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इन खिलाड़ियों के निकनेम के पीछे की कहानी जानते हैं आप!

क्रिकेट की ऐसी फैन फॉलोइंग है कि लोग क्रिकेट के नियम से लेकर क्रिकेटरों के बारे में लगभग सब कुछ जानते हैं या जानना चाहते हैं. आप अपने पसंदीदा क्रिकेटर के बारे में लगभग सब जानते होंगे यहां तक की उनके निकनेम से भी वाकिफ होंगे. लेकिन क्या आप इस निकनेम की पीछे की कहानी जानते हैं? नहीं तो जानें खिलाड़ियों के निकनेम और उसके पीछे की कहानी.

माइकल होल्डिंग- मौत की सनसनी

वेस्टइंडीज के इस तेज गेंदबाज को चुपचाप गेंदबाजी करने के लिए जाना जाता था. माइकल को अंपायर डिकी बर्ड ने यह नाम (मौत की सनसनी) तब दिया था जब क्रीज के पास खड़े रहने के बावजूद उन्हें माइकल होल्डिंग के दौड़ के आने की भनक तक नहीं लगी थी.

स्टीव वॉ- टुग्गा

स्टीव वॉ को खेल के मैदान पर मुश्किल परिस्थितियों में भी मुस्कुराने के लिए जाना जाता था. वह ऑस्ट्रेलिया के इस धाकड़ बल्लेबाज को क्रिकेट फिल्ड पर शांत और धैर्य से मुश्किलों का सामना करने के लिए उनके साथियों द्वारा दिया गया था उपनाम.

अनिल कुंबले- जंबो

भारत के दिग्गज लेग स्पिनर अनिल कुंबले को यह नाम हरफनमौला नवजोत सिंह सिद्धू ने दिया था. कुंबले की गेंदें जिस तरह से अचानक बाउंस करती थीं, उससे अच्छे-अच्छे बल्लेबाज भी चकमा खा जाते थे.

राहुल द्रविड़ – द वॉल

राहुल द्रविड़ को टीम इंडिया की दीवार माना जाता था, क्योंकि जब भी टीम संकट में होती थी द्रविड़ एक छोर थामे रखते थे. इसी वजह से उनका नाम 'द वॉल' पड़ गया. द्रविड़ का एक दूसरा निकनेम जैमी इसलिए पड़ा क्योंकि उनके पिता जैम बनाने वाली कंपनी 'किसान' में काम करते थे.

ग्लैन मैक्ग्रा- कबूतर

ऑस्ट्रेलिया के इस तेज गेंदबाज को नीक नेम कबूतर करियर के शुरूआती दौर में ही मिल गया था जब उनकी टीम के सदस्यों ने बालिंग के दौरान उनके लंबे पतले टांगों को देखते हुए पिजन का उपनाम दिया था.

महेंद्र सिंह धोनी- कैप्टन कूल

मैदान पर हमेशा शांतचित रहने वाले टीम इंडिया के वनडे और टी-20 कैप्टन धोनी को विषम परिस्थितियों में धैर्य बनाए रखने के लिए क्रिकेट विशेषज्ञों और फैन्स ने उन्हें कैप्टन कूल कहना शुरू कर दिया, जो उनके नाम के आगे अब लगभग हमेशा ही नजर में आता है.

शाहिद आफरीदी- बूम बूम

पाकिस्तान के तुफानी ऑलराउंडर शाहिद आफरीदी गेंद की बेरहमी से धुनाई के कारण बूम-बूम कहे जाते हैं. वो जब भी क्रीज पर आते हैं तो या को खुद जल्दी पैवेलियन लौट जाते हैं या फिर अपने बल्ले से गेंद को पैवेलियन का रास्ता दिखा देते हैं. बैटिंग की अपनी आक्रामक शैली के कारण बूम-बूम खासे चर्चा में रहते हैं.

विराट कोहली- चीकू

विराट कोहली को प्यार से चीकू कहकर बुलाया जाता है. कप्तान धौनी और टीम के दूसरे खिलाड़ी भी उन्हें प्यार से चीकू ही बुलाते है. विराट कोहली का यह निकनेम दिल्ली के कोच अजीत चौधरी ने दिया था. उन्होंने विराट का यह नाम उनकी हेयर स्टाइल को देखते हुए रखा था.

हर उम्र कि लिए करें फाइनेंशियल प्लानिंग

आजकल के समय में लोग फाइनेंशियल प्लानिंग के बारे में सोचते तो हैं पर वे इसे लेकर बिल्कुल सुनिश्चित नहीं हैं. बहुत से लोगों ने समय के साथ संपत्ति बनाई है और अपनी क्षमताओं के मुताबिक इन्वेस्टिंग की दुनिया में आगे भी बढ़े हैं. लोगों को लाइफ के हर पड़ाव में पर्सनल फाइनेंस के बारे में जानना चाहिए?

1. मिडल ऐज वाले प्रोफेशनल्स को यह जानना चाहिए कि ह्यूमन ऐसेट पर रिटर्न के साथ जोखिम भी जुड़े होते हैं, जो उम्र के साथ बढ़ सकते हैं. रिटायरमेंट इस तरह का एक बड़ा जोखिम है, लेकिन इकनॉमिक साइकल्स के साथ नौकरी जाना, छंटनी और कम इंक्रिमेंट जैसे मुद्दे भी सामने आ सकते हैं.

कुछ प्रोफेशन समय बढ़ने के साथ अपनी साख के मुताबिक आपको आमदनी भी ज्यादा देते हैं, लेकिन कुछ अन्य उम्र बढ़ने पर आपके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. अगर आप 40 साल के हैं, तो भविष्य के 50 वर्षों के लिए अपनी आमदनी का हकीकत के करीब रहते हुए अनुमान लगाएं.

2. यह देखें कि, लंबे समय में महंगाई कितना नुकसान पहुंचा सकती है. यह याद रखना चाहिए कि ‘सुरक्षित माना जाने वाला बैंक डिपॉजिट आपको फिक्स्ड और फ्लैट इंटरेस्ट इनकम देता है, जबकि खर्च महंगाई की दर के साथ बढ़ते रहते हैं’. इसे आप इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर अनुमानित इनफ्लेशन रेट 7 से 8 फीसदी है, तो आपके खर्चे 9 से 10 वर्षों में दोगुने हो जाएंगे. इसका मतलब है कि नुकसान से बचने के लिए ये हर 10 साल में दोगुना हो जाना चाहिए. इस समस्या से निपटने के केवल दो ही रास्ते हैं.

पहला, जिन वर्षों में आपकी आमदनी खर्चों से ज्यादा है, तो जितना अधिक हो सके, बचत करें.

और दूसरा, बचत को ऐसी जगह इन्वेस्ट करें, जहां आपको कम से कम इनफ्लेशन रेट, जितना रिटर्न मिले. 50 साल का होने पर जब आपके पास घर और कार मौजूद है तो आपको अपनी इनकम का 50 फीसदी बचाना चाहिए.

3. अपने ऐसेट्स को देखें और उन्हें भविष्य के इस्तेमाल के लिए ऐलोकेट करें. अगर आपके पास एक घर है, जिसमें आप रहते हैं और कुछ डिपॉजिट, शेयर्स और म्यूचुअल फंड्स हैं, तो इन्हें अपनी जरूरतों के मुताबिक मैप कर लें. घर से आपका भविष्य में किराए पर खर्च बचेगा. अन्य ऐसेट्स आपके बच्चे की हायर एजुकेशन और शादी, आपके इंटरनैशनल ट्रैवल प्लान, रेग्युलर इनकम कम होने पर इन्वेस्टमेंट इनकम की जरूरत और अपने बच्चों के लिए ऐसेट्स छोड़ने के काम आएंगे. यह तय कर लें कि आपके पास कौन से ऐसेट्स हैं और उनका इस्तेमाल करने की आपकी क्या योजना है.

