आज के दौर में स्मार्टफोन स्टेटस सिंबल बन चुका है. स्कूल गोइंग स्टूडेंट से लेकर 70 वर्ष के व्यक्ति तक के पास इसे देख जा सकता है. लेकिन बिना इंटरनैट के स्मार्टफोन बिलकुल उस बेस्वाद भोजन की तरह है जिस में नमक नहीं होता. इसलिए स्मार्टफोन यूजर्स के फोन में हमेशा इंटरनैट पैक ऐक्टिव मिलता है. इंटरनैट होने से स्मार्ट फोन सिर्फ स्मार्ट फोन नहीं रह जाता बल्कि अलादीन का चिराग बन जाता है. इंटरनैट की मौजूदगी के चलते स्मार्ट फोन की 5 इंच की स्क्रीन पर दुनिया भर के काम किए जा सकते हैं. काम के अलावा स्मार्टफोन पर मौजूद कुछ ऐप्स यूजर्स  के अकेलेपन को दूर करने का काम करती हैं. ये ऐप्स उन्हें उन के उन चहेतों से जोड़ती हैं, जिन को न तो हर वक्त देखा जा सकता है और न ही सुना जा सकता है. इन में सब से अधिक प्रचलित हैं फेसबुक और व्हाट्सऐप.

अति है बुरी

ये ऐसी ऐप्स हैं, जो यूजर को पूरे दिन अपने में उलझाए रख सकती हैं. फोन में इन की मौजूदगी हर 10 मिनट में यूजर्स को अपने फोन पर उंगलियां फिराने पर मजबूर कर देती हैं. देखा जाए तो इस में कुछ भी बुरा नहीं. लोगों से जुड़ना, उन से बात करना बिलकुल बुरा काम नहीं है. लेकिन कहते हैं न, किसी भी चीज की अधिकता नुकसानदायक होती हैं. इसी तरह फेसबुक और व्हाट्सऐप का अधिक इस्तेमाल आप के जीवन से सुखशांती छीन सकता है. इतना ही नहीं आप को आपनों से दूर भी कर सकता है. ऐसे में भले ही आप इंटरनैट की दुनिया में लोगों से घिरे हुए हों लेकिन वास्तविक जीवन में आप तनहा रह जाएंगे. इन दोनों ही सोशल नेटवर्किंग साइट्स की लत का सब से अधिक बुरा प्रभाव मियांबीवी के रिश्ते पर भी पड़ता है. “ परिवार परामर्श केंद्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1 अगस्त, 2014 से 1 सितंबर, 2015 तक के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सब से अधिक रिश्ते फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी साट्स को ले कर टूटे हैं.”

वक्त होते हुए भी वक्त नहीं

वर्तमान समय में पतिपत्नी दोनों ही कामकाजी होते हैं. दिनभर तो साथ में वक्त गुजारने का मौका उन्हें मिलता नहीं है और जब शाम को घर पर वे साथ होते हैं, तो आपस में बातचीत करने से अधिक वक्त उन का फेसबुक पर दूसरों की तसवीरें लाइक करने और व्हाट्सऐप पर चैट करने में ही निकल जाता है. जब मोबाइल पर उंगलियां फिरातेफिराते थक जाती हैं, तो टीवी के रिमोट पर अटक जाती हैं. कुछ वक्त टीवी स्क्रीन पर आंखें जमाए रहने के बाद आंखें भी राहत की मांग करने लगती हैं. फिर क्या दोनों मियां बीवी एकदूसरे की तरफ पीठ घुमा कर सो जाते हैं. दूसरे दिन की शुरुआत भी रात में व्हाट्सऐप पर आई लोगों की चैट चैक करते हुए और फेसबुक पर लोगों के नए अपडेट्स देखते हुए शुरु होती है.

