देश में परीक्षाएं मखौल बन गई हैं और कहीं भी किसी तरह की परीक्षा ले लें, परीक्षा देने वाले अपना समय व शक्ति नकल करने, पेपर लीक करवाने, परीक्षा हौल में उत्तर पुस्तिका बदलवाने और बाद में अंक बढ़वाने में लग जाते हैं. बिहार में एक लड़की जो लगभग अनपढ़ सी थी, 10वीं कक्षा में परीक्षा धांधली के कारण टौप कर गई. मध्य प्रदेश में मैडिकल कालेजों के प्रवेश पर 2013 में एक परीक्षा में 415 छात्रों का परिणाम निरस्त कर दिया गया जिस से उन का कालेजों में लिया गया दाखिला भी समाप्त हो गया.
नकल करने कराने में तो हजारों गए ही, मैडिकल कालेज में जमने में हुए खर्च और बेकार हुए सालों का हिसाब लगाया जाए तो जो कुछ कमाने की उम्मीद थी, वह नर्मदा में बह गई.
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो पेचीदा हो गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट बच्चों को सजा देने के खिलाफ था, क्योंकि उन की गलती यह थी कि उस दिन मास कौपिंग हुई थी और कहना मुश्किल था कि कौन शरीफ था कौन नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला फिलहाल सुनाया है वह हिंदी फिल्म ‘प्यारा दुश्मन’ की तरह का है जिस में ट्रक ड्राइवर को जिस के ट्रक के नीचे आ कर एक व्यक्ति मारा गया था, उसी मृतक के घर रहने का आदेश दिया गया था.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिफारिश की है कि ये छात्र जिन्हें निलंबित किया गया, पढ़ाई पूरी करें, फिर डाक्टर बन कर 5 साल तक समाज की सेवा के लिए बिना वेतन सरकारी अस्पतालों में काम करें. अगर उन्हें सेना के मैडिकल कोर में भेजा जाए तो और अच्छा रहेगा, क्योंकि वहां अनुशासन रहेगा और खानेरहने की सुविधाएं भी मिलेंगी.
यह उपाय चाहे कितना अच्छा हो पर नकल को बंद करेगा, असंभव है. परीक्षा में बेईमानी करना हमारे बेईमान समाज की रगरग में भरा है. और सिफारिश और रिश्वत के महामंत्र मानने की आदत पहले दिन से आरतियां सुनते हुए पड़ने लगती है. भारतीयों की लगातार हार, गरीबी, भुखमरी, बेचारगी की वजह बेईमानी है जो हमारे समाज का तमगा है.
सुप्रीम कोर्ट को समझ आ रहा था कि इस समस्या का हल आसान नहीं. 400 से ज्यादा बच्चों को पूरे जीवन की सजा देना भी गलत है और नकल का महिमामंडन करना भी ठीक नहीं. मामले का अंत नहीं हुआ है पर जब भी होगा, रोचक होगा. यह पक्का है कि नकल का धंधा रुकेगा नहीं. धर्म के धंधे की तरह यह शरीफों की जान लेता रहेगा, पाखंडियों का पेट भरता रहेगा.