4. अपने इन्वेस्टमेंट को तीन हिस्सों में बांटें. कोर पोर्टफोलियो की जरूरत आपको अपनी जीवन के दौरान होगी और इसका एकमात्र मकसद आपकी जरूरतें पूरी करने का है. अगर इस पोर्टफोलियो में नुकसान होता है तो आपकी नींद उड़ जानी चाहिए.

इनफ्लेशन के साथ अजस्टेड अपने खर्चों का अनुमान लगाने के बाद यह पक्का करें कि इस खर्च को पूरा करने वाले फंड इसी पोर्टफोलियो में रखे जाएं. आपका घर, गोल्ड, पीपीएफ, पीएफ, बैंक डिपॉजिट, सेविंग सर्टिफिकेट्स और प्रत्येक अन्य सुरक्षित ऐसेट इसमें होना चाहिए.

5. अगर आपको ऐसी इनकम की जरूरत है, जो इनफ्लेशन के साथ बढ़े, तो यह कंपोनेंट हर 10 साल में दोगुना हो जाना चाहिए. यह सुरक्षित और इनकम जेनरेट करने वाला होने की वजह से वैल्यू में नहीं बढ़ेगा. आपको अपने जीवन के दौरान इनमें इन्वेस्ट करना होगा. इसी वजह से आपको वेल्थ पोर्टफोलियो की जरूरत होती है.

यह आपका रिस्की पोर्टफोलियो होता है. इसे उन ऐसेट्स में इन्वेस्ट करें, जिनकी वैल्यू समय के साथ बढ़े, लेकिन शॉर्ट टर्म में यह वोलेटाइल हो सकता है. शेयर्स, म्यूचुअल फंड्स और सेकंड प्रॉपर्टी इसमें शामिल हो सकती है. इस पोर्टफोलियो के बिना आपका कोर पोर्टफोलियो इनफ्लेशन से लड़ने में संघर्ष करता नजर आएगा.

6. अगर आपको पीपीएफ में 8 फीसदी रिटर्न 15 वर्ष के अवधि में मिल रहा है, तो इक्विटी कंपोनेंट से आपको अपना पैसा ज्यादा समय तक बरकरार रखने और केवल पीपीएफ पर निर्भर रहने की स्थिति से कम बचत करने में मदद मिलेगी.

7. इसके अलावा आपका फैंसी पोर्टफोलियो है. इसमें कुछ ऐसी चीजें हो सकती हैं, जिनमें रिस्क ज्यादा है, जैसे इक्विटी, डेरिवेटिव और कमोडिटी ट्रेडिंग, प्राइवेट इक्विटी और आर्ट. इनमें लगाई जाने वाली रकम इस बात पर निर्भर करेगी कि आप अन्य दो कंपोनेंट के लिए कितनी रकम निकालते हैं.

8. अपने जीवन के प्रत्येक 10 वर्षों के लिए योजना बनाएं. 40 वर्ष का होने पर ऊपर बताई गई बातों पर ध्यान दें और यह समीक्षा करें कि आपके पास क्या है. 50 वर्ष का होने तक अपनी इनकम को मैप करें.

यह देखें कि आप क्या बचा रहे हैं और ज्यादा बचत करें. अपने उधार को कम करें या खत्म कर दें. ऐसे ऐसेट्स बनाएं, जो कम से कम आपके मौजूदा खर्च को आपके 50 वर्ष का होने तक कवर करें. जो भी अतिरिक्त हो, उसे वेल्थ पोर्टफोलियो में इन्वेस्ट करें.

9. अगर आप 40 की उम्र में अच्छा कर रहे हैं तो आप पाएंगे कि आपके कोर ऐसेट्स नौकरी जाने की स्थिति में आपकी सुरक्षा करेंगे और आपके वेल्थ ऐसेट्स के पास वैल्यू में ग्रोथ के लिए काफी समय होगा.

10. जब आप 50 वर्ष के हो जाएं तो वेल्थ पोर्टफोलियो को और बढ़ाएं. 60 वर्ष के बाद से अपना लाइफस्टाइल बरकरार रखने के लिए वेल्थ से कोर पोर्टफोलियो में ट्रांसफर करते रहें. अगर इसके बाद भी अतिरिक्त पैसा बचता है, तो आप उससे मजे कर सकते हैं.

70 वर्ष का होने पर अपने वेल्थ पोर्टफोलियो का आकलन करें और जिसकी आपको जरूरत नहीं है, उसे किसी को दिया जा सकता है. 80 वर्ष तक आपके कोर एक्सपेंस घट जाएंगे और आप अपनी सभी वेल्थ को अपने कोर पोर्टफोलियो में ट्रांसफर कर अच्छा जीवन जीने में सक्षम होंगे.

म्युचुअल फंड में निवेश करते समय ध्यान रखें ये बातें

शेयर बाजार में निवेश करने का सबसे आसान और सुरक्षित जरिया म्युचुअल फंड है. लेकिन जरूरी नहीं है कि म्युचुअल फंड में निवेश हमेशा फायदेमंद ही होगा. जो लोग पहली बार म्युचुअल फंड में निवेश कर रहे होते हैं उनके लिए ढ़ेरों फंड्स में से अपनी जरूरत और लक्ष्य के हिसाब से फंड का चुनाव, उनकी पर्फोर्मेंस ट्रैक करना आसान काम नहीं होता. वास्तव में स्कीम में निवेश करने से पहले कई चीजें ध्यान में रखनी चाहिए. सबसे पहला फैक्टर चयन होता है. निवेशकों को अपना पैसा उस विशेष फंड में लगाना चाहिए जो उनकी जरूरतों को पूरा करता हो. म्युचुअल फंड्स में निवेश करने वाले निवेशकों को कुछ अहम जान लेना बेहद आवश्यक है.

अगर म्युचुअल फंड्स में कर रहे है पहली बार निवेश तो ध्यान रखें कुछ बातें

लक्ष्य से जुड़ा हो आपका निवेश

आपका हर निवेश आपके लक्ष्यों की सारी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए. निवेश से पहले सुनिश्चित कर लें कि आपकी असल जरूरतें क्या हैं? उसके बाद फैसला करें कि कितनी राशि निवेश करनी है. अपनी जरूरतों को समझने के बाद ही आप निवेश से अच्छा रिटर्न्स हासिल कर सकते हैं.

अपनी जोखिम उठाने की क्षमता को जानिए

अपने लक्ष्यों को पहचानने के बाद यह देखें कि आप कितना जोखिम उठा सकते हैं. यह आप कई वेबसाइट्स पर जाकर जांच सकते हैं. इसमें सवाल दिए होते हैं जिसके जवाब देने पर वे आपको आपकी रिस्क प्रोफाइल बता देते हैं.

मुख्य रुप से तीन तरह के निवेशक होते हैं- कंजर्वेटिव, मॉडरेट और एग्रेसिव-

1. एग्रेसिव निवेशक वे होते हैं जो इक्विटी में ज्यादा निवेश करते हैं जैसे इंडिविजुअल स्टॉक्स और म्युचुअल फंड्स. इनकी जोखिम उठाने की क्षमता ज्यादा होती है. ये अपने पोर्टफोलियो में तेजी से ग्रोथ की अपेक्षा करते हैं और इनमें से कई डे ट्रेडर्स भी होते हैं. ये डेट म्युचुअल फंड्स में निवेश ज्यादा करते हैं. इनके लिए न्यूनतम टाइमफ्रेम 15 वर्ष होता है. इस तरह के निवेशक 12 से 14 फीसदी तक के रिटर्न की उम्मीद रखते हैं.

