जनता ने उन्हें क्यों चुना है यह बात भोपाल के मतदाताओं ने चुनाव के वक्त बहुत साफ साफ कही थी कि वे प्रज्ञा भारती को नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी और भाजपा को वोट दे रहे हैं और भाजपा अगर बतौर उम्मीदवार किसी पुतले को भी मैदान में उतारती तो भी वे उसे ही वोट देते. प्रज्ञा भारती पुतला नहीं हैं बल्कि हिन्दुत्व के ठेकेदारों की कठपुतली हैं जो देश में वर्ण व्यवस्था बहाल कर सवर्णों का राज कायम करना चाहते हैं .
भोपाल के नजदीक सीहोर में प्रज्ञा भारती ने एक तरह से अपने मालिकों के मन की ही बात कही है कि अब देश में होगा वही जो मनु स्मृति और दूसरे धर्म ग्रन्थों में लिखा है कि शूद्र योनि में जन्म लेने बाले का यह कर्म ही नहीं बल्कि धर्म भी है कि वह ऊंची जाति बालों की सेवा कर अपना जीवन धन्य कर ले और पूर्व जन्मों के पापों से छुटकारा पाने के जतन में लगे रहें तभी तर पाएगा. देखा जाये तो उन्होने गलत कुछ नहीं कहा है क्योंकि लोकतन्त्र के आंशिक रूप से ही सही, होने के चलते दलित अपनी हैसियत भूल रहे हैं और यह प्रज्ञा भारती जैसे धर्माचार्यों की ड्यूटि है कि वे वक्त वक्त पर इस तबके के लोगों को यह एहसास कराते रहें के संविधान निर्माण नेहरू और अंबेडकर की बड़ी भूल थी जिसे अब सुधारा जा रहा है . इसी भूल को सुधारने जनता ने उन सहित भाजपा के 303 सांसदों को संसद में भेजा है . झाड़ू लगाना नालियाँ और शौचालय साफ करने चुनावी महाकुंभ पर अरबों रु नहीं फूंके जाते.
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हर कोई जानता है कि प्रज्ञा भारती एक बेसब्री , बड़बोली और उग्र महिला हैं वे इस बात से इत्तफाक नहीं रखतीं कि नरेंद्र मोदी की तरह स्वच्छ भारत अभियान चलाकर नीची जाति बालों को बहला फुसलाकर शूद्र कर्म के लिए उकसाया या सहमत किया जाये . इसमें क्या हर्ज है कि नीची जाति बालों को सीधे सीधे बता दिया जाये कि उनके धर्म शास्त्र वर्णित काम क्या क्या है . मालेगाँव बम ब्लास्ट की यह आरोपी चाहती है कि बिना किसी भूमिका के देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करते मुसलमानों को भी खदेड़ दिया जाये . गांधी की आलोचक और उनके हत्यारे गोडसे की मुरीद प्रज्ञा भारती वही कह बैठीं जिसका नक्श नागपुर में बन चुका है इस वैदिक कालीन नक्शे को धीरे धीरे आरएसएस और भाजपा क्रियान्वित भी कर रहे हैं फिर इतनी बैचेनी क्यों जबकि धैर्य तो साधु संतों का गहना है.
असल में प्रज्ञा भारती को गहनों और झूठे दलित प्रेम से कोई सरोकार नहीं है क्योंकि वे पूर्णकालिक नेता नहीं है . वे बचपन से राम चरित मानस और भागवत बाँचती रहीं हैं जिनमें जाति के हिसाब से कर्मों का वर्गीकरन है . गांधी के दिखावटी मुस्लिम और दलित प्रेम का नतीजा ही यह था कि ये तबके खुद को सेवक और यवन नहीं बल्कि देश का बराबरी का नागरिक समझने लगे . अब इस बहस के कोई माने नहीं कि गांधी अलग तरीके से वर्ण व्यवस्था लागू करना चाहते थे और वही अब भाजपा और नरेंद्र मोदी कर रहे हैं कि ब्रह्मा के पैरों से उत्पन्न हुये दलितों को एकदम से गैर हिन्दू करार न दिया जाकर उनके हाथों में छोटे छोटे देवी देवता थमा दिये जाएँ जिससे वी भी खुद को हिन्दू राष्ट्र का हिस्सा समझें और मुसलमानों को खदेड़ने में सहयोग करें . 20 -22 फीसदी सवर्णों के दम पर यह काम नहीं हो सकता.
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ऐसे में प्रज्ञा भारती का झाड़ू , नाली और शौचालय बाला बयान थोड़ी दिक्कत पैदा कर सकता है . उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में 9 गौंड आदिवासियों की जमीन विवाद को लेकर सरेआम हत्या के बाद देश भर के आदिवासी फिर लामबंद होने लगे हैं कि वे हिन्दू नहीं हैं . अब अगर यही राग दलितों ने अलापना शुरू कर दिया तो हिन्दुत्व की मुहिम को थोड़ा झटका तो लगेगा इत्तफाक से इन्हीं दिनों में देश भर में मोब लिंचिंग की घटनाएँ भी बढ़ रही हैं जिनमे हमेशा की तरह मारे दलित और मुस्लिम ही जा रहे हैं . मुमकिन यह भी है कि प्रज्ञा भारती के जरिये यह जताने की कोशिश की जा रही हो कि हिन्दुत्व आ रहा है चूंकि सत्ता और समाज की ताकत एक कट्टर हिंदूवादी दल की मुट्ठी में है इसलिए खैरियत इसी में है कि चुपचाप जुल्म बर्दाश्त करते जाओ क्योंकि तुम्हारी सुनने वाला अब कोई नहीं.
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