सदियों से भारत का दस्तूर रहा है कि यहां दिक्कतों के निबटारे के लिए वजहों को दूर नहीं किया गया, बल्कि टोटकों व ढकोसलों को तरजीह दी गई. मौजूदा समय में देश बुरी तरह से सूखे की चपेट में है. वैसे यह कोई नई बात नहीं है. पहले के जमाने में भी सूखा पड़ता था, मगर अब कुछ ज्यादा ही पड़ने लगा है. मौसम विज्ञानी इस बार के सूखे को अलनीनो तूफान का नतीजा मान रहे हैं. अलनीनो के असर से साल 2002, साल 2004, साल 2009 और साल 2014 भी सूखे की गिरफ्त में थे और यह साल भी सूखे की भेंट चढ़ चुका है.
मौसम के माहिर इस से बचने के लिए केवल सिंचाई के इंतजाम को दुरुस्त रखने की नसीहत देते हैं. दूसरी तरफ देश के तमाम किसान अपने धर्म के मुताबिक केवल पीढ़ी दर पीढ़ी चले आ रहे टोटकों में यकीन रखते हैं. वैसे इन टोटकों से पानी बरसने के बजाय सिर्फ पानी बरबाद होता है. देश के अलगअलग हिस्सों में अजीबोगरीब टोटके अपनाए जा रहे हैं. मध्य प्रदेश के तमाम किसानों का वर्ग जहां शिवलिंग पर जल छोड़ता है, तो वहीं उत्तर प्रदेश में टोटकों की झड़ी लगी हुई है. बिहार के कुछ हिस्सों में भी तरहतरह के टोटके बारिश होने के लिए आजमाए जाते हैं. कुछ खास टोटके जो बीते दिनों मीडिया की सुर्खियों में थे, इस प्रकार हैं :
कालकलौटी : उत्तर प्रदेश में सूखे से निबटने का यह सब से मशहूर खेल है, जिसे सूबे की कुछ जगहों पर कालकलौजी के नाम से भी जानते हैं. इस खेल में किसान बच्चों के ज्यादातर कपड़े उतार कर उन से कीचड़ वाली होली खेलने को कहते हैं. छतों के ऊपर से महिलाएं बच्चों को पानी से सराबोर करती हैं. बच्चे खूब हुड़दंग करते हैं और जम कर पानी बरबाद करते हैं. इस दौरान ‘कालकलौजी, कालकलौटी उज्जर धोती, मेघा सारे पानी दे, नहीं तो आपन नानी दे’ सरीखे कई फूहड़ गीत गाए जाते हैं. लोगों का मानना है कि ऐसा करने से बारिश के देवता खुश हो कर पानी बरसाते हैं.
पिछले दिनों इस खेल को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा तहसील के सहावपुर गांव में खेला गया. इसे वहां की जलबिरादरी के मुख्य कार्यकर्ता व ग्राम प्रधान राजेश प्रभाकर सिंह की देखरेख में किया गया था. जलबिरादरी पानी के संरक्षण जैसे मुद्दों पर काम करने वाली संस्था है, जो जलपुरुष का दर्जा पाए व रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह की अगवाई में पूरे देश में काम करती है. इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस के पिपरी पोखरा गांव में 40 से ज्यादा बच्चों ने जम कर डीजे की धुन पर कीचड़ और पानी बहा कर कालकलौटी खेला. उत्तर प्रदेश के जिले सिद्धार्थनगर के गदाखौव्वा गांव में भी यह खेल खूब हुआ. इस तरह से कालकलौटी खेल कर पानी और मिट्टी बरबाद करने की फेहरिस्त बहुत लंबी है. यह बात अलग है कि इस खेल से पानी की एक बूंद भी नहीं बरस सकी.
सहावपुर की 47 साला सरिता त्रिपाठी ने बताया कि इस खेल को खेलने में कम से कम 2 बड़े ड्रम (तकरीबन 400 लीटर) पानी बरबाद हो जाता है. उस के बाद नहानेधोने में भी काफी पानी खर्च होता है. इसी तरह कीचड़ के रूप में मिट्टी की बरबादी की बात करें, तो इस खेल में कई किलोग्राम मिट्टी बह जाती है, जबकि मिट्टी की सतह की 1 इंच परत बनाने में कुदरत को 300 से 1000 साल लग जाते हैं. शासकप्रशासक पर पानी उड़ेल देने का खेल : इस खेल में महिलाएं राजा (शासकप्रशासक) पर लोटे व बाल्टी से जी भर कर पानी उड़ेलती हैं. मान्यता के हिसाब से राजा के भीगने पर पानी के भगवान खुश होते हैं और बारिश होती है. पिछले दिनों इसी मान्यता के मुताबिक उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में कपिलवस्तु कोतवाली में 2 दर्जन महिलाओं का हुजूम उमड़ पड़ा. यह देख कर कोतवाली का सारा स्टाफ भाग खड़ा हुआ, मगर कोतवाली प्रभारी रणविजय सिंह रुक गए. बस फिर क्या था उन्हें महिलाओं द्वारा जम कर नहलाया गया. लीटरों पानी बरबाद हो गया. रणविजय सिंह का कहना है कि उन्होंने महिलाओं के जज्बातों की इज्जत की है.