इस बाबत मनोचिकित्सक मिनाक्षी मनचंदा कहती हैं, "बड़ी हैरत की बात है, जहां वैज्ञानिक नई तकनीकों के आने से लोगों के वक्त को बचाने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तरफ पतिपत्नी द्वारा रिश्ते में एकदूसरे को वक्त न देने की शिकायतों ने इन दावों को झूठा साबित कर दिया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि लोग स्मार्टफोन, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनैट को उतनी परिपक्वता से इस्तेमाल नहीं करते  जितना की उन से उम्मीद की जाती है. "

एक समय था जब पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर भोजन करता था. तब टीवी होते हुए भी भोजन के दौरान घर के बड़े उसे चलाने की अनुमति नहीं देते थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि भोजन के दौरान परिवार के लोग अपनीअपनी बातों को घर के दूसरे सदस्यों के साथ शेयर करते थे. लेकिन अब वक्त बदल चुका है. भोजन करते वक्त यदि टीवी न चल रहा हो, तो खाना हलक के नीचे नहीं उतरता और यदि एक हाथ में मोबाइल पर फेसबुक न खुला हुआ हो तो खाने में स्वाद नहीं आता. जर्नल फिजीशियन, डाक्टर नरेश गुप्ता के अनुसार, "खाना खाते वक्त लोग अकसर लापरवाही करते हैं. खासतौर पर लोग खाने पर ध्यान देने के अतिरिक्त बाकी दूसरी सभी चीजों पर नजर रखते हैं. मगर भोजन करने के कुछ नियम हैं. सब से पहला और महत्वपूर्ण नियम तो यही है कि हर गस्से को अच्छी तरह चबा कर खाना चाहिए लेकिन लोग जल्दबाजी में गस्सा निगल लेते हैं. इससे उन्हें पेट संबंधी पेरशानियों का सामना करना पड़ता है. दूसरा नियम है कि खाना हमेशा ताजा और गरम खाना चाहिए. बाहरी हवा के संपर्क में अधिक समय तक रखा खाना ठंडा और दूषित हो जाता है. यह भी स्वास्थ के लिए अच्छा नहीं है." लेकिन शायद आज की पीढ़ी के लिए यह बात समझ पाना बेहद मुश्किल हो चुका है.

रिश्ते में संवाद की कमी तलाक की जड़

विचार करने वाली बात है कि जो पीढ़ी अपने स्वास्थ्य को सही रखने के लिए भोजन सही प्रकार से करने में लापरवाही कर सकती है,वे अपने रिश्ते की डोर को मजबूत बनाए रखने के प्रयासों में कितनी ढील बरतती होगी?

वैसे रिश्ते कमजोर तब ही पड़ते हैं जब उन में तालमेल की कमी होती है. यह तालमेल संवाद के जरीए सही बैठाया जा सकता है. मगर आज के नौजवानों में ईगो थोक के भाव भरा हुआ है. अपने साथी से किसी उलझी हुई बात को सुलझाने की जगह फेसबुक पर दिमाग खपाना उन्हें अधिक बेहतर लगता है. जबकि एक “कानूनी फर्म स्लाटर एंड गोरडोन के वकीलों के मुताबिक पतिपत्नी के रिश्ते को बिगाड़ने में फेसबुक का सब से बड़ा हाथ है.

अध्ययन के मुताबिक

1. 50% लोग शक के चलते अपने पार्टनर का फेसबुक अकाउंट चोरी से देखते हैं.

2. 25% पतिपत्नी यह मानते हैं कि फेसबुक ने उन की जिंदगी खराब कर दी है. इस के चलते हर हफ्ते उन में झगड़ा होता है.

3. 17% पतिपत्नी में इस लिए झगड़ा होता है क्योंकि उन्होंने अपने पार्टन को फेसबुक पर किसी व्यक्ति से गलत तरह के रिश्ते बनाए देख लिया होता है.

4. 58% लोगों शक के चलते अपने साथी से उन की लागइन डिटेल जान लेते हैं.

