इतिहास हमें सिखाता है और इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए. इस बात पर यकीन रखने वाले फिल्मकार अभिनय देव परिचय के मुहताज नहीं हैं. वे टीवी सीरियल ‘24’ के 2 सीजन निर्देशित करने के साथ ही ‘देल्ही बेली,’ ‘गेम,’ ‘फोर्स 2,’ ‘ब्लैकमेल’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. इस बार अभिनव देव इतिहास के पन्ने यानी कि 2002 में सौरव गांगुली ने जो कृत्य किया था, उस पर डौक्यू फिक्शन फिल्म ‘दूसरा’ ले कर आ रहे हैं.

फिल्म ‘दूसरा’ को आप डौक्यू फिक्शन क्यों कह रहे हैं? इस सवाल पर अभिनव देव कहते हैं, ‘‘हम ने अपनी फिल्म को डौक्यू फिक्शन का रूप दिया है, जिस से 2002 में सौरव गांगुली ने जो इतिहास रचा था, उसे समाहित कर सकें. जो इतिहास घटा था, उस का डौक्यूमैंटेशन जरूरी है. 13 जुलाई, 2002 को इंग्लैंड में क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लार्ड्स स्टेडियम पर नैटवैस्ट क्रिकेट सीरीज को जीतने पर भारतीय क्रिकेट टीम के तत्कालीन कैप्टन सौरव गांगुली ने अपनी टीशर्ट उतार कर उसे लहराते हुए खुशी का इजहार किया था, जिस का उस वक्त की युवा पीढ़ी पर काफी प्रभाव पड़ा और उस के बाद देश में कई सामाजिक व राजनीतिक बदलाव हुए.

जब वह इतिहास घट रहा था, उस वक्त एक युवा लड़की तारा अपनी जिंदगी में आगे बढ़ रही थी. 2002 में भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन की हैसियत से मैच जीतने के बाद सौरव गांगुली ने जो कुछ किया था, उस का उस 10 साल की लड़की तारा (प्लाविता बोर ठाकुर) पर क्या प्रभाव पड़ा, यह फिक्शन है. इस घटना के चलते किस तरह उस लड़की का एटिट्यूड बदलने लगा, यह फिल्म में दिखाया गया है. तारा एक सामान्य लड़की है जो कि भारत के छोटे शहर जोधपुर, राजस्थान में रहती है. फिल्म में 10 साल की उम्र से ले कर 27 साल की उम्र तक की उस की यात्रा है.’’

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इस पर फिल्म बनाने का खयाल आप को कैसे आया? इस पर वे बताते हैं, ‘‘शिकागो में रोहन सजदेह और माशा नामक एक दंपती रहते हैं. उन्होंने ही मुझे इस फिल्म के लिए आइडिया दिया. उन्होंने कहा कि 2002 में इंग्लैंड में क्रिकेट के मैदान लार्ड्स स्टेडियम पर सौरव गांगुली ने मैच जीतने के बाद जिस तरह से अपनी शर्ट उतार कर स्टेडियम में लहराई थी, उस पर फिल्म बननी चाहिए. इन दोनों का मानना है कि 2002 का यह पल सिर्फ भारतीय क्रिकेट ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी बहुत महत्त्वपूर्ण था, क्योंकि सौरव गांगुली ने स्टेडियम में जो कुछ किया था, उस के कई माने थे. उस से 9 माह पहले इंग्लैंड के क्रिकेटर एंडो क्ंिलटौप ने वानखेड़े स्टेडियम में टीशर्ट उतारी थी.

‘‘सौरव गांगुली ने सिर्फ उस का जवाब नहीं दिया था, बल्कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब दिया था. सौरव गांगुली का यह कदम भारतीय जनता की तरफ से ब्रिटिश साम्राज्य को जवाब था. सौरव गांगुली अपनी इस हरकत से पूरे ब्रिटिश साम्राज्य को जताना चाहते थे कि आप ने हिंदुस्तान पर ढाई सौ साल राज किया और हमें क्रिकेट जैसा खेल अपने फायदे के लिए सिखाया था, अब हम ने आप के ही खेल में आप के ही घर यानी कि आप के देश की धरती पर जवाब दिया है.

‘‘मेरे हिसाब से सौरव गांगुली का यह बहुत बड़ा कदम था. यह अलग बात है कि उस वक्त तमाम लोगों ने कहा था- ‘सौरव गांगुली ने यह क्या किया?’ ‘एक क्रिकेटर को इस तरह की हरकत नहीं करनी चाहिए,’ ‘क्या क्रिकेट के मैदान पर टी शर्ट उतारनी चाहिए?’ यानी कि कुछ लोगों ने सौरव गांगुली के इस कदम की निंदा की थी.’’

2002 की इस घटना का आप जो सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव फिल्म में दिखा रहे हैं, वह क्या है? इस पर उन का कहना है, ‘‘मेरे खयाल से इस घटना से उस वक्त की जो युवा पीढ़ी थी, उसे एहसास हुआ कि हम जो हैं, सही हैं. हमें दूसरे देश की तरफ देखने की जरूरत नहीं है. उस जीत और उस घटना का सब से बड़ा सामाजिक व राजनीतिक प्रभाव यह था कि हम कंधे से कंधा मिला कर दुनिया के साथ खड़े हो गए.

