‘अरे मोनू बेटा, सिर्फ मेहनत से पढ़ाई करना और कंपीटिशन निकाल लेने भर से काम नहीं चलेगा, तुम्हारा सेलैक्शन तो तब होगा जब उस के लिए तुम्हारी पर्सनैलिटी भी होगी’
‘क्या मतलब अंकल ?’
‘बेटा, तुम ने आईएएसपीसीएस अधिकारियों को देखा है, कैसे फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हैं. उन के उठनेबैठने में, पहनावे में कितनी शान होती है. चेहरे पर रोब, आंखों में विजयी चमक और आवाज़ में खनक होती है.ये सब सिर्फ किताबें पढ़ लेने से थोड़ी न आ जाती है. इस के लिए अलग क्लास लेनी होती है. पढ़ाई और पर्सनैलिटी के मेल से ही बनते हैं अधिकारी, समझे?’
‘इस के लिए कौन सी क्लास होती है?’
‘अरे पर्सनैलिटी डैवलपमैंट क्लास. तुम पता करो जहाँ तुम आईएएस की कोचिंग के लिए जाते हो वहां पर्सनैलिटी डेवलपमैंट की क्लास भी ज़रूर होती होगी, तुम आज ही उस की फीस भर कर जौइन कर लो. बिना उस के ये दिनरात की पढ़ाई किसी काम की नहीं है. बस, लिखित परीक्षा निकाल लोगे, मगर इंटरव्यू का क्या? उस के लिए तो पर्सनैलिटी होनी चाहिए.’
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अंकल मोनू को यह महाज्ञान दे कर चले गए और पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाला मोनू यह सोच कर बेहद विचलित हो गया कि उस के रातदिन पढ़ाई करने से उस का सेलैक्शन आईएएस के लिए नहीं होगा.बिना पर्सनैलिटी डैवलप किए, बिना फर्राटेदार अंग्रेज़ी झाड़े उस का सरकारी अधिकारी बनने का सपना पूरा नहीं होगा. उस ने अपनी कोचिंग क्लास के मास्टर से पता किया तो मालूम चला कि बगल की बिल्डिंग में ही पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लासेज होती हैं. फीस है 10 हज़ार रुपए महीना. 3 महीने की क्लास होती है. जिस में आप को उठना, बैठना, चलना, बोलना, अपने को प्रेजेंट करना इत्यादि सिखाया जाता है.
बिहार के सीतामढ़ी से आईएएस बनने का सपना ले कर दिल्ली आया मोनू पिता पर ये 30 हज़ार रुपए का अतिरिक्त बोझ डालने में झिझक महसूस कर रहा था. वे पहले ही आईएएस कोचिंग में उस के ऐडमिशन पर 3 लाख रुपए इन्वैस्ट कर चुके हैं जिस में से आधा उधार का है. इस के अलावा दिल्ली में मोनू के पीजी का रेंट, खाने, किताबें, स्टेशनरी और कन्वेन्स में भी हर महीने हज़ारों रुपए खर्च हो रहे हैं.
मध्यवर्गीय परिवार बेटे को अधिकारी बनाने का सपना पाल कर सिर तक क़र्ज़ में डूब जाए, मोनू ऐसा नहीं चाहता था. उस के बाद घर में उस के 2 और भाई हैं, एक बहन है, उन की पढ़ाई पर भी तो कितना खर्च हो रहा है. पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लास जौइन करने की उधेड़बुन में मोनू की आईएएस की पढ़ाई डिस्टर्ब हो गई.
मोनू जैसे लाखों छात्रछात्राएं हैं जो सरकारी अधिकारी बनने का सपना ले कर महानगरों में आते हैं और लाखों रुपए खर्च कर के यहां आईएएसपीसीएस में सेलैक्ट होने के लिए कोचिंग लेते हैं। यहां उन को पर्सनैलिटी डैवलपमैंट क्लास करने के लिए भी मजबूर किया जाता है। इन में से 99 फीसदी लोग नहीं समझते हैं कि पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के नाम पर उन को सिर्फ पोपट बनाया जा रहा है। सिर्फ आईएएस, आईपीएस बनने के लिए नहीं बल्कि प्राइवेट जौब करने वाले, बैंकिंग क्षेत्र में काम करने का सपना देखने वाले, मीडियाकर्मी बनने के लिए, यहाँ तक कि मामूली टीचर की जौब पाने की लालसा रखने वाले बच्चों को भी पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के तिलिस्म में उलझाया जा रहा है.