वैसे केवल भारत ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी सोशल मिडिया पर जरूरत से ज्यादा ऐक्टिव दंपति के रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच रहे हैं.  च्अमैरिकन एकैडमी औफ मैट्रीमोनियल लायर्स के एक सर्वे से पता चलता है कि यूएसए में 66% दंपति केवल फेसबुक से पार्टनर के अधिक जुड़ाव के चलते टूट रही हैं. आंकड़ों के हिसाब से पिछले कुछ वर्ष में ऐसे मामलों में 80% बढ़त भी हुई है.” दरअसल, इस के पीछे बड़ा कारण शक है और शक के बीज उसी रिश्ते में पड़ते हैं जहां आपसी संवाद कम होता है . अब यदि पति अपनी पत्नी से बात करने से ज्यादा रुचि व्हाट्सऐप पर मौजूद अपनी किसी महिला मित्र से बात करने में लेगा तो पत्नी का शक करना स्वाभाविक है. पतियों के मामले में भी यह बात उसी तरह लागू होती है. पत्नी का सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताना और गैरपुरुषों से ज्यादा चैट करना पति को कतई पसंद नहीं आता और यह स्वाभाविक बात है.

आजादी का गलत फायदा उठाते हैं यूजर्स

दिल्ली हाई कोर्ट में ऐडवोकेट अवधेश कुमार दूबे कहते हैं, "पति दफ्तर के काम में तो पत्नी घर गृहस्थी के काम में व्यस्त रहती है. आजकल तो महिलाएं भी कामकाजी होती हैं. यानी उन पर डबल जिम्मेदारी होती है. वैसे तकनीक ने सब कुछ आसान बना दिया है लेकिन समय की कमी अभी भी बरकरार है. उस पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स मियाबीवी में और भी अधिक कम्यूनिकेशन गैप को बढ़ा रही हैं. ऐसे में संबंधों की डोर का कमजोर पड़ना अचंभे की बात नहीं है. "

अवधेश एक केस के बारे में बताते हैं, "एक बार पति केवल इस लिए अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता था क्योंकि महिला ने अपनी कुछ ऐसी तसवीरों को फेसबुक पर अपलोड कर दिया था जो उस के पति को पसंद नहीं थीं. वहीं महिला पति पर आरोप लगा रही थी कि पति पूरे दिन फेसबुक और व्हाट्सऐप पर लगा रहता है. कुछ पूछो तो बस हां या न में जवाब देता है. अकेलेपन के कारण यह लत अब महिला को भी लग चुकी है. अपनी तसवीर फेसबुक पर अपलोड करने के पीछे महिला का इरादा बस इतना था कि लोग उस की तसवीर पर कमैंट्स करें और उसे दूसरे लोगों से अपनी बातों को शेयर करने का मौका मिले, जो मौका उस का उसे नहीं देता है. "

देखा जाए तो, यह व्यक्तिगत आजादी का युग है. महिला हो या पुरुष अपने लिए अलगअलग फैसले ले सकता है. लेकिन पतिपत्नी को एक दूसरे की गरिमा और जरूरतों को ध्यान में रखना होता है. इस बात को आज की जैनरेशन ज्यादा तवज्जो नहीं देती. आज की पीढ़ी के लोग अपने मनोरंजन और अकेलेपन को दूर करने का रास्ता तो खोज लेते हैं लेकिन रिश्ते को बेहतर बनाने के उपाय खोेज पाना उन के लिए बेहद मुश्किल होता है.

मनोचिकित्सक मिनाक्षी कहती हैं, "फेसबुक एक फेकवर्ल्ड है. यहां लोग दूसरों की जिंदगी में झांकने के लिए बैठे रहते हैं. ऐसे लोगों से अपनी निजि जिंदगी की बातों को शेयर करना मुसीबत मोल लेने जैसा है. खासतौर पर अपनी तसवीर सोच समझ कर शेयर करें."

