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भाग मिल्खा भाग

‘भाग मिल्खा भाग’ भारत के जानेमाने धावक मिल्खा सिंह की जीवनी पर बनी फिल्म है. मिल्खा सिंह के बारे में आज तक ज्यादा कहासुना नहीं गया है. मिल्खा सिंह 1960 में रोम ओलिंपिक में भारत की तरफ से दौड़ा था, मगर हार गया था. वह क्यों हारा था? 1956 में मेलबोर्न में हुई क्वालिफाइंग दौड़ में भी उसे हार का मुंह क्यों देखना पड़ा था, इन सब बातों पर रोशनी डालती इस फिल्म में मिल्खा सिंह के 13 वर्षों की दौड़ के जीवन को दिखाया गया है.

फिल्म का निर्देशन राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने किया है.  निर्देशक और उस की टीम ने मेहनत की है. फिल्म भले ही मिल्खा सिंह की रियल लाइफ पर बनी हो पर निर्देशक ने फिल्म को फनी बनाने के लिए कुछ प्रसंग ऐसे भी जोड़े हैं जो फिल्म को रोचक बनाते हैं. उड़ते जहाज में मिल्खा सिंह का सीट से खड़े हो कर शोर मचाना कि जहाज काफी ऊंचाई पर उड़ रहा है, पायलट जरूर इसे ठोकेगा. इस के अलावा मिल्खा सिंह का देसी घी से भरे 2-2 किलो के डब्बों को पी जाना जैसे प्रसंग ऐसे ही हैं. मेलबोर्न में क्वालिफाइंग दौड़ के लिए मिल्खा सिंह का एक पब में जा कर बीयर पी कर अंगरेज युवती के साथ नाचना और रात में अनजाने में ही सही, उस के साथ सैक्स करना जैसी बातें गले नहीं उतरतीं.

इस बायोग्राफिकल फिल्म में मिल्खा सिंह का किरदार ऐक्टर फरहान अख्तर ने निभाया है. मिल्खा सिंह जैसी बौडी बनाने के लिए उसे 6 महीने तक कड़ी मेहनत और अभ्यास करना पड़ा. मिल्खा सिंह की भूमिका के लिए निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने पहले अक्षय कुमार को एप्रोच किया था. अक्षय को लगा था, वह इस भूमिका के लिए फिट नहीं है. इसलिए उस ने मना कर दिया था. ‘भाग मिल्खा भाग’ के लिए फरहान अख्तर ने न सिर्फ मिल्खा सिंह जैसी बौडी बनाई है वरन अपने सिक्स पैक भी दिखाए हैं, जो हर वक्त फड़कते दिखते हैं. अधिकांश समय उसे बनियान पहने ही टे्रनिंग लेते दिखाया गया है. इस फिल्म में मिल्खा सिंह दौड़ा तो बहुत है परंतु फिनिश लाइन पर पहुंचतेपहुंचते उसे 3 घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है यानी फिल्म 3 घंटे से ज्यादा लंबी है. फिल्म की लंबाई कम से कम आधा घंटा कम होती तो फिल्म में जान आ सकती थी. आर्मी कैंप, भारतपाक बंटवारे और प्रेमप्रसंग के दृश्यों को आसानी से छोटा किया जा सकता था.

फिल्म की कहानी रोम ओलिंपिक से शुरू होती है. मिल्खा सिंह प्रतियोगिता में हार जाता है. यहीं से फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती है. भारतपाक बंटवारे के दौर में उस का परिवार पाकिस्तान के मुलतान शहर में रहता था. दंगाइयों ने उस के परिवार के सभी सदस्यों को मार डाला था. उस वक्त मिल्खा सिंह 10-12 साल का था. वह अपनी जान बचा कर भाग निकला था. दिल्ली पहुंचा मिल्खा सिंह एक रिफ्यूजी कैंप में अपनी बहन (दिव्या दत्ता) से मिला. दिल्ली में शाहदरा में अपनी बहन के घर में रहते हुए मिल्खा का दिल पड़ोस में रहने वाली निर्मल कौर (सोनम कपूर) पर आ गया. निर्मल के कहने पर मिल्खा सिंह ने आवारागर्दी छोड़ कर फौज में जाने का फैसला कर लिया. यहां मिल्खा के टैलेंट को फौज के कोच (पवन मल्होत्रा) ने पहचाना और फिर मिल्खा सिंह ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने अपने जख्मी पैरों के साथ दौड़ कर देश को कई पदक दिलवाए. एक बार पाकिस्तान के धावक को पछाड़ कर उस ने देश के गौरव को बढ़ाया. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा सिंह की इच्छा को पूरी करते हुए देश में एक दिन की छुट्टी की घोषणा की.

फिल्म की यह कहानी सुस्त रफ्तार से चलती है. निर्देशक ने मिल्खा सिंह से जुड़ी तमाम बातों को जरूर प्रभावशाली ढंग से दिखाया है. मसलन, एक ब्लैजर पाने के लिए मिल्खा सिंह को अपमान भी सहना पड़ा. फौज में रहते हुए दूध और अंडों के मोह ने उसे रेसिंग ट्रैक का रास्ता दिखाया.