कोचिंग क्लासेस में लंबीचौड़ी फीस ले कर जितनी भी चीजें आप को पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के नाम पर जबरदस्ती सिखाई जा रही है या बताई जा रही है उन से केवल आप को औफिस कल्चर, जौब कल्चर के लिए तैयार किया जा रहा है.आप की मूलभूत काबिलीयत को दबा कर आप को टाई पहनने वाला गुलाम बनाया जा रहा है.
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यह कुछ ऐसा ही है जैसे एक शेर को सर्कस में जबरदस्ती आग के रिंग से कूदना सिखाया जाए और वह ऐसा न करे तो उस को डराया जाए, मारा जाए और भूखा रखा जाए. शेर का मूल स्वभाव आग में खेलना नहीं है बल्कि जंगल में मस्त हो कर घूमना है, मगर सर्कस वाले जबरदस्ती उस के मूल स्वभाव को दबा कर उसे नचाना सिखा रहे हैं। ऐसा न करने पर उसे डरायामारा जाता है. यही हालत इस समय भारत में युवा छात्रछात्रों की है, जिन्हें उन के मूल स्वाभाव और प्रतिभा से हट कर टाई पहनने वाला नौकर बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. जिन की काबिलीयत रौकेट बनाने की है, आविष्कार करने की है उन्हें ट्रेंनिग युवा नौकर बनने की दी जा रही है.
सब से मज़ेदार बात यह है कि जो इस ट्रेंनिग में फिट नहीं हो रहा, ठीक वैसे ही जैसे जो शेर आग में नहीं नाच पा रहा है, उसे कोसा जा रहा है, उसे बुरा महसूस करवाया जा रहा है। पर्सनैलिटी डैवलपमैंट, इंग्लिश स्पोकन, कौन्फिडेंस बिल्डिंग के नाम पर सीधेसीधे एक भारतीय युवा को खच्चर बनाया जा रहा है जो अंग्रेज़ी बोलने वाला है.
देशभर में कुकुरमुत्तों की तरह उग आए इन फ़ालतू संस्थानों द्वारा स्टूडेंट्स के दिमाग में बस एक ही बात बिठाने की कोशिश है कि जो प्रभावशाली तरीके से इंग्लिश बोलेगा वही आगे जाएगा. इंग्लिश न बोल पाने वाले छात्रों को कमतरी का एहसास करवाया जाता है. उन्हें इतना बैकवर्ड घोषित कर देते हैं कि उन का अपने ज्ञान और पढ़ाई पर कौन्फिडेंस ख़त्म हो जाता है. जबकि आविष्कार करने के लिए न तो इंग्लिश स्पोकन होना ज़रूरी है और ना वेलड्रेस होना। किसी पुल का नक्शा बनाने के लिए कौनसी इंग्लिश चाहिए, किसी सौफ्टवेयर को डेवलप करने के लिए कौन सी तथाकथित ‘पर्सनैलिटी’ चाहिए?
भारतीय वैज्ञानिकों और विद्वानों ने गणित, खगोल, चिकित्सा, आयुर्वेद, साहित्य, कृषि, निर्माणकार्य में तब उत्कृष्ट काम किया था, जब इन अमेरिकी, चीनी, जापानियों का अतापता भी नहीं था। लेकिन आज हम बहुत पीछे हो गए हैं. 135 करोड़ आबादी वाले देश में पर्सनैलिटी डैवलपमैंट कोचिंग सेंटर्स का मकड़जाल बिछा हुआ है लेकिन आविष्कार नहीं हो रहा है, अनुसंधान नहीं हो रहा है, हम कुछ भी नया नहीं बना रहे हैं, दशकेँ बीत गईं कोई आर्यभट्ट पैदा नहीं हो रहा है. क्योंकि पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के नाम पर हमारी व्यक्तिगत रूचि और प्रतिभा को दबाया जा रहा है.
