प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति बेहद दयनीय थी. महिलाओं को परम्पराओं के नाम पर तरह-तरह की प्रथाओं, जैसे बाल विवाह, सती, जौहर, पर्दा, देवदासी आदि प्रथाओं हवाले कर दिया जाता था. आधुनिक भारत में सती, जौहर और देवदासी जैसी परंपराओं पर प्रतिबंध लगने से ये काफ़ी हद तक समाप्त हो चुकी हैं. हालांकि आज भी भारत के कुछ ग्रामीण इलाकों में इन प्रथाओं से जुड़े मामले देखने को मिल जाते हैं.

आधुनिक भारत में महिलाएं राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, प्रतिपक्ष की नेता आदि जैसे शीर्ष पदों पर आसीन हुई हैं. लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए आप ये सोच सकते हैं कि कोई माता-पिता बचपन से ही अपनी बेटी का पालन-पोषण ये सोच कर करते होंगे कि भविष्य में उसको बेचना है, या कोई शादी करने की बजाये दुल्हन खरीदता होगा ताकि भविष्य में उससे वेश्यावृत्ति करा सके? है ना ये हैरान करने वाली बात? लेकिन ये बात एकदम सच है और इतना ही नहीं ये सब हो रहा है देश की राजधानी दिल्ली में.

देश की राजधानी दिल्ली के नजफगढ़ की प्रेमनगर बस्ती में रहने वाली महिलाएं आज तक गुलाम हैं. इस बस्ती में रहने वाले ‘परना समुदाय’ के लोगों की रोजी-रोटी सदियों से वेश्यावृत्ति के धंधे से ही चलती आ रही है. यहां पुरुष आराम करते हैं, और महिलाएं काम. इस बस्ती में लड़कियों को बचपन से इस तरह तैयार किया जाता कि आगे चलकर उनको वेश्यावृत्ति के दलदल में झोंका जा सके. यहां दाम देकर दुल्हनें खरीदी और बेची जाती हैं.

कितनी अजीब बात है कि माता-पिता खुद अपने घर की लड़कियों को इस धंधे में झोंक देते हैं. यहां लड़कियों को पढ़ाया नहीं जाता, बल्कि उनके सपनों को बचपन में ही रौंद दिया जाता है. 12-13 साल की उम्र में ही लड़कियों के मां-बाप उनका सौदा कर देते हैं. यहां लड़कियों को पैदा होते ही उनके भविष्य का फैसला सुना दिया जाता है. इस काम की ट्रेनिंग के लिए लड़कियों को दलालों को सौंप दिया जाता है, जो इन्हें वेश्यालयों में बैठा देते हैं. जहां बंधुआ मजदूरों की तरह इनसे काम लिया जाता है. चंद रुपयों के लिए इन लड़कियों का हर रोज कई-कई बार बलात्कार किया जाता है.

न लोगों को बेटियों की शादी की कोई चिंता नहीं होती है, क्योंकि शादी के लिए इनको पैसे खर्च नहीं करने पड़ते बल्कि लड़के वाले अच्छे दाम देकर इनकी लड़की को खरीदते हैं. ये शादी नहीं बल्कि एक सौदा होता है, जितने में भी सौदा पटे यानि लाख, 2 लाख या 5 लाख उतना अच्छा होता है इनके लिए. शादी के नाम पर लड़की को बेच दिया जाता है. लड़की के ससुराल वाले खुद अपनी ही बहु के लिए ग्राहक ढूंढने का काम करते हैं.

घर के सारे काम-धाम निपटाने के बाद रात को करीब 2 बजे ये महिलाएं अपने काम पर निकलती हैं. एक ही रात में करीब 4-5 ग्राहकों को संतुष्ट करने के बाद सुबह तक लौटती हैं. पति और बच्चों के लिए खाना बनाकर अपने हिस्से की नींद पूरी करती हैं. और ऐसा यहां कि हर महिला के साथ होता है. महिलाएं अगर कोई दूसरा काम करना भी चाहें तो ससुराल वाले उन्हें जबरदस्ती इसी पेशे में ढकेलते हैं. कोई महिला नहीं चाहती कि उसकी बेटियां बड़ी होकर इस पेशे को अपनाएं. लेकिन महिला अधिकार के नाम पर ये सिर्फ इतना जानती हैं कि उनके जीवन पर उनके परिवारवालों का ही अधिकार है और उनके साथ क्या होना है या नहीं होना है, इसका फैसला भी वही लोग करेंगे जो उन्हें खरीद कर लाए हैं. उनसे उम्मीद की जाती है कि वो एक रात में कम से कम 10 ग्राहकों को सेवा दें. चंद रुपयों के लिए इन लड़कियों का हर रोज कई कई बार बलात्कार किया जाता है.

ऐसा नहीं है कि ये इस समुदाय का पेशा है तो ये महिलाएं ऐसा जीवन जीने की आदी हो गई हैं. बहुत ही लड़कियों ने इसका विरोध करते हुए अपनी जान तक दे दी है. ये बच्चियां अपनी माओं को जाते देखती हैं, और खुद को डरा महसूस करती हैं कि उन्हें भी एक दिन जाना होगा. ये पढ़ना चाहती हैं, कोई और काम करना चाहती हैं. लेकिन 'बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ' के नारे इन गलियों तक नहीं पहुंच पाते. फिर भी जिस्म बेचकर आती कुछ औरतों की उम्मीदें कायम हैं कि उनकी बेटियों का भविष्य बेहतर होगा.

पर इन उम्मीदों को सच करने वाले लोग, धर्म, देशभक्ति और देशद्रोह की बहस से ही बाहर नहीं निकल पा रहे. लोगों को देश की फ्रिक्र है, देश की इन महिलाओं पर हो रहे द्रोह के बारे में सोच भी लेंगे तो सारे पाप धुल जाएंगे.

(वीडियो साभार: हेडलाइंस टुडे)

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