Online Hindi Story : अर्पिता अपने पति मलय का सामान सहेज रही थी. उसे उस के कागजों के बीच एक फोटो मिली जिस में एक दंपती और 2 लड़के थे. अर्पिता ने ध्यान से देखा तो छोटे बच्चे का चेहरा मलय जैसा लग रहा था. उस ने औफिस से लौटने पर मलय से उस फोटो के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि फोटो में उस के माता, पिता, बड़े भाई और वह स्वयं है. अर्पिता ने कहा, ‘‘अरे, तुम्हारा भाई भी है, पर तुम तो अपने चाचा के साथ रहते थे न, तो इन सब का क्या हुआ?’’
पहले तो वह टालमटोल करता रहा पर जब अर्पिता रूठ कर बैठ गई तो नईनवेली पत्नी से वह उस रहस्य को ज्यादा देर छिपा न सका.
उस ने बताया, ‘‘यथार्थ घर का बड़ा बेटा था. वह परिवार में सब की आशाओं का केंद्र था. परिवार के गर्व का कारण था. होता भी क्यों न, मम्मा हों या पापा या छोटा भाई, उसे सब की चिंता रहती थी. वह मुसकरा देता, बस. कम बोलना उस की प्रकृति थी. पता ही नहीं चलता कि उस के मन में क्या चल रहा है, वह क्या सोच रहा है. पर उसे सब पता रहता था कि क्या समस्या है, किस को उस की आवश्यकता है. मम्मा के तो हृदय का टुकड़ा था वह. आज के युग में बच्चे जरा सा अपने पैरों पर खड़े हो ते ही अपना संसार रच लेते हैं और उस में विस्मृत हो जाते हैं, लेकिन यथार्थ के लिए दूसरों का दुख सदा निज आकांक्षाओं पर भारी था.
‘‘जब वह 4 वर्ष की इंजीनियरिंग की डिगरी ले कर घर लौट रहा था तो मेरी मां सुनीता की प्रसन्नता का ठिकाना न था. उन का बेटा घर आ रहा था, सोने पर सुहागा यह कि वह इंजीनियर बन कर आ रहा था. सुनीता ने मेरे पिता तपन से कहा, ‘सुनिए, यथार्थ को नौकरी मिलते ही हम उस की शादी की बात करेंगे.’
‘‘तपन ने हंसते हुए कहा, ‘खयालीपुलाव पकाने में तुम्हारा जवाब नहीं. अभी तो यथार्थ को सिर्फ इंजीनियरिंग की डिगरी मिली है. पहले उसे नौकरी तो मिलने दो.’
‘‘अभी तो वे न जाने किनकिन सतरंगी सपनों की गलियों में भटकतीं कि तपन ने आ कर कहा, ‘सुनीता, ट्रेन का समय तो निकल गया, यथार्थ आया नहीं?’
‘‘तपन ने कहा, ‘मैं पहले ही पूछ चुका हूं, अब तो गाड़ी को आए भी एक घंटा हो गया है.’ फिर चिंतातुर हो कर वे बोले, ‘यथार्थ का मोबाइल स्विचऔफ आ रहा है.’
‘‘सुनीता ने घबरा कर कहा, ‘पर कल तो उस ने कहा था कि रात को चल कर सुबह पहुंच जाऊंगा. भोपाल फोन करिए. मालूम पड़े कि वह चला भी कि नहीं. कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया, मेरा बच्चा.’
‘‘तपन ने कहा, ‘मैं सब मालूम कर चुका हूं, वह कल रात में वहां से चल दिया था.’
‘‘फिर सुनीता का श्वेत पड़ता चेहरा देख कर कुछ सुनीता और कुछ स्वयं को समझाते हुए वे बोले, ‘अरे, जानती तो हो उसे अपना ध्यान कहां रहता है, मोबाइल चार्ज नहीं किया होगा और दिल्ली का ट्रैफिक तो ऐसे ही है, फंस गया होगा कहीं जाम में.’
‘‘दोनों मन ही मन मना रहे थे कि यही सच हो. पर घड़ी की निरंतर आगे बढ़ती निष्ठुर सुइयां उन की सोच को झुठलाने को ठाने बैठी थीं. समय के साथसाथ उन की आशा को अनहोनी की आकांक्षा के काले बादल ढंकते चले जा रहे थे. पलपल कर के घंटे और दिन बीत गए. हर जगह पता किया, यथार्थ के जानने वालों को फोन किया पर कहीं से कोई सुराग नहीं मिल रहा था. किसी अनहोनी का भय सुरसा सा मुंह फैलाता जा रहा था.