फिल्म का निर्देशन अच्छा है. शंकर एहसान लोय का संगीत काबिलेतारीफ है. फरहान अख्तर ने तो अपनी भूमिका में जान फूंकी ही है, पवन मल्होत्रा का काम भी तारीफ के लायक है. सोनम कपूर आई और रोमांस कर के गायब हो गई. मिल्खा सिंह के बचपन का किरदार निभाने वाले कलाकार जाबतेज सिंह का तो जवाब नहीं. फिल्म का छायांकन काफी अच्छा है.

मिल्खा सिंह का जीवन समाज के लिए प्रेरणादायक – फरहान अख्तर

फिल्म ‘दिल चाहता है’ से निर्देशन के क्षेत्र में उतरने वाले फरहान अख्तर सिनेमा जगत से जुड़े दूसरे क्षेत्रों में भी धीरेधीरे कदम बढ़ाते रहे. उन की गिनती आज मशहूर फिल्म निर्माता, निर्देशक, लेखक व अभिनेता के रूप में होती है. इन दिनों वे फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ में मिल्खा सिंह का किरदार निभा कर चर्चा में हैं. हाल ही में शांतिस्वरूप त्रिपाठी ने उन से मुलाकात की. पेश हैं मुख्य अंश :

फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ करने से पहले आप मिल्खा सिंह से कितना वाकिफ थे?

सच कहूं तो उन्हें बहुत ज्यादा नहीं जानता था. मुझे यह पता था कि मिल्खा सिंह बहुत बड़े ऐथलीट हैं और उन्होंने तमाम रिकौर्ड बनाए हैं. लेकिन मुझे यह नहीं पता था कि उन्होंने 80 रेसों में भाग लिया और 77 में जीत हासिल की. उन की जिंदगी में क्याक्या हुआ, इस के बारे में भी मुझे जानकारी नहीं थी.

यह कैसी फिल्म है?

यह फिल्म एक ऐसे इंसान के जीवन पर आधारित है जो समाज के लिए प्रेरणादायक है. मेरा मानना है कि समयसमय पर देश की युवा पीढ़ी को जगाने के लिए इस तरह की प्रेरणादायक कहानियों पर फिल्में बनाई जानी चाहिए.

‘भाग मिल्खा भाग’ में अभिनय करने से आप के जीवन या आप की सोच में क्या बदलाव आया?

मिल्खाजी ने देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलवाया है. इंसानी तौर पर उन्होंने जो कुछ भी अपनी जिंदगी में सहा है, वह हमारे लिए प्रेरणादायक है. उन के प्रति मेरे मन में आदर बहुत ज्यादा बढ़ गया है.

मिल्खा सिंह से आप की पहली मुलाकात कब और कहां हुई?

फिल्म की स्क्रिप्ट के आधार पर इस फिल्म का हिस्सा बनने के लिए मेरी सहमति देने के बाद मैं सिनेमाई परदे पर मिल्खा सिंह जैसा दिखने के लिए टे्रनिंग ले रहा था. हमारी ‘दौड़ने’ की टे्रनिंग मुंबई के प्रियदर्शनी पार्क में चल रही थी, जहां पर 400 मीटर का एक ट्रैक है. एक दिन जब मैं टे्रनिंग ले रहा था, उसी दौरान फिल्म के निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा के साथ मिल्खा सिंहजी वहां पहुंचे. तभी उन से मुलाकात हुई.

किसी जीवंत लीजैंड का किरदार निभाना तलवार की धार पर चलना होता है. इस बात का कितना दबाव था?

मुझे कभी तनाव नहीं रहा. सिर्फ जिम्मेदारी का एहसास था. अब जिम्मेदारी से आप दब सकते हैं या उस जिम्मेदारी से प्रेरित हो सकते हैं. मैं इस जिम्मेदारी से दबने के बजाय पे्ररित होता गया.

मिल्खा सिंह का किरदार निभाने से पहले कोई टे्रनिंग ली?

मिल्खा सिंह की स्टाइल आम ऐथलीट से बहुत अलग रही है तो उस स्टाइल को पकड़ने के लिए हमारे लिए टे्रनिंग लेनी बहुत जरूरी थी. उन की खासीयत थी कि भागते समय उन का एक हाथ थोड़ा आगे जाता था. शूटिंग से पहले 6 माह तक हर दिन, रविवार को छोड़ कर सुबह और शाम 4-4 घंटे की टे्रनिंग होती थी. पूरे डेढ़ साल तक मैं ने एक समर्पित ऐथलीट की जिंदगी जी है. इस के अलावा संवाद अदायगी की भी टे्रनिंग होती थी.

तो क्या आप को पंजाबी भी सीखनी पड़ी?

