टीनएज में करियर की शुरूआत करने वाले अभिनेता मंजोत सिंह को बौलीवुड में बारह साल हो गए हैं. अब तक उन्होंने हर फिल्म में कौमिक किरदार ही निभाए हैं. 13 सितंबर को प्रदर्शित हो रही राज शौंडिल्य की फिल्म ‘‘ड्रीमगर्ल’’में भी वह आयुष्मान खुराना और नुसरत भरूचा के संग हास्य किरदार में ही नजर आएंगे. मंजोत सिंह को इस बात का मलाल है कि उन्हें इतर किरदार निभाने के मौके नहीं मिलते. जबकि वह फिल्मों में रोमांस के साथ एक्शन भी करना चाहते हैं. पर उन्हें मनचाहे  किरदार निभाने के अवसर महज इसलिए नहीं मिल रह हैं, क्योंकि वह सरदार हैं. उनके सिर पर टर्बन रहता है, जिसे वह हटाने के लिए किसी भी सूरत में तैयार नही हैं.

हाल ही में जब मंजोत सिंह से हमारी एक्सक्लूसिव मुलाकात हुई, तो हमने उनसे महज हास्य किरदारों तक सिमटे रहने को लेकर सवाल किया, तो उनके दिल का दर्द उभर कर बाहर आ गया… प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश…

आप एक बार फिर फिल्म ‘‘ड्रीमगर्ल’’ में भी कौमेडी करते हुए ही नजर आने वाले हैं?

(दुःखी मन से मंजोत सिंह ने कहा) – ‘‘मैंने ‘ओए लक्की लक्की ओए’, ‘उड़ान’, ‘फुकरे’,‘फुकरे रिटर्न’, ‘अजहर’,‘जब हैरी मेट सेजल’, ‘सोनचिरैया’और‘ अर्जुन पटियाला’ सहित करीबन दस ग्यारह फिल्में कर ली. हम जो चाहते हैं, वह करने का मौका नहीं मिलता. मेरे पास सिर्फ हास्य किरदारों के ही आते हैं. जबकि मैं दूसरे अन्य कलाकारों की ही तरह परदे पर प्यार करना चाहता हूं. एक्शन करना चाहता हूं. गंभीर किरदार निभाना चाहता हूं.’’

मगर ऐसा क्यों है? हम देख रहे हैं कि पंजाबी फिल्मों में भी ज्यादातर फिल्में कौमेडी फिल्म में ही बनती हैं?

इसकी वजह यह है कि फिल्म निर्माता को लगता है कि एक सरदार सिर्फ कौमेडी कर सकता है और दर्शक उसे उसे सिर्फ कौमेडी करते हुए ही देखना चाहते हैं. जब तक लोगों की इस सोच में बदलाव नहीं आएगा, तब तक कुछ नहीं होगा. यह सोच दर्शकों की नहीं है. जिस दिन निर्माता और निर्देशक एक सरदार को भी गंभीर किरदार में दिखाएंगे, उस दिन से लोग हमें गंभीर किरदार में भी पसंद करेंगे.जिस दिन फिल्म निर्देशक यह दिखाना शुरू करेंगे सरदार भी गंभीर किस्म के किरदार निभा सकता है,उस दिन दर्शक भी इस बात को स्वीकार कर लेगा.

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क्या लोगों को आपके टर्बन से समस्या है?