‘‘यथार्थ के घर न आने का समाचार जानने वालों में आग के समान फैल गया और लोग आग में हाथ सेंकने से बाज न आए. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कहता, किसी लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा. आजकल तो यह आम बात है. उसी में किसी प्रतिद्वंद्वी ने ठिकाने लगा दिया होगा. कोई कहता लूटपाट का चक्कर होगा.
‘‘2 दिन बीत जाने के बाद सभी ने यही राय दी कि पुलिस की सहायता ली जाए. तपन ने वह भी किया पर कोई पता न चला. बीतते दिनों के साथ उन की आशा की किरण धूमिल पड़ने लगी थी.
‘‘एक दिन तपन को कूरियर से एक पत्र मिला. उस में लिखा था, ‘आप का बेटा जीवित है.’ उन के हृदय में आशा की बुझती लौ को मानो तेल मिल गया. उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रकृति को धन्यवाद दिया और सुनीता को यह समाचार दिया. उन्होंने भी तुरंत ही प्रकृति को धन्यवाद दिया. लेकिन शायद धन्यवाद देने में दोनों ने कुछ जल्दबाजी दिखा दी थी. आगे के समाचार ने उन्हें यथार्थ के जीवित होने की पुष्टि तो की पर आगे जो लिखा था वह कोई कम बड़ा आघात न था. उस में लिखा था कि उन का बेटा योगी आश्रम में है और उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.
‘‘सुनीता बोलीं, ‘यह किसी ने झूठ लिखा है. अरे, मेरे यथार्थ ने मुझ से फोन पर बात कर के आने को कहा था और अचानक उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली? यह नहीं हो सकता. उस का दीक्षा लेने का मन होता तो कभी तो हम से जिक्र करता. वह तो हम से अपने मन की हर बात कहता है.’
‘‘‘अब तो सच वहां जा कर ही मालूम होग, सुनीता,’ तपन ने चिंतातुर वाणी में कहा.
‘‘आश्रम के द्वार पर ही सुनीता, तपन और उन के साथ आए यथार्थ के मामा राजन और तपन के अभिन्न मित्र विकास को रोक दिया गया. तपन ने वह पत्र दिखाया जिस में लिखा था कि उन के हृदय के टुकड़े ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.
‘‘वहां स्वामीजी के कुछ शिष्य थे. उन्होंने उन के आने का उद्देश्य पूछा. सुनीता ने कहा, ‘हम अपने बेटे को लेने आए हैं.’
‘‘इस पर वहां का मुख्य कार्यकर्ता अखिलानंद बोला, ‘पर उन्होंने दीक्षा ले ली है. अब वे आप के बेटे नहीं हैं, बल्कि यहां के दीक्षित प्रशिक्षु हैं. कुछ समय बाद वे संत की उपाधि पा जाएंगे.’
‘‘यह सुन कर सुनीता व्यग्र हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे कैसे आप मेरे बेटे को मुझ से छीन सकते हैं? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि वह मेरा बेटा नहीं है?’
‘‘तपन ने कहा, ‘वह एक पढ़ालिखा इंजीनियर है. अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी कोई आयु है दीक्षा लेने की?’
‘‘इस पर विकास ने कहा, ‘अरे तपन, इन लोगों से बहस करने से क्या लाभ, पहले यथार्थ से मिलो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’
‘‘‘आप उन से नहीं मिल सकते,’ अखिलानंद ने कहा.
‘‘‘अरे, मेरा बेटा है और हम ही नहीं मिल सकते, आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले?’
‘‘तभी अखिलानंद के एक साथी ने आ कर उस के कान में कुछ कहा. फिर अखिलानंद ने तपन से कहा, ‘आप लोग खुश हो जाएं स्वामीजी ने आज्ञा दी है कि आप लोगों को विश्वानंदजी से मिलवा दिया जाए.’
‘‘‘ये विश्वानंद कौन हैं, हम उन से मिलना नहीं चाहते. हमें, बस, अपने बेटे से मिलना है.’
‘‘‘जी, आप के जो बेटे थे उन का ही सांसारिक नाम त्याग कर नया नाम विश्वानंद रखा गया है.’
‘‘सुनीता को यह स्वीकार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘आप के कहने से उस का नाम बदल जाएगा क्या? उस का नाम कानूनीरूप से यथार्थ है और वही रहेगा.’
