पालघर मौब लिंचिंग के सच का सच:

हादसा बीती 16 अप्रेल की देर रात का है . साल 2014 में महाराष्ट्र के नए जिले के रूप में अस्तित्व में आए  पालघर जो मुंबई से महज 87 किलोमीटर की दूरी पर है में गाँव बालों ने 2 साधुओं की बेरहमी से पीट पीट कर हत्या कर दी . एक वायरल हो रहे वीडियो में भीड़ के वहशीपन का नंगा सच साफ साफ दिख रहा है कि बेकाबू और बेलगाम भीड़ ने किस तरह एक और दर्दनाक और निर्मम वारदात को अंजाम दिया . पूरे देश की तरह पालघर में भी लाक डाउन है वहाँ भी कोरोना के मरीज मिले हैं .

यह थी घटना –

18 अप्रेल तक इस घटना के बारे में किसी को कोई खास जानकारी नहीं थी सिवाय पालघर प्रशासन के , लेकिन 19 अप्रेल को जैसे ही उक्त घटना का वीडियो वायरल हुआ तो हल्ला मचना शुरू हो गया .  वीडियो में स्पष्ट दिख रहा है कि पिटने बाले लोग साधु संत हैं जो कि गेरुए कपड़े पहने हुए हैं . हल्ला मचा तो पालघर के जिलाधिकारी कैलाश शिंदे ने विस्तार से घटना की जानकारी दी . उनके मुताबिक मृतक साधु मुंबई के कांदीबाली स्थित एक आश्रम के हैं जिनके नाम 35 वर्षीय सुशील गिरी और 70 वर्षीय चिकने महाराज कल्पवृक्ष गिरी   हैं . ये दोनों ड्राइवर नीलेश के साथ मुंबई से सूरत के लिए किराए की गाड़ी लेकर एक मित्र संत की अंत्येष्टि में भाग लेने जा रहे थे .

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जल्दी पहुँचने की गरज से इन लोगों ने महाराष्ट्र के अंदरूनी हिस्सों से होकर जाना पसंद किया . केंद्र शासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली की सीमा पर बसे गाँव गढ़चिचले के नजदीक वन विभाग के एक संतरी ने इनकी गाड़ी को रोक लिया . इस इलाके में पिछले कुछ दिनों से यह अफवाह फ़ैली हुई थी कि आसपास बच्चा चोरों और चोरी से फसल काटने बालों का गिरोह सक्रिय है .

इस गिरोह से बचने गाँव बालों ने एक निगरानी दल बना लिया था जो खासतौर से रात में निगरानी का काम कर रहा था . वन विभाग का संतरी अभी इन लोगों से पूछताछ कर ही रहा था कि तभी यह निगरानी दल आ गया जिसने कुछ देर बाद साधुओं की धुनाई शुरू कर दी . देखते ही देखते वहाँ कोई 400 लोग इकट्ठा हो गए जिनहोने बगैर सोचे समझे डंडों और लात घूंसों से सुशील गिरी और चिकने महाराज कल्पवृक्ष गिरी  की पिटाई शुरू कर दी . बख्शा नीलेश को भी नहीं गया . मौजूद कुछ लोगों ने मार पिटाई के वीडियो भी बनाए.

संतरी ने अपनी ड्यूटी बजाते हो रहे हादसे की खबर 35 किलोमीटर दूर कासा थाने में दी .  पुलिस आई भी लेकिन कुछ कर नहीं पाई क्योंकि भीड़ अपनी पर उतारू हो चुकी थी और पुलिस बालों की संख्या 3-4 ही थी .  हालांकि वीडियो में एक पुलिस बाला ही साधुओं को भीड़ से बचाने की नाकाम कोशिश करता नजर आ रहा है . भीड़ तब तक गाड़ी भी तोड़ चुकी थी और शायद उसे यह इल्म तक भी नहीं था कि साधु तो कब के मर चुके हैं . जैसे तैसे पुलिस बालों ने घायल ड्राइवर और साधुओ को अपनी गाड़ी में पटका और ले गए .

जब मचा हल्ला –

इस घटना पर संत समाज ने खासा गुस्सा जताया . अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने उद्धव ठाकरे सरकार को चेतावनी दी कि अगर हत्यारों पर काररवाई नहीं हुई तो महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ आंदोलन होगा . भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने आरोपियों पर रासुका यानि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाने की मांग की और ऐसा न होने पर महाराष्ट्र सरकार को साधुओं के कोप का सामना करने की धौंस भी दी . साधु संत ही नहीं बल्कि भाजपाइयों ने भी उद्धव सरकार को निशाने पर लिया . महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ने इस हादसे की उच्च स्तरीय जांच की मांग कर डाली .