जी हां! कई लोगों ने मुझसे कहा कि, आप अपने बाल कटवा लो, तो हम आपको कुछ अलग तरह का किरदार देने के बारे में सोच सकते हैं? उनकी बातें सुनकर मुझे बहुत बुरा लगता था. मेरा मानना है कि यह मेरे धर्म से जुड़ा मामला है. यदि मैं अपने धर्म का सम्मान नहीं कर सकती, अपने माता पिता का सम्मान नहीं कर सकती, अपने माता-पिता द्वारा सिखाई गई सीख की इज्जत न रख सकें ,तो फिर काम करने से क्या फायदा? हमारे फैंस समझते हैं कि फिल्म में कुछ सरदार ही नजर आ रहे हैं.फिर भी मैं अपने बाल हटा दूं, सिर्फ पैसा कमाने के लिए. यह तो उसको ठेस पहुंचाने वाली बात हो जाएगी. फिर मुझे जो प्यार मिल रहा है, वह प्यार नहीं मिलेगा. जब दर्शकों का, प्रशंसकों का प्यार नहीं मिलेगा, तो मैं कहां जाऊंगा? मेरी किस्मत है कि मुझे अच्छा काम मिल जाता है.

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अब आपके अलावा दिलजीत दोसांझ सहित कई कलाकार आ गए हैं.तो अब स्थितियां बदलनी चाहिए?

आपने एकदम सही फरमाया. जरूरत है कि हम अपने हक के लिए लड़ाई लड़े. मैंने इसीलिए कई फिल्में ठुकराई हैं. मैं उन फिल्मों या उन किरदारों को करने से साफ मना कर देता हूं, जिसमें किसी सरदार या हमारे धर्म को ठेस पहुंचाने वाली बात हो. मेरे पापा हर बार मुझे याद दिलाते हैं कि मुझे यह याद रखना चाहिए कि मुझे एक सरदार होने की वजह से कोई किरदार निभाने का मौका मिल रहा है,तो उसे आहत न किया जाए.

देखिए, मैंने तो पहली ही फिल्म मेन लीड की थी. भले ही वह अभय देओल के बचपन का किरदार था, पर वह फिल्म का हीरो था. तो अपनी स्थिति को बरकरार रखते हुए चल रहा हूं. मुझे कहीं भी पहुंचने की जल्दी नहीं है लेकिन मैं हर फिल्म में सिर्फ हास्य किरदार नहीं निभा सकता. मैं अपने आप को विभिन्न किरदार निभाने वाला कलाकार साबित करना चाहता हूं. हो सकता है कि आज मेरी जो लड़ाई है,या आज जो मैं मेहनत कर रहा हूं, उसका फायदा मेरी बजाए मेरी आने वाली पीढ़ी को मिले.

जब कई प्रशंसक मुझसे मिलते हैं और वह कहते हैं कि उन्हें भी मेरी तरह काम करना है, तो मेरा अंतर्मन कहता है कि मैं कुछ ऐसा काम करते जाऊं, जिसे जब यह फिल्मों से जुड़े इन्हें उसका फायदा मिले. लोगों को मेरी कला पसंद आती है. इसके अलावा फिल्म निर्देशक को समझना चाहिए कि फिल्मों का माहौल बदला है. दर्शकों की सोच बदली है. अब दर्शक सपनों में नहीं देखना चाहता. अब दर्शक सब कुछ रिजल्ट देखना चाहता है. तो पर्दे पर हमें भी रियालिटी पेश करनी चाहिए. लोग उन दृश्यों या किरदारों के साथ खुद को जुड़ा पाते हैं, जिन्हें उन्होंने अपने आसपास देखा होता है.

जब आप फिल्म निर्देशक से गंभीर किरदार की मांग करते हैं, तो उनका जवाब क्या होता है?

आपने बहुत सही सवाल पूछा है. मैं जब इस तरह की मांग करता हूं, तो कुछ फिल्म निर्देशक यह कहकर बात टाल जाते हैं कि वह इस पर विचार करेंगे.तो वहीं कुछ निर्देशक कह देते हैं कि अरे  आप सरदार हैं. और दर्शक, सरदार को इसी तरह के हास्य किरदारों में देखना पसंद करता है. आप इस गंभीर किरदार में जच नहीं सकते, यह थोड़ा हीरोइक किरदार है. बहुत ही कठिन किरदार है.