2. मॉडरेट निवेशक की जोखिम क्षमता थोड़ी सी ज्यादा होती है. यह पांच वर्ष से अधिक समय के लिए निवेश करते हैं.

3. कंसर्वेटिव निवेशक वे होते हैं जिनकी जोखिम क्षमता कम होती है. यह अधिकतम तीन वर्ष के लिए निवेश करते हैं. यह इक्विटी से दूर रहते हैं. यह रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट, इंडिविजुअल बॉन्ड, बॉन्ड फंड्स आदि में निवेश करते हैं.

स्कीम के प्रदर्शन को साल में एक बार जरूर जांचे

जब भी आप निवेश करते हैं तो वर्ष में एक बार स्कीम का प्रदर्शन जरूर जांच लें. ऐसा इसलिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि एक स्कीम आजीवन अच्छा प्रदर्शन ही करे. पिछले समय में किसी स्कीम के अच्छे प्रदर्शन का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता कि यह भविष्य में भी अच्छा ही रिटर्न देगा.

बैलेंस्ड फंड्स में करें निवेश

पहली बार म्युचुअल फंड्स में निवेश करने वालों को बैलेंस्ड फंड्स का चयन करना चाहिए. जो निवेशक तीन वर्ष की अवधि में कम जोखिम उठाते हुए निवेश करना चाहते हैं उनके लिए बैलेंस्ड फंड्स होते हैं. यह ऐसे निवेशकों के लिए बेहतर हैं जो न्यूनतम पांच वर्ष के लिए निवेश करना चाहते हैं.

कब म्यूचुअल फंड्स से नहीं मिलता फायदा

निश्चित रिटर्न पाने के लिए म्यूचुअल फंड एक सही विकल्प नहीं है. जैसे कि यह इक्विटी और फिक्स्ड इनकम मार्केट में निवेश करते हैं तो इसका रिटर्न बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है.

जानें क्रिकेट को और भी रोमांचक बनाने वाले पावरप्ले के बारे में

क्रिकेट मैच तो हम सभी देखते हैं. मैच देखते हुए हम अकसर ही बोलते हैं कि अभी पावरप्ले चल रहा अब तो मैच देखने का अलग ही आनंद आएगा. पावरप्ले तो हम आसानी से बोल देते हैं लेकिन क्या आप पावरप्ले के बारे में जानते हैं. जैसे की क्या होता है यह पावरप्ले, क्या नियम हैं इसके आदि. अगर नहीं, तो जानें पावरप्ले के बारे में सम्पूर्ण जानकारी.

सीमित ओवरों की क्रिकेट में पावरप्ले के लिए कुछ ओवर निर्धारित किए जाते हैं. इस दौरान क्षेत्ररक्षण करने वाली टीम को 30 गज के घेरे के बाहर एक निश्चित संख्या में क्षेत्ररक्षक रखने की इजाजत होती है. मौजूदा नियमों के मुताबिक एक पारी में पावरप्ले के 15 ओवर होते हैं. इन पावरप्ले को दो ब्लॉकों में बांटा गया है जिनके नाम अनिवार्य पावरप्ले, और गेंदबाजी पावरप्ले हैं. पावरप्ले के नियम समय समय पर परिवर्तित होते रहे हैं. खासकर साल 2000 के बाद से इन नियमों में कई बार तब्दीली की जी चुकी है.

कैसे हुई पावरप्ले की शुरुआत

पावरप्ले को आधुनिक क्रिकेट की आत्मा कहा जाता है. पावरप्ले के कारण ही मैदान में जबरदस्त हिटिंग देखने को मिलती है. 1970 में पहली बार क्रिकेट का हिस्सा बने पावरप्ले को एक प्रयोग के रूप में क्रिकेट में शामिल किया गया था. इसका इस्तेमाल सबसे पहले वर्ल्ड सीरीज क्रिकेट में किया गया.

हालांकि पावरप्ले को पहले पांच विश्व कप में स्थान नहीं दिया गया और पहली बार इसे 1996 के विश्व कप में लागू किया गया. इसके बाद से पावरप्ले सीमित ओवर की क्रिकेट का मुख्य अंग बन गया. पावरप्ले ने आगे के सालों में कई आतिशी सलामी बल्लाबाजों को जन्म दिया जो आते ही विरोधी गेंदबाजों की बखिया उधेड़ने लगे.

इस दौरान आज की तरह पावरप्ले 15 ओवरों का ही होता था, लेकिन यह पावरप्ले अनिवार्य पावरप्ले होता था जो पहले 15 ओवरों तक चलता था. इस पावरप्ले के दौरान तीन खिलाड़ियों को 30 गज के घेरे के बाहर रहने की इजाजत रहती थी. 16वें ओवर के बाद घेरे के बाहर पांच खिलाड़ी रखने की इजाजत होती थी साथ ही पावरप्ले के दौरान दो खिलाड़ियों के कैचिंग पॉजीशन पर रहना भी जरूरी होता था.

बदल गए पावरप्ले के नियम

सन् 2005 में क्रिकेट को अधिक मनोरंजक बनाने के लिए इसके नियमों में तब्दीलियां की गईं और पावरप्ले को 20 ओवरों का बना दिया गया. साथ ही पावरप्ले को तीन ब्लॉकों में भी बांट दिया गया. ताकि इनमें से एक ब्लॉक को बीच के ओवरों में इस्तेमाल करके बल्लेबाजी करने वाली टीम तेजी से रन बना सके और खेल को और मनोरंजक बनाया जा सके. ये तीन पावरप्ले अनिवार्य पावरप्ले, बैटिंग पावरप्ले और बॉलिंग पावरप्ले थे.

अनिवार्य पावरप्ले

क्रिकेट मैच की हर पारी के शुरू के 10 ओवरों को अनिवार्य पावरप्ले के रूप में रखा जाता है. इस दौरान फील्डिंग करने वाली टीम 30 गज के घेरे के बाहर अधिकतम दो फील्डर रख सकती है. यह आवश्यक है कि ये क्षेत्ररक्षक स्ट्राइकिंग छोर पर खड़े बल्लेबाज से 15 गज पर हों. इस पावरप्ले में बल्लेबाज अपने शुरुआती विकेट बचाते हुए जमकर हिटिंग करते हैं.

गेंदबाजी पावरप्ले

यह पावरप्ले अनिवार्य पावरप्ले (10 ओवर) के तुरंत बाद लिया जा सकता है. इस पावरप्ले में ओवरों की संख्या 5 होती है. साथ ही इसके इस्तेमाल करने का हक क्षेत्ररक्षण करने वाली टीम के पास होता है. ज्यादातर देखा जाता है कि अगर मैच कुछ हद तक फील्डिंग करने वाली टीम के हाथ में होता है तो वह इस पावरप्ले को तुरंत लेकर बल्लेबाजों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं.

लेकिन अगर टीम आतिशी अंदाज में खेल रही हो तो वे इस पावरप्ले को लेने के लिए सही समय का इंतजार करते हैं. इस पावरप्ले में तीन क्षेत्ररक्षकों को 30 गज के घेरे के बाहर रखा जा सकता है. साथ ही इस पावरप्ले को 40 ओवरों तक खत्म करना जरूरी रहता है.