फिल्म का फ्लेवर पंजाबी है पर भाषा ज्यादातर हिंदी या उर्दू ही है. आप को जान कर हैरानी होगी कि मिल्खा सिंह बचपन में अपने खास दोस्त सम्प्रीत के साथ मदरसे में पढ़ा करते थे. इसलिए उन की उर्दू व हिंदी की जबान बहुत साफ है. वे उर्दू में लिखते भी थे. लेकिन पिछले 50 साल से वे चंडीगढ़ में रह रहे हैं, इसलिए अब उन की भाषा में पंजाबी ऐक्सेंट आ गया है.

आप ने आर्मी बैकग्राउंड पर एक फिल्म ‘लक्ष्य’ बनाई थी. अब फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ के लिए जब आप आर्मी कैंप के पास हुसैनीवाला बौर्डर गए, उस वक्त आप की कौन सी यादें ताजा हुईं?

हमें अच्छी तरह याद है कि जब हम फिरोजपुर पहुंचे और हुसैनीवाला बौर्डर के लिए गए, आर्मी वालों को पता था कि हम वहां शूटिंग करने वाले हैं. उन लोगों ने हमें वहां शाम को फ्लैग सेरेमनी के लिए बुलाया था. शाम को फ्लैग सेरेमनी के वक्त दोनों देशों के सैनिक अपनेअपने देश के झंडे नीचे करते हैं और देशभक्ति के गीत बजाते हैं. मुझे बहुत अच्छा लगा जब उन्होंने हमारी फिल्म ‘लक्ष्य’ का गाना बजाया. वहां पहुंच कर मेरे रोंगटे खड़े हो गए.

आप खुद भी एक निर्देशक हैं. ऐसे में जब आप सैट पर पहुंचते थे तो क्या अपने भीतर के निर्देशक को घर पर छोड़ कर आते थे?

यह बात आप भी समझते हैं कि ऐसा हो नहीं सकता था. आखिर इंसान तो एक ही है. एक ही इंसान में दोनों चीजें हैं पर एक निर्देशक होने की वजह से मुझे पता है फिल्म एक निर्देशक का विजन होती है. मैं निर्देशक के विजन की कद्र करता हूं.

हर ऐथलीट के साथ कुछ न कुछ राजनीति या समस्याएं वगैरह भी होती रहती हैं?

हां, हर किसी की जिंदगी में बहुत बड़ा स्ट्रगल होता है. हम सभी को पता है कि एक ऐथलीट को दूसरे खिलाडि़यों के मुकाबले बहुत कम अहमियत दी जाती है. इस वजह से तमाम मातापिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स के प्रति बढ़ावा नहीं देते. मैं कुछ नहीं कर सकता पर मैं यह जरूर चाहूंगा कि फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ देख कर लोग इंस्पायर हों और खेल मंत्रालय के कानों पर भी जूं रेंगे.

आप एक एनजीओ मर्द (मैन अगेंस्ट रेप ऐंड डिस्क्रिमिनेशन) के साथ जुड़े हुए हैं. क्या इस के साथ जो काम शुरू किया था वह बंद कर दिया?

यह मेरा ‘लाइफ टाइम कमिटमैंट’ है. यह कभी बंद नहीं होगा. इस वक्त यह सोशल मीडिया पर बहुत ऐक्टिव है. इस का बहुत अच्छा रिस्पौंस मिल रहा है. 

पाठकों की समस्याएं

मैं 35 वर्षीया विवाहिता, 12 साल के बेटे की मां हूं. मेरा बेटा पढ़ाईलिखाई में अच्छा है. आजकल उस के व्यवहार में कुछ बदलाव आ गया है. कुछ समय से वह बड़ों की तरह व्यवहार कर रहा है. जब हम ने इस की वजह जानने की कोशिश की तो पता चला कि मेरी देवरानी, जिस के विवाह को 6 साल हो गए हैं, मेरे बेटे के साथ कुछ अजीब व्यवहार करती है. वह मेरे बेटे को जबरदस्ती अपने साथ सुलाती है और उस के साथ अश्लील व्यवहार करती है. एक बार मेरे पति ने भी उसे ऐसा करते हुए देखा. जब हम ने बेटे से इस बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चाची ऐसा 2-3 सालों से कर रही हैं. जब हम ने इस बारे में देवर और सासससुर से बात की तो वे डर कर बोले कि अगर हम कुछ कहेंगे तो वह दहेज के झूठे केस में फंसवा देगी. घर में सभी उस से डरते हैं. वह अपनी मनमरजी करती है. इस समस्या से कैसे निकलें?

