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गृहवाटिका से खाद्य सुरक्षा

सब्जियां हमारे भोजन को स्वादिष्ठ, पौष्टिक और संतुलित बनाने में सहायक हैं. इन के माध्यम से शरीर को कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, खनिज लवण, आवश्यक अमीनोएसिड व विटामिन मिलते हैं. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को अपने भोजन में लगभग 100 ग्राम पत्तेदार सब्जियां, 100 ग्राम जड़ वाली सब्जियां और 100 ग्राम दूसरी सब्जियां खानी चाहिए.

बाजार में उपलब्ध सब्जियां व फल आमतौर पर ताजे नहीं होते तथा महंगे भी होते हैं. साथ ही उन में मौजूद रोगाणुओं व हानिकारक रसायनों की मात्रा के कारण वे स्वास्थ्यकर भी नहीं होते. इसलिए बेहतर है कि खाने के लिए सब्जियों को अपने घर या घर के आसपास गृहवाटिका यानी किचन गार्डन में उगाएं जिस से खाद्य सुरक्षा के साथसाथ वाटिका में कार्य करने से घर के सदस्यों का व्यायाम भी हो जाए.

गृहवाटिका से कुछ हद तक सभी लोग जुड़ सकते हैं चाहे वे गांव में रहते हों या शहर में. बड़े शहरों में जहां पौधे उगाने के लिए जमीन की उपलब्धता नहीं है वहां भी कुछ चुनिंदा सब्जियों को गमलों व डब्बों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है. गांव में जहां जगह की कमी नहीं है, वहां सब्जियों के अलावा फल वाले पौधे जैसे पपीता, केला, नीबू, अंगूर, अमरूद, स्ट्राबैरी, रसभरी आदि भी आसानी से उगाए जा सकते हैं.

गृहवाटिका बनाते समय ध्यान रखें :

  1. गृहवाटिका के लिए खुली धूप व हवादार छायारहित स्थान या घर के पीछे दक्षिण दिशा सर्वोत्तम होती है.
  2. सिंचाई का प्रबंध अच्छा व स्रोत पास में होना चाहिए.
  3. अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि इस के लिए उपयुक्त होती है. सड़ी हुई गोबर की खाद की सहायता से खराब भूमि को भी सुधार कर गृहवाटिका के योग्य बनाया जा सकता है.
  4. गृहवाटिका का आकार व माप, स्थान की उपलब्धता, फल व सब्जियों की आवश्यकता और समय की उपलब्धता आदि पर निर्भर करता है. चौकोर आकार की गृहवाटिका सर्वोत्तम मानी जाती है.
  5. अगर वाटिका खुली जगह में बना रहे हैं तो उस के चारों ओर लकड़ी, बांस आदि की बाड़ बनानी चाहिए.
  6. जमीन की 10-15 सैंटीमीटर गहराई तक खुदाई करें व कंकड़पत्थर निकाल कर मिट्टी को भुरभुरा बना कर आवश्यकतानुसार क्यारियां बना लेनी चाहिए.
  7. क्यारियों में सड़ी गोबर की खाद व जैविक खाद आदि का प्रयोग करना चाहिए.
  8. सीधे बुआई की जाने वाली व नर्सरी द्वारा लगाई जाने वाली सब्जियों को लगाने से पूर्व जैव फफूंदनाशी व जैव कल्चर से उपचारित करने के बाद उचित दूरी पर बनी कतारों में बोना चाहिए.
  9. क्यारियों में समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए.
  10. गृहवाटिका में कीट नियंत्रण व बीमारियों से बचाव के लिए रासायनिक दवाओं का कम से कम प्रयोग करना चाहिए. नीमयुक्त व जैविक दवाओं का ही प्रयोग करना चाहिए.
  11. उपलब्ध जगह का अधिक से अधिक प्रयोग करने के लिए बेल वाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, करेला, खीरा आदि को दीवार के साथ उगा कर छत या बाड़ के ऊपर ले जा सकते हैं.
  12. जड़ वाली सब्जियां जैसे मूली, शलगम, गाजर व चुकंदर को गृहवाटिका की क्यारियों की मेड़ों के ऊपर बुआई कर के पैदा किया जा सकता है.

मौसमी फल व सब्जियां

ग्रीष्मकालीन सब्जियां : (बुआई का समय जनवरी से फरवरी) टमाटर, मिर्च, भिंडी, करेला, लौकी, खीरा, टिंडा, अरबी, तोरई, खरबूजा, तरबूज, लोबिया, ग्वार, चौलाई, बैगन, राजमा आदि.

वर्षाकालीन सब्जियां : (बुआई का समय–जून से जुलाई) टमाटर, बैगन, मिर्च, भिंडी, खीरा, लौकी, तोरई, करेला, कद्दू, लोबिया, बरसाती प्याज, अगेती फूलगोभी आदि.

शरदकालीन सब्जियां : (बुआई का समय–सितंबर से नवंबर) फूलगोभी, गाजर, मूली आलू, मटर, पालक, मेथी, धनिया, सौंफ, शलगम, पत्तागोभी, गांठगोभी, ब्रोकली, सलाद पत्ता, प्याज, लहसुन, बाकला, बथुआ, सरसोंसाग आदि.

उपरोक्त सब्जियों के अलावा गृहवाटिका में कुछ बहुवर्षीय पौधे या फलवृक्ष भी लगाने चाहिए, जैसे अमरूद, नीबू, अनार, केला, करौंदा, पपीता, अंगूर, करीपत्ता, सतावर आदि.

आवश्यक सामग्री

यंत्र : फावड़ा, खुरपी, फौआरा, दरांती, टोकरी, बालटी, सुतली, बांस या लकड़ी का डंडा, एक छोटा स्प्रेयर.

बीज : गृहवाटिका में कम जमीन के अंदर अधिक से अधिक उत्पादन देने वाले गुणवत्तायुक्त बीज या पौध को विश्वसनीय संस्था से खरीद कर प्रयोग करें.

पौधा : अधिकतर सब्जियों की पौध तैयार कर के बाद में रोपाई करते हैं. नर्सरी के अंदर स्वस्थ पौध तैयार कर के फिर उन की रोपाई कर या संस्था से पौध खरीद कर उन्हें गृहवाटिका में लगा कर सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

जैविक व रासायनिक खाद : गोबर या कंपोस्ट खाद का प्रयोग ही गृहवाटिका के अंदर करना चाहिए. इन के उपयोग से पौष्टिक व सुरक्षित सब्जियां उगाई जा सकती हैं. परंतु कभीकभी अभाव की दशा व अधिक उत्पादन हेतु यूरिया, किसान खाद, सुपर फास्फेट, म्यूरेट औफ पोटाश की थोड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है.

कीटनाशी व रोगरोधी दवाएं : गृहवाटिका के अंदर कीड़ों व बीमारियों का प्रकोप होता है तो ग्रसित पौधों के उस भाग को काट कर मिट्टी में दबा दें. प्रकोप होने पर जैविक कीटनाशी दवाओं का ही प्रयोग करें.

गृहवाटिका में छोटीछोटी क्यारियां बना कर और उन में सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिला कर क्यारियां समतल कर के उन में बीज की बुआई व पौध की रोपाई कर हलकी सिंचाई कर दें. आवश्यकतानुसार समयसमय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई करते रहना चाहिए. बीचबीच में पौधों को सहारा देना चाहिए. सब्जियां तैयार होने के बाद उन की उचित अवस्था में तुड़ाई कर के उन्हें उपयोग करें. उचित प्रबंधन व देखभाल के साथ गृहवाटिका के अंदर ताजी, पौष्टिक व स्वादिष्ठ सब्जियां पैदा की जा सकती हैं जो परिवार के भोजन को अधिक पौष्टिक व संतुलित बना सकती हैं. इस प्रकार, गृहवाटिका हमारी खाद्य सुरक्षा का एक विकल्प भी है.     

