आमतौर पर राजनेताओं के सरोकार राजनीति से हट कर नहीं होते लेकिन झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हैं जिस से उन में सभी की जिज्ञासा पैदा हो रही है. खुद को आम आदमी कहने वाले इस युवा मुख्यमंत्री के बारे में जानिए कुछ अहम बातें उन्हीं के शब्दों में.

आदिवासी बाहुल्य और अति पिछड़े राज्य  झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भले ही उम्र में 44 साल के हों लेकिन उन से मिलने पर लगता है कि आप कालेज के ऐसे किसी छात्र से मिल रहे हैं जो इन दिनों भारी-भरकम किताबों से घिरा पीएचडी कर रहा है. प्राकृतिक सहजता के साथसाथ जिज्ञासा भी उन के चेहरे का स्थायी भाव है जो उन्हें और आकर्षक बनाता है.

हाल ही में  झारखंड के दोबारा मुख्यमंत्री बने जेएमएम यानी  झारखंड मुक्ति मोरचा के मुखिया हेमंत सोरेन के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. उन का आत्मविश्वास बताता है कि वे चुनौतियों से लड़ने को पूरी तरह तैयार और सक्षम हैं.

ये भी पढ़ें-अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे की अहम बातें

उन के आत्मविश्वास की कुछ वजहें भी हैं. इस प्रतिनिधि ने राज्य की राजधानी रांची के कांके रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास पर उन से अनौपचारिक व अंतरंग चर्चा की. उस चर्चा के प्रमुख अंश उन्हीं के शब्दों में यहां प्रस्तुत हैं-

पत्नी प्रेरणा और पिता आदर्श हैं

‘‘लंबे चुनावप्रचार से ले कर मुख्यमंत्री बन जाने के बाद तक मैं लगातार व्यस्त रहा और अब चुनौतियों से निबटने में जुट गया हूं. मैं परिवार को कम समय दे पा रहा हूं. अच्छी बात यह है कि परिवारजन इस बात को सम झते हैं कि  झारखंड की जनता ने मु झे जो महती जिम्मेदारी सौंपी है उस पर मु झे खरा उतर कर दिखाना है.

‘‘पत्नी कल्पना खासतौर से इस बात को सम झती हैं जो जिंदगी की हर लड़ाई में हर कदम पर मेरे साथ खड़ी रही हैं. सच कहूं तो वे मेरी प्रेरणा हैं. प्रचार के दिनों में मैं जब दौरों पर होता था तो वे कार्यकर्ताओं का पूरा ध्यान रखती थीं. उस दौरान मैं ने महसूस किया कि एक पत्नी अगर अच्छी मैनेजर हो तो पति की कई मुश्किलें दूर हो जाती हैं. कल्पना अपना खुद का स्कूल संचालित करती हैं. इस के बाद भी लगातार वे मेरा, मेरे खानेपीने का, कपड़ों का और हर बात का ध्यान रखे रहीं. आज भी वे इन सब बातों का पूरा खयाल रखती हैं.

ये भी पढ़ें-जाफराबाद और चांदबाग में भी CAA के खिलाफ प्रदर्शन

‘‘मेरे पिता शिबू सोरेन मेरे रोल मौडल हैं और वे सिर्फ मेरे ही नहीं, बल्कि पूरे  झारखंड के अभिभावक हैं. उन के जीवनभर के संघर्षों और पारिवारिक व राजनीतिक उतारचढ़ावों का मैं साक्षी हूं. मु झे इस बात की खुशी है कि उन के सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी राज्य की जनता ने मु झे सौंपी है. हालांकि राजनीति मेरे लिए नई बात नहीं है लेकिन यह व्यक्तिगत अनुभव जरूर है जिसे मैं आप से सा झा करना चाहूंगा कि उन के रहते मैं कभी विचलित नहीं हुआ. एक बेटे को इस से बड़ी सुरक्षा वाली बात कोई होती भी नहीं कि उस का पिता और परिवार हर वक्त उस के साथ खड़ा है. गुरुजी (शिबू सोेरेन) मेरे आदर्श हैं.

मुख्यमंत्री के रोल में

‘‘मुख्यमंत्री बनने का कोई अहंकार न तो पहले मु झे था और न ही आज है. मैं एक साधारण इंसान हूं, जो जानता है कि राज्य की जनता ने उस से अपार उम्मीदें लगा रखी हैं. हालफिलहाल मैं बड़ीबड़ी बातें या दावे नहीं करना चाहता लेकिन पूरे आत्मविश्वास से यह जरूर कह सकता हूं कि 2 वर्षों में राज्य के लिए मैं वह सब कर लूंगा जो मैं करना चाहता हूं.

