हर नजर

तुम रहे

सादगी भी रही

तुम को देखा था कभी

कनखियों से बारबार

जब हर नजर में

तुम ही नहीं थे

असंख्य स्वप्न साथ लिए

हृदय आल्हादित

हुआ करता था

क्या हो तुम

कैसे कहूं

असहज कर्म से

रचित काव्य में छिपे

मर्म से हो तुम.

 

- मनोज शर्मा

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...