‘‘तपन ने बात को विराम देते हुए कहा, ‘चलिए, पहले आप हमें उस से मिलवाइए.’
‘‘आखिलानंद और उस का वह साथी उन्हें आश्रम के पिछवाड़े एक गर्भकक्ष में ले गए जहां अंधकार पांव पसारे था. बस, एक रोशनदान से प्रकाश की रश्मियां घुसपैठ करने को प्रयासरत थीं वरना दिन या रात का निर्णय कठिन हो जाता.
‘‘अखिलानंद ने आवाज दी, ‘विश्वानंद, देखो कुछ लोग तुम से मिलना चाहते हैं.’
‘‘बैठे हुए व्यक्ति को देख कर आगंतुक कुछ क्षण तो हतप्रभ रह गए. कहां जींस पहने, बालों में जेल लगाए सुंदरस्मार्ट यथार्थ और कहां बाल मुंडाए गेरुए वस्त्र पहने यह युवक. पर मां की दृष्टि तो सात परदों में भी अपने बेटे को पहचान लेती है. उस ने यथार्थ को देख कर कहा, ‘बेटा, इन लोगों ने तुम्हारा यह क्या हाल किया है?’
‘‘‘आप कौन?’ यथार्थ ने सुनीता को देख कर कहा.
‘‘सुनीता को लगा मानो किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो. उस ने कहा, ‘मैं तेरी मम्मा, बेटू.’
‘‘‘मेरी कोई मां नहीं,’ यथार्थ ने कहा. उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह आंखें नीची कर के बात कर रहा था.
‘‘तपन ने कहा, ‘बेटा, तुझे क्या हो गया है. मैं तेरा पापा, ये मम्मा, जरा होश में तो आ.’
‘‘पर यथार्थ ने उन की ओर दृष्टि नहीं उठाई. वह नीची दृष्टि किए हुए एक ही बात कह रहा था, ‘मैं किसी को नहीं जानता, मेरी कोई मां नहीं, कोई पिता नहीं.’
‘‘सुनीता ने उस का हाथ थामा तो उस ने झटक दिया और बोला, ‘मैं एक संत हूं. मैं सांसारिक लोगों से नहीं मिलता. मुझ से दूर रहें.’
‘‘‘बेटा, मैं तेरी मां हूं. इन लोगों ने तुझे बहका दिया है.’
‘‘इस पर वह खोईखोई वाणी में बोला, ‘मेरी मांपिता सब ऊपर वाला है. इस नश्वर संसार में मेरा कोई नहीं.’
‘‘सुनीता रो पड़ीं. वे तपन से बोलीं, ‘देखो, मेरे बेटे को क्या हो गया है. यह मुझे ही नहीं पहचान रहा है. जरूर इस पर किसी ने कोई जादूटोना कर दिया है.’ वे यथार्थ को हिलाने लगीं, अखिलानंद ने उन्हें रोक दिया, ‘आप इन्हें छू नहीं सकतीं. ये पवित्र आत्मा हो गए हैं.’
‘‘सुनीता बिगड़ गईं, ‘मैं, जिस ने उसे जन्म दिया है उस की मां, उसे छू नहीं सकती?’ उन्होंने यथार्थ से कहा, ‘बोल बेटा, बता दे इन्हें कि मैं तेरी मां हूं.’ पर वे लोग उन्हें और तपन वगैरा को जबरदस्ती बाहर ले आए और बोले, ‘बस, इस से ज्यादा आप उन से नहीं मिल सकते.’
‘‘विवशता में उन्हें वहां से आना पड़ा पर अपना बेटा कैसे खो सकते थे वे. दूसरे दिन अपने साथ 15-20 लोगों को ले कर वे फिर आश्रम गए. पर इस बार उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया गया. तपन के साथ यथार्थ के मित्र शिशिर और पवन भी थे. वे दोनों गुस्से में आ गए. उन्होंने जबरदस्ती अंदर जाने का प्रयास किया. उधर, स्वामीजी के शिष्यों का समूह बाहर आ गया. वे लोग इन्हें रोकने लगे जिस में आपस में हाथापाई की स्थिति आ गई. इसी हाथापाई में पवन को चोट लग गई और खून बहने लगा.