यह भी खूब रही

बात मई महीने की है. हमारे एक परिचित संपन्न व्यक्ति की बेटी की शादी तय हुई थी. साधारण रंगरूप की लड़की इंजीनियरिंग करने के बाद एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब कर रही थी. उस ने इंटरमीडिएट उत्तीर्ण लड़के से शादी करने के लिए हां कर दी थी. वह एक छोटी फैक्टरी चला रहा था. तिलक के 2 दिन पहले लड़के वालों ने लड़की के परिवार वालों को बात करने के लिए बुलाया व दहेज में 10 लाख रुपए की मांग कर दी, जिस के लिए लड़के को इशारा करते हुए लड़की के चाचा ने देख लिया था. लड़की वालों ने मन ही मन ऐसे लोगों के यहां शादी न करने का निश्चय कर लिया.

तिलक वाले दिन सारी व्यवस्था लड़के वालों ने की थी, परंतु टीका करने के लिए लड़की वालों की तरफ से कोई नहीं गया. लड़के वालों का फोन आ रहा था. अंत में लड़के वालों को मैरिज हौल का किराया, सजावट, खानेपीने के सामान आदि का खर्च दे कर बिना तिलक वापस लौट जाना पड़ा.

राधेश्याम गुप्ता, कोलकाता (प.बं.)

 

बात कुछ महीने पहले की है. मेरे पति बनारस से लखनऊ जा रहे थे. चूंकि इन्हें अकस्मात जाना पड़ा था इसलिए ये रिजर्वेशन नहीं करा पाए थे. टिकट ले कर ये टे्रन की जनरल बोगी में चढ़े तो देखा कि एक महाशय आमनेसामने की दोनों बर्थ पर अपना सामान रखे हुए थे. ये सामान खिसका कर बैठने लगे तो उन महाशय ने कहा, ‘‘यहां मेरे आदमी बैठे हुए हैं.’’ मेरे पति ने उन से पूछा, ‘‘आप के कितने आदमी हैं?’’ वे बोले, ‘‘12.’’ मेरे पति तपाक से बोले, ‘‘आप एक और आप के आदमी 12.’’ यह सुनते ही आसपास बैठे यात्री हंसने लगे और वे महाशय सकपका गए. उन्होंने तुरंत सामान हटा कर मेरे पति को बैठने की जगह दे दी.

श्वेता सेठ, सीतापुर (उ.प्र.)

मेरी दीदी ने जब अपने बेटे की शादी तय की थी तभी से होने वाली बहू सुमि के गुणगान शुरू कर दिए थे. सब से कहतीं कि मेरी बहू कराटे और ताइक्वांडो ऐक्सपर्ट है, पलक ?ापकते किसी को भी धूल चटा सकती है आदि. शादी के बाद जब भी कोई मिलने वाला आता तो दीदी का वही आलाप शुरू हो जाता. बहू भी इस सब को सुन कर घमंड से भरी रहती.

एक बार रात के 3 बजे थे. हमारे घर में चोर घुसा. खटपट की आवाज से दीदी की नींद खुल गई. वे जोरजोर से चिल्लाईं तो चोर बहू के कमरे की तरफ भागा. उधर, शोर सुन कर बहू भी बाहर निकल आई. चोर उस के सामने था, सब लोग चिल्लाए, ‘‘सुमि, पकड़ो, सुमि, मारो.’’ सुमि चोर को देखते ही गश खा कर गिर पड़ी. सब दीदी की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे कि यही है आप की कराटे व ताइक्वांडो ऐक्सपर्ट बहू?

अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

मसालों की बागबानी

खाने में स्वाद का तड़का लगाते मसालों की बागबानी न सिर्फ थाली में खुशबू फैलाती है बल्कि घर व बाग को प्रदूषणमुक्त बनाने में कारगर है. वर्तमान में मसालों की बागबानी फसलों के समूह का किस तरह अहम हिस्सा बन कर उभरी है, बता रही डा. रेखा व्यास.

हर पौधा उपयोगी है. यह और बात है कि कई पौधे ऐसे हैं जिन की उपयोगिता से हम अपरिचित हैं. आयुर्विज्ञानी चरक के गुरु ने चरक और एक और छात्र को उपयोगी वनस्पति लाने को कहा. वह छात्र सुबह से शाम तक घूम कर कुछ वनस्पतियों के नमूने ले कर वापस आ गया. चरक कई दिन तक न लौटे. जब लौटे तो खाली हाथ. सब ने खूब उपहास किया. गुरु ने इस का कारण पूछा तो उन्होंने बताया,  ‘मैं ने कई जगह भ्रमण किया. हर वनस्पति उपयोगी है, अब मैं किसकिस को साथ लाता. मु?ो कोई अनुपयोगी भी नहीं लगी कि मैं उसे ही साथ ला कर आप को दे देता कि यह अनुपयोगी है, शेष उपयोगी. अपनी बात प्रमाणित करने के लिए मैं वनस्पतियों के गुण भी लिख कर लाया हूं.’

अमूमन घर में छोटेछोटे पेड़पौधे, लताएं लगाई जाती हैं जो घर के अनुकूल हों और जिन के लिए घर भी अनुकूल हो. जगह कम होने के कारण कुछ लोगों को नितांत उपयोगी पौधे ही पसंद आते हैं. फूल कैक्टस, बोनसाई आदि उन्हें अपनी दृष्टि से महंगे व कम उपयोगी लगते हैं. हालांकि ये घर को ईकोफ्रैंडली और प्रदूषणमुक्त बनाने में भी कारगर होते हैं. ऐसी स्थिति में नितांत उपयोगी का कौंसैप्ट कुछ पौधे तक सीमित कर देता है. राजस्थान के एक किसान विनोद कुमार कहते हैं, ‘‘बड़े शहरों में फूल कैक्टस, सजावटी पौधों की मांग रहती है तो छोटे शहरों में खाद्य में काम आने वालों की पूछ होती है. इसलिए वे गमलों में करी पत्ते, मिर्च व धनिया के पौधे उगाते हैं और घर की जरूरत को पूरी करने के साथ अच्छा पैसा भी कमा लेते हैं.

मसालेदार पौधे कम जगह में आसानी से उगाए जा सकते हैं. ज्यादातर इन के पत्ते उपयोगी होते हैं. इसलिए इन्हें हैंडल करना आसान होता है. इन की कटाईछंटाई प्राकृतिक रूप से होती रहती है. पत्तों व डंठलों की सफाई का अतिरिक्त काम भी नहीं बढ़ता. इस तरह की पौध में धनिया, पुदीना, मिर्च, मेथी, अजवाइन, हलदी, राई, सरसों आदि लगा सकते हैं. एक पौध या पौध ?ांड आराम से मध्यम आकार के गमले में जगह बना लेता है. यदि इस तरह के दोदो गमले लगा दिए जाएं तो वे एक परिवार की सामान्य आवश्यकता पूरी कर सकते हैं. चूंकि इन में रासायनिक खाद नहीं डलती इसलिए ये धीरे व प्राकृतिक रूप से पनपते हैं. इन्हें खेत से बाजार तक का सफर करना नहीं पड़ता इसलिए ये अपना रूपगुण व पोषण नहीं खोते. धनिया, पुदीना की कुछ पत्तियां ही सब्जी, दाल आदि को खुशबूदार बना देती हैं.

अजवाइन की पत्तियां सूखे अजवाइन के मुकाबले तेज गंध लिए हुए होती हैं, इसलिए इन की कम मात्रा भी पर्याप्त रहती है. सूखी अजवाइन आकार में छोटी होने के चलते शरीर से पूरी की पूरी निकल जाती है. उस से पोषण नहीं मिल पाता जबकि पत्तीदार अजवाइन की कम मात्रा में ही ज्यादा पोषण मिल सकता है. खातेखाते उस की आदत पड़ सकती है यानी टैस्ट डैवलप हो सकता है.