जबाब में उद्धव ठाकरे ने ट्वीट के जरिये जानकारी दी कि आरोपी घटना दिनांक को ही गिरफ्तार कर लिए गए और 30 अप्रेल तक पुलिस हिरासत में रहेंगे .

लेकिन इस घटना पर जो ट्वीट हुए वे जरूर घटना से ज्यादा चिंताजनक हैं . किसी ने दलाल मीडिया को कोसा तो किसी ने गोदी मीडिया को किसी ने सनातन धर्म को खतरा इसे बताया तो किसी ने कहा कि यही सब कुछ अगर यूपी के किसी मुल्ले के साथ हुआ होता तो अब तक  प्रियंका गांधी रोने पहुँच गई होतीं .

भाजपा नेता संबित पात्रा ने पालघर का वीडियो शेयर किया और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते हुए ट्वीट किया – हृदयविदारक …. बेबस संत पुलिस के पीछे अपनी जान बचाने भाग रहा है और ऐसा साफ साफ दिख रहा है कि पुलिस न केवल अपनी ज़िम्मेदारी से पीछे हट रही है अपितु ऐसा लगता है कि बेचारे संत को भीड़ में धकेला जा रहा है . ये महाराष्ट्र में क्या हो रहा है .

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वही हुआ जो …….

लाख हल्ले के बाद भी भगवा गेंग अच्छी बात है इस मसले पर हिन्दू मुस्लिम रंग नहीं दे  पाई (क्योंकि ऐसा कुछ करने लायक मसाला वहाँ था भी नहीं ) पर मुकम्मल हल्ला मचाने में जरूर कामयाब रही लेकिन किसी को पहलू खान या अखलाक याद नहीं आए जो कभी इसी तरह की मोब लिंचिंग का शिकार हुए थे . किसी को यह भी याद नहीं आया कि मोब लिंचिंग में अक्सर दलित और मुस्लिम ही क्यों मारे जाते रहे हैं और इनसे भी ज्यादा अहम बात यह कि  मोब लिंचिंग का सिलसिला नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद ही क्यों बढ़ा . किसी को यह भी याद नहीं आया कि गुजरात के उंझा में क्या हुआ था . दो साधु मोब लिंचिंग का शिकार हुए तो ऐसी कई बातों को छोडकर बाकी सब हर किसी को याद आया . यह ट्वीट किसी ने नहीं किया कि किसने मोब लिंचिंग की प्रवृति को शह दी और अधिकतर अहम मामलों में आरोपी साक्ष्य के अभाव में अदालत से बरी हो गए .

कुछ अहम बातें यहाँ सरकारी आंकड़ों के हवाले से साझा की जा रहीं हैं जिससे आपको सहज एहसास हो जाये कि जो कहा जा रहा है वह भी कम कड़वा और सोचने को मजबूर कर देना बाला नहीं . साल 2014 से लेकर 2018 तक देश भर में मोब लिंचिंग की 134 वारदातें हुईं जिनमे 68 लोग मारे गए . इन वारदातों में दलित अत्याचार की वारदातें भी शामिल हैं जिनमें दलितों को भीड़ ने मारा . यह मसला जब संसद में उठा था तब तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने जबाब में जो कहा था पहले वह सुनिए – सबसे बड़ी मोब लिंचिंग की घटना तो देश में 1984 में हुई थी .

क्या यह एक सटीक जबाब , सवाल पर माना जाना चाहिए ?

आइये अब देखते हैं आंकड़े जो कहते हैं कि 2014 से लेकर 2018 तक गौ रक्षा के नाम पर 87 ऐसी वारदातें मोब लिंचिंग की हुईं जिनमें 50 फीसदी शिकार मुस्लिम थे 11 फीसदी दलित समुदाय के लोग शिकार हुए और 9 फीसदी मामलों में दूसरी जाति के हिन्दू शिकार हुए . 20 फीसदी मामलों में पीड़ितों की जाति का पता नहीं चल पाया जबकि 1 फीसदी मामलों में दलित और आदिवासी भी शिकार हुए .

पालघर में नया कुछ नहीं हुआ है बल्कि पुराने हादसों का दोहराब भर हुआ है .  नया इतना भर है कि मृतक साधु थे जिनके गेरुए वस्त्रों का लिहाज भी भीड़ ने नहीं किया तो जरूर कहा जा सकता है कि इन वस्त्रों की छवि क्या रह या हो गई है . 2015 और 2018 के बीच के चर्चित मामलों के जिक्र के पहले जिक्र झारखंड के तबरेज अंसारी का का जो सरायकेला खरसावा के कदमडीह का है . 24 वर्षीय तबरेज पर भीड़ ने बाइक चोरी के शक में 17 जून 2019 को  हमला किया था और उसे जय श्रीराम बोलने मजबूर किया था , 22 जून को अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी . तबरेज की शादी 2 महीने पहले ही हुई थी जिसकी पत्नी शाइस्ता गर्भवती थी सदमे के चलते उसका गर्भपात हो गया था .  पेट में पल रहा बच्चा भी शायद समझ गया था कि बाहर बहुत खतरे हैं .