इस तरह की बातें कम होती हैं पर नहीं होतीं, कहा नहीं जा सकता. इस तरह का पीडोफीलिया दुनियाभर में होता है. अब जब आप को अपनी देवरानी की अश्लील हरकतों का पता चल गया है तो अपने बेटे को उस से दूर रखें. बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए चाहें तो उसे होस्टल में भेजने का निर्णय लें. देवरानी को घर से अलग करने की बात कहें या फिर खुद अलग घर में चली जाएं. आप जितना उस से डरेंगी वह आप पर हावी होगी. जहां तक दहेज के झूठे केस में फंसाने की बात है, आप पहले ही किसी पुलिस अफसर से मिल कर सलाह ले लें. हो सकता है वह दहेज का झूठा केस बनाने की कोशिश में आप का साथ दे. यह समझना होगा कि आप का देवर भी अपनी पत्नी की बात को सही मानेगा और भतीजे की बात को झूठ.

मैं 67 वर्षीय पुरुष हूं. मृत्यु के बाद देहदान करना चाहता हूं. इस बारे में जानकारी दीजिए.

देहदान ऐसी प्रक्रिया है जिस में इंसान अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों का दान कर के किसी दूसरे शख्स की जिंदगी बचा सकता है. वे व्यक्ति जो यह समझते हैं कि मृत्यु के बाद उन की देह किसी के काम आए तो वे अपना पंजीकरण किसी भी मैडिकल शिक्षण संस्थान के एनाटोमी विभाग में करवा सकते हैं. इस के लिए हर मैडिकल संस्थान में एक सहमति फार्म निशुल्क उपलब्ध होता है. अंग रिट्रीवल बैंकिंग संगठन यानी ओआरबीओ मैडिकल साइंसेज के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स, नई दिल्ली में स्थित है. इस संगठन का संबंध अस्पतालों, संगठनों के साथ रहता है. यह अंगदाता और बीमार रोगियों की प्रतीक्षा सूची रखता है. आप यहां से भी देहदान के लिए फार्म ले सकते हैं. इस फार्म पर 2 गवाहों के हस्ताक्षर होने जरूरी होते हैं. आप भले ही किसी भी धर्म या जाति के हों, अपने दिल, फेफड़े, जिगर, गुर्दा, हड्डियां व त्वचा आदि का दान कर सकते हैं.

मैं 20 वर्षीया, मध्यवर्गीय अविवाहिता हूं. मेरे पिता नहीं हैं और मां एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं. मैं देखने में सुंदर हूं और अभिनय में रुचि रखती हूं, अभिनेत्री बनना चाहती हूं पर मेरी मां और बौयफ्रैंड नहीं चाहते कि मैं फिल्मलाइन में जाऊं. आप मुझे अभिनेत्री बनने का कोई आसान रास्ता बताइए?

आप की अभिनय में रुचि है और आप अभिनेत्री बनना चाहती हैं. इस में कोई बुराई नहीं है. आप अभिनेत्री बनने के लिए आसान राह जानना चाहती हैं. देखिए, सफल होने की राह आसान नहीं होती फिर चाहे वह अभिनय की ही क्यों न हो. वहां भी संघर्ष करना पड़ता है. अपनी मां की मरजी के खिलाफ कोई रास्ता न अपनाएं. अगर आप समझती हैं कि आप में सचमुच काबिलीयत है तो अपनी मां को इस का विश्वास दिलाएं व उन की मरजी के अनुसार ही कोई निर्णय लें. इस क्षेत्र में जोखिम है पर सफलता उन्हें ही मिलती है जो जोखिम लेते हैं.

मैं 36 वर्षीय विवाहित, 2 बच्चों का पिता हूं. ससुराल में केवल सास हैं जो बीमार रहती हैं. मेरी पत्नी उन की इकलौती संतान है. सास की बीमारी के कारण मैं और मेरे घर वाले पत्नी को हर 10-15 दिन में मायके भेज देते थे. पत्नी अब बच्चों व घरपरिवार की जिम्मेदारी नहीं समझती. सास भी बेटी को समझाने के बजाय बारबार अपने पास बुलाती रहती हैं. एक बार तो पत्नी ने हद ही कर दी, 1 वर्षीय बेटी को मेरे पास छोड़ कर मां के पास चली गई और वहां से उन्हें उन की बहन के घर ले गई. मुझे इस बारे में कुछ नहीं बताया. जब मैं ने फोन किया तो फोन काट दिया. मुझे कहीं से असलियत पता चली तो मैं उन के घर गया. सास की तबीयत खराब थी.  मैं ने इलाज करवाया व पत्नी को समझाबुझा कर घर ले आया. लेकिन पत्नी के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया. सास भी बारबार फोन कर के बेटी को सिखाती रहती हैं कि घर का काम मत करना आदि. पत्नी गैरजिम्मेदार होती जा रही है. जिंदगी बहुत तनावपूर्ण हो गई है. आप ही राह सुझाइए.

आप की पत्नी आप की उदारता व आजादी का गलत फायदा उठा रही है. मां की बीमारी को हथियार बना कर वह घरपरिवार की जिम्मेदारियों से भाग रही है, जो सरासर गलत है. ऊपर से आप की सास भी बेटी को सही सीख देने के बजाय गलत राह दिखा रही हैं. आप को अपनी पत्नी से सीधेसीधे बात करनी चाहिए. पत्नी से कहें कि आप उसे मायके तभी भेजेंगे जब वहां वास्तव में जरूरत होगी और घर की जिम्मेदारी समझने के लिए भी पत्नी से कड़े शब्दों में कहें. आप पत्नी से कहें कि जिस तरह आप अपनी सास के बारे में सोचते हैं उसी तरह उसे भी आप के परिवार के बारे में सोचना होगा, तभी गृहस्थी की गाड़ी पटरी पर आएगी.

