यूपी के चंदौली के रहने वाले रामसेवक किसान हैं। फोन पर बात करते हुए रो पङे,"का बताई हम. एक त ई कोरोना ऊपर से ई बारिश, सब कुछ सत्यानाश हो गईल. अब हम अपने बेटी क बियाह कैसे करब? एकरे पहले नोटबंदी कमर तोङले रहल, अब कोरोना से पूरा बाजार बंद हो गईल बा मोदी सरकार से का भरोसा करीं?"
उधर देश के एक अन्य जगह बिहार के दरभंगा में ललितेश्वर मंडल भी किसान हैं. फोन पर बात करते हुए बताया,"की कही यो बड हालत खराब भो गेल यै टमाटर नीक भेल रहै ई बेर. सोचले रही ई बेर टमाटर बेच कं जे पाय भेटतिहे ओकरा सं मकान बनैतों सच कही, सरकार तै हवाहवाई बात करै छै।.किसानं कं दर्द के सुनता? हम तं बरबाद भ गेल छी.आब लागै यै टमाटर सैङ जाएत क्योंकि ट्रांसपोर्ट भी बंद छै."
इन किसानों से बातचीत के बाद लगा कि वाकई पहले नोटबंदी फिर जीएसटी और अब कोरोना को ले कर सरकारी लापरवाही से देश के किसानों की हालत पतली है और इन का दर्द सुनने वाला कोई नहीं.

किसानों की चिंता

इस साल फरवरीमार्च के अप्रत्याशित मौसम की मार से यों ही किसान परेशान हैं. मौजूदा समय में उन की सरसों, आलू, मटर और चना की फसलें या तो खेत में हैं या खलिहान में. गेहूं की फसल भी तैयार होने को है. ऐसे में किसानों को ये चिंता थी कि लौकडाउन की स्थिति में हम अपनी उपज को कैसे घर सुरक्षित पहुंचाएं.चिंता उन किसानों को भी थी जो इस समय खाली हुए या होने वाले खेत में खरीफ के पूर्व कम समय में होने वाली उड़द, मूंग और पशुओं के लिए हरे चारे की बोआई करते हैं. पर कोरोना और फिर बेमौसम बारिश ने इन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। ट्रांसपोर्ट बंद हैं, सङकों पर गाङियां नहीं चल रहीं.ऐसे में उन की फसल मंडियों तक पहुंचेगी नहीं.

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