मिर्च ?ांड में और गमले में अच्छीखासी तैयार हो जाती है. यदि लालमिर्च के विकल्प के रूप में उगाई जा रही है तो तेज चटपटी मिर्च बोनी चाहिए. गृहिणी पूजा कहती हैं, ‘‘हम ने आंध्रा वाली छोटी मिर्चें उगा रखी हैं. एक दिन में 4-5 मिर्च हमारी सब्जी और चटनी के लिए पर्याप्त होती हैं. 4-5 गमलों में उगाई गई मिर्चें सालभर के लिए पर्याप्त रहती हैं. हमें बाजार से मिर्चें खरीदे कई साल हो गए.’’

सुश्री राधा बताती हैं कि वे चूंकि गाती हैं इसलिए घर की अजवाइन उन के लिए स्वाद और स्वास्थ्यकारी रहती है. वे बताती हैं, ‘‘पत्तियों का पाउडर बना कर सालभर के लिए रख लेती हूं. बेमौसम वह खूब काम आता है. फिर बोने के लिए भी खास मेहनत नहीं करनी पड़ती. थोड़े सी अजवाइन के दाने प्लास्टिक की मिट्टीभरी बालटी और मिट्टी के गमलों में बुरक देती हूं, बस.’’

पूसा के प्रख्यात सब्जी वैज्ञानिक डा. प्रीतम कालिया कहते हैं, ‘‘मसालेदार पौधे वे हैं जिन के पत्तों को या बीजों को  ग्राइंड कर के काम में लाते हैं. ये पौधे परोमेटिक होने के साथसाथ मैडिसिनल भी होते हैं. घरेलू स्तर पर इन के लिए किसी खास प्रजाति की संस्तुति नहीं की जाती. आमतौर पर मौसम व उस स्थान की जलवायु के अनुसार इन्हें आसानी से लगाया और तैयार किया जा सकता है.’’

केरल में कालीमिर्च, राजस्थान में जीरा, राई, सरसों, दिल्ली में लौंग, कालीमिर्च आसानी से उगाई जा सकती हैं. खाद विज्ञानी डा. जी सी श्रोनिम कहते हैं, ‘‘पौधा छोटा हो तो भी वह प्रदूषण को कम करता है, इसलिए ऊपर के घरों या छोटे घरों में भी इन की उपयोगिता है. मसालेदार पौधे, हलदी को छोड़ कर, ज्यादा गहरे नहीं होते. ये छोटे बरतनों, गमलों, बालटियों आदि में भी लगाए जा सकते हैं.’’

गौरतलब है कि इन घरेलू पौधों में खाद की ज्यादा जरूरत नहीं होती. उम्दा मिट्टी व गोबर का मिट्टी में मिलना भी इन के लिए पर्याप्त रहता है. एक ही गमले में बारबार एक ही चीज के बजाय बदलबदल कर लगाना ज्यादा उपयोगी रहता है. चूंकि इन घरेलू उत्पादों को सीधे धो कर तोड़ते ही उपयोग में लाया जा सकता है इसलिए इन की गुणवत्ता लाजवाब होती है.

बोनसाई : कद छोटा काम बड़ा

बोनसाई ऐसा वृक्ष होता है जिसे एक छोटे पात्र में उगा कर परिपक्व बना दिया जाता है. बोनसाई छोटे पात्रों में सजावटी वृक्षों या झाड़ियों को उगाने की एक कला है जिस में उन की वृद्धि को बाधित कर दिया जाता है. पौधा उगाने की इस विशेष पद्धति में ट्रे जैसे कम ऊंचाई के गमले या किसी अन्य पात्र में पौधे को उगाया जाता है और उस की समयसमय पर कटाईछंटाई कर के उस की वृद्धि को रोका जाता है. सालों की मेहनत के बाद जा कर कोई पौधा बोनसाई वृक्ष बनता है.

बोनसाई का उद्देश्य खाद्य या औषधीय उत्पादन नहीं होता. ये आनुवंशिक रूप से बौने पौधे भी नहीं होते (जोकि एक भ्रांति है). किसी भी पादप जाति के पौधे का बोनसाई विकसित किया जा सकता है. बोनसाई उगाने की तकनीक में टहनियों की छंटाई, जड़ों को छोटा करना, पात्र बदलना और पत्तियों को छांटने जैसी गतिविधियां एक निश्चित अंतराल पर करनी होती हैं.

बोनसाई पौधे उगाना कम खर्चीला और अधिक रोचक काम होता है. अपनी पसंद के पौधे को चुन कर उसे बोनसाई वृक्ष में विकसित करना अपनेआप में एक अनोखा अनुभव होता है. बोनसाई दरअसल पौधा उगाने की एक असामान्य विधि होती है जिस में बीज से बोनसाई का विकास नहीं होता बल्कि एक परिपक्व पौधे या उस के किसी हिस्से से इसे विकसित किया जाता है.

खुले मैदान या बागीचे में उगने वाले पेड़ अपनी जड़ों को भूमि के नीचे कई मीटर तक बढ़ा कर विकसित कर पाते हैं क्योंकि उन के विकास में कोई बाधा नहीं होती. इस के अलावा प्राकृतिक आवास में विकसित पेड़, सैकड़ों से ले कर हजारों लिटर पानी अपनी जड़ों के द्वारा अवशोषित कर जाते हैं. मगर बोनसाई के मामले में आम पेड़ों की इन दोनों ही आजादियों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया जाता है. चूंकि इन पेड़ों का आकार छोटा रखना होता है इसलिए इन्हें छोटे पात्रों में उगाया जाता है और छोटे पात्र में इन की जड़ों को अपने पांव पसारने के लिए भूमि और मिट्टी नहीं मिल पाती व जड़ छोटी होती है जिस कारण ये अधिक पानी का अवशोषण भी नहीं कर पाते.

एक मानक बोनसाई पात्र की ऊंचाई 25 सैंटीमीटर से भी कम होती है और इस का आयतन 2 से ले कर 10 लिटर तक होता है. प्रकृति में विकसित वृक्षों की टहनियां और पत्तियां बड़े आकार की होती हैं. प्राकृतिक रूप से एक सामान्य वृक्ष परिपक्व दशा में 5 मीटर या इस से भी ऊंचा होता है. वहीं, सब से बड़े आकार के बोनसाई वृक्ष की ऊंचाई अधिकतम 1 मीटर होती है. अधिकांश बोनसाई इस से छोटे आकार के होते हैं. आकार में इस फर्क से वृक्ष का समूचा जीव विज्ञान प्रभावित हो जाता है. मसलन, वृक्ष की परिपक्वता, पोषण, वाष्पोत्सर्जन, कीट प्रतिरोध क्षमता के साथ कई दूसरे जैविक पहलुओं पर व्यापक असर पड़ता है.

देखभाल

  1. पानी नियमित तौर पर देना चाहिए जो बोनसाई वृक्ष की प्रजाति की आवश्यकता विशेष पर आधारित होता है.
  2. बोनसाई वृक्ष की दशा और आयु के अनुसार नियमित अंतराल पर गमला या पात्र बदलना यानी रिपौटिंग करनी चाहिए.
  3. प्रत्येक बोनसाई वृक्ष की आवश्यकताओं के अनुसार मिट्टी के घटकों और उर्वरक को सुनिश्चित करना चाहिए. बोनसाई विकसित करने वाली मिट्टी हमेशा ढीली होनी चाहिए ताकि इन से हो कर पानी की निकासी लगातार होती रहे.
  4. बोनसाई के विकास में उचित स्थान का चयन करना भी एक जरूरी पहलू होता है.