कोचिंग इंस्टिट्यूट खोल कर ही नहीं बल्कि सोशल नैटवर्क साइट्स, यूट्यूब पर भी कारोबारी पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लास चला रहे हैं और अंधाधुंध कमाई कर रहे हैं. कई मीडिया संस्थान भी इस अंधी कमाई की गंगा में हाथ धो रहे हैं. फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने और व्यक्तित्व विकास के नाम पर छात्रों से लाखों रूपए लूट रहे हैं.
‘व्यक्तित्व विकास के बिना किताबी ज्ञान अधूरा’ का राग अलाप कर सरकारी व गैरसरकारी संस्थान छात्रों और उन के पेरेंट्स से धनउगाही का बड़ा बाजार खोल कर बैठे हैं.
छात्रों की क्षमता और रूचि को पहचान कर उस को निखारने और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने, उसे उस क्षेत्र में रिसर्च करने की सुविधा उपलब्ध कराने या ज्ञान बढ़ाने के ज़रूरी संसाधन देने के बजाय वह कैसे चले, कैसे बैठे, कैसे बोले, कैसे कपडे पहने, कैसे मुँह पर मधुर मुसकान चिपकाए रखे, कैसे दूसरों के सामने अपने को प्रेज़ेंट करे इन तमाम बातों में उस का बहुमूल्य वक़्त और पैसा बरबाद किया जा रहा है.
आखिर अंग्रेज़ी न बोलना मूर्खता की निशानी कैसे हो गया ? हम हर वक़्त होंठों पर मधुर मुसकान क्यों धारण किए रहें? अगर हम पैंटशर्ट में कम्फर्टेबले हैं तो अच्छा नज़र आने के लिए सूटटाई धारण करने का दबाव आखिर क्यों? हम किसी की गलत बात को क्यों बरदाश्त करें, यह पेशेंस क्या बला है? पर्सनैलिटी डैवलपमैंट क्लासेज हमारे युवाओं को दिखावापसंद, डरपोक और भीरु तो नहीं बना रहा है, यह चिंतन का विषय है.
पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के संस्थान हमें सिर्फ नौकरी के लिए तैयार करते हैं, वे बौस की हां में हां मिलाने वाले गुलाम तैयार करते हैं, कोई वैज्ञानिक नहीं बनाते. उस का खमियाज़ा दिखाई दे रहा है. अनेक संस्थानों में पर्सनैलिटी डैवलपमैंट की क्लास लेने वाले स्टूडेंट्स से बात करें तो सुनाई देता है कि अच्छे पैकेज वाली नौकरी पाने के लिए ये क्लास ले रहे हैं. विज्ञान में फिसड्डी, गणित में फिसड्डी, तकनीक में फिसड्डी, विकास में फिसड्डी, अनुसंधान में फिसड्डी, हर चीज में फिसड्डी बस पर्सनैलिटी डैवलपमैंट करने को बेताब हैं. ताकि किसी तरह कंपनी मालिक या एमडी को अपने व्यवहार, वेशभूषा और फर्राटेदार अंग्रेजी से खुश कर के मोटी सैलरी वाली जौब हासिल की जा सके.
भारत में पढ़ाई को नौकरी हासिल करने का जरिया माना जाता है. सच बात तो यह है कि जिस देश में पढ़ाई को नौकरी हासिल करने का जरिया माना जाता है, वह देश चाहे 100 फीसदी पढ़ेलिखों से भरा हो, वह देश बरबाद ही होगा. वह कभी भी विकसित देश की श्रेणी में नहीं खड़ा हो पाएगा. क्योंकि वहां युवा साइंस की पढ़ाई कर के, इंजीनियर की पढ़ाई कर के सिर्फ नौकरियां कर रहे हैं.
दुर्भाग्यपूर्ण है कि फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाले लाखों भारतीय युवा सिर्फ नौकरी कर रहे हैं, कोई आविष्कार नहीं कर रहे, कोई अनुसंधान नहीं कर रहे. वे बस नौ से पांच किसी कुरसी में धंसे नौकरी कर रहे हैं और दूसरों को भी इसी गुलामी के लिए तैयार कर रहे हैं. यह मानसिकता किसी भी देश के विकास में बाधक है. सोचिए अगर सभी भारतीय युवा अपनी पर्सनैलिटी डैवलपमैंट कर के नौकरी करने लगे तो इस देश का होगा? क्या सृजन के सारे द्वार बंद न हो जाएंगे?