बल्लेबाजी पावरप्ले

पांच ओवर का यह पावरप्ले कब लिया जाए यह बैटिंग करने वाली टीम तय करती है. इसका मकसद बीच के ओवरों में भी बल्लेबाजों को रन बनाने के ज्यादा मौके देना और इस तरह खेल को ज्यादा दिलचस्प बनाना होता है. इस पावरप्ले में भी बॉलिंग पावरप्ले के नियम लागू होते हैं. इस दौरान 30 गज के सर्कल के बाहर तीन से ज्यादा फील्डर नहीं हो सकते.

विश्व कप 2015 के बाद फिर बदल गए नियम

विश्व कप 2015 में बैटिंग पावरप्ले की वजह से क्रिकेट में असंतुलन देखा गया जब गेंदबाजों की पूरे विश्व कप में बेतरतीब धुनाई की गई. विश्व कप के तुरंत बाद आईसीसी ने एक बैठक बुलाई और पावरप्ले के नियमों में एक बार फिर से बदलाव किए गए.

नए नियमों के मुताबिक बैटिंग पावरप्ले को हटा दिया गया और अंतिम 10 ओवरों में क्षेत्ररक्षण करने वाली टीम को मैदान में 5 खिलाड़ी रखने की इजाजत दी गई जो इसके पहले चार थी. साथ ही अनिवार्य पावरप्ले में दो कैचरों की बाध्यता को हटा दिया गया.

चूंकि गेंदबाजी पावर प्लेको बरकरार रखा गया जिसके अंतर्गत 3 क्षेत्ररक्षकों को 30 गज के घेरे के बाहर क्षेत्ररक्षण करने की इजाजत होती है. साथ ही पावरप्ले खत्म होने के बाद 40 ओवरों तक चार क्षेत्ररक्षकों को 30 गज के घेरे के बाहर रखने की इजाजत दी गई.

अब बीच में नहीं रुकेगा ब्रॉडबैंड या वाईफाई इंटरनेट

अगर आपके ब्रॉडबैंड या वाईफाई डाटा कनेक्शन की स्पीड कम है या बार-बार घटती बढ़ती रहती है तो यकीनन आप परेशान होते होंगे. कुछ आसान सी ट्रिक्स से आप अपने इंटरनेट कनेक्शन की स्पीड बढ़ा सकते हैं.

टेस्ट करें अपने कनेक्शन की स्पीड

इससे पहले की आप अपने कनेक्शन की स्पीड बढ़ाने की ट्रिक्स फॉलो करें अपने कनेक्शन को एक बार टेस्ट कर लें. इसके लिए आप एक वेबसाइट http://www.speedtest.net/ का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये वेबसाइट आपके कनेक्शन की स्पीड ऑनलाइन टेस्ट करती है. इसे दिन के अलग-अलग समय में टेस्ट किया जा सकता है.

वाईफाई एक्सटेंडर

ये आपके घर के हर कोने में वाईफाई या लेन (LAN) इंटरनेट की स्पीड बढ़ाने में सबसे ज्यादा काम आता है. अगर आपको ये समस्या आ रही है कि नेट कभी चलता है और कभी बहुत स्लो हो जाता है तो ये वीक सिग्नल की समस्या भी हो सकती है. इसके लिए आप वाईफाई एक्सटेंडर का इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे कई मीटर तक सिग्नल रेंज बढ़ाई जा सकती है.

यहां हम आपको बताना चाहते हैं कि अगर आपका मॉडम किसी इलेक्ट्रिॉनिक डिवाइस के आस पास रखा है तो उससे भी सिग्नल ब्रेक हो सकते हैं. ऐसे में अपने मॉडम की जगह चेंज करके देखें.

वाईफाई को करें सिक्योर

अपने वाईफाई पासवर्ड को हमेशा चेंज करते रहें. इसके अलावा, आप खुद राउटर का पासवर्ड सेट कर सकते हैं. इसके लिए फॉलो करने होंगे ये स्टेप्स-

1. अपने राउटर की सेटिंग्स में जाएं. यहां जाने के लिए आपको वेब ब्राउजर में URL की जगह राउटर का IP ऐड्रेस डालना होगा.

2. दिया गया एडमिन पासवर्ड डालिए. ये आम तौर पर राउटर पर भी प्रिंट रहता है. इसके बाद आपके सामने सिक्योरिटी इंस्ट्रक्शन मैनुअल भी आ जाएगा. अब अपने वाई-फाई राउटर का पासवर्ड खुद सेट करें और ये प्रॉसेस कम से कम हर 45 दिन में करते रहें.

अपने वाई-फाई मॉडम की लाइट चेक करें

आपके वाई-फाई राउटर में कई तरह की लाइट जलती रहती है. इनमें से एक इंटरनेट कनेक्टिविटी की, एक लैन की और एक वायरलेस डिवाइस की होती है. अगर आपको यह पता करना है कि कोई आपके वाई-फाई नेटवर्क का इस्तेमाल बिना आपको बताए कर रहा है, तो इसका पता लगाने का एक आसान तरीका है कि सभी वायरलेस डिवाइसेस को बंद कर देना.

लैपटॉप, कम्प्यूटर, स्मार्टफोन, स्मार्ट टीवी जैसे सभी डिवाइस को अगर बंद कर दिया जाए तो मॉडम में 4 में से तीन लाइट बंद हो जाएंगी. अगर ऐसा करने के बाद भी लाइट बंद नहीं होती तो हो सकता है कि कोई आपका वाई-फाई नेटवर्क इस्तेमाल कर रहा है. यह तरीका आसान जरूर है, लेकिन इसे अचूक कहना सही नहीं होगा.

इसकी वजह है कि कई बार बंद होने के बाद भी स्मार्ट डिवाइसेस आपके मॉडम से कनेक्ट रहती हैं. ऐसा करने से ये पता चल जाएगा की वाई-फाई का कोई गलत इस्तेमाल तो नहीं कर रहा है. इससे मॉडम का पासवर्ड और यूजरनेम बदलकर कुछ हद तक अनचाहे कनेक्शन को बंद किया जा सकता है. इससे आपके वाई-फाई की स्पीड बढ़ेगी.

जानिए कुछ खास टैकनिकल ट्रिक्स

1. स्टार्ट मेन्यू में जा कर रन में जाएं और "Gpedit.msc" टाइप करें. इसके बाद ओके प्रेस करें.

2. इसके बाद आपकी कम्प्यूटर स्क्रीन पर एक टैब ओपन होगा. उसमें Computer configuration पर क्लिक करें.

3. अब Administrative templates पर क्लिक करें. इसके बाद नेटवर्क पर क्लिक करें.

4. इसके बाद आपके सामने कई ऑप्शन्स होंगे जिसमें से आपको ‘Qos Packet Scheduler’ को सिलेक्ट करना है.

5. अब ‘Limits reservable bandwidth’ पर क्लिक करें. इसके बाद नया टैब ओपन होगा जिसमें 3 ऑप्शन्स दिए गए हैं इसमें से आपको डिस्एबिल्ड को सिलेक्ट करना है.

6. इसके बाद इसी टैब में सबसे नीचे अप्लाई का ऑप्शन दिया गया है. इसपर क्लिक करके ओके पर क्लिक करें.

इन स्टेप्स को फॉलो करने से आपके इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाएगी. आगे की स्लाइड में जानें क्यों बढ़ती है इस ट्रिक से इंटरनेट की स्पीड. अलग-अलग सिस्टम और नेटवर्क के हिसाब से स्पीड बदल जाती है. ब्रॉडबैंड में स्पीड और वाई-फाई में स्पीड अलग होगी.