वैसे आजकल सैल्फी का ट्रैंड है. इस ट्रैंड की आंधी में अंधे लोग अपनी तसवीर विचित्र चेहरे बना कर अपलोड तो कर देते हैं लेकिन फिर इन की खिल्ली भी उड़ती है. हो सकता है, आप के पार्टनर को यह पसंद न आए और वो आप को ऐसा करने से रोके. इस बात पर लड़ने की जगह एक बार उस की भावनाओं को समझे. आप का पार्टनर आप की आजादी नहीं छीन रहा बल्कि आप को एक ऐसा काम करने के लिए मना कर रहा है जो निरार्थक है और आप को हंसी का पात्र बना रहा है. डाक्टर मिनाक्षी इस बाबत कहती हैं, "मनोचिकित्सकों का मानना है कि 1 दिन में 8 से अधिक बार कोई व्यक्ति सैल्फी लेता है, तो वह सैल्फाइटिस डिसऔर्डर का शिकार होता है. इस के अतिरिक्त फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी सोशल नेटवर्किंस साइट्स पतिपत्नी में ससपीशियसनैस को बढ़ा रही है जिस के चलते लोग डिजयूजनल डिसऔर्डर के शिकार हो रहे हैं. पतिपत्नी के रिश्ते के लिए दोनों ही बीमारियां खतरनाक साबित हो सकती हैं. इन दोनों के चलते पतिपत्नी का रिश्ता टूट भी सकता है."

फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोगों को आपस में जोड़ने और खाली वक्त में एक दूसरे का टाइम पास करने के लिए बनी हैं. इसे नए लोगों के बारे में जानकारी एकत्र की जा सकती है और इस में कुछ भी गलत नहीं है. मगर निजि जीवन में इन सोशलनेटवर्किंग साइट्स का दखल और संबंधों पर इस का हावी होना रिश्ते को बिखेर सकता है.

कुछ घटनायें:

जुलाई 2016- गाजियाबाद निवासी एक दंपति में फेसबुक के जरीए प्रेम विवाह हुआ. इंजीनियर पति और बैंक मैनेजर पत्नी अपनेअपने काम में व्यस्त रहते हैं. घर में कदम रखने के बाद भी दोनों के पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. मगर अपने मोबाइल पर फेसबुक वाल औैर व्हाट्सऐप चैक करने का समय उन के पास भरपूर होता है. ऐसे में प्रेम विवाह में प्रेम खत्म हो जाता है और कुछ ही महीनों में विवाह भी नहीं बचता. दोनों ही अब तालाक लेना चहते हैं.

29 फरवरी 2016- लुधियाना निवासी एक व्यापारी ने इस बात को साबित करने के लिए कि उस की पत्नी उसे धोखा दे रही है, पत्नी के व्हाट्सऐप और फेसबुक की चैट डिटेल्स महिला पुलिस थाने को सौंप दी. इस के जवाब में महिला ने भी अपने पति की दूसरी महिलाओं से हुई चैट डिटेल्स की जानकारी पुलिस को दे दी.

30 अप्रैल 2013- बीकानेर की एक दंपति का प्रेम फेसबुक पर शुरु हुआ और फिर बात शादी तक पहुंच गई. शादी के 48 घंटे बाद ही दोनों को लगा कि उन के पास फेसबुक और व्हाट्सऐप पर बात करने का तो समय है मगर जब वे आमने सामने होते हैं तो एक दूसरे को बोर करते हैं. बस फिर क्या था 2 दिन में ही बात तलाक तक पहुंच गई.

18 मई 2012- एक महिला ने केवल इसलिए तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी क्योंकि उस के पति ने फेसबुक पर अपना स्टेटस शादी के बाद भी सिंगल ही रखा था. वहीं पति ने कहा कि वो अपना स्टेटस बदलना भूल गया था. कोर्ट ने दंपति को 6 महीने की काउंसिलिंग के निर्देश दिए हैं.

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