 

पथरीले रास्ते

कहीं धूप मिली, कहीं छांव मिली

हर मौसम को हंस कर बिताया हम ने

दर्द ओ प्यार की कशमकश में

हंसतेहंसते आंसू बहाए हम ने

 

सफर ये आसां न होगा

जान कर भी कदम बढ़ाया हम ने

खुशी और गम जो भी मिले

दोनों को गले लगाया हम ने

 

इस दुर्गम रास्ते के कांटों से

आशियां अपना सजाया हम ने

जीवन के पथरीले रास्ते पर

कुछ खोया, कुछ पाया हम ने.

श्रेया आनंद

 

बच्चों के मुखसे

बात उन दिनों की है जब मैं शादी के बाद पहली बार पति के साथ वापी आई थी. पति के औफिस चले जाने के बाद मु?ो घर में बोरियत महसूस न हो, इस के लिए पति के एक घनिष्ट मित्र की पत्नी मुझे अपने घर ले जाती थीं. वे हमारे घर के सामने ही रहती थीं. पहले दिन ही उन का साढ़े 4 वर्षीय पुत्र, जो जूनियर केजी में पढ़ता था, घर लौटते ही अपनी मां से बोला, ‘‘मम्मी, टीचर ने बोला है, अगले फ्राइडे कंपीटिशन है, लवस्टोरी याद कर के आना.’’  

मैं कुछ क्षण चुप रही, फिर जब अपनी उत्सुकता को रोक न सकी तो पूछ ही लिया, ‘‘दीदी, ये स्कूल वाले कैसे हैं जो बच्चों को लवस्टोरी याद कर के आने को बोला है?’’ इस पर उन्होंने जोर का ठहाका लगाया और बोलीं, ‘‘अरे मीनाक्षी, उन्होंने लवस्टोरी नहीं बल्कि लव, स्टोरी याद कर के आने को बोला है.’’ दरअसल, उस बच्चे का नाम ‘लव’ था.

मीनाक्षी अरविंद कुमार, वापी (गुज.)

 

मेरा 3 वर्ष का नाती दक्ष बहुत ही सम?ादारी की बातें करता है. एक दिन उस के पापा ने पीने के लिए जैसे ही पानीभरा गिलास मुंह से लगाया, दक्ष अपने लिए पानी मांगने लगा. सो, उस के पापा ने वही पानी का गिलास उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया. वह तुरंत बोला, ‘‘नहीं पापा, मु?ो आप का ?ाठा पानी नहीं पीना, मु?ो अपना वाला सच पानी पीना है.’’ हम सब का हंसतेहंसते बुरा हाल था कि बच्चा ?ाठा और जूठा में अंतर नहीं जानता.

सरिता असारी, जबलपुर (म.प्र.)

 

मैं प्रीप्राइमरी कक्षा की अध्यापिका हूं, जिस में साढ़े 3 साल के बच्चे पढ़ते हैं. हर साल की तरह अप्रैल माह में नए बच्चों का आगमन हुआ. उन में एक बच्चा ऐसा भी था जो दिखने में बहुत छोटा था मगर बातें दुनियाभर की करता था. एक दिन उस के पिता, जो उसे रोज लेने आते थे, देर तक नहीं आए.

मैं ने उस से बात करने की गरज से पूछा कि पापा क्या करते हैं तो बोला कि पापा की फू्रटी की दुकान है. कुछ देर बाद उस के पापा आए और कहने लगे कि यह घर पर स्कूल की कोई बात नहीं बताता, क्या स्कूल में भी चुप रहता है?

मैं ने कहा, ‘‘क्लास में तो यह बहुत बातें करता है बल्कि आज ही बता रहा था कि आप की फू्रटी की दुकान है.’’ उस के पापा जोर से हंसे और बोले, ‘‘असल में यह जब भी दुकान आता है तो फू्रटी जरूर पीता है. बच्चे की भोली बातों पर हम दोनों बहुत हंसे.

अंजू भाटिया, जयपुर (राज.) 

सवाल

क्यों तुम्हारी आंखों में

तूफान उमड़ आया है

क्या किसी ने फिर

यादों के झरोखे पे खटखटाया है?

 

जो फूल दिया था उस ने कभी

खिलाखिला, महकामहका

क्या वही सूखा हुआ

किताब में निकल आया है?

 

जो तराना उस ने सुनाया था कभी

किसी पेड़ के नीचे

क्या वही पास से गुजरते

किसी ने गुनगुनाया है?

