यह वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि गंगा तीर की तरह पलटी और बोली, ‘क्या कहा…? क्या कहा तुम ने? अच्छा, अब यह सब भी बोलने लायक हो गए हो? जाओ, करो प्रेम, शादी करो और घूमो उस के साथ. लेकिन शादी करने के बाद मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’
‘लेकिन मां, जरा तुम सोचो तो…’‘इस में मुझे क्या सोचना है? मुझे अब करना ही क्या है?’
रजत सिर झुकाए चुपचाप खड़ा रहा. फिर धीरे से बोला, ‘ऐसा करो न मां, तुम एक बार रमा से मिल लो. मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगा.’
‘खबरदार, अगर उस का नाम तुम ने मेरे सामने लिया. मैं उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती. अब तुम उसी के पास जाओ, मेरातुम्हारा कोई संबंध नहीं है.’
रजत थोड़ी देर तक खड़ा सोचता रहा. वह निराश हो गया था. उस ने सोचा, इस का निबटारा इस वक्त नहीं हो सकता. भारी दिल से वह घर के बाहर चला गया.
रमा से मिलने से गंगा ने इनकार कर दिया था. फिर भी गंगा ने दूसरे ही दिन रमा को घर बुलाया. रमा को ऐसे समय में बुलाया जिस समय रजत घर में नहीं था.
अपनी होने वाली सास से रमा सहमतेसहमते मिलने आई. लेकिन गंगा प्यार से बातें करने के बजाय उस से कर्कश स्वर में बोली, ‘तुम औफिस में काम करने जाती हो या वहां काम करने वाले जवान लड़कों को फंसाने जाती हो?’ गंगा की इस बात से रमा को काठ मार गया.
‘सुनो, मेरे बेटे की तरफ अगर फिर से नजर उठा कर देखा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’ रमा भी संभलते हुए बोली, ‘आप कैसी बातें कर रही हैं, मांजी.’
‘दूसरे लड़कों के साथ तुम्हें गुलछर्रे उड़ाना हो तो उड़ाओ, पर मेरे लड़के के साथ…’
‘आप अपने लड़के के बारे में कुछ जानती हैं?’‘उस के बारे में मुझ से ज्यादा कौन जानेगा भला? अब तुम उस के सामने नखरे मत करना.’
‘उस से भी कह दीजिएगा, मेरे सामने नहीं आएगा.’ ‘उस से तो कह दूंगी, पर तुम्हें…’
‘मुझे कहने वाली आप कौन होती हैं. अगर आप को अपना लड़का बहुत सुंदर लगता है, तो उसे ओढ़नी ओढ़ा कर घर में ही बैठा लीजिए.’
‘क्या कहा?’ ‘जो आप ने सुना,’ रमा गुस्से से कांपने लगी थी. जो शब्द उस के मुंह से निकल रहे थे उन्हें सुन कर वह खुद ही स्तब्ध रह गईर् थी. दुख भी हुआ था कि इस तरह भी बोलना उसे आता है. लेकिन शोले की तरह ये शब्द पता नहीं कहां से निकल रहे थे.
‘‘एक बार और कह रही हूं, ठीक से सुन लीजिए. आप को अपना लड़का बहुत प्यारा है तो उसे घर में रखिए. नहीं तो कोई भगा ले जाएगा.’
‘अब तुम यहां से चली जाओ, नहीं तो…’
‘आप ने बुलाया है, इसलिए आई हूं,’ रमा नफरत से बोली, ‘नहीं तो आप का मुंह देखने की मुझे क्या जरूरत थी,’ और जातेजाते मुंह घुमा कर थूक दिया था.
गंगा गुस्से से लाल हो उठी थी. थोड़ी देर बाद जब वह शांत हुई तो स्तब्ध रह गई थी. अब तो रजत पैर पकड़ कर भी रोएगा तो भी वह इस लड़की के लिए नहीं मानेगी. एकदम नहीं मानेगी.
लेकिन जवानी तो दीवानी होती है. इस के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता. इतना अपमानित होने के बाद भी रमा जब रजत से मिली तो पता नहीं रजत ने क्या समझाया कि वह फिर गंगा से माफी मांगने के लिए चली आई थी.
गंगा को लगा था कि गलती तो उस की खुद की थी. जो कुछ किया, उस ने खुद किया. घर बुला कर जो नहीं कहना चाहिए था, वह भी उस ने कहा. उस की बेइज्जती की. फिर भी आ कर वह माफी मांग रही थी. थोड़ी देर के लिए तो वह नरम पड़ गई थी. रमा उसे समझा रही थी. उस के सामने शिकायत की जाए, इस तरह का कुछ भी नहीं कहा था. उस के परिवार के बारे में उस ने जो कुछ भी कहा था, वह सब झूठ था.
लेकिन थोड़ी देर के लिए नरम पड़ी गंगा एकाएक कठोर हो गईर् थी और रमा को उस ने दुत्कार कर भगा दिया था. वह बेचारी रोती हुई घर से बाहर गईर् थी और उसे सुनाने के लिए गंगा खूब जोर से हंसी थी.
मन में यह सवाल उठा था कि इस तरह वह क्या कर रही है? आखिर वह चाहती क्या है? एक बार उस के मन में यह विचार उठा कि क्या इस की शादी रजत से नहीं हो सकती. लड़की तो ठीक ही है.
लेकिन उस का मन फिर बदल गया. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है. रमा रास्ते में चलते हुए सोचती जा रही थी. उस के पैर लड़खड़ा रहे थे. एक बार बेइज्जती सहन कर के जिस घर से निकली थी, उस घर में दोबारा क्यों गई, अपनी और ज्यादा बेइज्जती कराने?
उसे रजत के ऊपर गुस्सा आया. खुद के ऊपर गुस्सा आया. आखिर क्यों उस ने रजत की बात मान ली. सचमुच शायद वह रजत के प्रेम में अंधी हो गई है.
गंगा के साथ पहली बार झगड़ा होने के बाद उसे रजत की याद आने लगी थी. गंगा के साथ झगड़ा करने के बजाय चुपचाप उन की बात सुन कर वापस चली आना चाहिए था. आखिर उस ने झगड़ा बढ़ाया ही क्यों था. कुछ भी हो, आखिर वह रजत की मां है. यदि उस की अपनी मां ने कुछ कड़वा बोला होता तो क्या वह उसे भी इसी तरह जवाब देती?
अपने इस व्यवहार पर उसे पछतावा हुआ था. दूसरे दिन जब रजत मिला तो उस ने माफी मांगी थी, ‘‘रमा, मेरी मां पुराने विचारों वाली है. मेरे अलावा उस का कोई नहीं है. उस ने जो कुछ कहा, उस का बुरा मत मानना. प्लीज, सब भूल जाना.’’
रमा ने नरम हो कर कहा था, ‘‘तुम अपने मन में किसी तरह का विचार मत लाना, रजत. मां का प्यार मैं समझ सकती हूं. लेकिन पता नहीं क्यों मैं गुस्से में जो कुछ नहीं कहना चाहती थी, वह भी कह गई थी. रजत, तुम मुझे माफ कर देना.’’