‘‘मेरी पहली प्राथमिकता युवाओं को रोजगार मुहैया कराने और दूसरी शिक्षा व स्वास्थ्य की है. आदिवासी होने के नाते मैं  झारखंड की बहुसंख्यक आबादी की तकलीफें और दुश्वारियां जानता व सम झता हूं. मेरी पहली कोशिश रहेगी कि युवाओं को ज्यादा से ज्यादा रोजगार मिलें और हर बच्चा स्कूल जाए. जेएमएम पर सभी वर्गों ने भरोसा जताया है, इसलिए मेरी जिम्मेदारियां और भी बढ़ जाती हैं.

मजबूत है गठबंधन

‘‘जेएमएम और कांग्रेस का गठबंधन बेहद मजबूत है. गठबंधन के बारे में कुछ अफवाहें फैलती रहती हैं, जो निराधार होती हैं. दोनों दल वैचारिक रूप से काफी नजदीक हैं, इसीलिए उम्मीद से ज्यादा सीटें हमें मिलीं. इस गठबंधन में न कोई गांठ है और न ही किसी तरह का कोई मतभेद या मनभेद है.

‘‘ झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे ने विपक्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एक आस बंधाई है कि अगर भाजपा को उखाड़ फेंकना है तो मिल कर चुनाव लड़ना होगा. क्षेत्रीय दलों की अपनी

एक अलग अहमियत व पहुंच होती है. अलगअलग राज्यों में इस की अलगअलग वजहें हो सकती हैं. 2024 आतेआते मु झे लगता है कि परिदृश्य काफीकुछ बदल चुका होगा और भाजपा को देशवासी पूरी तरह खारिज कर देंगे.

आदिवासी हिंदू नहीं

‘‘आप दोटूक पूछ रहे हैं तो मैं भी दोटूक जवाब दे रहा हूं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. हां, यह सच है कि वे किसी धर्म, संप्रदाय या जाति से किसी तरह की नफरत नहीं करते. आदिवासी प्रकृति के उपासक हैं और आमतौर पर शांत रहते हैं. आदिवासियों के धर्म को ले कर मच रही खींचतान और घमासान फुजूल है. आदिवासी केवल आदिवासी हैं. उन का भोलापन और निश्च्छलता कभी किसी सुबूत की मुहताज नहीं रही.

ये भी पढ़ें-स्त्री विरोधी संघ

‘‘सदियों से आदिवासियों का तरहतरह से शोषण होता रहा है. इसे रोकना भी मेरी प्राथमिकता रहेगी. आप आदिवासी इलाके में देखिए कि वे कितने अभावों में गुजरबसर कर भी खुश रहते हैं. मेरे विचार में सभी को आदिवासियों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि बिना कोई शिकवाशिकायत किए भी संतुष्ट रहा जा सकता है. इस समुदाय की बेहतरी के लिए मैं कृतसंकल्प हूं. इन्हें मुख्यधारा से जोड़ा जाना जरूरी है.

एनआरसी और सीएए

‘‘ऐसे वक्त में जब देश पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है तब केंद्र सरकार द्वारा एनआरसी और सीएए के जरिए लोगों को फिर से नोटबंदी की तरह कतार में खड़ा करना ज्यादती है.  झारखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इन को ले कर गुस्सा व्याप्त है. ये गैरजरूरी हैं और इन्हें लागू करना मेरी सम झ से परे है.

‘‘सीएए के विरोध से देश की सरकार अपनी पुलिस के माध्यम से निबट रही है. केंद्र के इस कदम को मैं लोकतांत्रिक नहीं मानता, यह कुछ ‘और’ ही है. नोटबंदी के दौरान मारे गए लोगों की जिम्मेदारी कौन लेगा.  झारखंड में ऐसे कानून लागू नहीं किए जाएंगे.

बांटती है भाजपा

‘‘ झारखंड में लोकतंत्र की जीत हुई है. भाजपा की कलई खुल गई है कि वह लोगों को बांटने का काम करती है. गांधीजी की बात करने वाले हिटलर के नक्शेकदम पर चलते हैं. यह तो शुरुआत है, आगेआगे देखिए होता है क्या…

बुक का आइडिया

‘‘मैं बचपन से ही पढ़ाकू प्रवृत्ति का रहा हूं. स्कूलकालेज के दिनों में खूब पढ़ता और दोस्तों संग मौजमस्ती भी करता था. अब हालात और मेरी भूमिका दोनों बदल गए हैं. वक्त काम करने का और बहुतकुछ कर दिखाने का है.

‘‘मु झे  झारखंड ही नहीं, बल्कि देशभर से शुभकामनाएं मिल रही हैं कि मैं बुके की जगह बुक चाहता हूं. एक अच्छी किताब या पत्रिका मनोरंजन भी करती है और ज्ञान भी बढ़ाती है. हमें अगर वास्तविकता से जोड़े रखते हुए हमारी रोजमर्राई परेशानियां हल कर सकती हैं तो वे किताबें और पत्रिकाएं हैं. मेरा विचार लाइब्रेरियां बनाने का है ताकि राज्य के लोग ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और ज्ञान हासिल करें.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...