 

जो डोर बांधी थी कसमों की, वादों की, साथ में उस डाल पर

क्या उसी डाल का कोई पत्ता

उड़ कर इधर चला आया है?

 

क्यों मुरझाया हुआ है चेहरा

आज इस कदर यों तुम्हारा

क्या ख्वाबों में मुसकराता

वही चेहरा उतर आया है?

 

न पूछो, न टोको, न कहो कुछ भी

न कोई सवाल करो अब

बड़ी मुश्किल से मैं ने

मन को थपका कर सुलाया है.

जयश्री वर्मा

 

डहेलिया मन मोहे

दिल लुभाते डहेलिया के फूल घर, आंगन और बगीचे को अपनी रंगबिरंगी किस्मों से खूबसूरत गुलदस्ते में तबदील कर देते हैं. इन फूलों को लगाने और नर्सरी से जुड़ी तमाम जानकारियां दे रहे हैं गंगाशरण सैनी.

मौसमी फूलों में डहेलिया अपने विविध रंग, रूप व आकारों के कारण उद्यान को आकर्षक व मनमोहक बनाता है. उद्यानप्रेमी इसे आसानी से उगा सकते हैं. डहेलिया की जन्मभूमि मैक्सिको है. वनस्पति वैज्ञानिक ऐंडरोस डेहल के नाम पर इस फूल का नाम ‘डहेलिया’ रखा गया. यह एक अत्यंत आकर्षक उद्यानी पौधा है. इस का तना खोखला होता है, इस के फूलों से गुलदस्तों को सजाया जाता है. डहेलिया के नाना प्रकार की संरचना वाले विभिन्न रंग, रूप व आकार के फूल पाए जाते हैं. थोड़ी सी देखभाल और मेहनत से आप भी डहेलिया के मनमोहक फूल गमलों व क्यारियों में उगा कर लाभान्वित हो सकते हैं.

वर्गीकरण

डहेलिया सोसाइटी ने डहेलिया को 11 भागों में विभक्त किया है, परंतु इन में 3 वर्ग प्रमुख हैं :

जायंट डैकोरेटिव : इस वर्ग के फूलों की पंखडि़यां सघन व एकदूसरे पर चढ़ी प्रतीत होती हैं. इस के फूलों के मध्य में एक पीली या भूरी घुंडी होती है. फूल का व्यास 30-45 सैंटीमीटर तक होता है.

कैक्टस : यह डहेलिया की सब से उन्नत प्रजाति है. इस के फूलों की पंखडि़यां नुकीली, कुछ सघन व मुड़ी हुई होती हैं. इस प्रजाति के फूलों का व्यास भी 30-45 सैंटीमीटर होता है.

पौमपोन डहेलिया : इस प्रजाति के फूलों का व्यास लगभग 7.5 सैंटीमीटर होता है. फूल सफेद, गुलाबी, पीले, लाल व हलके बैगनी रंग के होते हैं. इस प्रजाति की किस्में गमलों में उगाने हेतु उत्तम हैं.

विश्व में डहेलिया की लगभग 24 हजार किस्में उपलब्ध हैं, जिन में से लगभग 2 हजार किस्मों की व्यावसायिक खेती की जाती है.

प्रवर्धन

डहेलिया का प्रवर्धन 3 विधियों द्वारा किया जाता है :

बीज द्वारा : फूल की नई किस्मों के विकास में इसे बीज द्वारा उगाया जाता है. जब डहेलिया को क्यारियों में उगाया जाता है तो बीज द्वारा ही उगाया जाता है.

कलमों द्वारा : इस विधि का उपयोग व्यावसायिक उद्यमियों द्वारा किया जाता है. कलमें कांचघरों में उगाई जाती हैं. इन्हें नवीन शाखाओं से उस समय काटा जाता है जब उन पर पत्तियों के 3-4 समूह आ चुके हों. इन कलमों को सावधानीपूर्वक काटछांट कर पंक्ति से पंक्ति में एकदूसरे से 2.5 सैंटीमीटर की दूरी पर शुद्ध बालू में उगाते हैं.

कंदों द्वारा : यह डहेलिया के प्रवर्धन की सब से आसान व प्रचलित विधि है. इस में कंदीय जड़ों को अलगअलग कर के क्यारियों में रोपा जाता है. कंद को अलग करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि प्रत्येक कंद के साथ तने का कुछ भाग अवश्य रहे, ताकि उस से नवीन शाखा का विकास हो सके. कंदीय जड़ों को अलगअलग कर के रोपा जाता है.

आबोहवा व मिट्टी

डहेलिया उगाने के लिए खुली धूप वाली जगह उत्तम रहती है. ऐसे स्थान के आसपास बड़े वृक्ष नहीं होने चाहिए. डहेलिया को वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है परंतु उचित जल निकासी वाली रेतीली दोमट भूमि और मिट्टी में जैविक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों तो वह सर्वोत्तम मानी गई है. भूमि की समय पर जुताई करना या भूमि को 30 सैंटीमीटर की गहराई तक खोदना और उस के बाद हैरो चला कर पाटा लगाना चाहिए.