क्यों बढ़ जाती है स्पीड

‘Limits reservable bandwidth’ को डिसेबल करने से आपका कम्प्यूटर विंडोज रिलेटेड ऐसे टास्क्स अलाउ करना बंद कर देता है, जिसके लिए बैंडविथ की जरूरत पड़ती हो. साथ ही ऑटोमैटिक अपडेट्स भी बंद हो जाते हैं और इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाती है.

अगर आप गेमिंग के दौरान इस सेटिंग को एनेबल कर देते हैं तो कई पॉपअप्स आते हैं. ये न सिर्फ इरिटेटिंग होते हैं बल्कि नेट की स्पीड भी स्लो कर देते हैं. ऐसे में इस सेटिंग को डिसेबल करके आप अपने इंटरनेट की स्पीड बढ़ा दें.

हमेशा वायरस करें स्कैन

कम्प्यूटर में कई ऐसे प्रोग्राम्स होते हैं जो फालतू में इंटरनेट स्पीड का इस्तेमाल करते हैं. वायरस स्कैन से ऐसे प्रोग्राम्स का पता लगाया जा सकता है.

इसके अलावा, बूस्ट स्पीड प्रोग्राम्स जैसे क्लीन मास्टर वगैराह यूजर्स को बताते रहेंगे कि सिस्टम में कितनी मेमोरी का इस्तेमाल हो रहा है और कितनी का नहीं. रेग्युलर वायरस स्कैनिंग से इंटरनेट ब्राउजिंग की स्पीड बढ़ाई जा सकती है.

एमसीडी चुनाव : केजरीवाल की हार नहीं, जीत है

एमसीडी चुनाव में भाजपा की जीत पर इतना शोर समझ से परे है. मीडिया का ज्यादातर हिस्सा 'आप' पर पिल पड़ा है. भाजपा ने तीनों नगर निगम किसी से छीने नहीं हैं, यहां भाजपा पहले से आसीन थी. यह जीत उसने बरकरार रखी है. इसमें 'आप' की हार कहां हुयी? आप ने तो एमसीडी में पहली बार 48 सीटों के साथ जीत हासिल की है.

दिल्ली विधान सभा चुनाव में 'आप' की प्रचंड जीत (70 में से 67 सीटें) के बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तब भाजपा ने दिल्ली की सातों सीटें जीत ली थी तब इतना हल्ला नहीं मचा कि केजरीवाल हार गए? दिल्ली में 'आप' की हार नहीं बताया गया. एमसीडी, विधानसभा और लोकसभा चुनाव हर जगह कमोवेश अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं. दिल्ली में भी तीनों चुनावों के मुद्दे अलग-अलग हैं. 

असल में यह 'आप' की हार नहीं, जीत है. यह जंतर-मंतर के उस जन आंदोलन; जनाक्रोश की जीत है जिसने कांग्रेस और भाजपा को अपनी भ्रष्ट, गलत नीतियों को बदलने पर जबरन मजबूर कर दिया. वरना तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस और भाजपा दोनों मिल कर उस जन आंदोलन का विरोध कर रही थी, कुचलने पर आमादा थी. केजरीवाल उसी आंदोलन के अगवाओं में एक थे. देश भर से उमड़े जनसैलाब के गुस्से का सन्देश भाजपा को उसी समय समझ में आ गया था और वह जनोन्मुखी ईमानदार नीतियों पर चलने पर विवश हुई.

मनमोहन सिंह के समय सब मंत्री बेलगाम दिखते थे, सत्ता के गलियारों में दलालों का बोलबाला था. आज केंद्र में मोदी के अलावा दूसरे मंत्रियों की आवाजें गुम हैं. इसलिए कि जनाक्रोश के डर से मंत्रियों सहित नौकशाहों पर लगाम कसी दिख रही है. यह उस जन आंदोलन का सुपरिणाम है. दिल्ली के मतदाता अच्छी तरह समझते हैं कि केंद्र शासित दिल्ली की केजरीवाल सरकार के हाथ में ज्यादा ताकत नहीं है. उसे हर फैसले के लिये केंद्र के बैठाये एलजी का मुंह ताकना पड़ता है. वह असहाय है. 

आज की तारीख में केंद्र में बैठी भाजपा ज्यादा पावरफुल है, दिल्ली के वोटर यह जानते हैं, इसलिये भाजपा को जीताना ज्यादा मुनासिब समझा गया. यह तो केजरीवाल की नीतियों की जीत है जिस के चलते भाजपा को अपने तमाम पुराने पार्षदों की जगह सभी नए चेहरों को मैदान में उतारना पड़ा. इनमें कई भ्रष्ट और निकम्मे थे. 

सलमान की बाहों में फूट कर रो पड़ी थीं ये अदाकारा!

यहां हम बात कर रहे हैं 90 के दशक की फिल्मों की, जब सलमान खान और भाग्यश्री की सुपरहिट फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ रिलीज हुई थी. ये फिल्म इतनी सुपरहिट हुई थी कि आज भी लोग इसे देखने का मौका नहीं छोड़ते. फिल्म में सलमान और भाग्यश्री की जोड़ी ने जो कमाल किया था वो यादगार है.

फिल्म का हर एक गाना, एक एक सीन इतना बेहतरीन था कि फिल्म सुपरहिट तो हुई ही, साथ ही सदाबहार फिल्मों की सूची में भी शुमार हो गई. आज यहां हम आपको इस फिल्म से जुड़ी कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं जो आपको निश्चित ही हैरान करने के साथ, आपके चेहरे पर मुस्कुहाहट ले आएगी. हम 90 के दशक की अभिनेत्री भाग्यश्री के द्वारा एक फिल्म की शूटिंग के दौरान के उनके अनुभव को आपसे भी शेयर कर रहे हैं.

एक सीन में सलमान को भरना था बाहों में

दरअसल उस समय फिल्म के गाने कबूतर जा जा जा… की शूटिंग चल रही थी. इस गाने के तुरंत खत्म होने के बाद भाग्यश्री को सलमान खान की बाहों में आने का सीन दिया गया था.

जोर से रोने लगीं भाग्यश्री

जब गाने का फाइनल सीन आया और सलमान ने भाग्यश्री को बाहों में लिया वह जोर-जोर से रोने लगीं. भाग्यश्री को रोता देख सभी हैरान रह गए.

सलमान ने पास जाकर पूछा कारण

भाग्यश्री को ऐसे रोता देख सलमान भी परेशान हो गए. सलमान उनके गए पास सलमान ने पूछा क्या उनसे कोई गलती हुई, जवाब देते हुए भाग्यश्री ने ‘ना’ में सिर हिलाया. इसके बाद फिल्म के डायरेक्टर सूरज बड़जात्या और सलमान फिर से भाग्यश्री के पास गए.

सलमान खान ने की उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश

सभी लोग भाग्यश्री को समझाते हुए चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. थोड़ी देर बाद भाग्यश्री नॉर्मल भी हो गईं और फिर बाद में भाग्यश्री ने अपने रोने की असली वजह बताई.

इतने पुराने ख्यालों की हैं भाग्यश्री

भाग्यश्री ने बताया कि वे एक पुराने ख्यालों वाले परिवार से ताल्लुक रखती थीं और उन्होंने कभी किसी गैरमर्द को गले नहीं लगाया था और इसलिए शायद वे अच्छा अनुभव नहीं कर रहीं थी.

घबरा गई थीं भाग्यश्री

जैसे ही फिल्म के हीरे सलमान खान ने उन्हें गले लगाया वे इतनी घबरा गईं कि उन्हें रोना आ गया. भाग्यश्री की बात सुनकर सेट पर उपस्थित सभी लोग थोड़े गंभीर हो गए थे. इसके बाद उन्होंने भाग्यश्री से कहा कि जैसे भी उन्हें सही लगता हो वे वैसे ये सीन करें और इस तरह यह सीन फाइनल हुआ.

