इस पूरे मामले में दिखने को तो यही दिलचस्प है कि कट्टरवादी हिन्दू नेता वीर सावरकर समलैंगिक थे और अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी भगवा खेमे द्वारा समलैंगिक करार दिये जा चुके हैं. जिसे सियासी पंडित घटियापन करार दे रहे हैं वह दरअसल में समलैंगिकता को लेकर जिज्ञासा, भड़ास और पूर्वाग्रह ज्यादा है, जो सावरकर और राहुल गांधी के बहाने व्यक्त हो रहे हैं. इसे अगर सार्थक बहस की शक्ल में लिया जाये बजाय दिमागी दिवालियेपन के तो एक बेहतर निष्कर्ष पर पहुंचना आसान हो जाएगा .

संक्षेप में विवाद इतना भर है कि मध्यप्रदेश कांग्रेस सेवादल के भोपाल शिविर में एक बुकलेट शीर्षक, वीर सावरकर कितने वीर बांटी गई जिसमें एक जगह लिखा था कि वीर सावरकर एक समलैंगिक थे और इसमें उनके पार्टनर महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूरम गोडसे थे. इस बुकलेट में सावरकर पर और भी गंभीर आरोप लगाए हैं. मसलन वे अल्पसंख्यक यानि मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार के लिए लोगों को उकसाते थे और अंग्रेजों से माफी मांगते रहते थे वगैरह वगैरह.

भगवा पर बवाल : पीछे छोड़ गये मूल सवाल

बात भगवा खेमे के लिए स्वभाविक तौर पर अपाच्य थी सो उन्होंने इसे कांग्रेसी साजिश करार दिया. लेकिन हिन्दू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि कुछ ज्यादा ही आहत हो गए और उन्होंने कहा, सुना है राहुल गांधी समलैंगिक हैं और उनके पार्टनर ज्यातिरादित्य सिंधिया हैं . बौखलाए स्वामी जी ने राहुल गांधी के वर्जिनिटी टेस्ट की भी सलाह दे डाली.

देहाती लिहाज से तो हिसाब यहीं बराबर हो गया. माना जाना चाहिए कि तुमने हमारे आदर्श को समलैंगिक कहा तो हमने भी तुम्हारे नायक को भी उसी श्रेणी में ला खड़ा कर दिया . सावरकर और गोडसे को लेकर 2 साल से कुछ ज्यादा ही हल्ला ही मचा हुआ है. भगवा खेमे की कोशिश यह है कि गांधी की हत्या की उन वजहों से लोग सहमत हो जाएं जो उन्होंने और उनके भाई गोपाल गोडसे ने गांधी वध क्यों में लिखी हैं. ज्यादा तो नहीं एकाध लोग सहमत हो भी रहे थे कि भोपाल में कांग्रेस ने बहस और मुद्दा समलैंगिकता को बनाने में सफलता हासिल कर ली .

कांग्रेस चालाकी दिखाते यह दलील दे रही है कि ऐसा वह अपनी तरफ से नहीं कह रही कि सावरकर और गोडसे के बीच शारीरिक संबंध थे बल्कि यह बात तो डामिनिक लेपियर और लैरी कालिन की चर्चित किताब फ्रीडम एट मिड नाइट में कुछ इस तरह लिखी है कि ब्रह्मचर्य धारण करने से पहले नाथूरम गोडसे के एक ही शारीरिक संबंध का ब्योरा मिलता है. यह समलैंगिक संबंध थे. उनका पार्टनर था उनका राजनैतिक गुरु वीर सावरकर .

लेकिन चक्रपाणि यह नहीं बता पा रहे कि राहुल गांधी के बारे में ऐसा कहां उन्होंने पढ़ लिया इसलिए कांग्रेस जैसा कोई उद्धरण वे दे भी नहीं पाये. गौरतलब है कि भगवा खेमा आजादी के बाद से यह प्रचार लगातार पूरी निष्ठा से करता रहा है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू हिन्दू नहीं बल्कि मुसलमान थे, इस नाते पूरा नेहरू गांधी खानदान आधा मुस्लिम और आधा ईसाई है. सोनिया गांधी एक बार डांसर थीं जिनसे राजीव गांधी ने शादी कर ली. चूंकि राजीव के पिता फिरोज मुसलमान थे इसलिए यह पूरा परिवार ही गैर हिन्दू और वर्ण संकर है.

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अगर यह प्रचार जायज है तो हक तो कांग्रेस का भी बनता है कि वह हिंदूवादी नेताओं के बारे में कुछ भी कहे अब तो इसमें समलैंगिकता जैसे वर्जित विषय का भी तड़का लग गया है लेकिन पूरा भगवा खेमा एकजुट होकर कांग्रेस को नहीं घेर पा रहा क्योंकि महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुवाई बाली सरकार में कांग्रेसी हिस्सेदारी है. शिवसेना कांग्रेस का विरोध जरूर सावरकर को लेकर कर रही है लेकिन उसके तेवर बेहद औपचारिक हैं.

बहरहाल हो हल्ले के बाद लोगों की दिलचस्पी गोडसे, सावरकर और राहुल गांधी से हटकर समलैंगिक सम्बन्धों में फिर से बढ़ रही है कि ये कैसे और क्यों होते हैं. इसके पहले 6 सितंबर 2018 को जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर रखते समलैंगिकों के सम्मान और स्वाभिमान की बात कही तो थी तो पहली बार लोगों को महसूस हुआ था कि वे अब तक किस आधार पर समलैंगिकों और समलैंगिकता से घृणा करते रहे थे. तब कोई स्पष्ट जवब उन्हें नहीं सूझा था और न ही आज सूझ रहा.

सभी धर्म समलैंगिक संबंधो के विरोधी हैं क्योंकि ये संबंध व्यक्तिगत स्वतन्त्रता वाले होते हैं और धर्म गुरुओं की दुकानदारी खराब करते हैं. एक कड़वा सच यह भी है कि इन्हीं लोगों के बीच इस तरह के संबंध ज्यादा पनपते हैं. इस लंबी चौड़ी बहस में न पड़ा जाये तो भी दो टूक कहा जा सकता है कि अगर सावरकर समलैंगिक थे तो क्या और राहुल गांधी भी हैं तो भी क्या.

जानबूझ कर इस व्यक्तिगत आनंददायक संबंध को शर्मनाक और गंदा बताने का मौका नेताओं को मिल गया है तो वे इसे चूक भी नहीं रहे. उल्टे इन्हें तो अब कहना यह चाहिए कि समलैंगिक संबंध शारीरिक होने के साथ साथ भावनात्मक भी होते हैं और ये शर्म की नहीं बल्कि फख्र की बात है.

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