सहारा देना

डहेलिया की लंबी बढ़ने वाली किस्मों को सहारा देना जरूरी होता है. तने के निचले भाग से निकलने वाली अतिरिक्त शाखाओं को निकालते रहना चाहिए. यदि प्रदर्शनी हेतु पौधे तैयार करने हों तो एक तने पर केवल एक ही कली रहने दें और शेष कलियों को तोड़ दें. ऐसे पौधों को कुछ समय के लिए छायादार स्थानों पर रखें. फूल आते समय उगे पौधों को छाया में रखने से फूलों का रंग फीका नहीं पड़ता है और इस तरह सुंदर फूलों का भरपूर आनंद उठाएं.

बाल बाल बचे

कुछ दिन पहले हम अपने भाईभाभी को ले कर ताजमहल देखने के लिए आगरा गए. प्रवेशद्वार पर हमारे पास जो भी खानेपीने की चीजें थीं, रख ली गईं. सामान्य औपचारिकता पूरी होने के बाद हम अंदर पहुंचे. अचानक भाभी की तबीयत खराब हो गई. डाइबीटिक होने के कारण उन्हें तुरंत कुछ खानेपीने की जरूरत थी. मेरे पति ताज के बाहर से कोल्डड्रिंक्स लाने के लिए चले गए. लेकिन उन के जाने व आने के बीच की अवधि में भाभी की तबीयत और भी खराब हो गई.

तभी एक दंपती पर हमारी नजर पड़ी. उन की गोद में बच्चा था. उन्होंने अपने साथ बच्चे के लिए दूध का पाउडर रखा था. हमारी परेशानी देख कर उन लोगों ने वह पाउडर भाभी के लिए दे दिया. धन्य हैं वह दंपती जिन्होंने अपने बच्चे की भूख की परवा न करते हुए वक्त पर भाभी की जान बचाई.

नीरू श्रीवास्तव, मथुरा (उ. प्र.)

 

एक बार मैं अपने पति के साथ मोटरसाइकिल पर जा रही थी. मैं गर्भवती थी. रास्ते में एक छोटा बच्चा सड़क पर भागता हुआ निकला. उसे बचाने के चक्कर में मोटरसाइकिल का संतुलन बिगड़ गया और मैं अपनी सीट से फिसल गई. सड़क पर गिरतेगिरते मैं ने अपने पति की बैल्ट पकड़ ली. रुकतेरुकते भी मोटरसाइकिल 25-30 फुट घिसटती गई. लेकिन इतना घिसटने के बाद भी मु?ो कुछ न हुआ और मेरा बच्चा भी बच गया. मैं बैल्ट न पकड़ती तो जाने क्या होता.

आशा गुप्ता, जयपुर (राज.)

 

हमें अपने लिए जल्दी ही एक फ्लैट लेना था. हम ने कई बिल्डरों के फ्लैट देखे. उन में से एक फ्लैट ठीक लगा. हम ने फ्लैट की बुकिंग करा ली और बुकिंग राशि के लिए चैक बिल्डर को दे दिया. घर आ कर हम खुश थे कि मनपसंद जगह उचित कीमत में मिल गई.

अगले दिन जब मैं औफिस गया तो वहां दोस्तों के बीच फ्लैटों के विषय में बातें हो रही थीं और लोग उसी जगह की बात कर रहे थे. उन की बातों से पता चला कि कुछ कानूनी कारणों से वह जमीन हमारे बिल्डर के नाम पर नहीं थी. मैं ने तुरंत बिल्डर को फोन लगाया. पहले तो उस ने बुकिंग का चैक देने से मना कर दिया. परंतु काफी कहनेसुनने पर कुछ पैसे काट कर देने के लिए तैयार हो गया. 2 दिन बाद बिल्डर के एक आदमी का फोन आया और उस ने बताया कि हस्ताक्षर मैच न होने के कारण मेरा चैक कैश नहीं हो पाया. इस तरह मैं ठगी से बच गया.

अविनाश जैन, लोधी रोड (दिल्ली)

गुलजार करे आशियाना गुलदाऊदी

बदलते मौसम खासकर शीतऋतु में गुलदाऊदी के रंगबिरंगे फूल न केवल आप के आसपास के माहौल को खुशनुमा बनाते हैं बल्कि आप के आशियाने और बगिया को भी गुलजार करते हैं. इस की सुंदरता से आप का घर कैसे खिलखिलाए, बता रहे हैं अशोक कुमार चौहान.

शीतऋतु आते ही सब से पहले गुलदाऊदी के पौधों पर भिन्नभिन्न रंगों के फूल खिलते हैं. पाश्चात्य जगत ने इसे गुलदाऊदी यानी ‘सुनहरा फूल’ की संज्ञा दी है. गुलदाऊदी के फूल घर की सजावट में चारचांद लगाते हैं. इस की सफेद, पीली, बसंती, गुलाबी, बैगनी आदि रंगों की किस्में विकसित की जा चुकी हैं.