रेडियो शो पर भी खूब चला ये किस्सा

हम आपको बता दें कि अन्नु कपूर ने यह किस्सा अपने रेडियो शो ‘सुहाना सफर विद अन्नु कपूर’ में भी सुनाया था. उस समय इस किस्से ने काफी शोर मचा रखा था.

डिलीट करने को भी तैयार थे निर्देशक ये सीन

हम आपको बता देना चाहते हैं कि बड़जात्या उस शॉट को डिलीट करने के लिए भी तैयार थे, लेकिन बाद में भाग्यश्री ने खुद को ही समझाया कि ये तो सिर्फ एक सीन है.

तो एक आम इंसान की तरह कुछ ऐसे किस्से भी होते हैं हमारे सितारों के जीवन में, जो हम सभी को सोचने पर मजबूर कर देते हैं.

विनोद खन्ना, एक यादगार पारी का अंत

अभिनेता और नेता रहे विनोद खन्ना का निधन 70 साल की उम्र में होने के बाद पूरे हिंदी सिनेमा जगत में शोक की लहर दौड़ गयी है. फिल्म फेटर्निटी ने इस दिवंगत अभिनेता को श्रधांजलि देने के लिए अपने सभी कामकाज रोक दिए है. बृहस्पतिवार करीब 11.20 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली. वे ब्लैडर कैंसर से पीड़ित थे और काफी समय से बीमार चल रहे थें. बीच में उनकी एक जीर्ण अवस्था की फोटो वायरल भी हुई थी. ‘दिलवाले’ फिल्म में अंतिम बार वे नजर आये थे.

विनोद खन्ना ने दो शादियां की थी. पहली पत्नी गीतांजलि थी जिनसे 1985 में तलाक हो गया था. बाद में उन्होंने कविता से शादी की. उनके तीन बेटे अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना और साक्षी खन्ना हैं.

साल 1968 में ‘मन का मीत’ फिल्म से बॉलीवुड में एक लम्बी पारी खेलने वाले अभिनेता विनोद खन्ना ने विलेन के रोल से अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद वह फिल्म ‘मेरे अपने’, ’मेरा गांव मेरा देश’, ‘इम्तिहान’, ‘इनकार’, ‘लहू के दो रंग’, ‘कुर्बानी’, ‘दयावान’ और ‘जुर्म’ जैसी कई फिल्मों में अभिनय के लिए जाने जाते रहे. हालांकि उनका जन्म पेशावर में हुआ था, पर विभाजन के समय वे अपने अपने परिवार के साथ मुंबई आ गए थे. यहां अपनी पढाई पूरी करने के बाद वे अभिनय की ओर मुड़े.

फिल्मों में काम करना उनके लिए आसान नहीं था, उनके पिता व्यवसायी थें और चाहते थें कि वे भी पढ़ लिखकर उनके व्यवसाय में शामिल हों. एक बार उन्होंने एक अवॉर्ड फंक्शन में कहा था कि जब उन्हें पहली फिल्म का ऑफर मिला था और उन्होंने घर पर कहा था तो पिता ने उनको डांटते हुए बंदूक तान ली थी, लेकिन मां के समझाने पर वे राजी हुए और कहा था कि उन्हें अपने आप को सिद्ध करने के लिए केवल दो साल मिलेंगे, अगर वे कामयाब नहीं हुए तो वापस उनके व्यवसाय में हाथ बटाएंगे.

उन्होंने कई फिल्मों में नायक और खलनायक की भूमिका अदा की. उन्होंने केवल मसाला फिल्में ही नहीं की, बल्कि हर तरह की फिल्मों में काम किया है. वे उस समय के हैंड्सम अभिनेताओं में गिने जाते थे. शुरूआती दिनों में उन्हें कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली, वे अधिकतर सह अभिनेता या विलेन के रूप में ही नजर आते रहे. उन्होंने कई ऐसी फिल्में भी की हैं जिसमें एक्ट्रेस ही लीड रोल में होती थी. जैसे फिल्म ‘लीला’ जिसमें अभिनेत्री डिंपल कपाडिया मुख्य भूमिका में थी और फिल्म ‘रिहाई’ जिसमें अभिनेत्री हेमामालिनी लीड में थी.

उनकी सबसे पहली सोलो अभिनेता वाली फिल्म साल 1971 की ‘हम तुम और वो’ थी. जिसमें उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली. उनकी सबसे अधिक कामयाब फिल्म ‘परवरिश’ थी, जिससे उन्होंने ‘स्टारडम’ का मजा चखा. वे शांतप्रिय इंसान थे और किसी को जानबूझकर नाराज करना नहीं चाहते थे. कई बार एक साथ में कई फिल्मों को भी साईन कर लिया करते थें. गुलजार की फिल्म ‘अचानक’ में उन्होंने नानावटी मर्डर केस पर आधारित फिल्म में आर्मी ऑफिसर की भूमिका निभाकर काफी प्रसंशा बटोरी थी. इसके बाद उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ हेरा फेरी, खून पसीना, मुकद्दर का सिकंदर आदि कई सफल फिल्में की.

एक दौर ऐसा भी आया, जब विनोद खन्ना इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि अमिताभ बच्चन पर भी भारी पड़ने लगे थे. लेकिन वे ओशो आश्रम चले गए और वहां काफी दिनों तक रहने के बाद फिर वापस आकर दूसरी पारी शुरू की. डायरेक्टर रंजीत की फिल्म ‘कारनामा’ के शूटिंग के दौरान जब उनसे आश्रम जाने और माली बनकर काम करने की बात पूछा गया तो वे बहुत ही शांत भाव से उन सभी सवालों के जवाब दिए. उन्हें गुस्सा बहुत कम आता था. उनके ऊपर ‘स्टारडम’ कभी हावी नहीं हुआ, फिर चाहे वह फोटोग्राफर हो या मीडिया कर्मी सबके साथ बैठकर खाना खाते थें.

विनोद खन्ना की दूसरी पारी की फिल्मी जर्नी भी बहुत सफल थी. ‘सत्मेव जयते’ और ‘इन्साफ’ दो बड़े डायरेक्टर की फिल्म एक साथ रिलीज पर थी. दोनों में होड़ थी कि किसे रिलीज पहले किया जाय. पहले ‘सत्यमेव जयते’ रिलीज हुई और एक सप्ताह बाद ‘इन्साफ’. दोनों फिल्में जबरदस्त हिट हुई और विनोद खन्ना एक बार फिर स्टैब्लिश हो गए.

बहुत कम लोग ये जानते है कि विनोद खन्ना की दूसरी पारी में दो फिल्मों के हिट होने के बाद निर्माता निर्देशकों की भीड़ उनके घर के आगे लग गयी. उन दिनों मुकेश भट्ट जिनके साथ विनोद खन्ना की अच्छी दोस्ती थी और उन्होंने ही उन्हें ओशो आश्रम लेकर गए थे. एक फिल्म साईन करवाने जब विनोद खन्ना के पास गए, तो उन्होंने डेट न दे पाने की वजह से उन्हें मना कर दिया, जिससे मुकेश भट्ट नाराज हो गए और कहा था कि मैं खून से साईन कर कहता हूं कि मैं विनोद खन्ना को अपनी फिल्म में कभी नहीं लूंगा, लेकिन कुछ समय बाद ही उन्होंने फिर उन्हें अपनी फिल्म में लिया.