आमतौर पर बोनसाई वृक्षों की रिपौटिंग वसंत ऋतु में करनी चाहिए. रिपौटिंग में नर्सरी या भूमि में विकसित पौधे को वहां से निकाल कर बोनसाई पात्र में रोपा जाता है. रिपौटिंग से पहले पात्र के आकार के अनुसार जड़ों की छंटाई कर दी जाती है. पुरानी जड़ें पानी और पोषक पदार्थों का अवशोषण बहुत धीमी गति से करती हैं या नहीं कर पाती हैं इसलिए उन्हें काट कर हटा देना चाहिए, ताकि नई जड़ें विकसित हों जो पानी और पोषक पदार्थों का भलीभांति अवशोषण कर सकें. मिट्टी को भी नियत समयांतराल पर बदलते रहना चाहिए जिस से कि बोनसाई वृक्ष की पत्तियों में वृद्धि होती रहे. अगर गमले या बोनसाई पात्र की मिट्टी के ऊपर जड़ पसरने लगे या पात्र के नीचे का सुराख, जड़ों के अधिक निकल जाने से बंद होने लगे (जिस से पात्र के नीचे के सुराख से पानी की निकासी अवरुद्ध होने लगती है) तो ऐसी स्थिति में रिपौटिंग करनी चाहिए.

जड़ों को वायु, पानी और रसायनों की आवश्यकता होती है. जड़ों को वायु नहीं मिलने से सब से अधिक परेशानी सामने आती है. वृक्ष की जड़ों को पानी जितनी वायु मिलनी जरूरी होती है. पानी की उचित निकासी मिट्टी की सब से महत्त्वपूर्ण विशेषता होती है. वायु और पानी के बाद जड़ों को रसायनों (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम आदि) के रूप में खाद्य पदार्थों की आवश्यकता होती है. इन में से कुछ रसायन वायु और पानी से प्राप्त होते हैं जबकि अन्य मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों से मिलते हैं.

बोनसाई उगाने के लिए पानी की निकासी वाले पात्रों का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए और ये पात्र चिकनी मिट्टी, प्लास्टिक या लकड़ी के हो सकते हैं. पानी के निकास मार्ग के ऊपर एक स्क्रीन (1/8 इंच आकार वाली) लगाई जाती है. पात्र के अंदर जड़ों में घुमाव नहीं होना चाहिए और न ही पात्र की दीवारों से जड़ों को चिपकना चाहिए. इसीलिए जड़ों को समयसमय पर कैंची से काटते रहना जरूरी होता है. पात्र में बोनसाई वृक्ष को केंद्र से थोड़ा हट कर लगाना चाहिए.

नई मिट्टी में बनने वाली जड़ें बहुत आसानी से टूट सकती हैं, इसलिए वृक्ष को इधरउधर स्थान परिवर्तन भूल कर भी नहीं करना चाहिए. नई जड़ें 2 से 4 हफ्तों में मजबूत हो जाती हैं. पहली बार पानी डालने से पहले मिट्टी को कुछ समय तक सूखा छोड़ देना चाहिए ताकि जड़ वृद्धि के लिए उत्तेजित हो. वाष्पोत्सर्जन से होने वाली पानी की क्षति को रोकना जरूरी होता है.

वाष्पोत्सर्जन, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पत्तियों की सतह पर मौजूद सूक्ष्म छिद्रों (रंध्र) द्वारा होता है, इसलिए बोनसाई वृक्षों की पत्तियों से पानी की क्षति को रोकने के लिए उन्हें अकसर छायादार, नम और ऐसी जगहों पर रखना चाहिए जहां हवा न चलती हो.

बोनसाई आज दुनियाभर में लोकप्रिय हो गया है. लगभग 90 देशों में और करीब 36 भाषाओं में बोनसाई पद्धति पर 1200 पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं. इस के अलावा बोनसाई पर केंद्रित ढेरों पत्रिकाएं, जर्नल, और ब्लौग अस्तित्व में हैं जो इस की अपार लोकप्रियता को बयां करते हैं.

जीवन की मुसकान

मेरे पति पीसीएस अधिकारी थे. जिस दिन उन्होंने सर्विस जौइन की थी, शपथ ली कि मैं अपनी सैलरी के अलावा एक पैसा भी ऊपर की कमाई का नहीं लूंगा. पूरी ईमानदारी के साथ जौब करूंगा. बहुत छोटी सी घटना है. उन दिनों इन की पोस्टिंग करहल तहसील, जिला मैनपुरी में थी. सब की तरह मेरी भी आदत थी कि माह के आरंभ में ही पूरे माह के लिए खानेपीने का सामान खरीद लेती थी.

माह के अंतिम दिन चल रहे थे. खानेपीने की चीजें लगभग समाप्त हो रही थीं. चीनी तो बिलकुल खत्म हो चुकी थी. घर में थोड़ा सा गुड़ रखा था, अत: हम लोग गुड़ की चाय बना कर पी रहे थे. एक दिन सुबह लगभग 8 बजे एक कानूनगो इन के पास औफिस के किसी काम से आए. कुक से 2 प्याले चाय इन्होंने बाहर मंगा ली. कानूनगो ने भी चाय पी और फिर चले गए.

जाने के लगभग 1 घंटे बाद कानूनगो 5 किलो चीनी ले कर आए और बोले, ‘‘साहब, मु?ो यह देख कर बहुत कष्ट पहुंचा कि आप लोग गुड़ की चाय पी रहे हैं.’’ मेरे पति ने ‘धन्यवाद’ के साथ चीनी लेने से मना कर दिया. साथ में यह भी हिदायत दी कि इस तरह की कोई बात उन्हें कतई पसंद नहीं है. उन्होंने अपनी शपथ को अपने पूरे कार्यकाल में मुसकराते हुए निभाया.

साधना श्रीवास्तव, पुणे (महा.)

 

बात उन दिनों की है जब मेरे भैया का और मेरा ऐक्सिडैंट हुआ था. हम दोनों बाइक पर सवार हो कर जीटी रोड से घर की तरफ आ रहे थे. मेरे पति व मेरी दीदी दूसरी गाड़ी से आ रहे थे. अचानक सामने से एक मारुती कार तेजी से आई और उस ने हमारी बाइक को टक्कर मार कर हवा में उछाल दिया. गिरने के बाद क्या हुआ हमें कुछ याद नहीं. कुछ समय बाद मु?ो होश आया तो मैं ने अपने को एक खाई में जख्मी हालत में पाया.

अंदरूनी चोटों की वजह से मैं उठ नहीं पा रही थी और भैया घायल अवस्था में बेहोश पड़े हुए थे. उन्हें काफी चोटें आई थीं. संयोग से महाराष्ट्र के मंत्री कृपाशंकर की गाड़ी उसी रास्ते से गुजर रही थी. उन्होंने हमारी हालत देखी तो तुरंत अपनी गाड़ी रुकवा दी और कुछ लोगों की मदद से हम भाईबहन को अपनी गाड़ी से  अस्पताल भिजवाया. उन की मदद से समय रहते हमारा इलाज शुरू हो गया और कुछ दिनों में हम बिलकुल ठीक हो गए.

उस दिन मु?ो एहसास हुआ कि इंसानियत और मानवता आज भी जिंदा है वरना आजकल तो लोग रोड ऐक्सिडैंट को अनदेखा कर के आगे बढ़ जाते हैं.

  सरिता भूषण, वाराणसी (उ.प्र.)

प्रदूषण होगा दूर, जब पौधे हों भरपूर

घर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए हर व्यक्ति घर के कोनों में तरहतरह के सुंदर फूलों व पत्तों वाले पौधे उगा सकता है. पिछले कुछ वर्षों में घरों के अंदर उगाए जाने वाले सजावटी पौधों की तरफ लोगों का झुकाव काफी बढ़ा भी है. पौधों को बैडरूम, रसोईघर, खाना खाने वाले कमरे, सीढि़यों, बरामदे, बालकनी में या फिर दूसरे अन्य स्थानों की शोभा बढ़ाने के लिए भी रखा जाता है. इन सभी जगहों के लिए वहां के वातावरण, खासतौर पर रोशनी और तापमान के मद्देनजर विभिन्न किस्मों के पौधों का चयन व उपयोग किया जा सकता है.

