इसलाम से 3 तलाक और जम्मू कश्मीर से धारा 370 के हटाए जाने से किसी का कोई खास नफानुकसान नहीं है, लेकिन हिंदू इस से खुश हैं तो इस की अपनी वजहें भी हैं कि हिंदू राष्ट्र निर्माण के रास्ते पर मोदी सरकार ने अपना पहला कदम रख दिया है जिस में उन की उम्मीदें और बढ़ गई हैं लेकिन…
एक शूर्पणखा थी. वह वैसी कुरूप और वीभत्स नहीं थी जैसी कि भक्तों के दिलोदिमाग में बैठा दी गई है. बल्कि, वह एक निहायत ही खूबसूरत स्त्री थी. शूर्पणखा की नाक कटने का प्रसंग हर कोई जानता है कि वह लक्ष्मण ने काटी थी.
शूर्पणखा एक स्वतंत्र माहौल में पलीबढ़ी युवती थी. राक्षस कुल में आर्यों जैसी बंदिशें औरतों पर नहीं थीं और न ही वे ब्राह्मणों व ऋषिमुनियों के इशारे पर नाचने वाली समझी जाती थीं. उन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बड़ा महत्त्व था ठीक वैसा ही जैसा आज यूरोप के लोगों में दिखता है.
वनवासी शूर्पणखा भाइयों राम और लक्ष्मण पर रीझ गई और उस ने बेहद विनम्रता से उन से प्रणय निवेदन कर डाला. इन दोनों को पूरा हक था कि वे उस का प्रस्ताव ठुकरा देते. लेकिन इन शूरवीर क्षत्रियों ने उस की नाक ही काट डाली. सुनसान जंगल में एक अबला की नाक काट डालना 2 पुरुषों के लिए कोई बहादुरी वाला या मुश्किल काम नहीं था. इन आर्य पुत्रों ने ऐसा ही किया.
इस के बाद की रामायण भी हर कोई जानता है. राम और लक्ष्मण को जो परपीड़ा सुख मिला था वही आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित ऊंची व निचली जातियों के हिंदुओं को मिल रहा है कि देखो, श्रावण के पिछले सोमवार तीन तलाक कानून बनाया था और इस सोमवार कश्मीर समस्या हमेशा के लिए सुलटा या सुलझा दी.
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भला किस का
इस में देश का और हिंदुओं का कोई भला नहीं है. हां, कश्मीर के मुसलमान जरूर अब तमाम दुश्वारियों से घिरने वाले हैं ठीक वैसे ही जैसे बस्तर के आदिवासी सालों से घिरे हुए हैं. उन के एक तरफ सेना है तो दूसरी तरफ नक्सली हैं, जो उन्हें न तो सुकून से जीने देते हैं और न ही चैन से मरने देते हैं.
जिन 10-12 फीसदी शिक्षित और भरपेट हिंदुओं को शूर्पणखा के प्रसंग का उद्धरण कश्मीर पर देने से हैरत हो रही हो, उन्हें प्रतिक्रिया देने से पहले एक बार किसी इतिहासकार से फोन कर पूछ लेना चाहिए कि क्या वाकई, वे भारत के मूल निवासी हैं. अगर नहीं हैं तो कौन हैं और कैसे यहां के राजा बन बैठे. यह एक लंबी बहस की बात है लेकिन यह स्थापित तथ्य है कि यह देश, जिस में हम रह रहे हैं व जिसे गर्व से हमारा कहते हैं, मूलतया उन आदिवासियों का है जो आज भी जंगलों में जानवरों सी जिंदगी जी रहे हैं.
यकीन मानें और चाहें तो अपने स्रोतों व संपर्कों के जरिए तसल्ली कर लें कि आदिवासी इलाकों में कश्मीर से धारा 370 को हटाए जाने को ले कर कोई जश्न नहीं मन रहा है, न वहां मिठाइयां बंट रही हैं और न ही वे भूखेनंगे व अभावग्रस्त लोग कश्मीर में प्लौट खरीदने की सोच रहे हैं. वे तो अपनी ही जमीनों पर खुद ही मजदूरी कर रहे हैं.