अभिनेता सलमान खान उन्हें अपनी फिल्मों में लेना हमेशा पसंद करते थें. उनके साथ सलमान ने कई फिल्में की थी. ‘निश्चय’, ‘वांटेड’, ‘दबंग’, ‘दबंग 2’ और ‘दबंग 3’ के लिए भी उन्हें साईन कर लिया गया था. फिल्मों के अलावा विनोद खन्ना का राजनीतिक जीवन भी ठीक ठाक था. साल 1997 और 1999 में वे दो बार पंजाब के गुरुदासपुर क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी की ओर से सांसद चुने गए और बाद में राज्य मंत्री भी बने.

विनोद खन्ना की अगर खामियों की बात करें तो वे बहुत लेट लतीफ हुआ करते थें. कभी भी समय पर सेट पर नहीं पहुंचते थे, लेकिन जब एक बार सेट पर पहुंच जाते थे, तो जब तक काम खत्म न हो, किसी और चीज की तरफ ध्यान नहीं देते थे. यही वजह थी कि सारे निर्देशक इसे नजर अंदाज करते थे. अभिनय के अलावा वे प्रोडूसर भी बने और अपने पुत्र को फिल्म ‘हिमालय पुत्र’ में लौंच किया और तब उन्हें प्रोड्यूसर की परेशानियां समझ में आई थी.

बहरहाल, ऐसे प्रसिद्ध अभिनेता के देहांत पर एक युग का अंत हो गया, जिसे लेकर सभी कलाकारों ने अपनी श्रधांजलि अलग-अलग ढंग से दिया.

सुभाष घई

मैं विनोद खन्ना से पिछले साल अपने एक्टिंग स्कूल के वार्षिक अवार्ड सेरिमोनी में मिला था. जहां उन्हें छात्रों ने सम्मानित किया था. वे ऑनस्क्रीन और ऑफ स्क्रीन दोनों जगह एक हैंड्सम हीरो थे. उन्होंने प्यार और सम्मान के साथ अपनी जिंदगी जी है. वे हमेशा मेरे दिल और दिमाग में जिन्दा रहेंगे. अलविदा विनोद.

बप्पी लहरी

मैं इस समय विदेश में हूं और मैंने उनके साथ बहुत काम किया है. मुझे बहुत दुःख हो रहा है. वे हमेशा अमर रहें.

अशोक पंडित

विनोद खन्ना जी का हर रोल और परफॉर्मेंस बेहतरीन था. एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जो सबकुछ अपने अंदर समेट लेते थें.

कबीर बेदी

दुःख महसूस हो रहा है, मैं उनकी तबियत से वाकिफ था, ऐसा लग रहा है कि मेरे परिवार का कोई सदस्य चला गया है. मेरी पहली हिट फिल्म ‘कच्चे धागे’ से हम दोस्त बने थे, क्योंकि हमने साथ काम किया था. हमने शाहरुख़ खान की फिल्म ‘दिलवाले’ में भी साथ काम किया था. उन्होंने एक जिंदगी में सबकुछ कर दिखाया है. 40 साल की हमारी दोस्ती अब ख़त्म हो गयी है. बहुत अच्छा दोस्त था विनोद. मैं बहुत शोक्ड हूं.

हेमा मालिनी

फिल्मों से लेकर राजनीति तक विनोद खन्ना ने मेरा साथ दिया है. उनके निधन की खबर दुखद है.

कारण जोहर

करण जोहर ने ट्वीट कर कहा कि उनकी छवि को कोई टक्कर नहीं दे सकता. उनके सुपरस्टार टैग को देखते हुए मैं बड़ा हुआ हूं.

संजय दत्त

विनोद जी की देहांत से मैं बहुत दुखी हुआ हूं. मैंने बचपन से उनकी फिल्मों में उनकी करिश्माई अभिनय और स्टाइल से बहुत प्रेरित था. इंडस्ट्री को एक बहुत बड़ा आघात है. वे हमेशा दत्त परिवार के एक सदस्य के रूप में रहेंगे. उनकी आत्मा को शांति मिले. इस शोक की घड़ी में मेरी संवेदना कविता भाभी, अक्षय, राहुल और साक्षी के साथ है.

स्मार्टफोन के लिए पेश हैं बेहतरीन ऐप लॉकर

अपने स्मार्टफोन में आप न जाने कितने पर्सनल डेटा रखते होंगे. फोन में पर्सनल मैसेज से लेकर सोशल मीडिया ऐप तक होते हैं. इसके साथ-साथ हमारे फोन में बैंकिंग डिटेल और कई महत्वपूर्ण सूचनाएं भी होती हैं. हम अपने स्मार्टफोन में प्राइवेट फोटोज और वीडियो भी रखते हैं लेकिन हमारे ये प्राइवेट डेटा कितने सुरक्षित हैं, इस बात की जानकारी हमें नहीं होती. हम इनकी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत होते हैं. कुछ बेहतरीन ऐप लॉकर जो आपके डेटा को सुरक्षित रखने में आपकी मदद करेंगे.

प्राइवेसी नाइट ऐपलॉक

प्राइवेसी नाइट ऐप को अलिबाबा समूह द्वारा विकसित किया गया है. यह एक ऐड फ्री ऐप है, जो प्ले स्टोर से फ्री डाउनलोड किया जा सकता है. हालांकि यह ऐप अभी बहुत ज्यादा चर्चित नहीं है. ये एक बेहतरीन ऐप लॉकर है. इसमें आपको पिन, पैटर्न, फिंगरप्रिंट, फेस लॉक तक की सुविधा मिलती है. प्राइवेसी नाइट की मदद से आप ऐप के साथ-साथ इनकमिंग कॉल को भी लॉक कर सकते हैं. इसके अलावा ऐप गलत पासवर्ड डालने वाले की फोटो भी ले लेता है.

नॉर्टन ऐप लॉक

आपने नॉर्टन एंटीवायरस के बारे में सुना होगा. कंपनी एंटीवायरस के साथ-साथ ऐप लॉक भी बनाती है जो कि एक ऐड फ्री सिक्यूरिटी ऐप है. इस ऐप से आप कई तरह के लॉक ऑप्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसमें आपको फिंगरप्रिंट, पिन या पैटर्न लॉक का विकल्प मिलता है। साथ ही तीन बार गलत पासवर्ड डालने वाले की ऐप तस्वीर भी ले लेता है जिससे आपको पता चल जाएगा कि आपके फोन का किसने इस्तेमाल किया था.

हेक्सलॉक ऐप लॉक

हेक्सलॉक नया ऐप है लेकिन अपने यूजर फ्रेडली इंटरफेस के कारण यह काफी चर्चित है. इस ऐप में भी आपको फिंगरप्रिंट, पिन और पैटर्न लॉक की सुविधा मिलती है. इस ऐप में आपको ऐड रिमूव करने का विकल्प मिलता है. आप ऐप को खरीदकर उससे ऐड को हटा सकते हैं. ऐप कई प्रकार की प्रोफाइल को सपोर्ट करता है. इसके साथ ही ऐप स्मार्टफोन का गलत पिन डालने वाले की तस्वीर भी ले लेता है.

ऐप लॉकर : फिंगरप्रिंट और पिन

ऐप लॉकर एंड्रॉयड मोबाइल ऐप दुसरे मोबाइल ऐप लॉकर की तरह चर्चित नहीं है लेकिन ये एक शानदार मोबाइल सिक्यूरिटी ऐप है. ऐप में कई यूनिक फीचर हैं. ऐप आपको कस्टमाइज ऐप लॉक का विकल्प देता है जो बहुत कम ही ऐप में मिलता है. इसके साथ-साथ ऐप आपको लॉकिंग के लगभग सभी विकल्प देता है, जो अन्य ऐप आपको प्रदान करते हैं.