‘‘हम ने कहना शुरू किया कि हम भी उतने ही अच्छे हैं, जितना कि सामने वाला. शायद कुछ जगह हम बेहतर थे. कम से कम 2002 की क्रिकेट की घटना और सौरव गांगुली ने जो कुछ किया, उस से हमारे देश की उस वक्त की युवा पीढ़ी हीनग्रंथि से मुक्त हो गई थी. उस वक्त के 15 से 18 साल के भारतीय युवा आज पूरे विश्व को चला रहे हैं. यह फिल्म साहस, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अन्य चीजों के बीच सामाजिक पूर्वाग्रहों से लड़ने की बात करती है.

‘‘मेरी राय में समाज, राजनीति, खेल और फिल्म को अलग नहीं किया जा सकता. इन चारों को अलगअलग कर के बात करना मुश्किल है. क्रिकेट के माध्यम से हमें जीत का एहसास होता है, एनर्जी मिलती है, जो इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी, राजनीति व सामाजिक हालातों पर असर डालती है. हम पोलिटिकली जो कुछ करते हैं, हम जिस तरह से देश को दर्शाते हैं, उस का इंसान की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर होता है.

आज की राजनीति जिस तरह से देश चला रही है, उस के प्रभाव से कोई भी इंसान अछूता नहीं है. पर मेरी निजी राय है कि खेल और राजनीति को जितना दूर रखें, उतना अच्छा है. पर अफसोस खेल में बहुत ज्यादा राजनीति घुसी हुई है. इसी तरह से शिक्षा और राजनीति को भी अलग रखना चाहिए. पर यह भी नहीं हो पा रहा है. राजनीति हर जगह है, चाहे वह देश की राजनीति हो या घर के अंदर सासबहू के बीच आपसी राजनीति हो.’’

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2002 के बाद ग्लोबलाइजेशन ने भी बहुतकुछ देश को बदला है. क्या यह मुद्दा भी आप की फिल्म का हिस्सा है? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘जी हां, देखिए, ग्लोबलाइजेशन तो होना ही था. देश की तरक्की के लिए ग्लोबलाइजेशन जरूरी है. लेकिन मेरी फिल्म का मूल हिस्सा यह है कि जब ग्लोबलाइजेशन हो रहा था, तब हमारी सरकार ने पूरी दुनिया को हमारे देश में आने के लिए दरवाजे खोल दिए थे. पर उस में जरूरी यह था कि आप उन्हें किस तरह से अंदर आने दे रहे हैं.

‘‘क्या आप उन के घुटने पकड़ कर उन्हें ला रहे हो या उन के कंधे पर हाथ रख कर ला रहे हो? हमारी कहानी का यही मूल है कि क्रिकेट की जीत ने हम भारतीयों को मानसिक रूप से स्ट्रौंग बनाया. हमें ऐसा एटिट्यूड दिया कि हम झुक कर किसी देश को निमंत्रण देने के बजाय उस के कंधे पर हाथ रख कर बुलाने लगे.’’

आप के सीरियल ‘24’ के फर्स्ट सीजन को थोड़ीबहुत सफलता मिली थी, लेकिन दूसरे सीजन को सफलता नहीं मिली? इस सवाल पर चिंतित होते हुए वे बोले, ‘‘हकीकत यही है कि टीवी सीरियल  ‘24’ टीवी के लिए गलत था. पर अब जो इस का अगला सीजन आ रहा है, वह टीवी में जरूर काम करेगा. क्यों अब जो सीजन हम ले कर आ रहे हैं उस का दर्शक वर्ग अलग है. जब ‘24’ का पहला सीजन आया, तो दर्शकों को कुछ नईर् बात नजर आई, इसलिए थोड़े दर्शक मिल गए. लेकिन सैकंड सीजन के साथ दर्शक रिलेट नहीं कर पाए.

‘‘सैकंड सीजन बहुत ही बुद्धिमत्ता वाला था, जहां आप को टकटकी लगा कर देख कर चीजों को समझना था. एक मिनट के लिए भी आप ने अपनी निगाहें इधरउधर कीं तो आप सीरियल नहीं समझ पाएंगे. जबकि टीवी में ऐसा संभव नहीं है. दर्शक खाना भी खाएगा, चाय भी पिएगा, हाथ धोने भी जाएगा. इसीलिए ‘24’ के सैकंड सीजन को सफलता नहीं मिली थी.’’

आप ने एक फिल्म ‘देल्ही बेली’ निर्देशित की थी. आप को लगता है कि वर्तमान में यदि यह फिल्म आती, तो ज्यादा सफल होती? इस बात पर वे मुसकराते हुए कहते हैं, ‘‘जरूर, मेरी राय में यह एक ऐसी फिल्म है जो चाहे जब आती, बौक्सऔफिस पर अपना असर डालती. यह यंगस्टर्स की कहानी है जिस के साथ हर समय का यंगस्टर रिलेट करेगा. पर आज यदि यह फिल्म आती तो ज्यादा लोग रिलेट करते. हां, जब रिलीज हुई थी तब कम पौपुलर हुई थी क्योंकि फिल्म में जिस तरह की भाषा रखी गई थी, उस तरह की भाषा उस वक्त कम लोग बोलते थे.’’

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