पौधे का चुनाव

पौधों का चुनाव, उन के लगाने के स्थान विशेष व उपयोग के अनुसार किया जा सकता है. घर के अंदर यदि ‘फोकल पौइंट’, ऐसी जगह जहां नजर सब से पहले जाए, बनाना है तो पौधे को इस तरह से रखा जाना चाहिए कि वह घर का ही एक हिस्सा लगे. इस के लिए कमरे व पौधे के आकार का गहरा संबंध है. एक विकसित रबड़ प्लांट फाइकस इलास्टिका छोटे कमरे के लिए उचित नहीं होगा. इसी तरह अकेला ‘फर्न’ का पौधा बड़े कमरे में अपनी छटा नहीं बिखेर पाएगा.

पेड़ों की बहुत सी किस्में जो बाहर बहुत बड़ा आकार ले लेती हैं, उन्हें अंदर गमलों में बहुत छोटे आकार में कई सालों तक रखा जा सकता है. इन में ‘फाइकस’ की कई किस्में खास हैं जोकि बहुत ही शानदार व प्रभावी दिखती हैं और उन्हें गमलों में सुविधापूर्वक उगाया जा सकता है. ‘फाइकस बैंजामिना’, ‘फाइकस इलास्टिका’, ‘फाइकस ट्राईऐंगुलेरिस’, ‘फाइकस जैपोनिका’, ‘ग्रेविलिया रोबस्टा’, ‘सैफ्रलेरा आरवोरिकोला’ और ‘सैफ्रलेरा ग्रैनुलोसा’ खासी मशहूर हैं. इन्हें गमलों में उगा कर घर के अंदर की सजावट में प्रयोग किया जा सकता है.

कभीकभी इन पौधों को बड़े कमरों के विभाजन के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता है. इस के लिए ‘डरासीना’, ‘मोनेस्टेरा’, ‘फिलोडेंड्रोन’, ‘सैफ्रलेरा’, ‘सिंगोनियम’ इत्यादि की जातियां व प्रजातियां तथा ‘कोडियम वैरीगेटम’, ‘कोलियस ब्लूमी’ और ‘कोरडीलाइन टरमीनेलिस’ की किस्में अच्छी रहती हैं.

घरों के अंदर बहुत से काम इन पौधों की मदद से किए जा सकते हैं. लेकिन यह जानना आप के लिए जरूरी है कि आप के घर के वातावरण में कौनकौन से पौधे आसानी से उग सकते हैं, क्योंकि इन सभी की रोशनी, तापमान व आर्द्रता की अपनी अलगअलग जरूरतें होती हैं.

ये पौधे 15-30 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान को अधिक पसंद करते हैं. इसी तरह से इन के लिए आर्द्रता, गमले व गमले की मिट्टी, खाद व पानी तथा अन्य देखरेख, पौधे की जाति व प्रजाति पर निर्भर करती है. मगर यह जरूरी है कि कम से कम 15 दिन में एक बार पौधे को भरपूर मात्रा में पानी दें ताकि गमलों के पेंदों में बने छेद से पानी बाहर निकल जाए.

इसी के साथसाथ यदि सुबह की रोशनी इन पौधों को मिले तो ये लंबे समय तक तरोताजा रहते हैं. ध्यान रहे, पौधों के बीच उचित दूरी हो ताकि वे अच्छी तरह से फैल सकें. फूल वाले पौधों को छायादार कोने में न रखें. पौधों को अत्यधिक गरमी व ठंड से दूर रखें. चाय या कौफी के बचे हिस्से को गमले में न डालें. पत्तों की ज्यादा चमक के लिए पानी के अलावा दूसरी चीज इस्तेमाल न करें.

घरों के अंदर इन पौधों के न पनपने के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि ठंड, कुहरा, रोशनी की कमी या अधिकता, अत्यधिक पानी, लवणीय पानी का इस्तेमाल, गलत समय में गमले बदलना इत्यादि. पौधे सिर्फ सजावट का ही काम नहीं करते बल्कि घरों के अंदर तापमान व प्रदूषण को कम करने में भी मदद करते हैं.

ये पौधे न सिर्फ वायुमंडलीय हवा को शुद्ध करते हैं बल्कि वे घरों के अंदर की हवा को भी शुद्ध रखते हैं और सीमित वातावरण में उस की गुणवत्ता को और भी बढ़ावा देते हैं. जो घर हवादार नहीं होते हैं उन के अंदर गैसीय जहरीले पदार्थ एकत्रित होते रहते हैं. ये पदार्थ घर के अंदर रहने वालों के लिए हानिकारक भी हैं. इन पदार्थों की मात्रा उन घरों में अधिक बढ़ जाती है जहां ठंड से बचने के लिए हवादार खिड़कियां कम होती हैं और ऊर्जा संचित करने के लिए साधन ज्यादा. आधुनिक शैली के घरों में जहां तारपीन व विभिन्न पेंट का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है वहां घर के अंदर के प्रदूषक जैसे फौरमैल्डीहाइड की मात्रा पहले की तुलना में अधिक पाई गई है. फौरमैल्डीहाइड की मात्रा बढ़ जाने से आंख, गला और फेफड़ों में खुजली, सांस से संबंधित समस्याएं और एलर्जी जैसी बीमारियों का भय बढ़ जाता है.

पिछले कुछ वर्षों में घरों से इस तरह के प्रदूषण को दूर करने के लिए सजावटी पौधों का उपयोग किया जा रहा है. इस के साथसाथ ऐसे नए सजावटी पौधों को पहचाना जा रहा है जो इन प्रदूषणों की मात्रा को कम या खत्म करते हैं. इसी कड़ी में नासा के वैज्ञानिकों ने 3 सजावटी पौधों ‘क्लोरोफाइटम इलेटम’, ‘सिनडैपसिम औरियस’ और ‘सिंगोनियम पोडोफाइलम’ को फौरमैल्डीहाइड की मात्रा को कम करने के लिए चुना. इन तीनों किस्मों के पौधों को कम रोशनी की जरूरत होती है.

वहीं, ‘क्लोरोफाइटम इलेटम’ और ‘सिनडैपसिस औरियस’ घरों के अंदर के अन्य प्रदूषकों जैसे नाइट्रोजन डाईऔक्साइड और कार्बन मोनोऔक्साइड की मात्रा को भी कम करते हैं.

हवाजनित जीवाणुओं, जोकि कम हवादार घरों में ज्यादा पाए जाते हैं, को कम करने के लिए ‘रैपिस एक्सैल्सा’ नाम के सजावटी पौधे को उपयुक्त पाया गया है. सजावटी पौधे घरों के अंदर औक्सीजन की मात्रा को बढ़ाते हैं और कार्बन डाईऔक्साइड को कम करते हैं. चौड़े पत्तों वाले पौधे औक्सीजन की मात्रा को अधिक बनाए रखने में सब से अधिक सहायक हैं जबकि कार्बन डाईऔक्साइड की मात्रा को कम करने में चौड़ी पत्ती वाले पौधे व सकुलैंट्स, दोनों बहुत उपयोगी हैं.

हाल ही में हुई रिसर्च से पता चला है कि घरों के अंदर सजावट के लिए रखे जाने वाले पौधे, हानिकारक वाष्पशील जैविक पदार्थों यानी वौलेटाइल औरगेनिक कंपाउंड्स को नष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. घरों के अंदर ‘वाष्पशील जैविक पदार्थ’ बहुत ठोस व द्रवीय चीजों जैसे कारपैंटिंग, फर्नीचर, दीवारों के ढकने के लिए प्रयुक्त सामग्री और छत पर लगी टाइलें इत्यादि से उत्पन्न होते हैं. वैज्ञानिकों ने यहां तक साबित कर दिया है कि इन पौधों की जड़ें यानी मिट्टी के अंदर वाला भाग व मिट्टी के बाहर वाला भाग, दोनों ही घरों के अंदर की हवा को शुद्ध करने में मदद करते हैं. एक शोधकार्य, जोकि पौधों की 7 जातियों व प्रजातियों पर किया गया था, ने यह सिद्ध किया है कि हानिकारक वाष्पशील जैविक पदार्थों को नष्ट करने की क्षमता की अधिकता के लिए पौधे की जड़ों वाला व ऊपरी हिस्से दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं.

दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि यदि हमें अपने घरों के अंदर के वातावरण को शुद्ध रखना है तो घरों के अंदर पौधे को गमलों इत्यादि में उगाना ही पड़ेगा, सिर्फ फूलदानों में पत्ते या फूल रखने से काम नहीं चलेगा.

बाहर के वातावरण में हवा में फैले हुए पदार्थ जैसे मिट्टी व धूल के कण, परागकण और धुआं जिस तरह प्रदूषण फैलाते हैं ठीक उसी तरह ये पदार्थ घरों के अंदर भी प्रदूषण फैलाते हैं. ये पदार्थ घरों के उन कमरों में जहां सजावटी पौधे रखे गए हों, कम पाए गए हैं. घरों के अंदर ये सजावटी पौधे आक्रामक गंध को दूर कर के भी वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं.

गार्डनिंग प्रकृति का बसेरा

गार्डनिंग किसी भी तरह की हो, करने वाले की कलात्मक रुचि व प्रकृति प्रेम का आईना होती है. पेड़पौधे हमें जीवनवायु यानी औक्सीजन देते हैं. वैज्ञानिक तथ्यों से यह भी साबित हो चुका है कि हमारे चारों ओर पेड़पौधों की उपस्थिति हमें विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से मुक्त रखने के साथसाथ तापमान को कम करती है और हरियाली हमारे मानसिक तनाव को कम करती है. अपने हाथों से गार्डनिंग करना न केवल आप को मानसिक संतुष्टि प्रदान करेगा बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से भी मुक्त रखेगा.

घर का आंगन छोटा हो या बड़ा, आप अपनी रुचि के अनुसार विभिन्न प्रकार की गार्डनिंग जैसे टैरेस गार्डन, रौक गार्डन, वाटर गार्डन या संकन गार्डन इत्यादि बना सकते हैं. परंतु यदि आप के घर में आंगन नहीं है और आप बहुमंजिली इमारत में रहते हैं तो भी बिलकुल निराश न हों. आधुनिकता की दौड़ में आज ऐसे बहुत से विकल्पों का सृजन हो गया है जिन से आप घर के अंदर, टेबल पर बौटल गार्डन, खिड़कियों में विंडो गार्डन, दीवारों पर वर्टिकल गार्डन या छतों पर रूफ गार्डन बना कर प्रकृति का भरपूर आनंद उठा सकते हैं.

विंडो गार्डन

इस में विंडो के बाहर गार्डनिंग की जाती है. इसे 2 तरह से किया जा सकता है, पहली खिड़की के बाहर लकड़ी, मैटल या सीमेंट का बौक्स बना कर, सीधे ही मिट्टी का उपजाऊ मिश्रण डाल कर पौधे लगाएं. दूसरा, इस बौक्स को प्लांटर की तरह उपयोग करें, जिस में विभिन्न प्रकार के पौधे पहले गमलों में लगाएं और फिर इन गमलों को विंडो बौक्स में करीने से सजाएं. दूसरा तरीका अधिक कामयाब है क्योंकि गमलों को फेरबदल कर विंडो गार्डन को हर मौसम में नवीन बनाया जा सकता है.

विंडो गार्डन के लिए पौधों का चुनाव करने से पहले खिड़की की दिशा, प्रकाश व धूप का समय इत्यादि जानकारी अवश्य इकट्ठी करें. आमतौर पर अगर खिड़की उत्तरपूर्व दिशा में हो तो धूप व प्रकाश प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते हैं. ऐसी खिड़की में विभिन्न रंगों के मौसमी या बहुवार्षिक पौधे जैसे गुलाब, जिरेनियम, मौसमी फूल लगाएं. दक्षिण दिशा की खिड़की में कम प्रकाश व धूप होती है, इसलिए इस विंडो में कम प्रकाश पसंद करने वाले पौधे जैसे हाईड्रेंजिया, सैंसेविएरिया, बिगोनिया लगा सकते हैं. खिड़कियां चूंकि ऊंचाई पर स्थित होती हैं तो इन में पौधे जैसे नौस्टरशियम, एप्टीनिया, सिनेशियो या वारनोमिया भी खूब फबते हैं.

बौटल गार्डन/टैरेरियम

क्या आप ऐसे बागीचे की परिकल्पना कर सकते हैं जो आप के ड्राइंगरूम की सैंटर टेबल या डाइनिंग टेबल की शान बढ़ाए? जी हां, इस का एक अनूठा विकल्प है बौटल गार्डन व टैरेरियम. जब बागीचा कांच की पारदर्शी बोतल के अंदर बना हो तो इसे बौटल गार्डन कहा जाता है, जबकि अगर यह एक बड़े चौकोर आयताकार कांच के बौक्स में बना हो तो इसे टैरेरियम कहा जाता है. इसे बनाना बहुत ही सरल है. सब से पहले कांच के बरतन का चुनाव करें. रुचि के अनुसार गोल, चपटी या चौकोर बोतल लें. बोतल का मुंह इतना बड़ा अवश्य हो कि जिस से चिमटी अंदर जा सके. सब से पहले बोतल को अच्छी प्रकार साफ करें व सुखा लें. इस गार्डन के लिए पौधों का चुनाव महत्त्वपूर्ण है. इस प्रकार के पौधों को चुनें जो कम प्रकाश या फिल्टर्ड प्रकाश में भी जीवित रह सकें व जिन का फैलाव या बढ़त बहुत कम या न के बराबर हो. बौटल गार्डन में हरे, दोरंगे या रंगबिरंगे पत्तों वाले पौधे अत्यंत आकर्षक लगते हैं. इन में पैपरोमिया, क्लोरोफाइटम, हिड्रा, एडिएंटम, पीलीया और छोटे आकार के क्रोटन प्रमुख हैं.

टैरेरियम के आकार के अनुसार इस के लिए सब से पहले एक कागज पर पौधों को नियोजित करने की योजना बना लें. चूंकि बौटल गार्डन में जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं होती इसलिए इसे बनाते समय पहले छोटेछोटे कंकड़, पत्थरों की एक सतह बनाएं. इस के लिए इमारतों के फर्श में इस्तेमाल होने वाले रंगबिरंगे, चिप्स, जोकि लगभग हर घर में उपलब्ध रहते हैं, प्रयोग किए जा सकते हैं. बौटल के अंदर सामान पहुंचाने के लिए कागज की कीप का प्रयोग करें. इस के ऊपर पहले से गीली की गई मौस बिछाएं, ताकि मिट्टी का मिश्रण नीचे की सतह पर न पहुंचे. मौस के ऊपर चारकोल की 0.5 से 1.0 सैंटीमीटर ऊंची सतह बनाएं और आखिर में मिट्टी व सड़ीगली पत्तों की खाद का मिश्रण डालें. इन सभी सतहों को बोतल के 1/3 भाग तक ही डालें, ऊपर का भाग पौधों के लिए रहने दें.

अब एक लंबी चिमटी ले कर पौधों को बौटल के अंदर उतारें और लगा दें. चुने हुए पौधों को इस प्रकार लगाएं कि ऊंचे पौधे पीछे व छोटे पौधे आगे आएं. यदि बौटल गार्डन आप की सैंटर टेबल की शान बढ़ाने वाला है तो पौधों को इस प्रकार लगाएं कि चारों ओर से दृश्य मनोरम लगे. पौधारोपण के पश्चात पतली नली से पानी दें या हलका स्प्रे करें. पानी उतना दें कि जिस से मिश्रण गीला हो, उस से अधिक नहीं.