ऐप लॉक

ऐप लॉक प्ले स्टोर का एक चर्चित ऐप लॉकर है. इसे अब तक 100 मिलियन से ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है. एंड्रॉयड स्मार्टफोन के लिए ये एक शानदार ऐप लॉकर है. ऐप लॉक की मदद से आप अपने ऐप के साथ-साथ वाईफाई, ब्लूटूथ, मोबाइल डाटा को भी लॉक कर सकते हैं. साथ ही ऐप लॉक आपको वार्निंग मैजेस की सुविधा भी देता है. इस ऐप में आप अपना फोटो और वीडियो वालेट भी बना सकते हैं, जिसमें आप अपनी फोटोज सेव कर के रख सकते हैं.

हरिनारायण राय : हीरो से बने जीरो

साल 2005 से ले कर साल 2009 के बीच झारखंड के त्रिशंकु जनादेश के बीच सब से ज्यादा मलाई काटने वाले हरिनारायण राय को कानून ने 7 साल के लिए जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है. हरिनारायण राय देश के पहले ऐसे नेता हैं, जो प्रिवैंशन औफ मनी लाउंड्रिंग ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाए गए हैं. उन पर साल 2007 से ले कर साल 2008 के बीच 4 करोड़, 83 लाख रुपए की मनी लाउंड्रिंग का आरोप है. उन के साथ उन की बीवी सुशीला देवी और भाई संजय राय भी जेल में ठूंस दिए गए हैं. राज्य की राजनीति में जीरो से हीरो तक की छलांग लगाने वाले हरिनारायण राय ने निर्दलीय विधायकों के साथ सियासत का खूब गेम खेला और करोड़ों रुपयों के वारेन्यारे किए. वे कई बार पाला बदल कर सरकार गिराने और बनाने का खेल खेलते रहे. एक के बाद एक 3 सरकारों को उन्होंने अपनी उंगलियों पर नचाया और जब चाहा सरकार बना दी, जब चाहा गिरा दी.

साल 2005 में अपनी सियासी पारी शुरू कर पहली बार विधायक बनने वाले हरिनारायण राय झारखंड के किंगमेकर बने और अब जेल की हवा खाने के लिए मजबूर हैं. प्रवर्तन निदेशालय की विशेष अदालत ने हरिनारायण राय को प्रिवैंशन औफ मनी लाउंड्रिंग ऐक्ट के तहत कुसूरवार पाया और उन्हें 7 साल की कैद की सजा सुना दी. साथ ही, उन पर 50 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है. 4 सितंबर, 2009 को ईडी ने उन के खिलाफ मनी लाउंड्रिंग मामले में केस दर्ज किया था. 27 नवंबर, 2011 को चार्ज फ्रेम हुआ था. 5 अक्तूबर, 1965 को देवघर में जनमे हरिनारायण राय पहली बार देवघर के जरमुंडी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव जीत कर साल 2005 में विधायक बने थे.

हरिनारायण राय के अलावा झारखंड के जिन नेताओं ने अपने इशारों पर कई सरकारों को बनाने और गिराने का खेल खेला, वे आज कानून के फंदे में फंस कर जेल और अदालत के बीच चक्कर लगा रहे हैं. करोड़ोंअरबों रुपयों की काली कमाई उन्हें जेल की काली कोठरी से नजात नहीं दिला पा रही है. आदिवासियों के लिए बने अलग राज्य झारखंड को मधु कोड़ा, एनोस एक्का, भानुप्रताप शाही, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह जैसे नेताओं ने लूट लिया. साल 2005 से ले कर साल 2009 तक कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा किया. आज पांचों नेता जेल की सलाखों के पीछे हैं.

मधु कोड़ा राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना घोटाला, प्रदूषण नियंत्रण घोटाला, कमाई से ज्यादा संपत्ति और मनी लाउंड्रिंग के मामले के आरोप में 30 नवंबर, 2009 से जेल की हवा खा रहे हैं. एनोस एक्का और हरिनारायण राय पर मनी लाउंड्रिंग व आमदनी से ज्यादा जायदाद रखने का आरोप साबित हो चुका है और दोनों सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए हैं. कमलेश सिंह भी इन्हीं आरोपों के पेंच में फंस कर सींखचों के पीछे दिनरात बिता रहे हैं. कोड़ा मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री रहे भानुप्रताप शाही 130 करोड़ रुपए के दवा घोटाला, मनी लाउंड्रिंग और आमदनी से ज्यादा कमाई के आरोप में 5 अगस्त, 2011 को सीबीआई के हत्थे चढ़े थे.

रांची महानगर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे विनय कुमार सिन्हा कहते हैं कि कानून से खेल करने वालों और जनता का भरोसा तोड़ने वालों को कानून ने सही जगह पहुंचा दिया है. कोड़ा मंत्रिमंडल में रहे 14 में से 5 लोग जेल की हवा खा रहे हैं, जिस में मुख्यमंत्री रहे मधु कोड़ा भी शामिल हैं. झारखंड बनने के बाद साल 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, भानुप्रताप शाही, एनोस एक्का और हरिनारायण राय को जीत मिली और तब से ये लोग झारखंड को लूटने और सत्ता का खेल खेलने में लगे रहे. चुनाव के तुरंत बाद शिबू सोरेन की अगुआई वाली संप्रग सरकार में ये पांचों शामिल हुए और 7 दिनों के बाद ही पाला बदल कर अर्जुन मुंडा की अगुआई वाली राजग सरकार का झंडा उठा लिया.

साल 2006 आतेआते उन लोगों को दूसरे का झंडा उठाने में खास फायदा नहीं दिखा, तो निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को मुख्यमंत्री बनने के लिए राजी कर सत्ता की पूरी चाबी अपने हाथों में ले ली. उस के बाद खुल कर लूट का खेल खेला और सत्ता की मलाई खाई. झारखंड में विधानसभा और अपने इलाके की जनता के बीच समय गुजारने के बजाय झारखंड के ज्यादातर विधायक और मंत्री जेल, अदालत, सीबीआई के दफ्तर और वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं. सरकार बनाने और गिराने के खेल में ‘मोटी कमाई’ करने वाले नेताओं ने अपनी सियासी जमीन तो कमजोर कर ही ली है, राज्य का भी कबाड़ा कर के रख दिया है.

राज्य के 15 विधायक पिछले साल हुए राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारों से पैसा ले कर वोट डालने के आरोप में सीबीआई के शिकंजे में फंसे हुए हैं. किसी का बंगला सील कर दिया गया है, तो किसी के बैंकों की पासबुक और जमीन के कागजात जब्त कर लिए गए. किसी के लैपटौप और मोबाइल फोन के डाटा को खंगालने के लिए सीबीआई अपने साथ ले गई. झारखंड विधानसभा में कुल 81 सीटें हैं और किसी भी दल या गठबंधन को सरकार बनाने के लिए कम से कम 42 सीटों की दरकार होती है. जानकारों का मानना है कि झारखंड में जबतब पैदा होने वाली सियासी उठापटक को दूर करने के लिए झारखंड विधानसभा में कम से कम 150 सीटें होनी चाहिए. विधानसभा सदस्यों की तादाद कम होने से ही अस्थिरता की हालत पैदा हो जाती है, जिस का खमियाजा झारखंड राज्य को भुगतना पड़ रहा है. सीटें बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार समेत राज्य की सियासी पार्टियां पिछले कई सालों से बात कर रही हैं, पर कोई नतीजा नहीं निकल सका है.

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