ईमानदारी की बात तो यह है कि अभी मैं बौलीवुड में इतना बड़ा कलाकार नहीं बना हूं कि मैं निर्देशकों पर अपनी मांग, अपनी पसंद थोप सकूं. इसलिए कई बार हमारे पास जो औफर आते हैं, उनमें से जो ज्यादा अच्छे होते हैं, उन्हें हम स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन हास्य किरदार में भी भिन्नता लाने की जो मेरी लड़ाई है, वह बंद ना हुई है ना होगी. मेरी पूरी कोशिश होती है कि किसी भी निर्देशक के साथ मेरे रिश्ते खराब ना हो. मुझे ऐसी परवरिश दी गई है कि मैं किसी को भी गलत बात नहीं कह सकता. कई बार हम लोगों की बात सुनकर चुपचाप वापस भी आ जाते हैं. जबकि हम उन्हें जवाब दे सकते थे, लेकिन कई बातें सोचनी पड़ती हैं. वैसे एक कहावत है कि ‘‘डर के आगे जीत है.’’ इसी के चलते में अपनी बात कहता जरूर हूं. मैं धीरे-धीरे कोशिश कर रहा हूं. मुझे अपने अंदर के डर को भगाना है. शायद यही वजह है कि अब कुछ लोग मेरी बातों को सुनने लगे हैं. इसी के चलते मुझे फिल्म ‘‘ड्रीम गर्ल’’ में हास्य किरदार ही मिला है, पर थोड़ा ‘स्ट्रांग’ है. मुझे लगता है कि मेरे काम को देखकर दूसरे निर्देशक का मेरे उपर विश्वास बढ़ेगा. मैं भी लोगों को बताऊंगा कि देखिए, मैंने एक अलग तरह का काम किया है और उसका यह परिणाम है. अब आप भी मुझे कुछ अलग तरह का गंभीर किरदार निभाने का मौका दें, तो मैं उसे करके दिखाऊंगा.उम्मीद है कि मेरे हर काम को दर्शक पसंद करेगा. थोड़ा सा इंतजार कर रहा हूं कि किसी निर्देशक को मेरी प्रतिभा पर भरोसा हो जाए.

आपको नहीं लगता कि आप स्वयं अपनी अभिनय प्रतिभा को दिखाने वाला एक वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करें, जिस पर फिल्म निर्देशकों की नजर पड़ेगी और उन्हें एहसास होगा कि आप कौमेडी के अलावा भी कुछ कर सकते हैं?

आपने एकदम सही फरमाया. कई लोग खुलकर इसी तरह अपने मन की बात को सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को तक पहुंचा रहे हैं. पर मैंने अब तक ऐसा कुछ नहीं किया है. पर आपकी बात ने मेरा हौसला बढ़ा दिया. अब मैं भी ऐसा ही प्रयास करूंगा.

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आपने पंजाबी फिल्म करने के बारे में नहीं सोचा?

पंजाबी फिल्मों में भी हमें कौमेडी करने के लिए ही कहा जाता है. मुझे पंजाबी फिल्मों के औफर आते हैं, पर मैं बहुत चूजी हूं. मैंने 11 साल के करियर में सिर्फ 10 हिंदी फिल्में की हैं. इसी तरह पंजाबी फिल्में मिली पर मुझे पसंद नहीं आई. मैने सिर्फ एक पंजाबी फिल्म ‘पुरे पंजाबी’ 2012 में की थी. मैं सिर्फ फिल्मों की संख्या नहीं बढ़ाना चाहता. मैं अच्छा काम करना चाहता हूं. अधिक से अधिक फिल्में करके हम कितना पैसा कमा लेंगे? जब फिल्में असफल होंगी, तो काम मिलना बंद हो जाएगा. फिर उन पैसों का क्या? हम पूरी जिंदगी चला लेंगे, मेरा मानना है कि काम करना है, तो सिर्फ अच्छा करना है.

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