हंडि़यों में कीचड़ भरने का खेल : यह खेल बिहार के कुछ हिस्सों में बहुत मशहूर है. मुजफ्फरपुर जिले के लौतन और पिलखी गांवों के रहने वाले किसानों हनुमान प्रसाद व रघुवीर महतो ने बताया कि उन के इलाके में कुछ जगहों पर एक हंडि़या में कीचड़ और पानी भर कर रात में गानाबजाना करते हुए किसी के दरवाजे के सामने फेंक देते हैं. लोगों की मान्यता है कि ऐसा करने से पानी बरसता है.
मकबरे और कब्रगाह की दुआएं: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के परियावां गांव के ऐफाज खान व आल मियां का दावा है कि 41 मुसलमान किसी मकबरे या कब्रगाह में जा कर दुआ करें, तो आदमी भीगते हुए ही आएगा. ऐसा करने से पानी बरसना तय है.
बहुत गहरी हैं टोटकों की जड़ें : उत्तर प्रदेश समेत अन्य सूबों में बरसाती टोटकों की जड़ें बहुत ही गहरी हैं. उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, बस्ती व बहराइच समेत तराई के कई जिले बहुत जल्दी बाढ़ग्रस्त हो जाते हैं. इन जिलों में बाढ़ आना आम बात है. ऐसे में वहां के किसानों का तो इन टोटकों से दूरदूर तक कोई मतलब ही नहीं होना चाहिए. पर इस बार इन जिलों में भी खूब टोटके आजमाए गए. कोतवाल प्रभारी को जम कर नहलाए जाने वाली घटना तो सिद्धार्थनगर की ही है. जल जैसी कुदरती दौलत को खूब बहाया गया, लेकिन बारिश का पानी फिर भी खेतों को तर नहीं कर पाया.
बेशर्म मीडिया : पिछले दिनों जब पानी जैसी कीमती कुदरती दौलत तमाम तरह के बरसाती टोटकों में बरबाद हो रही थी, तो देश की मुख्य धारा के मीडिया ने इसे बढ़चढ़ कर प्रकाशित और प्रसारित किया. कालकलौटी का खेल जब बनारस और प्रतापगढ़ में चला, तो देश के 2 नामी अंगरेजी अखबारों ने इसे पहले पेज की खबर बना दिया. देश के नामी हिंदी अखबार भी कहां पीछे रहने वाले थे. उन में भी इन बेसिरपैर की हास्यास्पद खबरों को भरपूर जगह मिली. दिक्कत यही है कि मीडिया लोगों को जागरूक करने के बजाय टोटकों को फैलाने का काम करती है.
कैसे होगा बचाव : इस बारे में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, लखनऊ के वैज्ञानिक जेपी गुप्ता ने कहा कि सूखा अलनीनो के असर से है. बचाव के लिए किसानों को नहरों, तालाबों व पोखरों की मदद से सिंचाई करनी चाहिए. ऐसी फसलें जिन को पानी बहुत जरूरी है और सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है, उन की नलकूपों से सिंचाई की जानी चाहिए. बरसाती टोटकों के बारे में जेपी गुप्ता का कहना है कि इन से कुछ भला नहीं होगा.
एक रिपोर्ट के मुताबिक गांवों के बारिश के पानी को यदि मात्र 14-15 फीसदी तक पोखरों व तालाबों में जमा कर दिया जाए, तो गांवों की सिंचाई से ले कर पीने के पानी तक की दिक्कत दूर हो जाएगी. मगर देश के ज्यादातर हिस्सों में बारिश के पानी को जमा नहीं किया जाता?है.नई प्रधानमंत्री सिंचाई योजना में नदी जोड़ो परियोजना शामिल है. सोलर लाइट से चलने वाले नलकूपों को लगा कर पानी लेने के साथसाथ हम बिजली की भी बचत कर सकते हैं. सूक्ष्म सिंचाई प्रक्रिया के तहत ड्रिप व स्प्रिंकलर सिंचाई के जरीए भी सूखे से मुकाबला किया जा सकता है. इन के लिए सूबों की सरकारें तमाम योजनाओं के जरीए अनुदान भी मुहैया कराती हैं. इस से तेजी से गिर रहे भूमि जल स्तर पर?भी काबू किया जा सकता है.