बौटल गार्डन का मुंह बंद रखना चाहते हैं तो इसे कई सप्ताह तक पानी देने की आवश्यकता नहीं है, यद्यपि आवश्यकतानुसार स्प्रे से नमी बनाए रखें. बौटल गार्डन को कभी भी सीधे प्रकाश या धूप में न रखें.

ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन

साल 2005 में यूनिवर्सिटी औफ टोरंटो, अमेरिका द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, ग्रीनरूफ गार्डन हवा में मौजूद कार्बन डाईऔक्साइड व दूसरे प्रदूषणों को कम करता है. यह गरमी में ठंडक और सर्दियों में हीटिंग के व्यय को कम करता है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ग्रीन रूफ से घर के अंदर का तापमान 1.4 से 4.4 डिगरी सैल्सियस तक कम किया जा सकता है. इन्हीं शोधों और आंकड़ों के आधार पर जरमनी, स्विट्जरलैंड व अन्य यूरोपीय देशों ने शहरों की बहुमंजिली इमारतों पर ग्रीन रूफ अनिवार्य कर दिया है. विश्व के सभी देशों में जरमनी में सर्वाधिक ग्रीन रूफ हैं.

आधुनिक युग में शहरों में इमारतों का निर्माण ही इस प्रकार किया जाता है कि उन की छतें जल प्रतिरोधी यानी वाटरप्रूफ व मिट्टी व पेड़पौधों का भार सहन करने की क्षमता रखती हों. इस प्रकार का गार्डन बनाने के लिए पूर्व योजना बनाएं और इंजीनियर की मदद से इमारत की भार सहने की क्षमता व वाटर प्रूफिंग का प्रबंधन करें. रूफ गार्डन को ग्रीन रूफ भी कहा जाता है, जोकि प्रकृति, कला और विज्ञान का अनुपम संगम है.

ये 2 प्रकार के होते हैं, इंटैंसिव रूफ गार्डन व एक्सटैंसिव रूफ गार्डन. इंटैंसिव प्रकार का रूफ गार्डन थोड़ा महंगा होता है और इस में मिट्टी के मिश्रण की मोटी परत 50 सैंटीमीटर से 1 मीटर तक बिछाई जाती है. इस प्रकार के गार्डन में छोटे पौधों के साथसाथ पेड़ भी लगाए जा सकते हैं. इसे बनाने के लिए सर्वप्रथम इंजीनियर की मदद से वाटर प्रूफिंग की जाती है. इस के ऊपर बारीबारी विभिन्न सतहें जैसे पौंड लाइनर, फिल्टर लेयर व इंसुलेशन बिछाई जाती हैं, जिन के ऊपर मिट्टी या मिट्टी रहित हलका मिश्रण बिछाया जाता है. पहले कागज पर नक्शा बनाया जाता है और उस के अनुसार पौधों का चुनाव किया जाता है.

गार्डन के नक्शे के मुताबिक मिश्रण की ऊंचाई तय की जाती है. नन्हीनन्ही पहाडि़यां, रूफ गार्डन को अधिक प्राकृतिक बनाती हैं. रूफ गार्डन में विभिन्न प्रकार के पौधे लगाए जा सकते हैं. वृक्षों में कम गहरी जड़ों वाले पाम, क्यूप्रेसस, फूलदार टीकोमा स्टांस, प्लूमेरिया लगाएं. वृक्षप्रेमी विभिन्न प्रकार के वृक्षों के बोनसाई रख कर भी वृक्षों का आनंद उठा सकते हैं. फूलदार, अलंकृत बांस की प्रजातियां रूफ गार्डन की शान दोगुना कर देती हैं. रूफ गार्डन में लगा लौन, गार्डन की जान है. नर्सरियों में लौन टाइल के रूप में भी उपलब्ध रहता है, जोकि इस गार्डन में सब से सफल है. मौसमी फूलों के रंगों से कोई भी गार्डन जीवंत हो उठता है. इन्हें छोटी क्यारियों के गमलों में लगाएं. फूलदार व खुशबूदार हलकी लताएं भी लगाएं, ये विंड ब्रेक का काम करने के साथसाथ अनचाहे दृश्यों से स्क्रीनिंग भी करेंगी.

रूफ गार्डन या ग्रीन रूफ बनाने के लिए बड़ेबड़े शहरों में बहुत सी व्यावसायिक कंपनियां स्थापित की गई हैं जो आप के घर की छत को नया रूप देने में सक्षम हैं.

वर्टिकल गार्डन

शहरों में भूमि की उपलब्धता कम होने से वैज्ञानिकों ने अब पौधों को दीवारों पर लगाने की वर्टिकल गार्डन प्रणाली विकसित की है. इस में दीवारों पर पौधे लगाए जाते हैं. इस के लिए पौधों की जानकारी होने के साथ इंजीनियरिंग की निपुणता की भी आवश्यकता है. इस प्रकार के गार्डन बनाने के लिए रेडिमेड वर्टिकल पैनलों का प्रयोग किया जाता है. इन पर पौधों के लिए पर्याप्त स्थान बना होता है. ड्रिप नलियों द्वारा पानी की व्यवस्था होती है.

विभिन्न प्रकार के सीडम, सीनेशियों, एप्टीनिया, ट्रैडेसकैंशिया इत्यादि का प्रयोग इस गार्डन में किया जाता है. ये अनूठे गार्डन खूबसूरत दिखने के साथसाथ पर्यावरण व वातावरण को शुद्ध करते हैं और बड़ीबड़ी बिल्डिंग के एअरकंडीशनिंग के खर्चे की बचत करते हैं. ग्रीन रूफ या रूफ गार्डन की तरह ही इस गार्डन को बनाने के लिए आप व्यावसायिक कंपनियों व इंजीनियरों की मदद लें. कुछ लोग पत्तेदार बेलों जैसे फाइकस रैपेंस को दीवारों पर चढ़ा देते हैं, इसे भी वर्टिकल गार्डन कहा जा सकता है.

जिन इमारतों पर ग्रीन रूफ वर्टिकल गार्डन बनाए जाते हैं, उन्हें ग्रीन बिल्ंिडग कहा जाता है. मौसम के बदलते परिवेश में ग्रीन बिल्डिंग्ज का अपना महत्त्व है. वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार, ये ‘हीट आइलैंड इफैक्ट’ को भी कम करने में कारगर हैं. यह समय की मांग है, इसीलिए कुछ देशों ने इन्हें बनाना अनिवार्य कर दिया है.

लैंडस्केपिंग प्राकृतिक सुंदरता

वृक्ष, झाड़ियों, लताओं व फूलों का ऐसा स्थान जो प्राकृतिक वनस्पतियों व कृत्रिम साधनों के मिलेजुले रूप में वैज्ञानिक व कलात्मक उपायों द्वारा सुसज्जित किया गया हो, अलंकृत उद्यान कहलाता है. अनेक प्राकृतिक स्थल जो आकर्षक व प्रिय नहीं होते उन्हें वनस्पतियों के जरिए कलात्मक रूप प्रदान किया जा सकता है. इसे लैंडस्केपिंग कहते हैं.

अलंकृत उद्यानों की शैलियां : अलंकृत उद्यानों की 2 मुख्य शैलियां होती हैं, एक नियमित या ज्यामितीय शैली और दूसरी प्राकृतिक या दृश्यभूमि शैली. पहली शैली में ज्यामितीय यानी नियमित नियमों का पालन कर के उद्यान बनाया जाता है जबकि दूसरी शैली में आधुनिक उद्यान कला यानी मौडर्न गार्डन आर्ट के सिद्धांत के आधार पर उद्यान बनाए जाते हैं. वृक्षों व झाड़ियों के झाड़ों आदि के द्वारा इस में विभिन्न प्राकृतिक तत्त्वों का समायोजन किया जाता है.

