कोई पानी का पाइप पकड़ कर जेम्स बौंड की तरह ऊपर चढ़ रहा है, कोई स्कूल के छज्जे पर स्पाइडरमैन की तरह चढ़ गया है, कोई जुगाड़ लगा कर खिड़की से लटक कर खुद को सुपरमैन समझ रहा है, कोई छलांगें मार कर फिल्मी हीरो की तरह छत पर जा पहुंचा है. इन सारी मशक्कतों ने बिहार को देशभर में मजाक बना कर रख दिया है. अपनेअपने बच्चों को इम्तिहान में पास कराने के लिए ये जनाब चिट और पुर्जे उन तक पहुंचा रहे थे, ताकि उन का भाई, बेटा, भतीजा, बेटी, बहन आदि बगैर पढ़ेलिखे ही नकल कर मैट्रिक का इम्तिहान पास कर सकें.
अपनों को नकल करा कर इम्तिहान पास कराने की जुगाड़बाजी ने बिहार के सुशासन का दावा करने वाली सरकार की छीछालेदर कर दी है. उस के ऊपर से सरकार के तालीम मंत्री ने यह कह कर करेला चढ़ा नीम पर वाली स्थिति पैदा कर दी कि इस कदाचार को रोकना सरकार के बूते की बात नहीं है. राज्य की शिक्षा व्यवस्था पर पहले भी कई सवालिया निशान लगते रहे हैं, पर नकल के ताजा फोटोग्राफोें से यह सवाल एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है.
बिहार में मैट्रिक की परीक्षा में चोरी का खुला खेल सालाना जलसे की तरह हो गया है. हर साल परीक्षा शुरू होने के पहले बिहार विद्यालय परीक्षा समिति नकल पर रोक लगाने के बड़ेबड़े दावे करती है. सभी जिलों के डीएम और एसपी को नकल रोकने के लिए कड़े कदम उठाने के फरमान जारी किए जाते हैं. नतीजा वही है टांयटांय फिस्स. घरघर में बच्चों को नकल कराने की छिड़ी जंग की तैयारी के सामने सरकार के सारे दावे हवा हो जाते हैं. फिर कुछेक परीक्षा सैंटरों की परीक्षा को कैंसिल कर फिर से परीक्षा लेने की तारीख का ऐलान होता है और सरकार व प्रशासन एक बार फिर इतमीनान से चादर तान कर सो जाता है. उस के ऊपर से परीक्षा को ‘स्वेच्छा’ बनाने के चक्कर में अभिभावक यह भूल जाते हैं कि नकल को बढ़ावा दे कर वे अपने ही बच्चों का कैरियर बरबाद कर रहे हैं. बिहार के स्कूलों से पास ज्यादातर बच्चों को जब दूसरे राज्यों में कोई तवज्जुह नहीं मिलती है तो वे सिर पीटते हैं.
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