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  • 20 जुलाई 2018 को गौ तस्करी के शक में राजस्थान के अलवर में भीड़ ने रकबर खान नाम के शख्स को पीट पीट कर मार डाला था
  • इसके पहले अलवर में ही गौ रक्षकों की भीड़ ने उमर खान नाम के नौजबान 10 नवंबर 2017 को गोली मार कर हत्या कर दी थी
  • 29 जून 2017 को झारखंड में गौ मांस ले जाने के शक में भीड़ ने असगर अंसारी को पीट पीट कर मार डाला था
  • हैरतअंगेज तरीके से झारखंड में ही 12 से लेकर 18 मई 2017 के बीच 4 अलग अलग वारदातों में 9 लोगों की हत्या की गई थी
  • 1 मई 2017 को असम में गाय चोरी के शक में गौ रक्षकों ने एक युवक को पीट पीट कर मार डाला था
  • 20 अप्रेल 2017 को असम में गौ रक्षकों ने गाय चोरी के आरोप में दो युवकों की पीट पीट कर हत्या कर दी थी .
  • इसके ठीक 15 दिन पहले यानि 5 अप्रेल 2017 को राजस्थान के अलवर में गौ रक्षकों की सेना ने दूध व्यापारी पहलू खान को मार डाला था जिसका जिक्र शीर्षक में किया गया है
  • 18 मार्च 2016 को झारखंड के लातेहर में भीड़ ने इम्तियाज़ खान और मजलूम अंसारी को पेड़ से लटकाकर मार डाला था . तब ये दोनों अपने मवेशी बाजार में बेचने ले जा रहे थे
  • 14 अक्तूबर 2015 को हिमाचल प्रदेश में गौ रक्षकों ने 22 साल के एक युवक को महज गाय ले जाने के शक में ही पीट पीट कर मार डाला था
  • 28 सितंबर 2015 को उत्तरप्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक को गौ मांस खाने के शक में भीड़ ने पत्थरों और डंडों से पीट पीट कर मार डाला था इसका जिक्र भी शीर्षक में किया गया है
  • 2 अगस्त 2015 को उत्तरप्रदेश में ही भैंसे ले जा रहे लोगों को गौ रक्षकों ने पीट पीट कर मात डाला था
  • 20 मई 2015 को राजस्थान में मांस की दुकान चलाने बाले एक 60 साल के एक शख्स को भीड़ ने लोहे की राडों और डंडों से मार डाला था .

ये तो वे चर्चित मामले थे जो गौ रक्षा से संबन्धित थे और जिनमें मरने बाले अधिकतर मुसलमान ही थे और दिलचस्प बात ये कि अधिकांश राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं .   लेकिन इनसे इतर भी मोब लिंचिंग की घटनाएँ होती रहती हैं जो यह साबित करती हैं कि भीड़ जब कानून अपने हाथ में लेती है तो कुछ नहीं देखती हालांकि यह नया रिवाज 2019 में शुरू हुआ जिसकी धमक पालघर में दिखी तो इसके निर्माता ही तिलमिलाते न्याय की मांग कर रहे हैं इसके पहले जाने क्यों इनके कानों पर जूं तक भी नहीं रेंगती थी .

मिसाल मध्यप्रदेश की लें तो दिसंबर 2018 में वजूद में आई कमलनाथ के नेतृत्व बाली कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी जमकर मोब लिंचिंग की घटनाएँ हुईं .  जुलाई 2019 में ही तीन अलग अलग  वारदातों में 2 लोगों को भीड़ ने पीट पीट कर मार डाला था इनमें से एक शख्स  नीमच में और एक भोपाल के नजदीक मंडीदीप में मारा गया था . तब सनातन धर्म खतरे में नहीं आया था क्योंकि मारने और मरने बाले दोनों हिन्दू थे पर उनमे से कोई साधु संत नहीं था.

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आज जब खुद का तीर खुद पर आकर लगा तो इन्हें दर्द हो रहा है जिसे सहज समझा जा सकता है लेकिन 2014 से लेकर 2018 तक ये मुंह में दही जमाये न बैठे रहते तो शायद सुशील और कल्पवृक्ष गिरी यूं न मारे जाते .

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