इन 2 शैलियों के अतिरिक्त तीसरी शैली भी है जिस में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों शैलियों के कुछ तत्त्वों को ले कर लैंडस्केपिंग की जाती है.

उद्यान अभिकल्पना के सिद्धांत : उद्यान तैयार करने के लिए इन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है : उद्यान का स्थान, उद्यान की बाड़, उद्देश्य की प्रधानता, जरूरत के मुताबिक बदलाव की गुंजाइश, एकरूपता, आकार, विभाजन, क्रमिक प्रबंध, प्रकाश, छाया, गठन या बनावट, रंग व रंग की गहनता और लय तथा सामंजस्य.

लैंडस्केपिंग में सड़क, रास्ते व पगडंडियां बनाने का उद्देश्य यह होता है कि दर्शक प्रत्येक सौंदर्यस्थल पर सुगमता से पहुंच सकें. सड़कें औपचारिक उद्यान शैली के अनुसार हो सकती हैं. सड़कों के किनारे सुंदर पुष्पीय व छायादार वृक्ष लगाए जाते हैं. आमतौर पर भारत के मैदानी क्षेत्रों में वृक्षों को जून से अगस्त तक लगाया जाता है. इन दिनों मानसून के कारण पानी देने की जरूरत नहीं होती है.

वृक्षों के बिना कोई भी उद्यान पूर्ण नहीं माना जाता है. वृक्ष लगाने से पहले फूलों का रंग, फूलों के उगने का समय ऊंचाई व फैलाव आदि के बारे में जानकारी लेनी आवश्यक है. घरों व छोटे उद्यानों में कम फैलने वाले वृक्ष जैसे डूपिंग अशोक, आकाशनीम गुलतुर्रा उपयुक्त रहते हैं जबकि बड़े उद्यानों में वृक्षावली के रूप में बड़े वृक्षों को लगाया जाता है.

लताएं या बेल का उपयोग घर के द्वार पर चढ़ाने, मेहराब बनाने, छायागृह बनाने, आकर्षक आकृति को बनाने, भद्दे या गंदे स्थानों को ढकने आदि के लिए किया जाता है. दीवारों को सजाने के लिए पाइरोजेस्टिया, बोगनबेलिया, रंगून क्रीपर आदि बेलें उपयोग में लाई जाती हैं.

सुंदर पत्तियों वाली लताओं में एस्पैरेगस, आइमी हैं जबकि सुंदर फूल वाली लताओं में पाइरोजेस्टिया, रंगून क्रीपर शामिल हैं और सुंगधित पुष्पों वाली लताएं जैसे चमेली व गुलाब हर जगह उपलब्ध रहती हैं.

इस तरह अलंकृत उद्यान तैयार करने के साथ आप जमीन सुदर्शनीकरण यानी लैंडस्केपिंग सफलतापूर्वक कर सकते हैं. आप की मेहनत हरियाली प्रेमियों के दिलों को बागबाग कर देगी.

बैंकिंग क्षेत्र में नए लाइसैंस से गांवों का भला

रिजर्व बैंक ने नए बैंकों के लिए लाइसैंस के द्वार खोल कर बैंकिंग क्षेत्र में नए खिलाडि़यों को भूमिका निभाने का मौका दिया है. लाइसैंस देने में यह भी शर्त है कि बैंक अपनी 25 फीसदी शाखाएं 1 हजार से कम आबादी वाले गांव में खोलेंगे और ग्रामीण युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करेंगे.

रिजर्व बैंक के इस निर्णय पर उद्योग मंडल फिक्की ने बैंकों, औद्योगिक व कौर्पोरेट घरानों को शामिल कर के एक सर्वेक्षण किया है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने बैंक लाइसैंस के लिए रखी शर्तों पर खुशी जताई है और कहा है कि इस से छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के लोगों को बैंक सुविधाएं हासिल हो सकेंगी. गौरतलब है कि विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों में 45 फीसदी लोगों के पास बैंक खाते हैं जबकि भारत में सिर्फ 35 प्रतिशत आबादी के पास ही बैंक खाते हैं. देश की 70 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है. देश में करीब साढ़े 6 लाख गांव हैं और ज्यादातर गांवों में बैंक की कोई शाखा नहीं है. ग्रामीण क्षेत्रों में साढ़े 37 हजार से अधिक बैंक शाखाएं हैं जबकि बैंकिंग आउटलेट यानी जहां पैसे का बैंकिंग आधार पर लेनदेन होता है, ऐसी शाखाएं 2 लाख से भी कम हैं.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के इस निर्णय से बैंकिंग बाजार में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी और नई तकनीक का इस्तेमाल होगा व गांव के उपभोक्ताओं को भी बेहतर सेवा और सुविधाएं मिलेंगी. सर्वेक्षण में शामिल 53 फीसदी लोगों ने कहा है कि उन्हीं कंपनियों या औद्योगिक घरानों को लाइसैंस मिलने चाहिए जिन की वित्तीय स्थिति अच्छी हो और जिन का वित्तीय रिकौर्ड भी बेहतर रहा हो जबकि 29 फीसदी लोगों का कहना है कि अच्छी वित्तीय समझ और अनुभवी कंपनियों को यह अवसर दिया जाना चाहिए. इसी तरह से 69 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सिर्फ औद्योगिक व कौर्पोरेट घरानों को लाइसैंस मिलने चाहिए जबकि 31 प्रतिशत ने यह भी कहा है कि औद्योगिक घरानों और कौर्पोरेट को बैंकों का संचालन नहीं करना चाहिए.

चीन की असलियत : दूध का दूध पानी का पानी

कहते हैं न कि कितने ही ऊटपटांग काम कर के तरक्की पा लीजिए लेकिन आखिरकार दूध का दूध और पानी का पानी वाली स्थिति आ ही जाती है.  हाल ही में ब्रिटेन के रिटेल बाजार से खबर आई है कि वहां दूध के पाउडर की मांग तेजी से बढ़ी है. पाउडर जैसे ही स्टौल पर आता है, देखते ही देखते बिक जाता है. इस की खरीद बड़े पैमाने पर हो रही है. स्टोर खाली हो रहे हैं. इस स्थिति से निबटने के लिए विक्रेताओं ने दूध पाउडर बेचने की सीमा तय कर दी और एक ग्राहक को सीमित स्तर पर ही पाउडर देना शुरू कर दिया. जांचपड़ताल पर जल्द ही पता चल गया कि चीनी दूध पाउडर के सब से बड़े ग्राहक बन गए हैं. इस की वजह चीनी दूध निर्माता कंपनियों से उठा उन का विश्वास है.

चीन में जो दूध पाउडर बन रहा है वह खतरनाक है और हाल ही में इस के सेवन से 6 शिशुओं की मौत हुई है. इस से पहले चीन में 2008 में पाउडर दूध के सेवन से 3 लाख शिशु बीमार पड़े थे. चीन में मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ी है और इस से कामकाजी महिलाओं की संख्या में बड़ा इजाफा हो रहा है. ऐसी स्थिति में शिशु के लिए पाउडर दूध ही सब से अच्छा आहार है और इस की खपत चीन में बहुत अधिक है लेकिन हाल की घटना से वहां संकट पैदा हो गया है और विदेशों से तेजी से दूध पाउडर मंगाया जा रहा है.

चीन के लोग अपने दूध निर्माताओं की हेराफेरी समझ गए हैं. चिंतनीय यह भी है कि चीन का यह दूध भारतीय बाजार में आ सकता है. भारतीय उपभोक्ता सस्ते के चक्कर में शिशु की जान की परवा किए बिना इस दूध पर लपक सकते हैं. इसलिए सरकार को इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने चाहिए.

 

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