कार्यालय में सुबहसुबह बवाल मच गया. सब ने कारण जानना चाहा, तो पता चला कि मैडम सीमाजी ने राकेशजी के खिलाफ उच्च अधिकारियों से शिकायत कर दी है. जब सीमाजी से कर्मचारियों ने पूछा कि उन्होंने राकेशजी की कौन सी शिकायत की है, तो पता चला कि उन्होंने अधिकारियों से शिकायत करते हुए कहा,
‘‘सर, जिस दिन मैं जिस रंग की साड़ी या सलवारसूट पहन कर आती हूं, उस दिन राकेशजी भी उसी रंग के कपड़े पहन कर औफिस आते हैं और मुझ से कहते हैं, ‘देखा, आज हम दोनों ने मैचिंग कपड़े पहने हैं.’’ दरअसल, यह सुन कर सीमाजी को गुस्सा आ जाता. इस बात को ले कर सीमा मैडम ने राकेशजी की शिकायत कर दी.
सीमाजी अपनी सहेलियों से कहती हैं, ‘मुझे समझ में नहीं आता कि राकेशजी को कैसे समझ में आ जाता है कि आज मैं किस कलर की साड़ी या सलवारसूट पहनने वाली हूं.’ जैसाकि कुछ न्यूज चैनल वाले किसी वायरल वीडियो के सच या झूठ होने की पड़ताल करते हैं वैसे ही सीमाजी की शिकायत का सच जानने निकले अधिकारियों ने जब दोनों से अलगअलग बात की तो इस बात का खुलासा हुआ कि दोनों अंधविश्वासी हैं और ज्योतिषियों के चक्कर लगाते रहते हैं.
सीमाजी के और राकेशजी के ज्योतिषियों ने उन दोनों को बताया कि सोमवार को सफेद, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरे, गुरुवार को पीले, शुक्रवार को नीले, शनिवार को काले और रविवार को कत्थे कलर के कपड़े पहनने चाहिए ताकि सभी कार्यों में सफलता मिले. सो, किस दिन किस रंग के कपड़े पहनने चाहिए उस रंग के कपड़े वे दोनों पहनने लगे. यही उस शिकायत की जड़ है.
ज्योतिषियों का चक्कर
इस में दोनों की कोई गलती नहीं, क्योंकि ज्योतिषियों ने उन्हें किस दिन किस रंग के कपड़े पहनने से सफलता मिलेगी का मंत्र जो दे दिया था. ज्योतिषियों ने उन्हें सफलता के माने बताते हुए कहा कि औफिस में भी अधिकारियों से अच्छा सामंजस्य बना रहता है. काम करो या न करो, कोई कुछ नहीं बोलने वाला क्योंकि आप ने दिन के हिसाब से जिस रंग के कपड़े पहनने चाहिए वे पहन रखे हैं.
रेडीमेड कपड़ों के विक्रेताओं की दुकानों में भी दिन के हिसाब से शोरूम में उस रंग के कपड़ों का डिसप्ले किया जाता है. दिन के हिसाब से इन रंगों के कपड़े पहनने का अंधविश्वास यदि शहर के सब नागरिक फौलो कर लेते हैं तो कल्पना कीजिए उस शहर का नजारा कुछ और ही होगा. यह तो रहा साप्ताहिक रंगों का अंधविश्वास.
कुछ रंगों को ले कर यह भी कयास लगाया जाता है कि किसी शुभ काम में काले रंग के कपड़ों को पहनना वर्जित है. किसी को कोई वस्तु, कपड़े भेंट किए जाएं तो उन का रंग काला नहीं होना चाहिए. ऐसे में काले रंग के साथ तो सरासर अन्याय हो रहा है, क्या ऐसा नहीं है. फिल्मी हस्तियां जब आम जनता के बीच जाती हैं, तो वे अकसर काले रंग के कपड़ों में ही नजर आती हैं.
अब आप कहोगे कि ये फिल्मी कलाकार काले कपड़े इसलिए पहनते हैं क्योंकि उन्हें कहीं नजर न लग जाए. बहुत से राजनीतिज्ञ भी किस रंग के कपड़े, कब पहनना चाहिए, इस का पालन करते हैं, जिस से उन्हें बड़ी सफलता मिलती है, ऐसा भ्रम उन्होंने पाल रखा है, जबकि यह सब अंधविश्वास का चक्कर है.
दूसरी तरफ अमेरिका में शिशु के जन्म के बाद उसे जो कपड़े पहनाए जाते हैं उन में यदि बेटी हुई तो पिंक कलर और बेटा हुआ तो आसमानी नीले कलर के कपड़े पहनाए जाते हैं. बिछाने और ओढ़ने में भी इन्हीं रंगों का इस्तेमाल कियाजाता है. यह वहां पर अंधविश्वास के कारण नहीं, बल्कि इसलिए है कि शिशु के कपड़ों के रंगों को देख कर उस के मातापिता से आप को यह नहीं पूछना पड़ता कि बाबा है या बेबी?
तुर्कमेनिस्तान में सफेद रंग का अंधविश्वास
कपड़े ही नहीं, कुछ और बातों को ले कर भी रंगों का वर्चस्व बना हुआ है. एक ऐसा देश भी है जहां कारों का रंग केवल सफेद ही होना चाहिए. तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबत में आने वाली सफेद कारों को छोड़ कर शेष सभी रंगों की कारों पर पाबंदी लगा दी गई है. वहां के राष्ट्रपति गुर्बांगुली बेर्दिमुहम्मेदेव अंधविश्वास पर बहुत विश्वास करते हैं और सफेद कार को लकी मानते हैं. वहां पर काली कार पर पूरी तरह पाबंदी है. वहां के नागरिकों को अपनी रंगीन कारों को तुरंत सफेद रंग चढ़ाना पड़ा. ऐसे समय में कारों को सफेद रंग करने वाली कंपनियों ने कार मालिकों से अनापशनाप दाम वसूल किए.
तुर्क की राजधानी अश्गाबात को सिटी औफ व्हाइट मार्बल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि राष्ट्रपति के आदेशानुसार वहां की सभी सरकारी इमारतों को सफेद रंग से रंगा जा चुका है. देखा, अंधविश्वास का इतना बड़ा प्रमाण आप को कहीं और नहीं मिलेगा.
हमारे देश में दीपावली के समय अकसर घरों में रंगरोगन किया जाता है. इस में भी अंधविश्वास हावी हो रहा है. घर के ड्राइंगरूम में फलां रंग लगाने से शुभ फल मिलेंगे, डाइनिंगरूम में फलां रंग लगाने से ताजगी और ऊर्जा का संचार होगा, किचन में फलां रंग लगाने से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बैडरूम में फलां रंग लगाने से रिश्तों में मधुरता आएगी और लेटबाथ में फलां रंग लगाने से ताजगी व आंतरिक खुशी मिलेगी.
पढ़ेलिखे लोग भी इसका शिकार
इन सब बातों का पालन करने वाले मूर्ख हैं या अंधविश्वासी? आप ही निर्णय कर सकते हैं. आप को लगता होगा अनपढ़, गंवार ही इस अंधविश्वास का शिकार होते होंगे, पर ऐसा नहीं है. पढ़ेलिखे लोग भी इस का शिकार होते हैं. इसलिए बच्चों को अभी से वैज्ञानिक नजरिए से सोचने के लिए प्रेरित करना होगा, ताकि वे भविष्य में अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें.
लेखक- विनोद विट्ठता खंडालकर