावधान कर बचाया जा सकता है. वे यह अध्ययन भी कर सकते हैं कि एक ही क्षेत्र में अचानक बिजली गिरने की घटनाएं बढ क्यों जाती हैं?

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पिछले साल केंद्र सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने दामिनी ऐप बनाया था, जिसके बारे में दावा किया गया था कि यह 20 किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने से 30-40 मिनट पहले ही सावधान कर देगा. साथ ही किस तरह से सुरक्षा और प्राथमिक उपचार करें बतायेगा. लेकिन जिस तरह तड़ित बिजली से लोगों की मौत हो रही है, लगता है ये सारे दावे महज हवाहवाई हैं. पूरे देश में 552 ऑब्जर्वेटरी सेंटर हैं इसके अलावा पूरे देश में 675 मौसम केंद्र हैं. साथ ही 1350 जगहों पर ऑटोमेटर रेनगेज सेंटर हैं जहां डाटा सीधे मौसम विभाग पहुंचता है.  55 से ज्यादा वायुसेना स्टेशनों पर भी आकाशीय बिजली गिरने की जानकारी के यंत्र लगे हैं. यह सब है पर इसका कोई लाभ मिलता नहीं दिख रहा. सरकार और उनके नुमाइंदों तथा संबंधित अधिकारियों का रुख यही होता है कि बिजली गिरने से हम कैसे रोक सकते हैं. पर उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं कि इसके बारे में अभियान चलाकर जनजागरूकता क्यों नहीं बढाई जा सकती? क्या ज्यादातर मरने वाले गरीब होते हैं, इसलिए ध्यान नहीं दिया जाता.

 

संसार के लगभग सभी विकसित देशों ने बकायदा अभियान चलाकर आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को बिल्कुल खत्म कर दिया है.

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