सुबह किचन की खटरपटर से आंख खुली तो देखा, मेरी बेटी नेहा नाश्ता बना रही थी. मैं ने उसे मीठी झिड़की देते हुए कहा, “तूने मुझे उठाया क्यों नहीं, जा, बाकी का काम मैं करती हूं, तू औफिस के लिए तैयार हो जा.”
“मैं ने सोचा, आज अच्छा सा नाश्ता बना कर आप को सरप्राइज़ देती हूं. आप हमेशा चिंता करती हैं न कि मैं खाना बनाने में रुचि नहीं लेती, तो ससुराल वालों को कैसे खुश रखूंगी...?”
“नहीं रे, मैं जानती हूं कि मेरी बेटी सिर पर पड़ेगा तो सब कर लेगी. वह कभी ससुराल वालों को शिकायत का मौका नहीं देगी,” गर्व से मैं ने यह कहा. फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “बेटा, तुझे औफिस जाने में अभी एक घंटा बाकी है, मैं भी थोड़ा सा काम निबटा कर तैयार हो जाती हूं, तू मुझे निशा आंटी के घर पर छोड़ देना, ठीक है?”
मैं ने उस को मना करने का मौका ही नहीं दिया. वह मेरी बात सुन कर मुसकरा दी और बोली, “अच्छा वही, जो परसों पापा के साथ आप को मौल में मिली थीं. आप की बचपन की सहेली, जिन के बारे में बातें बताने में आप ने रात में बहुत देर तक मुझे और पापा को जगाए रखा था. अब समझी, इसीलिए इतना मस्का लगाया जा रहा था. अब आप को ले कर तो जाना ही पड़ेगा क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरी ममा कुछ मामलों में कभी समझौता नहीं करतीं.”
“हां रे, उस से मिलने के बाद उस के बदले रंगरूप को देख कर उस के बारे में जानने के लिए बेचैन हूं.”
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