खुद को सांत्वना
370 पर हंसीठिठोली 10-12 करोड़ ऊंची जाति वाले कथित हिंदू कर रहे हैं और वे ठीक ही कह रहे हैं कि भाजपा को 303 सीटें कोई कबड्डी खेलने को नहीं दी थीं. जिस मकसद से दूसरी बार नरेंद्र मोदी और भाजपा को भारी बहुमत से चुन कर भेजा था वह एकचौथाई पूरा हो गया है. बाकी रह गए हैं राममंदिर निर्माण और जातिगत आरक्षण खत्म कर वर्णव्यवस्था बहाल करना, तो वे भी 2024 नहीं तो 2029 तक पूरे हो ही जाएंगे. यानी देश पूरी तरह हिंदू राष्ट्र हो जाएगा जो आरएसएस का सालों पुराना सपना है.
एक उत्तेजना और रोमांच पूरे देश में फैला हुआ है. लोग बहादुर मोदी और शाह को सलाम कर रहे हैं कि जो वे कर सकते हैं वह किसी और के वश की बात है भी नहीं. रावण जैसे ताकतवार शासक की बहन की नाक राम और लक्ष्मण के अलावा कोई और काट भी नहीं सकता था.
370 को ले कर कुछ हिंदू ग्लानि से भी भरे हुए हैं जिसे दूर करने के लिए वे तरहतरह की दलीलें भी दे रहे हैं कि अब कश्मीर में यह हो जाएगा. और वह भी हो जाएगा, मसलन, वहां आतंक राज खत्म हो जाएगा. वहां के लोगों यानी मुसलमानों की गरीबी दूर हो जाएगी. नएनए उद्योगधंधे चालू होंगे और कारखाने बनेंगे. कालेज और विश्वविद्यालय खुल जाएंगे वगैरहवगैरह.
ये मुट्ठीभर हिंदू किस बात की सांत्वना खुद को दे रहे हैं और क्यों दे रहे हैं, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि वे दरअसल इस बात से सहमत नहीं कि शूर्पणखा की नाक काटी जानी जरूरी नहीं थी. उन के मुताबिक, रावण को मारने के लिए वाल्मीकि कोई दूसरा मिथक भी गढ़ सकते थे.
सार यह है कि हिंदू सिर्फ इस बात से खुश हैं कि मोदीशाह की जोड़ी ने मुसलमानों को सबक सिखा दिया. यह अगर खुशी या जश्न मनाने वाली बात है तो पूरे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देने का आइडिया या एजेंडा भी हर्ज की बात नहीं. लेकिन, अहम सवाल है कि इस के बाद क्या ज्योमेट्री की तरह मान लिया जाए कि पूरे देश से मुसलमानों को खदेड़ दिया गया है, तो अब करने को क्या बचा?
आलीशान ड्राइंगरूमों में बैठे हिंदुओं यानी मुख्यधारा के निशाने पर अब क्या है, यह ऊपर बताया जा चुका है. पिछले पखवाड़े देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी कितने पायदान लुढ़की, यह इन की चिंता का विषय नहीं. उत्तर प्रदेश के उन्नाव का विधायक कैसे गुंडाराज चला रहा था, इन के लिए यह सोचने वाली बात भी नहीं.
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जश्न परपीड़ा सुख का
सोचने वाली बात यह है कि कलियुग के महादेव अब कब ऐसी व्यवस्था करते हैं कि हमारे बालबच्चे ऐशोआराम से जिएं. कब दलित दोबारा हमारे घर के सामने से निकलें तो जूते उतार कर अपने सिर पर रखें. उस की यह हीनता ही हमारी श्रेष्ठता है. यह बात संविधान में लिखी हो न लिखी हो, लेकिन मनु महाराज तो अपनी स्मृति में लिख गए हैं. तो, यह जो जश्न मन रहा है वह परपीड़ा सुख का है, बेकुसूर शूर्पणखा की नाक कटने का है.
हिंदू बड़े फख्र से कह रहे हैं कि मोदीजी ने नेहरू का पाप धो दिया या गलती सुधार दी.
लेकिन मनुस्मृति की गलतियां कौन सुधारेगा, इस का जवाब वे बड़ी मासूमियत से यह कह कर देते हैं कि छुआछूत, जातिगत भेदभाव वगैरह अब कहां हैं. अब तो सब बराबर हैं. उलटे, आरक्षण के चलते हमारे बच्चे पिछड़ रहे हैं यानी इसे भी तीन तलाक और 370 की तरह खत्म किया जाए, क्योंकि मुसलमानों की तरह दलितों का भी कोई सियासी रहनुमा नहीं बचा है. कहने को जो मायावती बची थीं, वे भी मनुवादियों के साथ हो ली हैं. जो गलती महबूबा मुफ्ती ने भाजपा से हाथ मिला कर की थी वही मायावती कर रही हैं.
