वर्ष 1857 में अंगरेज हुकूमत के खिलाफ सैनिक बगावत को इतिहासकारों ने ‘सैनिक गदर’ कहा है. वीर सावरकर ने अपनी पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता समर’ में इस गदर को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है. मैं ने जब एक इतिहासकार की जिज्ञासाभरी नजरों से उस घटना का अध्ययन शुरू किया तो मुझे उस ‘1857 के गदर’ में स्वतंत्रता के युद्ध के दर्शन हुए. भारत के इस कथित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों ने अंगरेजों द्वारा सिंहासन से हटाए गए बूढ़े बहादुरशाह जफर को 11 मई, 1857 के दिन अपना सम्राट चुना था. इसी कारण 11 मई, 2007 को सरकार की ओर से दिल्ली के लालकिले पर स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई गई. प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार उस जश्न को देश में वर्षभर मनाया गया. पर अंगरेजों के खिलाफ इस बगावत को कार्ल मार्क्स महज सैनिक विद्रोह मानते हैं, जैसा कि उन्होंने लिखा है :

‘‘सन 1857 का भारतीय विद्रोह अंगरेजों द्वारा पीडि़त, अपमानित, नंगी जनता ने नहीं किया, बल्कि वेतनभोगी सिपाहियों ने किया था.’’ वे भारतीय जनता में राष्ट्रीयता का अभाव देखते हैं, जिस कारण वह सत्ता की तरफ से सदैव उदासीन रही है :

‘‘राज्य के छिन्नभिन्न हो जाने के बारे में देश के आम लोगों ने कभी कोई चिंता नहीं की. जब तक गांव पूरा का पूरा बना रहता है, वे इस बात की परवा नहीं करते कि वह किस सत्ता के हाथ में चला जाता है या उस पर किस बादशाह की हुकूमत कायम होती है.’’ कार्ल मार्क्स आगे सैनिक बगावत का कारण लिखते हैं :

‘‘सिपाहियों में जो कारतूस बांटे गए थे उन के कागजों (रैपर) पर गाय और सूअर की चरबी लगी थी. इस कारण कलकत्ता, बैरकपुर, इलाहाबाद, आगरा, अंबाला, लाहौर की छावनियों के सैनिक बागी हो गए और उन्होंने विद्रोह कर दिया. पूरे उत्तर भारत में सैनिक विद्रोह फैल गया.’’ वीर सावरकर इस प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 2 कारण मानते हैं. एक, ‘स्वधर्म’ रक्षा. दूसरा, ‘स्वराज्य’ प्राप्ति. ‘‘वस्तुत: 1857 के क्रांतिदूतों ने ‘स्वधर्म’ व ‘स्वराज्य’ की स्थापना के लिए ही अपने हाथों में शस्त्र धारण किए थे.’’

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