‘‘जब इन लोगों का अंदर जाने का प्रयास असफल हो गया, तो ये लोग वहीं धरना दे कर बैठ गए. और नारे लगाने लगे, ‘मेरा बेटा वापस दो, स्वामी जी हायहाय, धर्म के नाम पर धांधली नहीं चलेगी’ आदि.
‘‘इन के चारों ओर लोगों की भीड़ लग गई. जब आश्रम वालों ने देखा कि ये नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.
‘‘पुलिस ने स्वामीजी की शिकायत पर धरने वालों को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने आश्रम के विरुद्ध शिकायत की. इस पर पुलिस ने पूछताछ की. पर जब यथार्थ से पुलिस ने पूछा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अपनी इच्छा से आया है.
‘‘पुलिस इंस्पैक्टर ने तपन से कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और यदि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’
‘‘‘पर आश्रम वालों ने उस का ब्रेनवाश किया है, उसे बहका कर फंसाया है.’
‘‘‘जी, मैं सब समझ रहा हूं पर इस का कोई साक्ष्य नहीं है.’
‘‘तपन ने कहा, ‘पर आप हमें अपने ढंग से अपने बेटे को वापस लेने दीजिए.’
‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘देखिए तपनजी, मैं आप को अपने हाथ में कानून नहीं लेने दे सकता.’
‘‘सुनीता ने कहा, ‘यह कैसी बात है कि आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को बरगलाया है, वे गलत हैं और हम सही, फिर भी हमें ही रोक रहे हैं?’
‘‘‘देखिए, मन से हम आप के साथ हैं पर हम विवश हैं. कानून की सीमा के बाहर कुछ भी करना या करने देना हमारे लिए संभव नहीं. आप जो भी करें, कानून के अनुसार करें. कृपया आप लोग चले जाएं वरना हमें आप को जबरदस्ती हटाना पड़ेगा.’
‘‘तपन के साथ आए उन के मित्र ने उन्हें समझाया, ‘देखो, अगर पुलिस के चक्कर में पड़ गए तो हम दूसरी झंझटों में उलझ जाएंगे और यथार्थ को वापस कभी नहीं ला पाएंगे. इस से तो अच्छा है कि कुछ उपाय सोचो उसे वापस लाने का.’
‘‘‘‘पर मेरे बच्चे को हुआ क्या है? चलो, किसी झाड़फूंक वाले का पता करें,’ सुनीता ने कहा.
‘‘राजन ने कहा, ‘दीदी, टोटका नहीं, इन्होंने कोई नशा दिया है और इस का ब्रेनवाश किया है. देखा नहीं, उस की आंखें कैसी लाललाल थीं और वह अपनी सुध में नहीं लग रहा था.’
‘‘‘पर मेरे बच्चे ने इन का क्या बिगाड़ा था?’
‘‘‘कुछ नहीं, इन्हें अपना प्रचारप्रसार करने के लिए मेधावी और आकर्षक व्यक्तित्व के युवा चाहिए. ये इसी तरह मेधावी मगर सीधेसाधे बच्चों को फंसाते हैं.’
‘‘तपन ने कहा, ‘पर हम इन की चाल कामयाब नहीं होने देंगे. हम अपने बच्चे को लिए बिना वापस नहीं जाएंगे.’
‘‘तपन और सुनीता ने बहुत हाथपैर मारे, धरतीआकाश एक कर दिया पर वे दोबारा अपने बेटे की एक झलक भी नहीं पा सके. पता नहीं उसे उन लोगों ने कहां भेज दिया.
‘‘तपन ने पुलिस से संपर्क किया पर पुलिस ने भी पल्ला झाड़ दिया. वे एसपी तक के पास गए पर उन्होंने भी कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और जब वह कह रहा है कि वह अपनी इच्छा से वहां रहना चाहता है तो हम उस में क्या कर सकते हैं?’
‘‘सुनीता ने कहा, ‘पर उन लोगों ने उसे कोई नशा दिया है, उस पर जादूटोना किया है. वरना जिस लड़के ने एक दिन पहले मुझ से कहा कि वह घर आ रहा है, अचानक आश्रम कैसे पहुंच गया?’
‘‘‘और तो और, उन लोगों ने उसे एक तहखाने में बंद कर रखा है यदि वह अपने मन से गया है तो उसे बंद तहखाने में किसी कैदी की तरह रखने की आवश्यकता क्या है?’ तपन ने कहा.