यहां यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि 370 का दलितों और आरक्षण से क्या कनैक्शन? कनैक्शन यह है कि हिंदूवादी भाजपा हिंदुत्व के अपने एजेंडे को अमल में लाने को उतारू हो आई है और उसे रोकने वाला कोई है नहीं. मुख्यधारा वाले हिंदू कहते हैं और बड़े भोलेपन से कहते हैं कि देश अगर हिंदूराष्ट्र हो भी जाए तो क्या हर्ज है. हर्ज तो इस में भी नहीं कि आप मुसलमानों को देश से खदेड़ दें.
हर्ज तो इस बात में भी नहीं कि दलितों से आरक्षण छीन लिया जाए और उन्हें सदियों पहले वाली स्थिति में ढकेल दिया जाए. अभी 2 फीसदी दलित भी सरकारी नौकरियों में नहीं हैं और न ही उन के पास करोड़ोंअरबों का कारोबार है. वे आज भी सड़कों पर झाड़ू लगा रहे हैं, चमड़े के छोटेमोटे कारोबार में लगे हैं और गौ तस्करी के आरोप में पिटतेमरते भी रहते हैं. तेली बदस्तूर तेल निकालने में मशगूल है जबकि काछी सब्जीभाजी उगा रहे हैं. नाई अभी हजामत ही बना रहा है. धोबी, घाट पर कपड़े धो रहा है. बसोड बांस के आइटम बेच कर जैसेतैसे पेट भर रहा है. केवट नाव चलाने और मछलियों के पुश्तैनी कारोबार में लगा है.
अब इन में से भी जो मुट्ठीभर सरकारी नौकरी हासिल कर पैसे वाले बन गए हैं, उन्हें गले लगा लो और उन से दानदक्षिणा भी लो, जिस से ये अगले जन्म में फिर शूद्र योनि में पैदा न हों. यह सब मुख्यधारा वाले हिंदुओं को नहीं दिखता और न ही वे इसे देखना व दिखाना चाहते हैं. वे कहते हैं सब ठीकठाक है, ये पुरानी बातें हैं और थोड़ाबहुत कुछ हो भी रहा है तो उस पर हायहाय बेवजह की और हिंदुत्व विरोधी बात है.
उबरें पुरानी मानसिकता से
हम सभी को इस पुरानी मानसिकता से उबरना चाहिए. ये लोग बेहतर जानते हैं कि शहरों के फुटपाथ और झुग्गियों में जानवरों सी जिंदगी जी रही बड़ी आबादी कोई ब्राह्मण, क्षत्रियों, बनियों या कायस्थ जैसी ऊंची या दूसरी ब्राह्मणपूजक जातियों की नहीं है. इसलिए, पूरे दमखम से कहो कि अब दलित हैं कहां और जो हैं वे तो बाबू और साहब बने हमारी छाती पर मूंग दल रहे हैं. ऐसे झूठों और दोगलों का कोई इलाज नहीं है जो खुद एक सिमटे दायरे में रहते हैं और कोशिश यह करते हैं कि सभी उसी दायरे में आ जाएं. और जो आने से इनकार करें उन्हें तरहतरह से बहिष्कृत करो और जैसे भी हो उन की हिम्मत तोड़ो, ताकि ब्राह्मण राज कायम करने में कोई अड़ंगा न आए.
370 हटाए जाने पर पहली बार आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नरेंद्र मोदी को बधाई दी, तो लगा मानो कोई वरिष्ठ या विश्वामित्र राम को आशीर्वाद दे रहा हो कि पुत्र, लगे रहो. अभी तो ऐसे कई और यज्ञ व अनुष्ठान हमें करने हैं. तुम्हारी भूमिका तो निमित्त है. प्रजा हमारे अनुकूल है, लिहाजा, अगले आदेश की प्रतीक्षा करो. वह शुभदिन निकट है. जब आदिवासियों और वनवासियों का प्राकृतिक संपदाओं से संपन्न यह देश पूरी तरह हम आर्यों का होगा.