आज भी ज्यादातर पशुपालक अपने पशुओं का बीमा कराने में दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं. इस से पशुओं के बीमार पड़ने, बाढ़ में बहने  या उन के मरने पर पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. महंगे और दुधारू पशुओं का बीमा करा कर पशुपालक बड़े नुकसान की भरपाई आसानी से कर सकते हैं. किसानों और पशुपालकों को राहत देने के लिए साल 1973 में पशुबीमा योजना की शुरुआत की गई थी, पर इस के 43 सालों बाद भी पशुपालक पशुबीमा के फायदों को नहीं समझ सके हैं. नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के मैनेजर रहे इंश्योरेंस एक्सपर्ट आरके सिन्हा बताते हैं कि बीमा कराने से पहले यह जानना जरूरी है कि किनकिन पशुओं का बीमा कराया जा सकता है और उस के लिए कितनी रकम प्रीमियम के रूप में देनी होगी. देशी और संकर नस्ल की दुधारू गाय या भैंस, बछड़ा या बछिया, प्रजनन क्षमता वाले सांड़ व बैलों का बीमा कराया जा सकता है. 2 से 10 साल की उम्र की दुधारू गायों, 3 से 12 साल की दुधारू भैंसों, 2 से 8 साल के प्रजनन क्षमता वाले सांड़ों, 2 से 12 साल के बैलों या भैंसों और 4 महीने से ले कर पहला बच्चा देने लायक बछिया या बछड़ों का बीमा किया जा सकता है. नस्ल, क्षेत्र और समय के आधार पर सौ फीसदी बाजार मूल्य को बीमित राशि माना जाता है. बीमा राशि की मंजूरी के लिए मवेशी डाक्टर की रजामंदी जरूरी होती है.

इस के बाद बीमा कराने से पहले पशुपालकों को यह समझ लेना चाहिए कि किस पशु का बीमा कराने पर कितनी रकम प्रीमियम के तौर पर जमा करनी होगी. दुधारू गायों या भैंसों की कुल बीमा की रकम का 5 फीसदी सालाना प्रीमियम के रूप में जमा करना होता है. प्रजनन कूवत वाले सांड़ों और बैलों के लिए कुल बीमा की रकम का 2.75 फीसदी प्रीमियम के रूप में देना होता है. अगर कोई किसान बीमा एजेंट से बीमा कराने के बजाय खुद बीमा दफ्तर में जा कर पशुओं का बीमा कराए, तो उसे मूल प्रीमियम में 15 फीसदी की छूट मिल सकती है.

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