एक ग्रामीण युवती सीमा बताती है कि 2 साल पहले उस के गांव के ही कुछ लोगों ने उस के साथ बलात्कार किया. बलात्कार के दर्द से तड़पती वह घर पहुंची तो उस के परिवार वालों ने चुप रहने की सलाह दी और मामले पर परदा डालने की कोशिश की. परिवार वालों के ऐसे रवैए ने उस के दर्द को कई गुना बढ़ा दिया. 2 दिन बाद वह अपनी सहेली की मदद से बलात्कार करने वाले दरिंदों को सबक सिखाने के लिए थाने पहुंच गई. थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद वह यह सोच कर चैन से घर लौटी कि अब गुनाहगारों को सजा मिलेगी. 3 दिन बाद थाने से खबर आई कि मैडिकल टैस्ट के लिए उसे अस्पताल बुलाया गया है. अस्पताल पहुंचने पर एक डाक्टर ने उस की योनि में 2 उंगली डाल कर पता नहीं कौन सी जांच की. उस के बाद उस ने रिपोर्ट दी कि वह पहले भी कई दफे सैक्स कर चुकी है. इस रिपोर्ट ने उसे बलात्कार से भी ज्यादा भयानक दर्द दिया. गुनाहगार इस बिना पर छूट गए कि वह पहले से ही सैक्स की आदी थी, इसलिए उस के साथ बलात्कार नहीं हुआ है.

बिहार के जहानाबाद जिले की रहने वाली सीमा समेत बलात्कार की शिकार कई ऐसी लड़कियां और महिलाएं हैं जो टू फिंगर टैस्ट का दर्द झेल चुकी हैं. देश के विभिन्न हिस्सों में आएदिन बलात्कार की घटनाएं घट रही हैं. बलात्कार की पुष्टि के लिए विवादित टू फिंगर टैस्ट यानी टीएफटी की पद्धति अपनाई जाती रही है, जिस को ले कर लंबे समय से सवाल उठाए जाते रहे हैं. आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ऐसे टैस्ट पर पाबंदी लगाने का निर्देश दिया. लेकिन न तो पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार ने इसे गंभीरता से लिया न ही मौजूदा मोदी सरकार ने. दिसंबर 2012 को राजधानी दिल्ली में चलती बस में गैंगरेप की घटना के बाद खड़े हुए जनांदोलन के मद्देनजर गठित किए गए वर्मा कमीशन ने टू फिंगर टैस्ट को खत्म करने की सिफारिश की थी. इसी आधार पर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केंद्र में तत्कालीन मनमोहन सरकार ने ऐसे टैस्ट किए जाने पर पाबंदी लगाए जाने की घोषणा की थी.

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