गुलदाऊदी के फूलों को कई वर्गों में बांटा गया है. पुष्पों का वर्गीकरण उस की पंखड़ी की आकृति व आकार पर निर्भर होता है. गुथे हुए गोल गेंदनुमा फूल को ‘इनकर्व्ड’, आधा खुला आधा गोल फूल को इंटरमीडिएट, बाहर की ओर बिखरी पंखड़ी वाले को रिफ्लैक्स्ड, तंतुनुमा सूर्यकिरणों जैसे फूल को स्पून कहते हैं. छोटे फूलों वाली किस्में एनीमोन, कोरियन पोम्पान, वटन आदि भी पाई जाती हैं.

गुलदाऊदी के फूलों को बगीचे या गमलों में उगाने के लिए काफी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती है. इस के लिए पिछले वर्ष के पौधों से अंकुरित नई जड़ें, जिन्हें सर्कस कहते हैं, निकाल कर नए पौधे तैयार करने पड़ते हैं या पुराने पौधों की शाखाओं के शीर्ष भाग से 3 से 4 पत्तियों वाली कटिंग काट कर उन्हें रेत में लगा कर गुलदाऊदी के नए पौधे तैयार किए जाते हैं. कटिंग की लंबाई 3 इंच होनी चाहिए और सुबह के वक्त कटिंग को काटना अच्छा रहता है. कटिंग से जल्दी जड़ें निकलें, इस के लिए नीचे के कटे भाग को रुटेक्स के पाउडर से उपचारित कर लें.

कटिंग लगाने में घुली हुई रेत का प्रयोग किया जाए तो और भी बेहतर परिणाम प्राप्त होते हैं. कटिंग लगाने के लिए उथले गमले, चाहे वे गोल या चौकोर हों, प्रयोग करना बेहतर रहता है. इस प्रकार पौधों से कटिंग को ले कर 5 सैंटीमीटर की दूरी पर इन गमलों में समूहों में लगाते हैं. इन में लगाने के 15 से 20 दिन में जड़ें निकल आती हैं और नए पौधे तैयार हो जाते हैं.

तैयार पौधे लगाने के लिए 4 हिस्सा दोमट मिट्टी, 4 हिस्सा पत्ती की खाद और 4 हिस्सा गोबर की सड़ी खाद मिला कर मिश्रण तैयार कर के गमले भर देने चाहिए. मिट्टीजनित रोग न होने पाएं, इस के लिए थिमेट-10 जी या डायथेन एम-45 की 3 ग्राम मात्रा प्रति 10 इंच के आकार के गमलों में रोपाई से पूर्व गमलों में मिश्रण भरते समय मिलाना चाहिए.

वर्षा ऋतु का समय इस पौधे की वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है. छोटे फूल वाली किस्मों के पौधों को घना करने व प्रति पौधा अधिक संख्या में फूल लेने के लिए ‘पिंचिंग’ करनी चाहिए. इस से पौधे को उचित आकार भी दिया जा सकता है. छोटे फूल वाली किस्मों के पौधों की उचित देखभाल कर के लगभग 100 फूल प्रति पौधे हासिल किए जा सकते हैं. ये एकसाथ खिलते हैं, जिस से पूरा गमला फूलों से भरा हुआ बहुत खूबसूरत दिखाई देता है.

बड़े आकार के फूल देने वाली किस्मों को उगाने के लिए 8 से 9 इंच आकार के गमलों का चुनाव उपयुक्त रहता है. यदि प्रति पौधे से एक फूल लेना चाहते हैं तो पिंचिंग करने की आवश्यकता नहीं है किंतु यदि एक पौधे से 2 से 3 फूल लेने हों तो पिंचिंग करने की आवश्यकता होती है. पौधों में पिंचिंग करने के लिए पौधे के शीर्ष का 3 से 4 इंच हिस्सा हाथ से नोंच देते हैं. यह कार्य पौधों में कलिका बनने से 10 सप्ताह पहले करना उपयुक्त रहता है. इस कार्य को करने से पौधे की ऊंचाई घटती है जबकि प्रति पौधे में फूलों की संख्या बढ़ जाती है और पौधे का फैलाव भी बढ़ जाता है.

गुलदाऊदी के पौधों की वृद्धि के दौरान उन को सीधा बढ़ने के लिए सहारा देने की आवश्यकता पड़ती है. सहारा देने के लिए बांस की डंडियों का प्रयोग करते हैं. बड़े फूल वाली किस्मों में स्टेकिंग के लिए डंडियों को पौधों की प्रारंभिक वृद्धि अवस्था में ही गाड़ना उपयुक्त रहता है ताकि जड़ों को कोई नुकसान न पहुंचे. छोटे फूलों वाली किस्मों में स्टेकिंग के लिए गमले के किनारे डंडियों को चक्राकार स्थिति में 4 जगह लगाने की आवश्यकता होती है और उन्हें सुतली या धागे से आपस में बांध देते हैं.

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