‘‘‘देखिए, आप की बात ठीक है पर जब हमारे इंस्पैक्टर गए थे तो आप का बेटा आश्रम में ही था. और उस ने स्वयं उन से कहा कि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रहना चाहता है,’ एसपी ने कहा, ‘और बिना किसी साक्ष्य के हम क्या कर सकते हैं?’
‘‘सुनीता बोलीं, ‘आप टैस्ट करवाइए. वे मेरे बेटे को कोई नशा अवश्य देते हैं क्योंकि जब वह हम से मिला तो उस ने एक बार भी मेरी ओर नहीं देखा और अनायास ही उस की दृष्टि मुझ से मिली तो उस ने तुरंत हटा ली. पर मैं ने उस क्षणांश में ही देख लिया कि उस की आंखें लाल थीं और चढ़ी हुई थीं. वह सामान्य तो बिलकुल नहीं था.’
‘‘पर पुलिस ने साक्ष्य के अभाव में या संभवतया किसी दबाव में सहायता करने से मना कर दिया.
‘‘तपन को याद आया प्रभास. उस ने सोचा कि अभी तक उस ने क्यों नहीं सोचा प्रभास के बारे में. वह तो जनादेश चैनल में प्रोड्यूसर है. वह उस की सहायता कर सकता है. मीडिया साक्ष्य एकत्र करने में लग गई. पर प्रहरी इतने दृढ़ थे कि उन के दुर्ग में सेंध लगाना सरल न था. मीडिया ने साक्ष्य प्राप्त भी किए कि आश्रम में अफीम आती है. उस का अभियान धीरेधीरे सफलता के सोपान चढ़ रहा था कि अचानक एक दिन प्रभास के औफिस पर हमला हो गया और कई बहुमूल्य कैमरे आदि नष्ट कर दिए गए. फिर पता नहीं क्या हुआ कि प्रभास ने उस केस में धीरेधीरे रुचि लेनी बंद कर दी. एक दिन तपन ने उस से पूछा तो उलटे वह उन्हीं को समझाने लगा, ‘मेरी मानो तो तुम उसे भूल जाओ, जब तुम्हारा बेटा ही संन्यास लेना चाहता है तो क्या कर सकते हो, शायद प्रकृति यही चाहती है.’
‘‘सब ओर से हार कर तपन फिर स्वामीजी की शरण में गए उन से अपने बेटे की भीख मांगने. स्वामीजी ने मिलने से मना कर दिया. सब ओर से निराश हो कर तपन वापस लौटने को उठ खड़े हुए. तभी अखिलानंदजी से उन के साथी ने आ कर धीरे से कुछ कहा. अखिलानंद ने कहा, ‘आप खुश हो जाएं कि स्वामीजी को बेटे के प्रति आप की व्याकुलता देख कर दया आ गई.’
‘‘‘तो क्या वे यथार्थ को हमारे पास वापस भेज देंगे?’ तपन ने अधीर होते हुए पूछा.
‘‘‘नहीं, विश्वानंद तो हमारे आश्रम का अभिन्न अंग हैं. उन के प्रभावी व्यक्तित्व, ओजपूर्ण वाणी, और हिंदी व अंगरेजी दोनों में ही समानरूप से भाषण देने की क्षमता ने तो हम भक्तों की संख्या कई गुना बढ़ा दी है. वे तो हमारे लिए अनमोल हीरा हैं,’ अखिलानंद ने यथार्थ को दीक्षा देने का रहस्य उजागर किया. तपन की आशा की किरण फिर धूमिल होने लगी.
‘‘कुछ क्षण ठहर कर अखिलानंद बोले, ‘हां, यदि आप चाहें तो एक तरीका है अपने बेटे के पास रहने का?’
‘‘‘वह क्या?’ तपन ने कुछ न समझते हुए पूछा.
‘‘‘आप भी हमारे आश्रम में सेवा करें. दीक्षा ले कर अपनी संपत्ति आश्रम को दान कर दें. भगवत भजन करें. आराम से रहें और भक्तों के हृदय पर राज करें,’ अखिलानंद ने तपन के सामने प्रस्ताव रखा.
‘‘इस में दोनों का हित निहित था. सो, दोनों इस संधि प्रस्ताव से सहमत हो गए.
‘‘तपन का छोटा बेटा मलय, जो पायलट का प्रशिक्षण ले रहा था, इस सब से सहमत नहीं था. सो, उस ने अपने चाचा के साथ रहने का निर्णय ले लिया.’’
मलय के मुख से इस संधि प्रस्ताव के बारे में सुन कर अर्पिता हतप्रभ थी.